सागर: बुंदेलखंड में दीपावली के त्योहार पर कई तरह की लोक परम्पराएं प्रचलित हैं. जिसमें से दीपावली के दूसरे दिन ग्वाल वंश के लोगों का मोनिया की सदियों पुरानी परंपरा एक है. इस दिन से बुंदेलखंड के प्रसिद्ध दिवारी लोकनृत्य का सिलसिला शुरू हो जाता है. ढोलक की थाप, घुंघरू की झनकार, लाठी की चटकार और हैरतअंगेज कर देने वाले कारनामे मोनिया और दिवारी नृत्य को मनमोहक बनाते हैं. गोवर्धन पूजा के साथ शुरू हुआ सिलसिला दिवारी लोकनृत्य के रूप में देव उठनी एकादशी तक चलता रहता है.
भगवान कृष्ण से जुड़ी है मोनिया की परम्परा
बुंदेलखंड में दीपावली पर गोवर्धन पूजा के साथ मोनिया की परम्परा के बारे में प्राचीन मान्यता है. इसके बारे में कहा जाता है कि, एक बार भगवान कृष्ण अपनी गायों को चराने लेकर गए थे. गायें चर रही थी और वे यमुना नदी के किनारे बैठे थे. तभी चरते-चरते उनकी गायें कहीं चली गई. इससे भगवान श्रीकृष्ण बहुत दुखी हुए और उन्होंने मौन धारण कर लिया. अपने मित्र कान्हा को दुखी देख उनके ग्वाल मित्र परेशान हो गए और वे गायों की तलाश में जुट गए. उन्होंने काफी मेहनत के बाद उनको खोज निकाला. अपनी प्रिय गायों को अपने बीच पाकर श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए और उन्होंने अपना मौन व्रत भी तोड़ दिया.
गोवर्धन पूजा के बाद करते हैं व्रत समाप्त
जानकार बताते हैं कि, इसी प्रसंग के बाद से मोनिया परंपरा की शुरुआत हुई थी. तभी से अपने आप को कृष्ण का वंशज मानने वाले ग्वाल वंश के लोग इस परंपरा का निर्वहन करते हैं. गोवर्धन पूजा के दिन वो सुबह भगवान कारसदेव की पूजा-अर्चना करते हैं. इसके बाद गाय के बच्चे (बछिया) के पैरों के बीच से निकलकर मौत व्रत धारण कर सात गांवों की मेड़ पार करते हुए गोवर्धन पूजा के बाद अपना व्रत समाप्त करते हैं. इसके बाद मोनिया और बरेदी लोक नृत्य का सिलसिला शुरू होता है, जो देवउठनी एकादशी तक लगातार चलता है.
मन्नत के लिए मौन रखकर लांघते हैं 7 गांव
बुंदेलखंड में परंपरा के तहत ग्वाल वंश मौन व्रत धारण कर सुबह स्नान करते हैं. फिर नए वस्त्र पहन कारस देव की पूजा अर्चना करते हैं. बछड़ी के पैरों के नीचे से निकल ये मोनिया 7 गांव की मेड़ पार करने के लिए निकल जाते हैं. इस दौरान मोनिया अपने साथ दिवाली का प्रसाद रखते हैं और रास्ते में लोगों को बांटते जाते हैं. इस दौरान किसी किस्म की बात नहीं होती. अपने गांव से निकल 7 गांवों की मेड़ पर करने के बाद शाम तक मनिया गोवर्धन मंदिर पहुंचते हैं और पूजा अर्चना, नाच गा कर अपना व्रत समाप्त करते हैं. मोनिया ज्यादातर वो लोग बनते हैं जो किसी मनोकामना लिए होते हैं. बुंदेलखंड में यह परंपरा सदियों पुरानी है.
जैसीनगर गांव में लगता है ऐतिहासिक मेला
जिले के जैसीनगर विकासखंड में स्थित गोवर्धन टोरिया पर दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन मेले का आयोजन किया जाता है. बुजुर्ग बताते हैं कि, गोवर्धन टोरिया का मेला काफी प्राचीन मेला है. जैसीनगर में गोवर्धन टोरिया पर भगवान श्रीकृष्ण अपनी उंगली पर पर्वत उठाए हुए विराजमान है. दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन मंदिर पहुंचकर लोग भगवान गोवर्धन की पूजा अर्चना करते हैं. जहां सैकड़ों की संख्या में दूर-दूर के गांवों से मोनिया व्रत धारण करने वाले ग्वाल भी पहुंचते हैं और भगवान गोवर्धन के दर्शन कर दिवारी गाकर मोनिया नृत्य करते हैं.
गोवर्धन पूजा के साथ शुरू होता है बरेदी लोक नृत्य का सिलसिला
दीपावली पूजन के दूसरे दिन से गोवर्धन पूजा के साथ दिवारी नृत्य की परम्परा बुंदेलखंड में सदियों पुरानी है. खासकर ग्वाल वंश के लोग गोवर्धन पूजा के बाद दिवारी नृत्य करने के लिए इकट्ठे होते हैं. पहले भगवान कारसदेव के सामने बरेदी लोक नृत्य करते हैं और फिर उनकी गायों को चराने वालों के घर जाकर दिवारी लोकनृत्य कर दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं. रंग-बिरंगे आकर्षक परिधानों में सजे-धजे ग्वाल हाथों में मोर पंख लेकर और तरह-तरह का सिंगार करके ढोलक की थाप पर थिरकते हैं. ऐसी मान्यता है कि दीपावली के अवसर पर दिवारी नृत्य खेलना और देखना शुभ माना जाता है. दिवारी नृत्य करने वाले ग्वालों की टोली गांवों से लेकर शहर तक निकलती है, जो अपने नृत्य से हर किसी को आकर्षित करती है.