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ये नई डिवाइस बताएगी पानी और खाना कितना जहरीला, भोजन का विषैले पदार्थ निकाल फेंकेगा - Food testing device new innovation

आईआईटी बॉम्बे में आयोजित आइडिया टू इनोवेशन प्रतिस्पर्धा में डॉ. हरीसिंह गौर यूनिवर्सिटी सागर का अनोखा प्रोजेक्ट सिलेक्ट हुआ है. केमिस्ट्री डिपार्टमेंट के इस प्रोजेक्ट के तहत ऐसी डिवाइस तैयार की जा रही है, जो मानव समाज से साथ-साथ प्रर्यावरण के लिए भी फायदेमंद होगी.

SAGAR UNIVERSITY NEW INNOVATION
इस डिवाइस से खाद्य पदार्थों के रोगजनकर विषाणुओं को कर सकते है अलग (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 23, 2024, 11:46 AM IST

Updated : Aug 23, 2024, 1:01 PM IST

सागर: डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा और क्षमता की दम पर बड़ी उपलब्धि हासिल की है. आईआईटी बॉम्बे में चयनित प्रोजेक्ट के तहत जो डिवाइस तैयार किया जा रह है, वो पानी और खाद्य पदार्थों में रोगजनक पदार्थ की पहचान कर पहले ही चेतावनी दे देगा. इतना ही नहीं, ये डिवाइस उन्हें नष्ट या अलग करने का काम भी करेगा. इस नवाचार को इसलिए अहम माना जा रहा है. क्योंकि अभी ऐसे बायोमेडिकल डिवाइस मार्केट में उपलब्ध है, जो इन चीजों का पता तो लगा लेते हैं, लेकिन उन्हें अलग या नष्ट नहीं कर पाते हैं.

इस डिवाइस से पर्यावर्ण को होगा फायदा (ETV Bharat)

आईआईटी बॉम्बे के आइडिया टू इनोवेशन कार्यक्रम में चयन

कैमेस्ट्री डिपार्टमेंट के असि. प्रोफेसर डॉ. के बी जोशी बताते हैं, "रिसर्च और डेवलपमेंट सेक्टर में ऐसे नवाचार जो समाज के लिए फायदेमंद हों. हमारा विभाग इस दिशा में लगातार प्रयासरत है. हाल ही में IIT Bombay में आईएनयूपी (Indian Nanoelectronics Users Program) के तहत आइडिया टू इनोवेशन (i2i) प्रतिस्पर्धा आयोजित की गई. जिसमें देश की करीब दो हजार संस्थाओं ने हिस्सा लिया. प्रतियोगिता में पूरे देश में दो प्रोजेक्ट नवाचार के लिए चयनित हुए. जिनमें सागर और एमिटी यूनिवर्सिटी के प्रोजेक्ट है. इनमें आईआईटी बॉम्बे दोनों यूनिवर्सिटी को तकनीकी सहायता के साथ आधुनिक प्रयोगशालाओं का उपयोग करने की सुविधा देगा. यूनिवर्सिटी के कैमेस्ट्री डिपार्टमेंट का जो प्रोजेक्ट स्वीकृत हुआ है. वह दो अन्य प्रोजेक्ट पर आधारित है. जो एसईआरबी (साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड) और भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत है. इस प्रोजेक्ट के प्रमुख डॉ. के बी जोशी और रिसर्च टीम में डॉ. सिद्धार्थ चौपड़ा हैं जो CDRI-Lucknow के शोधकर्ता है. इसके साथ शोध छात्रों में आनंद कौतू, श्रुति शर्मा और नारायण स्वैन ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है."

IDEA TO INNOVATION COMPETITION
सागर यूनिर्सिटी के केमिस्ट्री डिपार्टमेंट में किया गया प्रयोग (ETV Bharat)

इस सिद्धांत पर आधारित होगी डिवाइस

डॉ. के बी जोशी बताते हैं, "हमने कुछ ऐसे अणु (specific molecule) बनाए हैं, जो पेप्टाइड आधारित है. इन्हें विशेष तौर अमीनो एसिड से जोड़कर चाहे गए पेप्टाइड बनाते हैं और इन्हें specific functional group से जोड़कर और भी कारगर बनाते हैं. क्योकि पेप्टाइड की प्रकृति, गुण और क्षमताएं तरह-तरह की होती है. ये biological system के लिए उपयोगी हैं. इस तरीके से हम किसी भी ड्रग को किसी टारगेट तक आसानी से पहुंचा सकेंगे और रोगजनक धातुओं की पहचान कर उसको हटा भी देते हैं. पर्यावरण की दृष्टि से देखें, तो इन पेप्टाइड की मदद से भारी धातुओं को भी हटा सकते हैं. फिलहाल मार्केट में ऐसे molecule मौजूद है. जो हैवी मेटल को रिमूव कर सकते हैं. लेकिन इन में समस्या है कि ये molecule और compound शरीर के उपयोगी तत्वों को भी हटा देता है. इसका सीधा मतलब है कि वह pathogens (रोगजनक) की पहचान करने में सक्षम नहीं है. जो उद्योगों और मेडिकल अपशिष्ट के रूप में मौजूद है. हमारा उद्देश्य लेड, कैडमियम, आर्सेनिक और मर्करी जैसे तत्व पर्यावरण में है. उनको पहचान कर हटाना है.

