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जानें कहां के पत्थरों से रखी गई राम मंदिर की नींव, क्या रही इनके चयन की प्रक्रिया

Roll Of Scientists From Kolar In Ayodhya : कर्नाटक के कोलार के वैज्ञानिकों ने अयोध्या में रामलला की मूर्ति और मंदिर निर्माण में इस्तेमाल होने वाले पत्थरों की जांच की. जिसके बाद उन्हें मंदिर निर्माण के काम में लाया गया.

Roll Of Scientists From Kolar In Ayodhya
प्रतिकात्मक तस्वीर
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 20, 2024, 12:07 PM IST

कोलार: मैसूर के मूर्तिकार अरुण अयोगिराज ने अयोध्या के राम मंदिर में राम लला की मूर्ति बनाई है. कोलार के केजीएफ में एनआईआरएम (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रॉक मैकेनिक्स) के वैज्ञानिकों ने यह तय किया है कि रामलला की मूर्ति को तराशने के लिए किस पत्थर का इस्तेमाल किया जाना चाहिए और इसी गुणलत्ता कैसी होनी चाहिए. मंदिर का निर्माण कैसे किया जाना चाहिए. इसके जरिए राम मंदिर निर्माण में कोलार के वैज्ञानिकों का योगदान अतुलनीय है.

डॉ. राजन बाबू, प्रधान वैज्ञानिक, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रॉक मैकेनिक्स, केजीएफ, कोलार और अन्य लोग राम मंदिर के निर्माण के हर चरण में शामिल रहे. मंदिर की आधारशिला से लेकर, डिजाइन और फर्श के लिए इस्तेमाल किए गए पत्थरों के साथ ही रामलला की मूर्ति बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए पत्थर का भी राजन ने ही निरीक्षण किया और उसे अंतिम रूप दिया.

वैज्ञानिक राजन बाबू ने राम मंदिर निर्माण के हर चरण पर काम किया. उन्होंने विभिन्न राज्यों में खदानों में जाकर पत्थरों की गुणवत्ता का चयन करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. पहले वैज्ञानिक खदान से पत्थर का एक नमूना लाते थे और केजीएफ स्थित एनआईआरएम प्रयोगशाला में उसकी गुणवत्ता का परीक्षण करते थे. पत्थर की गुणवत्ता अच्छी होने पर ही इसका अच्छी गुणवत्ता का होगा तभी वे निर्माण को अंतिम रूप देंगे. पत्थरों का चयन सिर्फ एक ही राज्य में नहीं किया जाता, मंदिर के हर हिस्से के लिए अलग-अलग तरह के पत्थरों का इस्तेमाल किया जाता है. इसके माध्यम से पूरे देश के प्रमुख तकनीशियनों, इंजीनियरों और दर्जनों अलग-अलग मूर्तिकारों के विचारों से राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है.

राम मंदिर की नींव के लिए मुख्य रूप से कर्नाटक के चिक्कबल्लापुर, सदरहल्ली, देवनहल्ली, आंध्र के वारंगल और तेलंगाना के करीम नगर के पत्थरों का उपयोग किया गया. फर्श के लिए राजस्थान के मकराना संगमरमर के पत्थरों का उपयोग किया गया है. मंदिर की दीवार और डिजाइन के लिए बायना बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है. रामलला की मूर्ति को तराशने के लिए मुख्य रूप से हेग्गादेवनकोटे, मैसूर के कृष्ण शिला पत्थर का उपयोग किया गया है.

मंदिर के निर्माण के लिए गुणवत्तापूर्ण पत्थर के अलावा किसी अन्य सामग्री का उपयोग नहीं किया गया था. मंदिर का निर्माण पत्थर से पत्थर इंटरलॉकिंग प्रणाली का उपयोग करके किया गया है. इस प्रकार मन्दिर की आयु एक हजार वर्ष होगी. वरिष्ठ वैज्ञानिक राजन बाबू कहते हैं कि मंदिर का निर्माण इस तरह से किया गया है कि बिजली, बारिश और भूकंप से मंदिर को कोई नुकसान न हो.

राजन बाबू ने कहा कि राम मंदिर देश के गौरव का प्रतीक है. उस काम में खुद को शामिल करना रोमांचक है. यह मेरे जीवन का अविस्मरणीय अनुभव था. इस कार्य से मुझे आत्मसंतुष्टि मिली है. राम जन्मभूमि ट्रस्ट के अध्यक्ष समेत सभी ने हमारा सहयोग किया. हमें खुशी है कि हमने भगवान राम की भी सेवा की.

