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वैज्ञानिक 'मीठा ज्वार' की खेती को दे रहे बढ़ावा, पेट्रोल में मिलाने के लिए मिलेगा ज्यादा इथेनॉल - Sweet Sorghum Cultivation

तेलंगाना के वारंगल में वैज्ञानिकों ने एक नए प्रकार के ज्वार की खेती पर ध्यान केंद्रित किया है. इस ज्वार में भरपूर इथेनॉल होता है, जो पेट्रोल में मिलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. सरकार पेट्रोल के आयात को कम करने के लिए इथेनॉल मिश्रण पर जोर दे रही है और पेट्रोल में इसे 20 प्रतिशत तक मिलाने का लक्ष्य लेकर काम कर रही है.

sweet sorghum cultivation
मीठे ज्वार की खेती (ETV Bharat Telangana Desk)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 16, 2024, 7:00 PM IST

वारंगल: भारत में हुए G20 ग्लोबल समिट में पीएम मोदी ने मोटे अनाज के इस्तेमाल पर जोर दिया और विदेशी महमानों को भी मोटा अनाज परोसा गया. इस मोटे अनाज में ज्वार का भी नाम आता है. लोग अपने आहार में सफेद और हरे ज्वार का उपयोग करते हैं, क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है. अब वैज्ञानिकों ने देश भर में एक और प्रकार की ज्वार की फसल की खेती पर ध्यान केंद्रित किया है.

यह मीठा ज्वार हमारे खाने के लिए नहीं है, क्योंकि इसमें भरपूर मात्रा में इथेनॉल होता है, इसलिए इसे पेट्रोल में मिलाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. पेट्रोल के आयात को कम करने के लिए केंद्र सरकार का लक्ष्य पर्यावरण की रक्षा के लिए पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण करना है. अभी वे केवल 12 फीसदी जोड़ रहे हैं. अभी तक इसमें गन्ने से निकाले गए इथेनॉल का ही इस्तेमाल किया जाता रहा है.

इसका क्षेत्रफल दिन-ब-दिन घटते जाने के कारण केंद्र सरकार अपेक्षित लक्ष्य पूरा नहीं कर पा रही है. इसके साथ ही उन्होंने इथेनॉल उत्पादन के वैकल्पिक तरीकों पर ध्यान केंद्रित किया. यह महसूस करते हुए कि मीठी ज्वार की फसल इथेनॉल से समृद्ध है, उन्होंने 'भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद' (आईसीएआर) के सहयोग से इसके उत्पादन पर ध्यान केंद्रित किया.

आईसीएआर से संबद्ध भारतीय लघु अनाज अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद देश भर में बीज उत्पादन के लिए मीठी ज्वार की खेती कर रहा है. इसके एक हिस्से के रूप में, वारंगल क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान स्टेशन (आरएआरएस) में, दो एकड़ में 'जयकर रसीला' किस्म की ज्वार की खेती की गई और यह कटाई के चरण में पहुंच गई. देशभर में इस फसल की खेती का नेतृत्व कर रहे आईआईएमआर के वैज्ञानिक डॉ. एवी उमाकांत ने अपनी टीम के साथ बुधवार को वारंगल में उगाए गए ज्वार का निरीक्षण किया.

गन्ना उद्योगों में विनिर्माण
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस मीठे ज्वार से इथेनॉल निकालने के लिए किसी विशेष मशीनरी की आवश्यकता नहीं होती है. उन्होंने बताया कि इनके लिए गन्ना उद्योग में इस्तेमाल होने वाली मशीनों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. चेक फैक्ट्रियों में साल में तीन से चार महीने तक उत्पादन बंद रहता है. उस समय इस ज्वार की फसल से इथेनॉल निकाला जा सकता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसमें न केवल एक अच्छी व्यावसायिक फसल बनने की क्षमता है, बल्कि यह मवेशियों के लिए चारे के रूप में भी अच्छा काम करती है.

वारंगल: भारत में हुए G20 ग्लोबल समिट में पीएम मोदी ने मोटे अनाज के इस्तेमाल पर जोर दिया और विदेशी महमानों को भी मोटा अनाज परोसा गया. इस मोटे अनाज में ज्वार का भी नाम आता है. लोग अपने आहार में सफेद और हरे ज्वार का उपयोग करते हैं, क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है. अब वैज्ञानिकों ने देश भर में एक और प्रकार की ज्वार की फसल की खेती पर ध्यान केंद्रित किया है.

यह मीठा ज्वार हमारे खाने के लिए नहीं है, क्योंकि इसमें भरपूर मात्रा में इथेनॉल होता है, इसलिए इसे पेट्रोल में मिलाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. पेट्रोल के आयात को कम करने के लिए केंद्र सरकार का लक्ष्य पर्यावरण की रक्षा के लिए पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण करना है. अभी वे केवल 12 फीसदी जोड़ रहे हैं. अभी तक इसमें गन्ने से निकाले गए इथेनॉल का ही इस्तेमाल किया जाता रहा है.

इसका क्षेत्रफल दिन-ब-दिन घटते जाने के कारण केंद्र सरकार अपेक्षित लक्ष्य पूरा नहीं कर पा रही है. इसके साथ ही उन्होंने इथेनॉल उत्पादन के वैकल्पिक तरीकों पर ध्यान केंद्रित किया. यह महसूस करते हुए कि मीठी ज्वार की फसल इथेनॉल से समृद्ध है, उन्होंने 'भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद' (आईसीएआर) के सहयोग से इसके उत्पादन पर ध्यान केंद्रित किया.

आईसीएआर से संबद्ध भारतीय लघु अनाज अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद देश भर में बीज उत्पादन के लिए मीठी ज्वार की खेती कर रहा है. इसके एक हिस्से के रूप में, वारंगल क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान स्टेशन (आरएआरएस) में, दो एकड़ में 'जयकर रसीला' किस्म की ज्वार की खेती की गई और यह कटाई के चरण में पहुंच गई. देशभर में इस फसल की खेती का नेतृत्व कर रहे आईआईएमआर के वैज्ञानिक डॉ. एवी उमाकांत ने अपनी टीम के साथ बुधवार को वारंगल में उगाए गए ज्वार का निरीक्षण किया.

गन्ना उद्योगों में विनिर्माण
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस मीठे ज्वार से इथेनॉल निकालने के लिए किसी विशेष मशीनरी की आवश्यकता नहीं होती है. उन्होंने बताया कि इनके लिए गन्ना उद्योग में इस्तेमाल होने वाली मशीनों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. चेक फैक्ट्रियों में साल में तीन से चार महीने तक उत्पादन बंद रहता है. उस समय इस ज्वार की फसल से इथेनॉल निकाला जा सकता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसमें न केवल एक अच्छी व्यावसायिक फसल बनने की क्षमता है, बल्कि यह मवेशियों के लिए चारे के रूप में भी अच्छा काम करती है.

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