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मोदी का तीसरा कार्यकाल कैसा होगा, नायडू के लिए क्या रहेगा अहम?... ये बोले एन राम - Senior Journalist N Ram

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jun 11, 2024, 10:31 PM IST

N Ram Interview : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार इस बार कितनी अलग हो सकती है, इसे लेकर वरिष्ठ पत्रकार एन राम ने अपने विचार साझा किए हैं. ईटीवी भारत के साथ एक फ्रीव्हेलिंग इंटरव्यू (स्वतंत्र साक्षात्कार) में एन राम ने बताया कि इस नई व्यवस्था में एनडीए गठबंधन के सहयोगी कहां खड़े हैं और भाजपा को क्या समझौते करने पड़ सकते हैं.

Senior Journalist N Ram
वरिष्ठ पत्रकार एन राम (ETV Bharat)

नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है. अब सभी की निगाहें मोदी 3.0 कार्यकाल पर हैं. सही अर्थों में इस बार गठबंधन सरकार है, ऐसे में क्या यह पुराने तरीके से काम करेंगे या बदलाव होगा. दरअसल 2024 के लोकसभा चुनावों में चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं. 'अजेय' मोदी लहर की चमक थोड़ी कम हो गई, क्योंकि बीजेपी बहुमत से 32 सीटें पीछे रह गई है. 2019 से तुलना करें तो 63 सीटों का नुकसान हुआ है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार कितनी अलग हो सकती है. इस पर वरिष्ठ पत्रकार एन राम ने ईटीवी भारत से बात की. पढ़िए साक्षात्कार के प्रमुख अंश.

पूरा इंटरव्यू यहां देखें

ईटीवी भारत: मोदी को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में लगातार तीसरा कार्यकाल मिला. अब हम क्या बदलाव देख सकते हैं? क्या आपको लगता है कि शासन पिछले कार्यकाल जैसा ही रहेगा?

एन राम : नहीं, यह पिछले 10 वर्षों से बहुत अलग होगा. वास्तव में, यह रिजल्ट गेम चेंजर है. मोदी अपने पहले कार्यकाल में डेवलपमेंट ओरिएंटेड प्रोग्राम पर आए थे. उन्हें 32% वोट मिले और वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर आए. फिर, 2019 में पार्टी ने उस स्थिति में सुधार करते हुए 37% वोट शेयर हासिल किया और 303 सीटें हासिल कीं, और मुझे लगता है कि यहां से पूरा एजेंडा बदल गया.

सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) जिसे पहले कार्यकाल के अंत में पेश किया गया था, दूसरे कार्यकाल में लागू हुआ. ये दूसरे कार्यकाल में और अधिक एग्रेसिव हो गया. साम्प्रदायिक मंच अधिक सशक्त एवं आक्रामक हो गया. एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) से काफी चिंता पैदा हुई. और फिर कश्मीर और अनुच्छेद 370. इसी का नतीजा है कि इंडिया गुट पार्टियों ने शासित राज्यों और राज्य सरकारों के खिलाफ वर्चुअल वॉर शुरू किया. विपक्ष शासित राज्यों में विधायी पहलों को विफल करने के लिए राज्यपालों का इस्तेमाल किया गया और उन्होंने बेहद शत्रुतापूर्ण व्यवहार किया, यहां तक ​​कि प्रमुख राजनेताओं के खिलाफ भी कई एजेंसियों को तैनात कर दिया.

भाजपा का विरोध करने वालों द्वारा शासित राज्य अब दो प्रमुख ताकतों के कारण सांस ले सकते हैं. पहले हैं चंद्रबाबू नायडू और दूसरे हैं नीतीश कुमार. ये दोनों अतीत में भाजपा के आलोचक रहे हैं, विशेषकर नायडू. आंध्र प्रदेश और बिहार दोनों के लिए विशेष दर्जे की मांग की जा रही है. वे राज्य या राज्य के अधिकारों के पक्ष में मुखर होकर बोलते हैं. इसलिए भाजपा के लिए पहले की तरह सरकार चलाना मुश्किल हो जाएगा, खासकर मोदी और अमित शाह के लिए... मुझे लगता है कि वे पुराने तरीके से काम नहीं कर सकेंगे.

