शिमला: आर्थिक संकट से जूझ रही हिमाचल की कांग्रेस सरकार एक बार फिर से पानी से पैसा कमाने की जुगत भिड़ा रही है. पूर्व में वाटर सेस कमीशन विधेयक में अदालती लड़ाई हार चुकी सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार अब नए कानून में पहले से सबक लेकर फूंक-फूंक कदम उठाएगी. हाल ही में हिमाचल प्रदेश विधानसभा के मानसून सेशन में सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने नए वाटर सेस कानून की तरफ संकेत दिया है.
सेशन के अंतिम दिन राज्य की वित्तीय स्थिति को लेकर हुई चर्चा के जवाब में सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने सदन में कहा था कि हिमाचल सरकार राज्य में बहती नदियों के पानी को संसाधन की तरह प्रयोग करेगी. कांग्रेस सरकार वाटर सेस को लेकर एक यूनिवर्सल और यूनिफार्म कानून लाएगी. कैबिनेट में जल्द ही इस मामले पर चर्चा होगी. पिछले कानून को अदालत ने रोक दिया है. मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
सीएम सुक्खू ने कहा है कि इस बारे में उनकी डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री से चर्चा हो चुकी है. उल्लेखनीय है कि मुकेश अग्निहोत्री राज्य सरकार के जल शक्ति मंत्री भी है. पिछली बार भी वाटर सेस कानून सदन में डिप्टी सीएम ने ही पेश किया था. अब सरकार ने इस मामले में जल शक्ति विभाग के साथ-साथ विधि सचिव कार्यालय को भी सक्रिय किया है.
दूर करेंगे पिछले कानून की कमियां: पिछले कानून में जिन बिंदुओं पर अदालत में सरकार का पक्ष टिक नहीं पाया था, उन्हें इस बार दूर किया जाएगा. विधि सचिव ऐसे सारे पहलुओं का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट देंगे. शीतकालीन सत्र में ये बिल सदन में पेश किया जा सकता है. उससे पहले सरकार को पूर्व के बिल की रिपील करना होगा. सीएम सुक्खू ने सदन में कहा
(प्रदेश से जो भी पानी बहता है या बांध में स्टोर होता है, हम आने वाले समय में उसके लिए एक नया एक्ट लेकर आ रहे हैं, ताकि हम अपने यहां के बहते हुए पानी पर किस तरह से लेवी लगा सकें. हमारी सरकार इस पर काम कर रही है और आने वाले सत्र में हम इस पर एक एक्ट लाने की पूरी कोशिश करेंगे. उससे भी काफी आय होने की संभावना है.
सत्ता में आने के बाद लगाया सेस, जमा हो गए थे 30 करोड़: कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आने के बाद वाटर सेस के रूप में कमाई का साधन तलाशा था. सरकार ने विधानसभा में वाटर सेस बिल पारित करवाया. हिमाचल प्रदेश में 172 हाइड्रो पावर कंपनियां काम कर रही हैं, जिन पर सेस लगाया गया था. उनमें से कुछ कंपनियों ने सेस जमा करवा भी दिया था. सेस की ये रकम 30 करोड़ रुपए थी. सरकार ने वाटर कमीशन में रिटायर्ड आईएएस अधिकारी अमिताभ अवस्थी को चेयरमैन बनाया था. सरकार का ये अनुमान था कि वाटर सेस से सालाना 1000 करोड़ रुपए से अधिक की कमाई हो सकती है. उधर, केंद्र सरकार के उर्जा मंत्रालय ने देश के सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को एक पत्र लिखा था कि वाटर सेस लीगल नहीं है. पंजाब व हरियाणा सरकारों ने भी हिमाचल के वाटर सेस लगाने के कदम का विरोध किया था. फिर कई पावर कंपनियां वाटर सेस के खिलाफ हाईकोर्ट चली गई थीं. बाद में इसी साल मार्च महीने में हिमाचल हाईकोर्ट ने वाटर सेस कानून को असंवैधानिक बता कर रद्द कर दिया था.
