सरगुजा: भारतीय समाज मे ऐसी परम्परा रही हैं, जिनसे ईको सिस्टम मेंटेन रहता है. पेड़-पौधे, जीव-जंतु और मानव सभी एक दूसरे से परस्पर सहयोग की भावना के साथ जीवन बिताते हैं, लेकिन अब इस इको सिस्टम की चेन टूटती हुई दिख रही है. आलम यह है कि स्ट्रीट एनिमल पेट भरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उनकी भूख मिटाने का जुगाड़ खत्म हो गया है.
स्वच्छ भारत मिशन का साइड इफेक्ट: यह बदलाव बेहद अच्छी पहल के साइड इफेक्ट के रूप में उभर कर सामने आया है. साल 2014 में देश में स्वच्छ भारत मिशन शुरू हुआ था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी से स्वच्छता की अपील की. घर-घर शौचालय बनाए गए. कचरे का बेहतर प्रबंधन करने की योजना बनी. इस प्रबंधन में देश में सबसे पहले अम्बिकापुर नगर निगम ने बेहतर कार्ययोजना बनाई. सॉलिड लिक्विड एंड वेस्ट मैनेजमेंट का प्लान बना और इसे सेल्फ सेस्टनेबल मॉडल के तौर पर शुरू किया गया. यह मॉडल इतना सफल हुआ कि पहले पूरे छत्तीसगढ़ में और फिर धीरे-धीरे पूरे देश में इसे अपनाया जाने लगा.
जानिए क्या कहते हैं गौ सेवक: गौ सेवा समिति में सदस्यों को भी इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है. इस बारे में सरगुजा के गौ सेवक रिंकू का कहना है कि. "हमारे देश में परंपरा रही है कि पहली रोटी गाय की और आखरी रोटी कुत्ते की. इससे पशुओं को आहार मिल जाता है. किचन से निकलने वाला वेस्ट या बचा हुआ भोजन भी इन बेजुबान जानवरों को दे दिया जाता था. स्वच्छ भारत मिशन बहुत अच्छी योजना है, लेकिन इस योजना में एक खामी है. इस कारण पशु भूखे रह जा रहे हैं. योजना बनाने वाली टीम को इस पर ध्यान देना चाहिए. इसके दुष्परिणाम से ये पशु भूख से खत्म हो जाएंगे." वहीं, स्थानीय लोगों का भी मानना है कि भले ही स्वच्छ भारत मिशन सफाई के लहजे से बेहतर हो, लेकिन इससे बेजुबानों का भोजन धीरे-धीरे खत्म हो रहा है.
गौ सेवक संस्था आखिर कितने गायों को खिला पाएगी. घर से निकलने वाला खाना अब कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है. इसमें सरकार को भी ध्यान देने की जरूरत है. लोगों को भी जागरूक रहने की जरूरत है कि वो अपने मोहल्ले में एक नाद में इस खाने को एकत्र कर दें, ताकि पशु इसे खा सकें. -अजीत विश्वकर्मा, गौ सेवक
बेजुबानों को नहीं मिल रहा भोजन: स्वच्छता सर्वेक्षण में अम्बिकापुर की बादशाहत भी लगातार रही. कई अवार्ड, कई खिताब अम्बिकापुर ने अपने नाम किए, हालांकि इस बेहतरीन योजना में टेक्निकल टीम से शायद एक गलती हो गई और उसने इसके साइड इफेक्ट पर ध्यान नहीं दिया. क्योंकि बीते वक्त के साथ इस मॉडल के कारण समाज में एक समस्या ने जन्म ले लिया है. अब जानवरों को पेट भरने के लिए भोजन नहीं मिल पा रहा है. क्योंकि पहले लोग अपने घरों में बचने वाला खाना, किचन का वेस्ट स्ट्रीट एनिमल जैसे गाय या कुत्तों को खिला देते थे. अब घर-घर स्वच्छ भारत मिशन की डस्टबिन है, लोग किचन वेस्ट भी डस्टबिन में डाल देते हैं और स्वच्छता दीदी इसे ले जाती हैं. यही कारण है कि बेजुबान पशुओं को भोजन पहले की तरह नहीं मिल रहा है.