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सुप्रीम कोर्ट ने गैंगस्टर गवली के मामले में कहा-'सो जा बेटा नहीं तो गब्बर आ जाएगा' - SC Arun Gawli case - SC ARUN GAWLI CASE

SC Arun Gawli Premature Release case: पूर्व अंडरवर्ल्ड डॉन अरुण गवली की समयपूर्व रिहाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म 'शोले' में एक मशहूर डायलॉग का हवाला देते हुए फैसला सुनाया. गवली मुंबई में शिवसेना पार्षद कमलाकर जामसंदेकर की हत्या के मामले में सजा काट रहा है.

SC Ruling Against Premature Release Of Gangster Arun Gawli
सुप्रीम कोर्ट में अरुण गवली मामले की सुनवाई (ETV Bharat)
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By Sumit Saxena

Published : Aug 1, 2024, 1:05 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को खूंखार गैंगस्टर अरुण गवली की समयपूर्व रिहाई के पक्ष में फैसला देने से इनकार करते हुए चर्चित हिंदी ब्लॉकबस्टर 'शोले' के एक लोकप्रिय डायलॉग को याद किया. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने गवली के वकील से कहा कि उन्हें पता होना चाहिए कि 'हर कोई अरुण गवली नहीं है. फिल्म 'शोले' में एक मशहूर डायलॉग है, 'सो जा बेटा, नहीं तो गब्बर आ जाएगा'. पीठ ने कहा कि यह डायलॉग इस मामले में बिल्कुल फिट बैठता है.

गवली का प्रतिनिधित्व कर रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने दलील दी कि मामले में अन्य सह-आरोपियों को जमानत दी गई है और बॉम्बे हाई कोर्ट ने समय से पहले रिहाई देकर सही किया है. उन्होंने कहा कि उनका मुवक्किल हृदय रोग से पीड़ित है और उसके फेफड़ों में खराबी है. हालांकि, पीठ ने कहा कि वह उनकी दलील को स्वीकार करने को तैयार नहीं है और उसने 3 जून के अपने आदेश को बरकरार रखा, जिसमें बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ के 5 अप्रैल के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी गई थी. शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई 20 नवंबर को तय की है.

हाई कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को 2006 की छूट नीति के तहत समय से पहले रिहाई के लिए गवली के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया था. सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता राजा ठाकरे ने पेश किया कि गवली के खिलाफ 46 से अधिक मामले हैं. इनमें हत्या के लगभग 10 मामले शामिल हैं. उन्होंने कहा कि गैंगस्टर 17 साल से अधिक समय से सलाखों के पीछे है. इस मोड़ पर पीठ ने पूछा क्या कारावास की अवधि के दौरान उसमें सुधार हुआ है?

ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत दोषियों को छूट के लिए कम से कम 40 साल की सजा काटनी होती है. उन्होंने 2015 की नीति का हवाला दिया. इस दलील का विरोध करते हुए गवली के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल को 2009 में दोषी ठहराया गया था और उनके मामले में 2006 की नीति लागू होगी और 2006 की नीति के अनुसार, उम्र और शारीरिक अक्षमता के आधार पर छूट दी जाती है. गवली अब 72 साल का हो चुका है.

उन्होंने जोर देकर कहा कि राज्य सरकार ने 2015 में अपनी छूट नीति बदल दी है, लेकिन इस अदालत ने माना है कि वही नीति लागू होगी जो उस समय लागू थी जब उसे दोषी ठहराया गया था. गवली के स्वास्थ्य के पहलू पर राज्य के वकील ने कहा कि वह 40 साल से लगातार धूम्रपान कर रहा है. रामकृष्णन ने जोरदार दलील दी, 'तो क्या हुआ, आप इस वजह से उसे अंदर नहीं रख सकते.

उस पर धूम्रपान का कोई मुकदमा नहीं चल रहा है. सलाहकार बोर्ड ने प्रमाणित किया है कि वह अपनी उम्र के हिसाब से कमजोर है. इसलिए 2006 की नीति लागू होगी क्योंकि उसे तब दोषी ठहराया गया था.' हालांकि, पीठ ने कहा, 'हम कोई अंतरिम राहत देने के लिए इच्छुक नहीं हैं. हमारे द्वारा दी गई अंतरिम रोक की पुष्टि की जाती है.'