2023 के बजट सेशन में आया था बिल: हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार ने पिछले साल मार्च में वाटर सेस बिल पारित किया था. बजट सेशन में ये बिल लाया गया था. राज्य सरकार का तर्क था कि वाटर यानी पानी राज्य का विषय है और उसे अपने यहां बह रही नदियों के पानी पर सेस लगाने का पूरा अधिकार है. सदन में कहा गया था कि बेशक जलविद्युत परियोजनाएं उर्जा विभाग का हिस्सा हैं, लेकिन किसी भी राज्य की जल संपदा और जल संसाधनों का स्वामित्व जल शक्ति विभाग के पास होता है. ये बिल हिमाचल प्रदेश वाटर सेस ऑन हाइड्रो पावर जेनरेशन बिल 2023 के नाम से लाया गया था. बिल में दर्ज प्रावधानों के अनुसार अभी जिन परियोजनाओं का प्रोजेक्ट हैड 30 मीटर तक होगा, उन पर 10 पैसे प्रति क्यूबिक मीटर पानी के हिसाब से सेस लगाया गया था. फिर जिन परियोजनाओं का हैड 60 से 90 मीटर होगा, उन पर 35 पैसे प्रति क्यूबिक मीटर पानी के हिसाब से वाटर सेस लागू किया गया था. राज्य की नदियों पर चल रही बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं में जिनका हेड 90 मीटर से अधिक है, उन पर 50 पैसे प्रति क्यूबिक मीटर वाटर सेस देय था.
अदालत पहुंची थी पावर कंपनियां: हिमाचल सरकार की तरफ से लाए गए वाटर सेस कानून को पावर कंपनियों यथा एनटीपीसी, बीबीएमबी, एनएचपीसी और एसजेवीएनएल ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. कंपनियों ने अपनी याचिकाओं में तर्क दिया था कि केंद्र व राज्य सरकार के साथ अनुबंध के आधार पर कंपनियां राज्य को 12 से 15 प्रतिशत बिजली निशुल्क देती हैं. इस स्थिति में हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम के तहत कंपनियों से सेस वसूलने का प्रावधान संविधान के अनुरूप नहीं है. अदालत को बताया गया कि 25 अप्रैल 2023 को केंद्र सरकार ने पाया कि कुछ राज्य भारत सरकार के उपक्रमों यानी पावर कंपनियों पर वाटर सेस वसूल रहे हैं अथवा वसूलने की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं. हाईकोर्ट में कई सुनवाइयों के बाद 5 मार्च 2024 को अदालत ने इसे रद्द कर दिया था. हाईकोर्ट ने कहा था कि राज्य के पास ऐसा कोई कानून लाने का हक नहीं है. तब राज्य सरकार के एडवोकेट जनरल अनूप रत्न ने कहा था कि राज्य के पास पानी संसाधन के रूप में है. इससे राज्य की आय बढ़ सकती है. उत्तराखंड हाईकोर्ट में भी मामले में दो जजों की बैंच में एक जज की राय थी कि पानी पर सेस लगाया जा सकता है. हिमाचल हाईकोर्ट ने इसे पानी नहीं बल्कि पावर जेनरेशन पर टैक्स माना था. बाद में राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई. हिमाचल हाईकोर्ट ने कंपनियों की तरफ से जमा करवाए गए सेस के 30 करोड़ रुपए से अधिक चार हफ्ते में वापस करने के आदेश दिए थे. हाईकोर्ट के इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगाया हुआ है.
कहां हुई गलती: हिमाचल सरकार से बिल बनाने के दौरान एक गलती हुई. हालांकि हिमाचल सरकार की मंशा थी कि वाटर सेस से कमाई होगी, लेकिन बिल का ड्राफ्ट बनाते समय उसमें प्रस्तावना में हाइड्रो पावर शब्द आ गया. इस तरह ये पानी न होकर जलविद्युत हो गया. इसी बिंदु को हाईकोर्ट ने हाईलाइट किया था. बाद में जब वाटर सेस अधिसूचित किया गया था तो हाईकोर्ट में केस के दौरान सरकार ने बताया कि यह सेस स्टेटमेंट ऑफ रेवेन्यू जनरेशन है. वहीं, अधिसूचना में ये एडिशनल टैक्स के रूप में अधिसूचित हुआ. अब राज्य सरकार नए सिरे से ड्राफ्ट तैयार करेगी और कैबिनेट में चर्चा के लिए लाकर शीतकालीन सत्र में इसे पेश करेगी. उस बिल में पूर्व की गलतियों से बचकर सटीक प्रावधान किए जाएंगे.
पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का कहना है कि बेशक हिमाचल में पानी से पैसा कमाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए नए बिल के प्रावधान ऐसे होने चाहिए कि पावर कंपनियां उसे चैलेंज न कर सकें. दिलचस्प बात है कि हिमाचल की कांग्रेस सरकार की तरफ से लाए गए वाटर सेस कानून के खिलाफ पावर कंपनियों का केस कांग्रेस के ही नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने लड़ा और जीता था. यानी राज्य सरकार के वाटर सेस कानून से पैसे कमाने के सपने पर कांग्रेस के ही वकील नेता ने पानी फेर दिया था.