लखनऊ : माफिया मुख्तार अंसारी की हार्टअटैक से मौत हो चुकी है और इसी के साथ माफिया का आतंक पूरी तरीके से समाप्त हो चुका है. करीब 3 दशक तक माफिया मुख्तार अंसारी का पूर्वांचल से लेकर यूपी और यूपी के बाहर भी उसका दबदबा और आतंक रहता था. मुख्तार अंसारी की दबंगई और राजनीति में एंट्री 90 के दशक में हुई थी. इसके बाद से लेकर उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने तक लगातार कायम रही. 2017 में योगी सरकार बनने के बाद से लगातार मुख्तार अंसारी पर ताबड़तोड़ कार्रवाई की गई और उसकी माफिया गिरी निकाल दी गई.
2017 से माफिया मुख्तार अंसारी पर शिकंजा कसना हुआ शुरू : माफिया मुख्तार अंसारी को सबसे ज्यादा संरक्षण बसपा और सपा की सरकारों में मिलता रहा है. हालांकि जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने थे तब जरूर मुख्तार अंसारी के परिवार से दूरी बनाने का काम किया था. लेकिन, अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए मुलायम सिंह यादव के इशारे पर अंसारी परिवार के प्रति सपा सरकार का सॉफ्ट कॉर्नर बरकरार रहा. 2017 में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी, उसके बाद से लगातार मुख्तार अंसारी के आतंक के साम्राज्य को ढहाने का काम शुरू हो गया था. मुख्तार पर लगातार शिकंजा कसने का काम हुआ. न्यायालय के स्तर पर उसके मुकदमों का ट्रायल तेजी से शुरू हुआ और वह जेल से बाहर नहीं आ पाया. अवैध संपत्तियों पर भी योगी सरकार का बुलडोजर जमकर चला और हर स्तर पर माफिया की कमर तोड़ने का काम किया गया. कुल मिलाकर मुख्तार अंसारी की सारी माफियागिरी भारतीय जनता पार्टी की सरकार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर निकाल दी गई और भाजपा सरकार में ही मुख्तार के आतंक का पूरी तरह से सफाया कर दिया गया.
दादा कांग्रेस पार्टी और मुस्लिम लीग के थे अध्यक्षः मुख्तार अंसारी को राजनीति एक तरह से विरासत में मिली थी. उनके दादा मुख्तार अहमद अंसारी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी और मुस्लिम लीग के भी अध्यक्ष थे. वह कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार थे और वह दिल्ली में रहते थे. जबकि उनका परिवार गाजीपुर में रहता था. बेटा सुभानुल्लाह अंसारी मोहम्दाबाद के यूसुफपुर में परिवार के साथ रहते थे और राजनीति में उनकी दिलचस्पी बहुत कम रहती थी. उनके दूसरे बेटे अफजाल अंसारी राजनीति में सक्रिय थे और कांग्रेस के रूप में पूर्वांचल में उनकी पहचान बनना शुरू हुई और धीरे-धीरे करके अफजाल अंसारी पूर्वांचल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े नेता बन गए. अफजाल अंसारी विधानसभा से लेकर लोकसभा तक कई चुनाव जीते और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर कई बार विधायक निर्वाचित हुए. इसके अलावा समाजवादी पार्टी के टिकट पर भी अफजाल अंसारी ने जीत हासिल की और गाजीपुर से लोकसभा का चुनाव भी जीतने में वह सफल रहे.
माफिया मुख्तार अंसारी के राजनीतिक करियर की शुरूआत : अब बात करते हैं माफिया मुख्तार अंसारी के राजनीतिक करियर के रूप में शुरुआत की. मुख्तार के राजनीति में सक्रिय होने के बाद से वह ठेकेदारी जैसे काम 80 के दशक में शुरू कर चुका था. हालांकि, राजनीति में उसकी एंट्री 90 के दशक में हुई और राजनीति के साथ-साथ पूर्वांचल के बड़े ठेके पर भी उसका एकाधिकार होने लगा था. बहुजन समाज पार्टी ने मऊ विधानसभा से मुख्तार अंसारी को 1996 में टिकट दिया और मुख्तार अंसारी अपने परिवार और खुद के दबंगई के चलते इस सीट पर चुनाव जीतने में सफल रहा. मऊ विधानसभा सीट से मुख्तार अंसारी 1996 में पहली बार बसपा से चुनाव जीता और फिर 2002 में बसपा से एक बार फिर चुनाव जीता. लेकिन, 2007 में जब बहुजन समाज पार्टी सत्ता में आई और मायावती मुख्यमंत्री बनीं, तब तक मुख्तार अंसारी का आतंक काफी चरम सीमा तक पहुंच चुका था और उसके खिलाफ कई आपराधिक मुकदमें दर्ज हो चुके थे. जिसके बाद मायावती ने उससे किनारा कर लिया. मुख्तार ने 2007 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीता. लेकिन, बहुजन समाज पार्टी के साथ मुख्तार अंसारी परिवार के रिश्ते कायम रहे और कुछ समय के लिए कुछ तनातनी भी देखने को मिली थी.