वह (मोदी) इन दो तथाकथित किंगमेकरों पर निर्भर हैं. विशेषकर चंद्रबाबू नायडू, जो एक मजबूत और अनुभवी नेता हैं. उनकी पार्टी टीडीपी ने अपने बल पर काम किया है. नीतीश कुमार की पार्टी को भी भाजपा और कुछ अन्य के साथ सीटें मिली हैं. सरकार के अंदर सौदेबाजी होगी. क्योंकि ये मंत्री (टीडीपी और जेडीयू से जुड़े) अब डमी नहीं रहेंगे. वे कम से कम अपना दावा तो करेंगे.

जनता दल सेक्युलर भी है. कर्नाटक में उन्हें सिर्फ दो सीटें मिलीं. लेकिन उन्हें करीब 5.6% वोट मिले. और यदि आप उन्हें देखें, तो वे कर्नाटक में भाजपा के पक्ष में बैलेंस बनाते हैं. उनकी मोलभाव करने की क्षमता अन्य दो जैसी नहीं है, लेकिन उन्हें नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता.

मीडिया की कवरेज और एग्ज़िट पोल पर : एग्जिट पोल हकीकत से कोसों दूर थे. हमारे कई ईमानदार पत्रकार जमीनी तथ्य लेकर आए. और मैं इसे उदाहरण के लिए 'हिंदू' में जानता हूं. हमारे संपादक सुरेश नामपथ को जमीनी स्तर से रिपोर्ट मिलती है. और एग्जिट पोल आने के बाद भी यह बिल्कुल स्पष्ट था कि बीजेपी 250 के नीचे रहेगी.

मुझे नहीं पता कि एग्जि पोल इतने गलत कैसे हो सकते हैं. सबसे बड़ी विश्वसनीयता वाले प्रदीप गुप्ता (एक्सिस माई इंडिया सीईओ) जो लाइव टेलीविजन पर रोए. उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया. हालांकि देखने के लिहाज से यह अच्छा सीन नहीं है, क्योंकि वह पहले बहुत विश्वसनीय निष्कर्ष लेकर आए थे. आप किसी पेशेवर के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं कर सकते. लेकिन मेरा मतलब यही है. इन एग्जिट पोल्स का यही हश्र है. वे दबाव में आ जाते हैं. उन्हें यह बताना होगा कि उन सभी ने इसे गलत कैसे समझा.

ईटीवी भारत: बीजेपी सरकार के लिए गठबंधन सरकार कोई नई बात नहीं है. 1998 से 2004 तक उनकी गठबंधन सरकार रही. आपको क्यों लगता है कि यह मोदी के लिए कठिन काम होगा?

एन राम: मोदी को गुजरात या केंद्र में गठबंधन व्यवस्था से निपटने का कोई वास्तविक अनुभव नहीं है क्योंकि उन्होंने हमेशा बड़ी जीत हासिल की है. तब भी जब वह मुख्यमंत्री थे.

वाजपेयी उस समय प्रधानमंत्री बने जब संघ परिवार का प्रभाव बढ़ रहा था, और वह एक बहुत ही परिपक्व राजनीतिज्ञ थे... यदि आप उस समय भाजपा के घोषणापत्रों को देखें तो राम मंदिर का मुद्दा हमेशा वहां नहीं था. आडवाणी ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने इसे केंद्र में लाने की कोशिश की. लेकिन विरोध हुआ, मुख्यतः क्योंकि गठबंधन सहयोगी ऐसा नहीं चाहते थे. वाजपेयी प्रतिबद्ध थे, लेकिन उस हद तक नहीं, जिस हद तक दूसरे थे, लेकिन अगर आप व्यक्तित्व पंथ के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन जाते हैं, और काफी हद तक एक व्यक्ति की पार्टी बन जाते हैं, तो दूसरों के साथ समान व्यवहार करना बहुत मुश्किल होता है.

यह अब एक अलग स्टेज में है. आपके पास एक ऐसा नेता है जो बहुत करिश्माई है. वह करिश्मा अब थोड़ा कम हो गया है. इसके बारे में कोई सवाल नहीं है. सर्वे, सीएसडीएस विश्लेषण के सभी आंकड़े इसी ओर इशारा करते हैं. बीजेपी का वोट शेयर भी कम हुआ है.

एग्जिट पोल में 40% से अधिक की भविष्यवाणी की गई थी. यहां तक ​​कि सीएसडीएस सर्वेक्षण ने भी यही कहा. यह वास्तव में 36.5% है, जो एक अच्छा टोटल है लेकिन उनकी आशा से बहुत कम है. इसलिए यह देखना बाकी है कि मोदी इस स्थिति में खुद को कैसे एडजस्ट करते हैं. मुझे लगता है कि वह ऐसा करने में काफी सक्षम हैं, लेकिन एक तरह से वह एक नए तरह के मोदी होंगे.

