पानीपत: आजादी के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक, हर बार प्रचार, मतदान और वोटिंग के दौरान कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं, जो दशकों तक लोगों को याद रहती हैं. कुछ ऐसी घटनाएं हैं, जो वक्त के साथ धुंधली पड़ जाती हैं. चाहे वो दिग्गज नेताओं की हार हो या फिर साधारण पार्टी कार्यकर्ता की बड़ी जीत. ऐसा ही एक किस्सा हरियाणा की करनाल लोकसभा सीट से जुड़ा है. जब करनाल लोकसभा सीट के लिए वोटों की गिनती सुप्रीम कोर्ट में हुई थी.
1962 के लोकसभा चुनाव से हुई शुरुआत: इस किस्से की शुरुआत होती है 1962 के लोकसभा चुनाव से. उस वक्त जनसंघ पार्टी से प्रत्याशी रामेश्वर नंद ने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार वीरेंद्र कुमार को बड़े अंतर से हराया था. इस जीत के बाद सांसद बने स्वामी रामेश्वर नंद ने अपने वक्तव्य से पूरी पार्लियामेंट को हिला कर रख दिया. इसके बाद स्वामी रामेश्वर नंद को ख्याति मिली. कांग्रेस पार्टी के पास कोई ऐसा नेता नहीं था जो स्वामी रामेश्वर नंद को टक्कर दे सके.
जनसंघ के नेता ने इंदिरा गांधी की दी थी चुनौती: सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट राममोहन राय ने उन दिनों को याद कर बताया "स्वामी रामेश्वर नंद को इस बात का गुमान हो गया था कि उन्हें कोई नहीं हरा सकता. यहां तक की उन्होंने उस वक्त की पीएम इंदिरा गांधी को भी चुनौती दे दी थी और कहा था कि अगर उनके सामने अगर इंदिरा गांधी भी चुनाव लड़े तो वो हार जाएंगी. जब 1967 में लोकसभा चुनाव हुए तो करनाल सीट से आए नतीजों से हर कोई हैरान था."
करनाल लोकसभा बनी थी हॉट सीट: साल 1967 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बड़े असमंजस में थी कि करनाल लोकसभा सीट पर किस प्रत्याशी को उतारा जाए. जो स्वामी रामेश्वर नंद को हरा सके. खूब चिंतन मंथन के बाद कांग्रेस ने स्वतंत्रता सेनानी रहे लोकल कार्यकर्ता माधव राम शर्मा को स्वामी रामेश्वर नंद के सामने करनाल लोकसभा सीट से मैदान में उतारा. माधव राम शर्मा आर्थिक दृष्टि से बड़े ही कमजोर थे और वो विकलांग भी थे. ट्रेन हादसे में उनकी एक टांग चली गई थी. माधव राम शर्मा अपने कार्यों की दृष्टि से बहुत ही होनहार थे.
जनसंघ पार्टी के उम्मीदवार स्वामी रामेश्वर नंद की हार: 1967 में जब रामेश्वर नंद और माधवराम शर्मा के बीच टक्कर हुई. उस समय करनाल और पानीपत विधानसभा में विधायक भी जनसंघ पार्टी के थे. पानीपत में उस समय विधायक फतेहचंद हुआ करते थे. तब गली, चौराहों और नुक्कड़ों पर चुनावी नारा यही गूंजता था. फतेह फतेह चंद की, जय रामेश्वरम नंद की. 1967 में चुनाव के बाद जब परिणाम आया उसने सबको अचंभित कर दिया. पंडित माधव राम शर्मा ने इस चुनाव में स्वामी रामेश्वर नंद को 55 वोटों से हरा दिया.
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला: इस हार से जनसंघ पार्टी में हलचल मच गई. खुद कांग्रेस पार्टी को भी इस जीत पर विश्वास नहीं हो रहा था. जनसंघ पार्टी के प्रत्याशी स्वामी रामेश्वर नंद को ये हार हजम नहीं हो रही थी. उन्होंने दोबारा से मतगणना करवाई. मतगणना के बाद माधवराम शर्मा 555 वोट से आगे रहे. मामला दोबारा काउंटिंग के लिए कोर्ट में पहुंचा. कोर्ट से फिर मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. 1 साल मामले की सुनवाई चली. बेल्ट पेपर के बॉक्स भी कोर्ट में ही जम रहे.
सुप्रीम कोर्ट में हुई वोटों की गिनती: 1 साल बाद सुप्रीम कोर्ट के जज मोहम्मद हिदायतुल्लाह की बेंच के सामने कई दिनों तक बैलट पेपर की काउंटिंग की गई. काउंटिंग में माधवराम शर्मा 555 वोट से विजेता घोषित किया गया. ये सुप्रीम कोर्ट के इतिहास और देश की लोकसभा चुनाव के इतिहास में पहले ऐसा लोकसभा चुनाव रहा. जिसकी मतगणना सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई थी.