नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर केंद्र, राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया जिसमें सभी सरकारी चिकित्सा संस्थानों को मानव अंग प्रत्यारोपण (ह्ययूमन ऑर्गन ट्रांसप्लांट) अधिनियम का पालन करने और लागू करने का निर्देश देने की मांग की गई है.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील वरुण ठाकुर और राम करण ने एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है. दलीलें सुनने के बाद पीठ ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया.
याचिका में कहा गया है कि मध्य प्रदेश स्थित गैर सरकारी संगठन गवेषणा मानवोत्थान पर्यावरण एवं स्वास्थ्य जागरुकता समिति द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि भारत में वर्षों से जीवित दाता प्रत्यारोपण के लिए किडनी का प्राथमिक स्रोत रहे हैं, और पिछले डेढ़ दशक में भी जीवित दाता लीवर प्रत्यारोपण का मुख्य स्रोत रहे हैं. हालांकि, 'इस प्रवृत्ति को उलटने की जरूरत है.'
याचिका में तर्क दिया गया कि भारत में लगभग 1,60,000 घातक सड़क यातायात दुर्घटना (आरटीए) मौतें होती हैं और लगभग 60% की वजह से सिर में चोट लगती है.
याचिका में कहा गया है कि 'इसी तरह, सीवीए भारत में बीएसडी का एक और सामान्य कारण है (सीवीए की व्यापकता दर प्रति 100,000 जनसंख्या पर 44.54 से 150 तक है) और 30 दिनों में मामले की मृत्यु दर 18 प्रतिशत से 46.3 प्रतिशत तक है और ये देश में डोनर पूल का भी हिस्सा हैं. इन रोगियों से बड़ी संख्या में अंग प्रत्यारोपण के लिए निकाले जा सकते हैं.'
याचिका में कहा गया है कि भारत में मृत्यु के बाद अंग दान करने वालों की संख्या प्रति दस लाख की आबादी पर एक से भी कम है, जो जापान जैसे कुछ एशियाई देशों के लगभग समान है, लेकिन अधिकांश पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम है.
याचिका में कहा गया कि 'मौलिक अधिकार, विशेष रूप से गरिमा के साथ जीवन का अधिकार जो अनुच्छेद 21 (संविधान के) के तहत निहित है, सभी सरकारी और अर्ध-सरकारी मेडिकल कॉलेजों/अस्पतालों में अंग दान और ऊतक पुनर्प्राप्ति केंद्रों की सुविधाएं स्थापित करके प्राप्त किया जा सकता है. क्योंकि अंग पुनर्प्राप्ति की मांग समय-समय पर बढ़ रही है.'
याचिका में कहा गया है कि एक पंजीकृत दाता ठोस अंग दान के माध्यम से आठ लोगों की जान बचा सकता है और ऊतक दान (tissue donation) के माध्यम से 75 लोगों के जीवन में सुधार ला सकता है.