ईटीवी भारत: बीजेपी को क्या समझौते करने होंगे?

एन राम: सीएए और समान नागरिक संहिता इस टर्म में थोपा नहीं जा सकता. इसके अलावा विपक्षी पार्टियों की राज्य सरकारों के साथ व्यवहार में भी बदलाव लाना होगा. आप इतने शत्रुतापूर्ण नहीं हो सकते हैं और उनके साथ दुश्मन या यहां तक ​​कि 'राष्ट्र-विरोधी' जैसा व्यवहार नहीं कर सकते हैं. जैसा कि वे करते हैं.

ईटीवी भारत: चंद्रबाबू नायडू के सामने क्या चुनौतियां हैं?

एन राम: मुझे लगता है कि उन्हें अपनी प्रतिष्ठा बचानी होगी. मैं चंद्रबाबू नायडू को बहुत अच्छी तरह से जानता हूं. वह अपनी प्रतिष्ठा, अपनी विश्वसनीयता, अपने भरोसे और अपनी धर्मनिरपेक्षता को महत्व देते हैं. नायडू ने आंध्र प्रदेश में इतनी बड़ी जीत हासिल की है. उन्हें अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करनी होगी.

वह इस एनडीए से अलग नहीं होंगे. लेकिन वह मुद्दे उठाएंगे. और उनकी जनता उनसे जवाब लेगी. तो यही उनकी मुख्य चुनौती होगी. यह देखना बाकी है कि क्या वह भाजपा, खासकर प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की राह को कंट्रोल करने में सफल होते हैं या नहीं.

वह अपने राज्य के लिए विशेष दर्जे की मांग कर रहे हैं, जिसे विभाजित कर दिया गया है और विभाजन के बाद इसके संसाधन कमजोर हो रहे हैं. तेलंगाना में कांग्रेस अच्छी स्थिति में है. नायडू का कहना है कि (आंध्र में) स्थिति भयानक है और आर्थिक स्थिति चरमरा रही है. तो उसे इसका उपाय करना होगा. इस सब के लिए आपको आमतौर पर केंद्र और राज्यों के बीच टकराव की आवश्यकता नहीं है. वह यह नहीं कह सकते कि सभ्य बनो, केवल हमारे लिए अच्छे बनो, और तमिलनाडु के लिए, राज्यपाल (आरएन) रवि को जो चाहिए वह करने दो.

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पूरा इंटरव्यू यहां देखें

ईटीवी भारत: मोदी को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में लगातार तीसरा कार्यकाल मिला. अब हम क्या बदलाव देख सकते हैं? क्या आपको लगता है कि शासन पिछले कार्यकाल जैसा ही रहेगा?

एन राम : नहीं, यह पिछले 10 वर्षों से बहुत अलग होगा. वास्तव में, यह रिजल्ट गेम चेंजर है. मोदी अपने पहले कार्यकाल में डेवलपमेंट ओरिएंटेड प्रोग्राम पर आए थे. उन्हें 32% वोट मिले और वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर आए. फिर, 2019 में पार्टी ने उस स्थिति में सुधार करते हुए 37% वोट शेयर हासिल किया और 303 सीटें हासिल कीं, और मुझे लगता है कि यहां से पूरा एजेंडा बदल गया.

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भाजपा का विरोध करने वालों द्वारा शासित राज्य अब दो प्रमुख ताकतों के कारण सांस ले सकते हैं. पहले हैं चंद्रबाबू नायडू और दूसरे हैं नीतीश कुमार. ये दोनों अतीत में भाजपा के आलोचक रहे हैं, विशेषकर नायडू. आंध्र प्रदेश और बिहार दोनों के लिए विशेष दर्जे की मांग की जा रही है. वे राज्य या राज्य के अधिकारों के पक्ष में मुखर होकर बोलते हैं. इसलिए भाजपा के लिए पहले की तरह सरकार चलाना मुश्किल हो जाएगा, खासकर मोदी और अमित शाह के लिए... मुझे लगता है कि वे पुराने तरीके से काम नहीं कर सकेंगे.

वह (मोदी) इन दो तथाकथित किंगमेकरों पर निर्भर हैं. विशेषकर चंद्रबाबू नायडू, जो एक मजबूत और अनुभवी नेता हैं. उनकी पार्टी टीडीपी ने अपने बल पर काम किया है. नीतीश कुमार की पार्टी को भी भाजपा और कुछ अन्य के साथ सीटें मिली हैं. सरकार के अंदर सौदेबाजी होगी. क्योंकि ये मंत्री (टीडीपी और जेडीयू से जुड़े) अब डमी नहीं रहेंगे. वे कम से कम अपना दावा तो करेंगे.