केंद्र के खान एवं भूतत्व विभाग ने भी राम मंदिर निर्माण में वैज्ञानिक राजन बाबू एवं अन्य वैज्ञानिकों की सेवा की सराहना की. कुल मिलाकर कोलार के वैज्ञानिकों के लिए अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में योगदान देने का अवसर मिलना गर्व की बात है.

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कोलार: मैसूर के मूर्तिकार अरुण अयोगिराज ने अयोध्या के राम मंदिर में राम लला की मूर्ति बनाई है. कोलार के केजीएफ में एनआईआरएम (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रॉक मैकेनिक्स) के वैज्ञानिकों ने यह तय किया है कि रामलला की मूर्ति को तराशने के लिए किस पत्थर का इस्तेमाल किया जाना चाहिए और इसी गुणलत्ता कैसी होनी चाहिए. मंदिर का निर्माण कैसे किया जाना चाहिए. इसके जरिए राम मंदिर निर्माण में कोलार के वैज्ञानिकों का योगदान अतुलनीय है.

डॉ. राजन बाबू, प्रधान वैज्ञानिक, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रॉक मैकेनिक्स, केजीएफ, कोलार और अन्य लोग राम मंदिर के निर्माण के हर चरण में शामिल रहे. मंदिर की आधारशिला से लेकर, डिजाइन और फर्श के लिए इस्तेमाल किए गए पत्थरों के साथ ही रामलला की मूर्ति बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए पत्थर का भी राजन ने ही निरीक्षण किया और उसे अंतिम रूप दिया.

वैज्ञानिक राजन बाबू ने राम मंदिर निर्माण के हर चरण पर काम किया. उन्होंने विभिन्न राज्यों में खदानों में जाकर पत्थरों की गुणवत्ता का चयन करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. पहले वैज्ञानिक खदान से पत्थर का एक नमूना लाते थे और केजीएफ स्थित एनआईआरएम प्रयोगशाला में उसकी गुणवत्ता का परीक्षण करते थे. पत्थर की गुणवत्ता अच्छी होने पर ही इसका अच्छी गुणवत्ता का होगा तभी वे निर्माण को अंतिम रूप देंगे. पत्थरों का चयन सिर्फ एक ही राज्य में नहीं किया जाता, मंदिर के हर हिस्से के लिए अलग-अलग तरह के पत्थरों का इस्तेमाल किया जाता है. इसके माध्यम से पूरे देश के प्रमुख तकनीशियनों, इंजीनियरों और दर्जनों अलग-अलग मूर्तिकारों के विचारों से राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है.

राम मंदिर की नींव के लिए मुख्य रूप से कर्नाटक के चिक्कबल्लापुर, सदरहल्ली, देवनहल्ली, आंध्र के वारंगल और तेलंगाना के करीम नगर के पत्थरों का उपयोग किया गया. फर्श के लिए राजस्थान के मकराना संगमरमर के पत्थरों का उपयोग किया गया है. मंदिर की दीवार और डिजाइन के लिए बायना बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है. रामलला की मूर्ति को तराशने के लिए मुख्य रूप से हेग्गादेवनकोटे, मैसूर के कृष्ण शिला पत्थर का उपयोग किया गया है.

मंदिर के निर्माण के लिए गुणवत्तापूर्ण पत्थर के अलावा किसी अन्य सामग्री का उपयोग नहीं किया गया था. मंदिर का निर्माण पत्थर से पत्थर इंटरलॉकिंग प्रणाली का उपयोग करके किया गया है. इस प्रकार मन्दिर की आयु एक हजार वर्ष होगी. वरिष्ठ वैज्ञानिक राजन बाबू कहते हैं कि मंदिर का निर्माण इस तरह से किया गया है कि बिजली, बारिश और भूकंप से मंदिर को कोई नुकसान न हो.

राजन बाबू ने कहा कि राम मंदिर देश के गौरव का प्रतीक है. उस काम में खुद को शामिल करना रोमांचक है. यह मेरे जीवन का अविस्मरणीय अनुभव था. इस कार्य से मुझे आत्मसंतुष्टि मिली है. राम जन्मभूमि ट्रस्ट के अध्यक्ष समेत सभी ने हमारा सहयोग किया. हमें खुशी है कि हमने भगवान राम की भी सेवा की.

केंद्र के खान एवं भूतत्व विभाग ने भी राम मंदिर निर्माण में वैज्ञानिक राजन बाबू एवं अन्य वैज्ञानिकों की सेवा की सराहना की. कुल मिलाकर कोलार के वैज्ञानिकों के लिए अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में योगदान देने का अवसर मिलना गर्व की बात है.

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