साल 2019 में मुख्तार अंसारी हारा था चुनाव : 2012 में मुख्तार अंसारी कौमी एकता दल और 2017 में एक बार फिर बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुआ. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी वाराणसी सीट से चुनाव लड़ा. लेकिन, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी से चुनाव हार गया था. 2012 में जब उत्तर प्रदेश में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव के नेतृत्व में साइकिल यात्रा निकाली जा रही थी और अखिलेश अपनी नीट एंड क्लीन छवि के साथ सरकार बनाने का दावा करते हुए बड़े स्तर पर चुनाव प्रचार कर रहे थे, उस समय मुख्तार अंसारी परिवार को समाजवादी पार्टी में एंट्री मिलने से मना कर दिया गया था. अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह यादव और मुलायम सिंह यादव की परवाह किए बगैर मुख्तार अंसारी से दूरी बना ली. सपा-बसपा जैसे दलों ने जब माफिया मुख्तार अंसारी से दूरी बनाना शुरू की उसके बाद मुख्तार अंसारी और उसके बड़े भाई अफजाल अंसारी ने छोटे दलों को मिलाकर कौमी एकता दल का गठन भी किया था और 2012 के विधानसभा चुनाव के पहले गाजीपुर में बड़ा शक्ति प्रदर्शन भी अंसारी परिवार ने किया था. कौमी एकता दल के टिकट पर 2012 का विधानसभा चुनाव मुख्तार अंसारी जीतने में सफल हुआ. हालांकि, समाजवादी पार्टी सरकार में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भले अंसारी बंधुओं से नाराज रहते थे, लेकिन मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव का संरक्षण अंसारी परिवार को मिलता रहा. 2017 के विधानसभा चुनाव के समय कौमी एकता दल का बसपा में विलय कर दिया गया और मायावती ने एक बार फिर अंसारी परिवार को संरक्षण और शरण देना शुरू कर दिया था. बसपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में अंसारी परिवार को फिर तवज्जो दी और मुख्तार को मऊ सीट से टिकट दिया गया, जिसके बाद वह एक बार फिर चुनाव जीतने में सफल रहा.
2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ ने शपथ ग्रहण की. भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में मुख्य आरोपी माफिया मुख्तार अंसारी के खिलाफ अभियान शुरू हुआ और भाजपा विधायक की हत्या करने वाले मुख्तार के खिलाफ जमकर कार्यवाही हुई. मुकदमोंं का अदालत में तेजी से ट्रायल शुरू हुआ और लगातार शिकंजा कसना जारी रहा. मुख्तार की अवैध संपत्तियों के खिलाफ भी बुलडोजर खूब चला और उसके खिलाफ सख्ती जारी रही. यही नहीं उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद माफिया मुख्तार अंसारी पर न सिर्फ शिकंजा कसा गया बल्कि पंजाब की जेल से उसे उत्तर प्रदेश लाकर बांदा जेल में शिफ्ट किया गया था. पंजाब में कांग्रेस सरकार के दौरान उसकी जमकर खातिरदारी होती थी, लेकिन उसके खिलाफ मुकदमों का ट्रायल अदालतों में पेशी को देखते हुए योगी सरकार उसे पंजाब से उत्तर प्रदेश लाई थी और बांदा जेल में शिफ्ट किया गया था. 2021 को मुख्तार को पंजाब की रोपड़ जेल से बांदा जेल लाया गया था और इसके बाद से लगातार मुख्तार के खिलाफ शिकंजा कसना तेज हुआ और उसके खिलाफ कार्रवाई जारी रही. बीती रात हार्ट अटैक से उसकी मौत हो गई और पूरी तरीके से उसका आतंक समाप्त हो गया.