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वाजपेयी उस समय प्रधानमंत्री बने जब संघ परिवार का प्रभाव बढ़ रहा था, और वह एक बहुत ही परिपक्व राजनीतिज्ञ थे... यदि आप उस समय भाजपा के घोषणापत्रों को देखें तो राम मंदिर का मुद्दा हमेशा वहां नहीं था. आडवाणी ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने इसे केंद्र में लाने की कोशिश की. लेकिन विरोध हुआ, मुख्यतः क्योंकि गठबंधन सहयोगी ऐसा नहीं चाहते थे. वाजपेयी प्रतिबद्ध थे, लेकिन उस हद तक नहीं, जिस हद तक दूसरे थे, लेकिन अगर आप व्यक्तित्व पंथ के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन जाते हैं, और काफी हद तक एक व्यक्ति की पार्टी बन जाते हैं, तो दूसरों के साथ समान व्यवहार करना बहुत मुश्किल होता है.

यह अब एक अलग स्टेज में है. आपके पास एक ऐसा नेता है जो बहुत करिश्माई है. वह करिश्मा अब थोड़ा कम हो गया है. इसके बारे में कोई सवाल नहीं है. सर्वे, सीएसडीएस विश्लेषण के सभी आंकड़े इसी ओर इशारा करते हैं. बीजेपी का वोट शेयर भी कम हुआ है.

एग्जिट पोल में 40% से अधिक की भविष्यवाणी की गई थी. यहां तक ​​कि सीएसडीएस सर्वेक्षण ने भी यही कहा. यह वास्तव में 36.5% है, जो एक अच्छा टोटल है लेकिन उनकी आशा से बहुत कम है. इसलिए यह देखना बाकी है कि मोदी इस स्थिति में खुद को कैसे एडजस्ट करते हैं. मुझे लगता है कि वह ऐसा करने में काफी सक्षम हैं, लेकिन एक तरह से वह एक नए तरह के मोदी होंगे.

ईटीवी भारत: बीजेपी को क्या समझौते करने होंगे?

एन राम: सीएए और समान नागरिक संहिता इस टर्म में थोपा नहीं जा सकता. इसके अलावा विपक्षी पार्टियों की राज्य सरकारों के साथ व्यवहार में भी बदलाव लाना होगा. आप इतने शत्रुतापूर्ण नहीं हो सकते हैं और उनके साथ दुश्मन या यहां तक ​​कि 'राष्ट्र-विरोधी' जैसा व्यवहार नहीं कर सकते हैं. जैसा कि वे करते हैं.

ईटीवी भारत: चंद्रबाबू नायडू के सामने क्या चुनौतियां हैं?

एन राम: मुझे लगता है कि उन्हें अपनी प्रतिष्ठा बचानी होगी. मैं चंद्रबाबू नायडू को बहुत अच्छी तरह से जानता हूं. वह अपनी प्रतिष्ठा, अपनी विश्वसनीयता, अपने भरोसे और अपनी धर्मनिरपेक्षता को महत्व देते हैं. नायडू ने आंध्र प्रदेश में इतनी बड़ी जीत हासिल की है. उन्हें अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करनी होगी.

वह इस एनडीए से अलग नहीं होंगे. लेकिन वह मुद्दे उठाएंगे. और उनकी जनता उनसे जवाब लेगी. तो यही उनकी मुख्य चुनौती होगी. यह देखना बाकी है कि क्या वह भाजपा, खासकर प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की राह को कंट्रोल करने में सफल होते हैं या नहीं.

वह अपने राज्य के लिए विशेष दर्जे की मांग कर रहे हैं, जिसे विभाजित कर दिया गया है और विभाजन के बाद इसके संसाधन कमजोर हो रहे हैं. तेलंगाना में कांग्रेस अच्छी स्थिति में है. नायडू का कहना है कि (आंध्र में) स्थिति भयानक है और आर्थिक स्थिति चरमरा रही है. तो उसे इसका उपाय करना होगा. इस सब के लिए आपको आमतौर पर केंद्र और राज्यों के बीच टकराव की आवश्यकता नहीं है. वह यह नहीं कह सकते कि सभ्य बनो, केवल हमारे लिए अच्छे बनो, और तमिलनाडु के लिए, राज्यपाल (आरएन) रवि को जो चाहिए वह करने दो.

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