प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यौन उत्पीड़न की शिकार महिला को मेडिकल रूप से गर्भ को समाप्त करने का अधिकार है. यौन उत्पीड़न के मामले में किसी महिला को गर्भ समाप्त करने से मना करना और उसे मातृत्व की जिम्मेदारी से बांधना उसके सम्मान के साथ जीने के मानवीय अधिकार से वंचित करने के समान होगा. कोर्ट ने कहा कि महिला को मां बनने के लिए हां या ना कहने का अधिकार है. पीड़िता को यौन उत्पीड़न करने वाले व्यक्ति के बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर करना अकल्पनीय दुखों का कारण होगा.
न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने पीड़िता को चिकित्सकीय रूप से गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देते हुए यह टिप्पणी की. भदोही की 17 वर्षीय किशोरी की पिता ने संबंधित थाने में नाबालिग बेटी को बहला-फुसला को भगा ले जाने व दुष्कर्म करने के आरोप मुकदमा दर्ज कराया है. बेटी को पुलिस ने बरामद कर पिता को सौंप दिया. इस दौरान नाबालिग के पेट में दर्द होने पर जांच करायी, तो 15 सप्ताह का गर्भ होना पाया गया.
इस पर पीड़िता के पिता ने नाबालिग की ओर से गर्भ को मेडिकल रूप से समाप्त करने की मांग में याचिका दाखिल की. याची के अधिवक्ता मनमोहन मिश्रा ने दलील दी कि याची के साथ कई बार दुष्कर्म किया गया. वह अब गर्भवती है. इससे उसके मानसिक स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है. याची नाबालिग होने के कारण बच्चे की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती थी. कोर्ट ने कहा कि गर्भ का चिकित्सीय समापन नियम, 2021 के तहत यौन उत्पीड़न या दुष्कर्म की पीड़िता या नाबालिग होने पर 24 सप्ताह तक के गर्भ को समाप्त करने का प्रावधान है.
यह भी देखा कि सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट ने समान परिस्थितियों में गर्भ को मेडिकल रूप से समाप्त करने की अनुमति दी है. इसपर न्यायालय ने गर्भ समाप्त करने की अनुमति दे दी. न्यायालय ने कहा कि पीड़िता अपनी मां या अभिभावक के साथ कल यानी 12 फरवरी 2025 को जिला अस्पताल में रिपोर्ट कर सकती है. जिला चिकित्सा अधिकारी को भी निर्देश दिया कि वह कोई चिकित्सा बाधा न हो तो 13 फरवरी तक गर्भ समाप्ति सुनिश्चित करें.
सभी मेडिकल सुविधाएं मुफ्त प्रदान करने और एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया. भ्रूण ऊतकों व खून के नमूनों को संरक्षित करने का भी निर्देश दिया.
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