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सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम फैसले तक चिड़ियाघरों के निर्माण पर लगाई रोक

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 29, 2024, 7:14 AM IST

SC Interim order restricting zoos: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया किया कि जंगलों के भीतर चिड़ियाघरों,सफारियों को प्रतिबंधित करने वाला अंतरिम आदेश केवल समन्वय पीठ के अंतिम फैसले तक ही लागू होगा. पढ़ें ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता सुमित सक्सेना की रिपोर्ट...

SC Interim order restricting zoos within forests will operate till final verdict of coordinate bench
सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम फैसले तक चिड़ियाघरों के निर्माण पर लगाई रोक

नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने स्पष्ट किया है कि वन क्षेत्रों के भीतर चिड़ियाघरों, सफारियों की स्थापना को प्रतिबंधित करने वाला उसके द्वारा पारित अंतरिम आदेश केवल तब तक लागू रहेगा जब तक कि उसी मुद्दे पर एक अन्य समन्वय पीठ द्वारा अंतिम फैसला नहीं सुनाया जाता.

सीजेआई की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि उनका ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित है कि न्यायमूर्ति बी आर गवई की अध्यक्षता वाली इस अदालत की एक समन्वय पीठ ने इस विषय पर आदेश सुरक्षित रख लिया है. पीठ में शामिल न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने एक अंतरिम आदेश जारी किया है.

इसमें उन्होंने कहा कि सरकार चिड़ियाघरों और सफारी की स्थापना के किसी भी प्रस्ताव को कोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना मूर्त रूप नहीं दिया जा सकता है. सीजेआई के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा, 'जहां इस तरह के किसी भी प्रस्ताव को लागू करने की मांग की जाती है, अंतरिम निर्देश केवल समन्वय पीठ के अंतिम फैसले तक प्रभावी रहेगा. इसलिए आवश्यक रूप से समन्वय पीठ का निर्णय प्रभावी होगा. सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ ने 19 फरवरी को आदेश पारित किया था, हालांकि इसे आज शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया गया.

19 फरवरी को सीजेआई की अगुवाई वाली एक पीठ ने वन संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2023 को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं के एक बैच पर अंतरिम आदेश पारित किया. हालांकि, न्यायमूर्ति बीआर गवई की अगुवाई वाली एक अन्य पीठ ने टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपाद मामले की सुनवाई करते हुए जंगलों के भीतर चिड़ियाघरों के उसी मुद्दे पर आदेश सुरक्षित रख लिया था.

जस्टिस गवई ने पिछले हफ्ते सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ द्वारा पारित अंतरिम आदेश का जिक्र करते हुए विरोधाभासी आदेशों की संभावना के बारे में चिंता व्यक्त की थी. पीठ ने केंद्र के वकील से पूछा कि क्या सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ को उनके द्वारा सुने गए मामले के बारे में सूचित किया गया था? केंद्र के वकील ने जवाब दिया था कि सीजेआई के नेतृत्व वाली पीठ द्वारा पारित आदेश केवल अंतरिम प्रकृति का था और पीठ को न्यायमूर्ति गवई की पीठ के समक्ष मामले के बारे में सूचित किया गया था.

शीर्ष अदालत ने 19 फरवरी को पारित अपने अंतरिम आदेश में कहा कि संशोधित कानून द्वारा अधिनियम का दायरा दो श्रेणियों तक बढ़ा दिया गया है. पीठ ने कहा, 'पहली श्रेणी में वे भूमि शामिल हैं जिन्हें भारतीय वन अधिनियम या उस समय लागू किसी अन्य कानून के अनुसार वन के रूप में घोषित या पहचाना गया है.'

दूसरी श्रेणी में वे भूमि शामिल हैं जिन्हें इस प्रकार घोषित या अधिसूचित नहीं किया गया है, लेकिन जो 25 अक्टूबर 1980 को या उसके बाद सरकारी रिकॉर्ड में वनों के रूप में दर्ज हैं. राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों के राजस्व या वन विभागों या राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा मान्यता प्राप्त किसी अन्य प्राधिकरण, स्थानीय निकाय, समुदाय या परिषद के रिकॉर्ड.

