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'तलाक सिर्फ कोर्ट से लिया जा सकता है, शरीयत काउंसिल अदालत...', हाईकोर्ट का बड़ा फैसला - MADRAS HIGH COURT

Madras HC on Shariat Council: मद्रास हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि शरीयत काउंसिल को तलाक प्रमाणपत्र देने का कोई अधिकार नहीं है.

Shariat Council is not a court! Madras High Court observed
मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 29, 2024, 5:31 PM IST

मदुरै: तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के एक मुस्लिम डॉक्टर जोड़े ने 2010 में इस्लामी रीति-रिवाज से शादी की थी. इस शादी से दोनों का एक बेटा भी है. 2018 में महिला ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी.

न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 2021 में पति को घरेलू हिंसा से हुई मानसिक क्षति के लिए मुआवजे के तौर पर 5 लाख रुपये और गुजारा भत्ता और भरण-पोषण के लिए 25,000 रुपये प्रतिमाह देने का आदेश दिया था.

2022 में सत्र न्यायालय ने भी इस आदेश को बरकरार रखा था. जिसके चलते महिला के पति ने मद्रास हाईकोर्ट में आपराधिक समीक्षा याचिका दायर की. सुनवाई के दौरान पति की ओर से दस्तावेज दाखिल किए गए, जिसमें कहा गया कि अगस्त, सितंबर और नवंबर 2017 के महीने में तीन बार तलाक के नोटिस भेजे गए और शरीयत काउंसिल ने स्वीकृति का प्रमाण पत्र जारी किया और इसी आधार पर उसने दूसरी महिला से शादी कर ली.

बिना कानूनी तलाक के दूसरी शादी की इजाजत नहीं
डॉक्टर की आपराधिक समीक्षा याचिका पर सुनवाई करने वाले मद्रास हाईकोर्ट की मदुरे बेंच के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने अपने फैसले में कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पहली पत्नी गुजारा भत्ता पाने की हकदार है. उन्होंने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता का धर्म मुस्लिम पुरुष को 4 शादियां करने की इजाजत देता है. लेकिन कानून बिना कानूनी तलाक लिए दूसरी शादी की इजाजत नहीं देता, इसलिए पहली पत्नी को गुजारा भत्ता मांगने का पूरा अधिकार है.

जज ने कहा कि पहले दो तलाक नोटिस जारी किए गए थे. लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि तीसरा नोटिस जारी किया गया था. जज ने यह भी कहा कि पत्नी का दावा है कि उसकी शादी अभी भी वैध है.

क्या पति के तलाक का फैसला कोर्ट ने नहीं माना?
जज ने यह भी कहा कि तलाक कानूनी तौर पर कोर्ट के जरिए ही मिल सकता है और जब तक कोर्ट आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा नहीं कर देता, तब तक दोनों को पति-पत्नी माना जाएगा. आपको कोर्ट में यह साबित करना होगा कि आपने कानून के मुताबिक तलाक दिया है. जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने कहा कि पत्नी कोर्ट जा सकती है.

जस्टिस स्वामीनाथन ने अपने फैसले में लिखा, "एक हिंदू या पारसी या यहूदी पति द्वारा अपनी पहली पत्नी से तलाक लिए बिना दूसरी शादी करना बहुविवाह का कृत्य है और इसे घरेलू हिंसा माना जा सकता है तथा पहली पत्नी को मुआवजा देना पड़ सकता है. यही कानून मुस्लिम जोड़े पर भी लागू होता है.

पत्नी को भरण-पोषण मांगने का अधिकार
उन्होंने कहा कि एक मुस्लिम व्यक्ति चार शादियां करने के लिए भी स्वतंत्र है. हालांकि पत्नी के पास इसे रोकने के लिए कोई कानूनी उपाय नहीं है, लेकिन पत्नी को भरण-पोषण मांगने और वैवाहिक बंधन का हिस्सा बनने वाले घरेलू काम न करने का अधिकार है. न्यायाधीश ने यह भी कहा कि पति ने इस बात का कोई सबूत नहीं दिया कि विशेष मामले में तीसरा तलाक दिया गया था.

जस्टिस स्वामीनाथन ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि तमिलनाडु तौहाद जमात की शरीयत काउंसिल ने 29 नवंबर, 2017 को तलाक प्रमाणपत्र जारी किया था. इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया कि याचिकाकर्ता की पत्नी ने सहयोग नहीं किया था. यह देखते हुए कि केवल राज्य द्वारा गठित अदालतें ही तलाक दे सकती हैं. जज ने कहा कि शरीयत काउंसिल एक निजी निकाय है, न कि अदालत.

