नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को 'पहले आओ, पहले पाओ' के आधार पर मुफ्त प्रतीकों के आवंटन के खिलाफ तमिलनाडु स्थित गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल, नाम तमिलर काची द्वारा दायर याचिका पर भारत के चुनाव आयोग से जवाब मांगा.
एक गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल को चुनाव चिह्न दिया गया जो नाम तमिलर काची (एनटीके) को दिया गया. याचिकाकर्ता ने आगामी आम चुनाव के लिए तमिलनाडु और पुदुचेरी में एक अन्य राजनीतिक दल को मुफ्त प्रतीक 'गन्ना किसान' (गन्ना किसान) के आवंटन को चुनौती दी.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल थे. पीठ ने अन्य राजनीतिक दल को भी नोटिस जारी किया.
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह चुनाव चिह्न आदेश के पैराग्राफ 10 बी (बी) की योजना की जांच करेगी, जो पार्टियों और उम्मीदवारों को 'पहले आओ, पहले पाओ' के आधार पर मुफ्त प्रतीक देने से संबंधित है. शीर्ष अदालत इस याचिका पर होली की छुट्टियों को बाद सुनवाई कर सकती है.
1 मार्च को गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को 'पहले आओ, पहले पाओ' के आधार पर चुनाव पैनल द्वारा मुफ्त प्रतीकों के आवंटन के खिलाफ एनटीके की याचिका को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था.
उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता द्वारा दी गई दलीलों को स्वीकार नहीं किया कि इस आशय का चुनाव चिह्न आदेश मनमाना और असंवैधानिक था. याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि यह स्वतंत्र प्रतीकों के सार के खिलाफ काम करेगा.