नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मनमाने ढंग से की जाने वाली तोड़फोड़ के खिलाफ व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए और कानून के शासन और अधिकारियों द्वारा उचित प्रक्रिया का पालन करने पर जोर दिया. कोर्ट ने कहा कि जब अधिकारी न्याय के बुनियादी सिद्धांतों का पालन करने में विफल रहे , तो बुलडोजर द्वारा इमारत को ध्वस्त करने का भयावह दृश्य इस बात की याद दिलाता है कि जिसकी पास ताकत है, उसकी ही चलती है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी शख्स की संपत्ति को केवल इसलिए ध्वस्त कर दिया जाता है क्योंकि वह आरोपी है या यहां तक कि दोषी भी है, वह भी कानून द्वारा निर्धारित उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना, तो यह पूरी तरह से असंवैधानिक होगा.
जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि कानून का शासन राज्य की शक्ति के मनमाने प्रयोग पर लगाम लगाने और सत्ता के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक ढांचा और वैल्यू सिस्टम प्रदान करता है. पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि कार्यपालिका न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती. कोर्ट ने इसे कानूनविहीन स्थिति बताया.
सिद्धांत के विपरीत है ध्वस्तीकरण
पीठ ने कहा, "हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि कार्यपालिका मनमाने तरीके से किसी नागरिक के घर को केवल इस आधार पर ध्वस्त नहीं कर सकती है कि उस पर अपराध का आरोप है. यह कानून के शासन के सिद्धांतों के विपरीत है." पीठ ने कहा कि कार्यपालिका एक न्यायाधीश के रूप में कार्य करती है और इस आधार पर ध्वस्तीकरण की सजा देती है कि वह एक आरोपी है, तो यह सेपरेशन ऑफ पावर के सिद्धांत का उल्लंघन है.
कोर्ट ने कहा कि आश्रय का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के पहलुओं में से एक है. उन्होंने कहा, "महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को इस तरह से बेघर होते देखना सुखद दृश्य नहीं है."
अधिकारियों जवाबदेह बनाया जाना चाहिए
पीठ ने कहा, "हमारा मानना है कि ऐसे मामलों में कानून को अपने हाथ में लेने वाले सरकारी अधिकारियों को इस तरह के अत्याचारी कार्यों के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए." अदालत का मानना है कि इसं संबध में कुछ निर्देश तैयार किए जाने की आवश्यकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि सरकारी अधिकारी अत्याचारी तरीके से कार्य नहीं करेंगे और उन पर जवाबदेही तय की जानी चाहिए.
पीठ ने कहा कि अभियुक्तों या दोषियों को भी संवैधानिक प्रावधानों के रूप में कुछ अधिकार और सुरक्षा उपाय प्राप्त हैं. राज्य और उसके अधिकारी कानून द्वारा स्वीकृत उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना अभियुक्तों या दोषियों के खिलाफ मनमाना कदम नहीं उठा सकते.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब राज्य या अधिकारियों द्वारा सत्ता के अवैध या मनमाने प्रयोग या उनकी लापरवाही या निष्क्रियता के कारण किसी अभियुक्त या दोषी के अधिकार का उल्लंघन होता है, तो संस्थागत जवाबदेही होनी चाहिए और अधिकारियों ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया है, उन्हें बख्शा नहीं जाना चाहिए.
प्रक्रिया का पालन किए बिना किया एक्शन असंवैधानिक
जस्टिस गवई ने कहा, "अगर किसी नागरिक की संपत्ति को केवल इसलिए ध्वस्त कर दिया जाता है क्योंकि वह अभियुक्त है या अपराधी है, वह भी कानून द्वारा निर्धारित उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना. यह हमारे विचार में पूरी तरह से असंवैधानिक होगा. सबसे पहले, केवल आरोपों के आधार पर कार्यपालिका किसी व्यक्ति को दोषी घोषित नहीं कर सकती... कार्यपालिका ऐसे अभियुक्त व्यक्ति की संपत्ति को कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना ध्वस्त करती है, तो यह कानून के शासन के मूल सिद्धांत पर प्रहार होगा और इसकी अनुमति नहीं है."
पीठ ने कहा कि कार्यपालिका जज की तरह यह तय नहीं कर सकती कि आरोपी व्यक्ति दोषी है, इसलिए उसे उसकी रिहायशी या व्यावसायिक संपत्तियां गिराकर दंडित नहीं किया जा सकता. कार्यपालिका का ऐसा कृत्य उसकी सीमाओं का उल्लंघन होगा.
जस्टिस गवई ने कहा कि कार्यपालिका के अत्याचारी कार्यों के लिए कोई जगह नहीं है और कार्यपालिका के हाथों ऐसी ज्यादतियों से कानून के कठोर हाथों से निपटना होगा. पीठ ने कहा, "हमारे संवैधानिक लोकाचार और मूल्य सत्ता के ऐसे किसी भी दुरुपयोग की अनुमति नहीं देते... इसे कानून की अदालत बर्दाश्त नहीं कर सकती..." उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में कार्यपालिका कानून को हाथ में लेने के लिए दोषी होगी.
अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए कोर्ट ने पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए स्पेसिफिक नियमों के साथ, पूरे देश में पालन किए जाने वाले अनिवार्य प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को रेखांकित किया.
ध्वस्तीकरणों की वीडियो हो रिकॉर्डिंग
पीठ ने कहा कि संबंधित अधिकारियों को किसी संपत्ति को ध्वस्त करने के निर्णय को स्पष्ट करने के लिए एक स्पीकिंग ऑर्डर जारी करना आवश्यक है. पीठ ने कहा कि सभी ध्वस्तीकरणों का वीडियो रिकॉर्ड किया जाना चाहिए, ताकि अदालत के दिशानिर्देशों के अनुपालन का सबूत मिल सके.
पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि बिना पूर्व लिखित सूचना के किसी भी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जा सकता है, और निर्देश दिया कि मालिकों को जवाब देने के लिए कम से कम 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि नोटिस रजिस्टर डाक से दिए जाने चाहिए और संबंधित संरचना पर प्रदर्शित किए जाने चाहिए और इसमें ध्वस्तीकरण के कारणों के बारे में विस्तार से बताया जाना चाहिए. साथ हीप्रभावित व्यक्तियों को ध्वस्तीकरण से पहले व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए.
अधिकारी को भरना होगा हर्जाना
इस बीच पीठ ने स्पष्ट किया कि किसी भी अधिकारी द्वारा उसके आदेश का उल्लंघन करने पर अवमानना कार्यवाही और अभियोजन अलग से होगा और ऐसे मामलों में संपत्ति की बहाली और नुकसान के भुगतान के लिए अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया जाएगा. पीठ ने कहा कि उसका आदेश सभी हाई कोर्ट और राज्य सरकारों को भेजा जाना चाहिए ताकि संबंधित अधिकारियों के लिए परिपत्र जारी किया जा सके.