यह भी पढ़ें- लाखों के हैंडबैग पर जया किशोरी ने ट्रोल करने वालों को दिया जवाब, बोलीं - मेरे कुछ सिद्धांत हैं...

मदुरै: तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के एक मुस्लिम डॉक्टर जोड़े ने 2010 में इस्लामी रीति-रिवाज से शादी की थी. इस शादी से दोनों का एक बेटा भी है. 2018 में महिला ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी.

न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 2021 में पति को घरेलू हिंसा से हुई मानसिक क्षति के लिए मुआवजे के तौर पर 5 लाख रुपये और गुजारा भत्ता और भरण-पोषण के लिए 25,000 रुपये प्रतिमाह देने का आदेश दिया था.

2022 में सत्र न्यायालय ने भी इस आदेश को बरकरार रखा था. जिसके चलते महिला के पति ने मद्रास हाईकोर्ट में आपराधिक समीक्षा याचिका दायर की. सुनवाई के दौरान पति की ओर से दस्तावेज दाखिल किए गए, जिसमें कहा गया कि अगस्त, सितंबर और नवंबर 2017 के महीने में तीन बार तलाक के नोटिस भेजे गए और शरीयत काउंसिल ने स्वीकृति का प्रमाण पत्र जारी किया और इसी आधार पर उसने दूसरी महिला से शादी कर ली.

बिना कानूनी तलाक के दूसरी शादी की इजाजत नहीं
डॉक्टर की आपराधिक समीक्षा याचिका पर सुनवाई करने वाले मद्रास हाईकोर्ट की मदुरे बेंच के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने अपने फैसले में कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पहली पत्नी गुजारा भत्ता पाने की हकदार है. उन्होंने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता का धर्म मुस्लिम पुरुष को 4 शादियां करने की इजाजत देता है. लेकिन कानून बिना कानूनी तलाक लिए दूसरी शादी की इजाजत नहीं देता, इसलिए पहली पत्नी को गुजारा भत्ता मांगने का पूरा अधिकार है.

जज ने कहा कि पहले दो तलाक नोटिस जारी किए गए थे. लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि तीसरा नोटिस जारी किया गया था. जज ने यह भी कहा कि पत्नी का दावा है कि उसकी शादी अभी भी वैध है.

क्या पति के तलाक का फैसला कोर्ट ने नहीं माना?
जज ने यह भी कहा कि तलाक कानूनी तौर पर कोर्ट के जरिए ही मिल सकता है और जब तक कोर्ट आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा नहीं कर देता, तब तक दोनों को पति-पत्नी माना जाएगा. आपको कोर्ट में यह साबित करना होगा कि आपने कानून के मुताबिक तलाक दिया है. जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने कहा कि पत्नी कोर्ट जा सकती है.

जस्टिस स्वामीनाथन ने अपने फैसले में लिखा, "एक हिंदू या पारसी या यहूदी पति द्वारा अपनी पहली पत्नी से तलाक लिए बिना दूसरी शादी करना बहुविवाह का कृत्य है और इसे घरेलू हिंसा माना जा सकता है तथा पहली पत्नी को मुआवजा देना पड़ सकता है. यही कानून मुस्लिम जोड़े पर भी लागू होता है.

पत्नी को भरण-पोषण मांगने का अधिकार
उन्होंने कहा कि एक मुस्लिम व्यक्ति चार शादियां करने के लिए भी स्वतंत्र है. हालांकि पत्नी के पास इसे रोकने के लिए कोई कानूनी उपाय नहीं है, लेकिन पत्नी को भरण-पोषण मांगने और वैवाहिक बंधन का हिस्सा बनने वाले घरेलू काम न करने का अधिकार है. न्यायाधीश ने यह भी कहा कि पति ने इस बात का कोई सबूत नहीं दिया कि विशेष मामले में तीसरा तलाक दिया गया था.

जस्टिस स्वामीनाथन ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि तमिलनाडु तौहाद जमात की शरीयत काउंसिल ने 29 नवंबर, 2017 को तलाक प्रमाणपत्र जारी किया था. इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया कि याचिकाकर्ता की पत्नी ने सहयोग नहीं किया था. यह देखते हुए कि केवल राज्य द्वारा गठित अदालतें ही तलाक दे सकती हैं. जज ने कहा कि शरीयत काउंसिल एक निजी निकाय है, न कि अदालत.

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