Shahdol Fall Armyworm Attack : बदलते वक्त के साथ ही बहुत चीजें बदली हैं. खेती किसानी में जहां एक ओर आधुनिकता आ रही है, तो वहीं दूसरी ओर कई ऐसे रोग और कीटों का प्रकोप भी देखने को मिल रहा है, जो पहले यहां नहीं देखने को मिलते थे. आज बात एक ऐसे ही कीट की करेंगे, जिसे 'फॉल आर्मी वर्म' के नाम से जाना जाता है. शहडोल जिले में इन दिनों मक्के की फसल में इसका प्रकोप देखने को मिल रहा है, आखिर ये विदेशी कीट कहां से आया, इसकी क्या खासियत है, कितना नुकसान पहुंचा सकता है, इसका क्या इलाज है और इसकी रोकथाम समय पर क्यों जरूरी है, जानते हैं कृषि वैज्ञानिक डॉ. बी. के. प्रजापति से...
फसलों में दिख रहा प्रकोप
कृषि वैज्ञानिक डॉ. बीके प्रजापति बताते हैं कि "शहडोल आदिवासी बहुल इलाका है और यहां मक्के की फसल की खेती कुछ रकबे में की जाती है. जहां-जहां मक्के की खेती इन दिनों की जा रही है, वहां मक्के की फसल में फॉल आर्मी वर्म का प्रकोप देखने को मिला है. ऐसे में जरूरी है कि किसान इस कीट के बारे में जानें और इसकी रोकथाम के क्या उपाय हैं, इसको भी समझें. क्योंकि सही समय पर फसलों को नुकसान पहुंचाने से पहले इस कीट का रोकथाम जरूरी है, नहीं तो ये फसल को बहुत नुकसान पहुंचा सकता है."
फॉल आर्मी वर्म कहां से आया ?
कृषि वैज्ञानिक डॉ. बी.के. प्रजापति बताते हैं कि "फॉल आर्मी वर्म मूलतः एक कीट है और इसका मूल स्थान अमेरिका है. वहां से ये हमारे देश में आया है. फॉल आर्मी वर्म भारत में सबसे पहले साल 2018 में कर्नाटका के सिमोगा में पाया गया था. ये विश्व के 70 देश में लगभग 80 प्रकार की फसलों को मुख्य रूप से नुकसान पहुंचाता है."
मक्का पसंदीदा फसल, अन्य फसलों को भी पहुंचाता है नुकसान
फॉल आर्मी वर्म का मुख्य रूप से पसंदीदा फसल मक्का है, लेकिन ये कीट बहुभक्षी किस्म का होता है. मतलब मक्के की फसल उपलब्ध न होने पर ये अन्य फसलों को भी क्षति पहुंचाने का कार्य करता है. इस कीट की अनुकूल अवस्था जो होती है, इसके लिए 30 से 35 डिग्री तक की गर्मी और 70% तक की आर्द्रता होती है, जो इसके लिए सबसे अनुकूलित अवस्था है. बीच-बीच में वर्षा के साथ मौसम का खुलना इसके लिए बहुत अनुकूल अवस्था होती है. इसका 35 से 40 दिनों का जीवन चक्र होता है. अगर अनुकूल अवस्था एक साल में होती है तो यह 6 से 7 जीवन चक्र को पूरा कर लेता है.
एक दिन में 100 किलोमीटर तक यात्रा
कृषि वैज्ञानिक ने बताया की फॉल आर्मी वर्म बहुत ही खतरनाक तरह का कीट होता है. अगर इसे समय से मक्के की फसल नहीं मिलती है तो यह करीब 100 किलोमीटर तक का भी सफर तय कर सकता है. ये कीट पूरी तरह से झुंड में आक्रमण करता है. इसलिए जिस फसल पर टूटता है उसे पूरी तरह से खत्म कर देता है.
दिन में छिपना, रात में खाना, ऐसे करें पहचान
ये कीट दिन के समय में मकई के बीच में पत्तियों में जो जगह होती जिसे गोफ़ बोलते हैं वहां पर छिपा होता है. यह रात्रि के समय फसलों पर अटैक करता है. इसे निशाचर किस्म का भी कह सकते हैं, ये कीट मक्के की फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है. इस कीट की पहचान की बात करें तो ये इल्ली मुख्य रूप से हल्के हरे और गुलाबी रंग का होता है. इसके सिर वाले भाग में वाई शेप की संरचना बनी होती है, जो इसकी मुख्य पहचान होती है. अगर मक्के की फसल में सही समय पर इसका नियंत्रण नहीं किया गया तो यह फसल को लगभग 70 से 80% तक नुकसान पहुंचाने का कार्य करता है. शुरुआती अवस्था में मक्के की फसल में आप देखेंगे की पत्तियों में कटे-फटे पेट दिख रहे हैं. बाद में अधिकता होने पर जब नर मंजरी बनते हैं, गोफ़ बनता है तो दाने को पूरी तरह से ये नुकसान पहुंचाता है.
ऐसे करें कंट्रोल
कृषि वैज्ञानिक डॉ. बीके प्रजापति बताते हैं कि फॉल आर्मी वर्म कीट मक्के की फसल में होता है और अगर समय पर इसका उपचार नहीं किया गया तो यह फसल को नष्ट कर देता है. इसकी रोकथाम रासायनिक और जैविक दोनों तरह से होती है. रासायनिक तरीके की बात करें तो कई ऐसी रासायनिक कीटनाशक आते हैं जो फॉल आर्मी वर्म को अलग अलग स्टेज में रोक देते हैं और फसल पूरी तरह से सुरक्षित हो जाती है. अगर फाल आर्मी वर्म का प्रकोप आपके फसल पर है तो कृषि विज्ञान केंद्र में कृषि वैज्ञानिकों से सलाह लेकर सही दवा पूछकर इसका रोकथाम कर सकते हैं.
इसके नियंत्रण के लिए सर्वप्रथम जो सबसे जरूरी है कि मक्के की फसल के साथ अंतरवर्ती फसलों की खेती करें जैसे मकई के साथ अरहर, मूंग, उड़द की खेती कर सकते हैं. जो मक्के की सीमावर्ती लाइन होती है वहां पर हाइब्रिड नेपियर की खेती करनी चाहिए. इसके अलावा फसल में नाइट्रोजन की अधिकता न हो इस बात का ख्याल रखें. इस कीट के कई स्टेज होते हैं. शुरुआती दौर में जब इस कीट का लारवा होता है इल्ली होती है इस अवस्था में रोक दें तो और बेहतर.
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अगर आप रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना चाहते हैं तो रेत के साथ में आप चूना मिला लें. रेशियो की बात करें तो 9 किलो मिट्टी ले रहे हैं तो 1 किलो आप उसमें चूना मिला लें और उसको मक्के का जो पौधा होता है, उसके पत्तियों के बीच में जो है, मक्के का जो गोफ अवस्था होती है, पौधे के गोफ में आप इसको डाल सकते हैं. इसके अलावा भी कई जैविक तरीके होते हैं.