यहां पढ़ें...

अमीरों का एयर कंडीशनर, बिल गरीबों के कूलर वाला, प्रोफेसर का 10 हजारी AC बड़े कमाल का

रिसर्च के क्षेत्र में सागर यूनिवर्सिटी ने कई विश्वविद्यालयों को छोड़ा पीछे, रैंकिंग से राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाया मान

समाज के लिए क्या फायदा

प्रोजेक्ट हैड डॉ. के बी जोशी बताते हैं कि मार्केट में ऐसी कई बॉयोमेडिकल चिप हैं. जिनका हम लंबे समय से उपयोग कर रहे हैं. इनके जरिए हम कई तरह के परीक्षण कर सकते हैं. जिस तरह हमारे घर में आर ओ लगा हुआ है, जो पानी का टीडीएस बताता है और ये भी बताता है कि किस टीडीएस लेवल का पानी पीने के योग्य है और किस टीडीएस लेवल पर पानी पीने लायक नहीं है. लेकिन ये नहीं बता पाता है कि इसमें कितने विषैले पदार्थ हैं. अगर हम ऐसा डिवाइस बना लें जो विषैले पदार्थों को पहचान कर उसे अलग से हटा भी सके. इसी तरह खाने के खराब होने की समस्या से बड़ी परेशानी हैं. हम फ्रिज में खाने को स्टोर करके रखते हैं और कई बार जरूरत से ज्यादा खाना बाहर से मंगा लेते हैं, लेकिन हमें पता नहीं होता है कि इसमें कोई बैक्टीरियल इनफेक्शन तो नहीं है. हम ऐसा डिवाइस बना सकते हैं कि जो व्यक्ति विज्ञान की जानकारी भी ना रखता हो, वह थर्मामीटर की तरह डिवाइस से पता लगा ले कि खाना खाने योग्य है कि नहीं. इससे फूड प्वाइजनिंग वाले मामले कम होंंगे. अस्पताल में बीमारियों के इलाज का दबाव कम होगा और सबसे बड़ी समस्या जो खाने के संकट की है कि लोग चार-पांच दिन बाद रखा हुआ खाना पता लगाए बिना फेंक देते हैं कि वह खराब हुआ है कि नहीं. हम ऐसा डिवाइस बनाएंगे जो बता सकेगा कि खाने में खराबी किस तरह की है और शरीर के लिए कितनी नुकसानदायक है, फिर हम उसे अलग भी कर सकेंगे.

सागर: डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा और क्षमता की दम पर बड़ी उपलब्धि हासिल की है. आईआईटी बॉम्बे में चयनित प्रोजेक्ट के तहत जो डिवाइस तैयार किया जा रह है, वो पानी और खाद्य पदार्थों में रोगजनक पदार्थ की पहचान कर पहले ही चेतावनी दे देगा. इतना ही नहीं, ये डिवाइस उन्हें नष्ट या अलग करने का काम भी करेगा. इस नवाचार को इसलिए अहम माना जा रहा है. क्योंकि अभी ऐसे बायोमेडिकल डिवाइस मार्केट में उपलब्ध है, जो इन चीजों का पता तो लगा लेते हैं, लेकिन उन्हें अलग या नष्ट नहीं कर पाते हैं.

इस डिवाइस से पर्यावर्ण को होगा फायदा (ETV Bharat)

आईआईटी बॉम्बे के आइडिया टू इनोवेशन कार्यक्रम में चयन

कैमेस्ट्री डिपार्टमेंट के असि. प्रोफेसर डॉ. के बी जोशी बताते हैं, "रिसर्च और डेवलपमेंट सेक्टर में ऐसे नवाचार जो समाज के लिए फायदेमंद हों. हमारा विभाग इस दिशा में लगातार प्रयासरत है. हाल ही में IIT Bombay में आईएनयूपी (Indian Nanoelectronics Users Program) के तहत आइडिया टू इनोवेशन (i2i) प्रतिस्पर्धा आयोजित की गई. जिसमें देश की करीब दो हजार संस्थाओं ने हिस्सा लिया. प्रतियोगिता में पूरे देश में दो प्रोजेक्ट नवाचार के लिए चयनित हुए. जिनमें सागर और एमिटी यूनिवर्सिटी के प्रोजेक्ट है. इनमें आईआईटी बॉम्बे दोनों यूनिवर्सिटी को तकनीकी सहायता के साथ आधुनिक प्रयोगशालाओं का उपयोग करने की सुविधा देगा. यूनिवर्सिटी के कैमेस्ट्री डिपार्टमेंट का जो प्रोजेक्ट स्वीकृत हुआ है. वह दो अन्य प्रोजेक्ट पर आधारित है. जो एसईआरबी (साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड) और भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत है. इस प्रोजेक्ट के प्रमुख डॉ. के बी जोशी और रिसर्च टीम में डॉ. सिद्धार्थ चौपड़ा हैं जो CDRI-Lucknow के शोधकर्ता है. इसके साथ शोध छात्रों में आनंद कौतू, श्रुति शर्मा और नारायण स्वैन ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है."