ये भी पढ़ें- जम्मू-कश्मीर: आठ साल से हिरासत में था आरोपी, सुप्रीम कोर्ट से आखिरकार मिली जमानत

नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने स्पष्ट किया है कि वन क्षेत्रों के भीतर चिड़ियाघरों, सफारियों की स्थापना को प्रतिबंधित करने वाला उसके द्वारा पारित अंतरिम आदेश केवल तब तक लागू रहेगा जब तक कि उसी मुद्दे पर एक अन्य समन्वय पीठ द्वारा अंतिम फैसला नहीं सुनाया जाता.

सीजेआई की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि उनका ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित है कि न्यायमूर्ति बी आर गवई की अध्यक्षता वाली इस अदालत की एक समन्वय पीठ ने इस विषय पर आदेश सुरक्षित रख लिया है. पीठ में शामिल न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने एक अंतरिम आदेश जारी किया है.

इसमें उन्होंने कहा कि सरकार चिड़ियाघरों और सफारी की स्थापना के किसी भी प्रस्ताव को कोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना मूर्त रूप नहीं दिया जा सकता है. सीजेआई के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा, 'जहां इस तरह के किसी भी प्रस्ताव को लागू करने की मांग की जाती है, अंतरिम निर्देश केवल समन्वय पीठ के अंतिम फैसले तक प्रभावी रहेगा. इसलिए आवश्यक रूप से समन्वय पीठ का निर्णय प्रभावी होगा. सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ ने 19 फरवरी को आदेश पारित किया था, हालांकि इसे आज शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया गया.

19 फरवरी को सीजेआई की अगुवाई वाली एक पीठ ने वन संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2023 को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं के एक बैच पर अंतरिम आदेश पारित किया. हालांकि, न्यायमूर्ति बीआर गवई की अगुवाई वाली एक अन्य पीठ ने टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपाद मामले की सुनवाई करते हुए जंगलों के भीतर चिड़ियाघरों के उसी मुद्दे पर आदेश सुरक्षित रख लिया था.

जस्टिस गवई ने पिछले हफ्ते सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ द्वारा पारित अंतरिम आदेश का जिक्र करते हुए विरोधाभासी आदेशों की संभावना के बारे में चिंता व्यक्त की थी. पीठ ने केंद्र के वकील से पूछा कि क्या सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ को उनके द्वारा सुने गए मामले के बारे में सूचित किया गया था? केंद्र के वकील ने जवाब दिया था कि सीजेआई के नेतृत्व वाली पीठ द्वारा पारित आदेश केवल अंतरिम प्रकृति का था और पीठ को न्यायमूर्ति गवई की पीठ के समक्ष मामले के बारे में सूचित किया गया था.

शीर्ष अदालत ने 19 फरवरी को पारित अपने अंतरिम आदेश में कहा कि संशोधित कानून द्वारा अधिनियम का दायरा दो श्रेणियों तक बढ़ा दिया गया है. पीठ ने कहा, 'पहली श्रेणी में वे भूमि शामिल हैं जिन्हें भारतीय वन अधिनियम या उस समय लागू किसी अन्य कानून के अनुसार वन के रूप में घोषित या पहचाना गया है.'

दूसरी श्रेणी में वे भूमि शामिल हैं जिन्हें इस प्रकार घोषित या अधिसूचित नहीं किया गया है, लेकिन जो 25 अक्टूबर 1980 को या उसके बाद सरकारी रिकॉर्ड में वनों के रूप में दर्ज हैं. राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों के राजस्व या वन विभागों या राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा मान्यता प्राप्त किसी अन्य प्राधिकरण, स्थानीय निकाय, समुदाय या परिषद के रिकॉर्ड.

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