मुंबई के शिवसेना पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की 2007 में हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे गवली का दावा है कि उसने 2006 की नीति की सभी शर्तों का पालन किया है. गवली ने तर्क दिया है कि उसकी उम्र अधिक है और मेडिकल बोर्ड ने उसे कमज़ोर घोषित किया है, जिससे वह छूट नीति का लाभ उठाने के योग्य है.

ये भी पढ़ें- पूर्व अंडरवर्ल्ड डॉन अरुण गवली को बड़ी राहत, बॉम्बे हाईकोर्ट ने समय पूर्व रिहा करने का दिया निर्देश

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को खूंखार गैंगस्टर अरुण गवली की समयपूर्व रिहाई के पक्ष में फैसला देने से इनकार करते हुए चर्चित हिंदी ब्लॉकबस्टर 'शोले' के एक लोकप्रिय डायलॉग को याद किया. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने गवली के वकील से कहा कि उन्हें पता होना चाहिए कि 'हर कोई अरुण गवली नहीं है. फिल्म 'शोले' में एक मशहूर डायलॉग है, 'सो जा बेटा, नहीं तो गब्बर आ जाएगा'. पीठ ने कहा कि यह डायलॉग इस मामले में बिल्कुल फिट बैठता है.

गवली का प्रतिनिधित्व कर रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने दलील दी कि मामले में अन्य सह-आरोपियों को जमानत दी गई है और बॉम्बे हाई कोर्ट ने समय से पहले रिहाई देकर सही किया है. उन्होंने कहा कि उनका मुवक्किल हृदय रोग से पीड़ित है और उसके फेफड़ों में खराबी है. हालांकि, पीठ ने कहा कि वह उनकी दलील को स्वीकार करने को तैयार नहीं है और उसने 3 जून के अपने आदेश को बरकरार रखा, जिसमें बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ के 5 अप्रैल के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी गई थी. शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई 20 नवंबर को तय की है.

हाई कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को 2006 की छूट नीति के तहत समय से पहले रिहाई के लिए गवली के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया था. सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता राजा ठाकरे ने पेश किया कि गवली के खिलाफ 46 से अधिक मामले हैं. इनमें हत्या के लगभग 10 मामले शामिल हैं. उन्होंने कहा कि गैंगस्टर 17 साल से अधिक समय से सलाखों के पीछे है. इस मोड़ पर पीठ ने पूछा क्या कारावास की अवधि के दौरान उसमें सुधार हुआ है?

ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत दोषियों को छूट के लिए कम से कम 40 साल की सजा काटनी होती है. उन्होंने 2015 की नीति का हवाला दिया. इस दलील का विरोध करते हुए गवली के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल को 2009 में दोषी ठहराया गया था और उनके मामले में 2006 की नीति लागू होगी और 2006 की नीति के अनुसार, उम्र और शारीरिक अक्षमता के आधार पर छूट दी जाती है. गवली अब 72 साल का हो चुका है.

उन्होंने जोर देकर कहा कि राज्य सरकार ने 2015 में अपनी छूट नीति बदल दी है, लेकिन इस अदालत ने माना है कि वही नीति लागू होगी जो उस समय लागू थी जब उसे दोषी ठहराया गया था. गवली के स्वास्थ्य के पहलू पर राज्य के वकील ने कहा कि वह 40 साल से लगातार धूम्रपान कर रहा है. रामकृष्णन ने जोरदार दलील दी, 'तो क्या हुआ, आप इस वजह से उसे अंदर नहीं रख सकते.

उस पर धूम्रपान का कोई मुकदमा नहीं चल रहा है. सलाहकार बोर्ड ने प्रमाणित किया है कि वह अपनी उम्र के हिसाब से कमजोर है. इसलिए 2006 की नीति लागू होगी क्योंकि उसे तब दोषी ठहराया गया था.' हालांकि, पीठ ने कहा, 'हम कोई अंतरिम राहत देने के लिए इच्छुक नहीं हैं. हमारे द्वारा दी गई अंतरिम रोक की पुष्टि की जाती है.'

मुंबई के शिवसेना पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की 2007 में हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे गवली का दावा है कि उसने 2006 की नीति की सभी शर्तों का पालन किया है. गवली ने तर्क दिया है कि उसकी उम्र अधिक है और मेडिकल बोर्ड ने उसे कमज़ोर घोषित किया है, जिससे वह छूट नीति का लाभ उठाने के योग्य है.

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