IDEA TO INNOVATION COMPETITION
सागर यूनिर्सिटी के केमिस्ट्री डिपार्टमेंट में किया गया प्रयोग (ETV Bharat)

इस सिद्धांत पर आधारित होगी डिवाइस

डॉ. के बी जोशी बताते हैं, "हमने कुछ ऐसे अणु (specific molecule) बनाए हैं, जो पेप्टाइड आधारित है. इन्हें विशेष तौर अमीनो एसिड से जोड़कर चाहे गए पेप्टाइड बनाते हैं और इन्हें specific functional group से जोड़कर और भी कारगर बनाते हैं. क्योकि पेप्टाइड की प्रकृति, गुण और क्षमताएं तरह-तरह की होती है. ये biological system के लिए उपयोगी हैं. इस तरीके से हम किसी भी ड्रग को किसी टारगेट तक आसानी से पहुंचा सकेंगे और रोगजनक धातुओं की पहचान कर उसको हटा भी देते हैं. पर्यावरण की दृष्टि से देखें, तो इन पेप्टाइड की मदद से भारी धातुओं को भी हटा सकते हैं. फिलहाल मार्केट में ऐसे molecule मौजूद है. जो हैवी मेटल को रिमूव कर सकते हैं. लेकिन इन में समस्या है कि ये molecule और compound शरीर के उपयोगी तत्वों को भी हटा देता है. इसका सीधा मतलब है कि वह pathogens (रोगजनक) की पहचान करने में सक्षम नहीं है. जो उद्योगों और मेडिकल अपशिष्ट के रूप में मौजूद है. हमारा उद्देश्य लेड, कैडमियम, आर्सेनिक और मर्करी जैसे तत्व पर्यावरण में है. उनको पहचान कर हटाना है.

यहां पढ़ें...

अमीरों का एयर कंडीशनर, बिल गरीबों के कूलर वाला, प्रोफेसर का 10 हजारी AC बड़े कमाल का

रिसर्च के क्षेत्र में सागर यूनिवर्सिटी ने कई विश्वविद्यालयों को छोड़ा पीछे, रैंकिंग से राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाया मान

समाज के लिए क्या फायदा

प्रोजेक्ट हैड डॉ. के बी जोशी बताते हैं कि मार्केट में ऐसी कई बॉयोमेडिकल चिप हैं. जिनका हम लंबे समय से उपयोग कर रहे हैं. इनके जरिए हम कई तरह के परीक्षण कर सकते हैं. जिस तरह हमारे घर में आर ओ लगा हुआ है, जो पानी का टीडीएस बताता है और ये भी बताता है कि किस टीडीएस लेवल का पानी पीने के योग्य है और किस टीडीएस लेवल पर पानी पीने लायक नहीं है. लेकिन ये नहीं बता पाता है कि इसमें कितने विषैले पदार्थ हैं. अगर हम ऐसा डिवाइस बना लें जो विषैले पदार्थों को पहचान कर उसे अलग से हटा भी सके. इसी तरह खाने के खराब होने की समस्या से बड़ी परेशानी हैं. हम फ्रिज में खाने को स्टोर करके रखते हैं और कई बार जरूरत से ज्यादा खाना बाहर से मंगा लेते हैं, लेकिन हमें पता नहीं होता है कि इसमें कोई बैक्टीरियल इनफेक्शन तो नहीं है. हम ऐसा डिवाइस बना सकते हैं कि जो व्यक्ति विज्ञान की जानकारी भी ना रखता हो, वह थर्मामीटर की तरह डिवाइस से पता लगा ले कि खाना खाने योग्य है कि नहीं. इससे फूड प्वाइजनिंग वाले मामले कम होंंगे. अस्पताल में बीमारियों के इलाज का दबाव कम होगा और सबसे बड़ी समस्या जो खाने के संकट की है कि लोग चार-पांच दिन बाद रखा हुआ खाना पता लगाए बिना फेंक देते हैं कि वह खराब हुआ है कि नहीं. हम ऐसा डिवाइस बनाएंगे जो बता सकेगा कि खाने में खराबी किस तरह की है और शरीर के लिए कितनी नुकसानदायक है, फिर हम उसे अलग भी कर सकेंगे.

Last Updated : Aug 23, 2024, 1:01 PM IST
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