रांची: संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ की वजह से तेजी से डेमोग्राफी बदल रही है. आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि घुसपैठियों और अवैध अप्रवासियों की पहचान सुनिश्चित कराने में स्पेशल ब्रांच की मदद लें और कार्रवाई करें.
कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद और न्यायाधीश अरुण राय की खंडपीठ ने संथाल के सभी छह जिलों के उपायुक्तों को भी आदेश दिया है कि लैंड रिकॉर्ड से मिलान किए बिना आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर कार्ड, बीपीएल कार्ड को जारी नहीं करना है. साथ ही बन चुके पहचान पत्रों की जांच के लिए अभियान चलाएं. कोर्ट ने यह भी कहा है कि जिन दस्तावेजों के आधार पर राशन कार्ड, वोटर कार्ड या आधार कार्ड बनाए गये हैं, वो जायज ही हों, ये नहीं कहा जा सकता. इसकी वजह से राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं में भी हकमारी हो रही है.
दरअसल, 8 अगस्त को हुई सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने इसे गंभीर मसला बताते हुए कई आदेश जारी किए थे. ऑर्डर की कॉपी 13 अगस्त को अपलोड हुई है. पिछली सुनवाई में महाधिवक्ता ने कहा था कि स्थानीय प्रशासन और पुलिस को पहचान सुनिश्चित करने में परेशानी हो रही है.
याचिकाकर्ता दानियल दानिश के अधिवक्ता राजेंद्र कृष्णा ने राष्ट्रीय जनगणना के हवाले हाईकोर्ट के समक्ष जो डाटा पेश किया है, उसके मुताबिक साल 1951 में संथाल परगना क्षेत्र में आदिवासी आबादी 44.67% से घटकर साल 2011 में 28.11% हो गयी है. इसकी तुलना में साल 1951 में कुल मुस्लिम आबादी 9.44% से बढ़कर साल 2011 में 22.73% हो गई है. पिछले 60 वर्षों में करीब 16.56 प्रतिशत आदिवासियों की संख्या घट गई है.
उन्होंने कोर्ट को बताया है कि यही हाल रहा तो आने वाले समय में इस क्षेत्र से आदिवासी समुदाय का अस्तित्व खत्म हो जाएगा. अगर बांग्लादेशी घुसपैठ और अवैध इमिग्रेशन पर लगाम नहीं लगाया गया तो स्थिति आउट ऑफ कंट्रोल हो जाएगी. ऐसा होता रहा तो एसपीटी एक्ट, 1949 और आदिवासियों के लिए आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने का कोई मतलब नहीं रहेगा.
हाईकोर्ट का 3 जुलाई को आदेश
झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ से बदल रही डेमोग्राफी को झारखंड हाईकोर्ट ने बेहद गंभीर मामला बताया है. कोर्ट ने अपने आदेश में साल 2005 में असम से जुड़े सर्बानंद सोनोवाल बनाम केंद्र सरकार और 2015 में सनमिलिता महासंघ बनाम केंद्र सरकार से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया है.
- हाईकोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान 3 जुलाई को केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय से शपथ पत्र दायर करने को कहा था. कोर्ट ने पूछा था कि इस मसले का हल निकालने के लिए राज्य सरकार के साथ मिलकर क्या क्या किया जा सकता है. लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से इस मामले में कोई शपथ पत्र दायर नहीं हुआ.
- हाईकोर्ट ने संथाल परगना प्रमंडल के पाकुड़, साहिबगंज, गोड्डा, जामताड़ा, दुमका और देवघर के उपायुक्तों से अलग-अलग शपथ पत्र दायर कर बांग्लादेशी घुसपैठियों की जानकारी मांगी थी. कोर्ट ने आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड को जमीन रिकॉर्ड से मिलान करने को कहा था. साथ ही संथाल परगना टेनेंसी एक्ट, 1949 को आधार बनाने को कहा था.
- हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि जल्द से जल्द घुसपैठियों की पहचान कर वापस भेजा जाए. ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाई जा सके. कोर्ट ने इसकी मॉनिटरिंग मुख्य सचिव के स्तर पर सुनिश्चित करने को कहा था.
हाईकोर्ट का 18 जुलाई को आदेश
झारखंड हाईकोर्ट ने 18 जुलाई को संथाल में बांग्लादेशी घुसपैठ से हो रही डेमोग्राफी चेंज से जुड़ी जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान इस बात पर नाराजगी जताई थी कि उपायुक्तों के स्तर पर शपथ दायर करने के बजाए अधीनस्थ पदाधिकारियों द्वारा शपथ पत्र क्यों दायर किया गया. यह कहते हुए हाईकोर्ट ने सभी शपथ पत्र को खारिज कर दिया था. कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि 3 जुलाई के आदेश के आलोक में उपायुक्तों को ही शपथ पत्र दायर करना है.
- 18 जुलाई को राज्य सरकार की ओर से भी शपथ पत्र दायर नहीं किया गया. हालांकि महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में मुख्य सचिव के स्तर पर एक मीटिंग हुई है. इसमें वे भी शामिल थे. पूरे मामले पर विस्तार से चर्चा हुई है. महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया था कि मीटिंग में जो फैसले लिए गये हैं, उससे जुड़ा शपथ पत्र कोर्ट में पेश किया जाएगा.
- 18 जुलाई को कोर्ट ने संथाल के सभी छह जिलों के उपायुक्तों से आवेदन या शपथ पत्र के जरिए यह बताने को कहा था कि 3 जुलाई को दिए गए आदेश का पालन क्यों नहीं हुआ.
- 18 जुलाई को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने संथाल के सभी जिलों के उपायुक्तों को अलग-अलग शपथ पत्र दायर करने के लिए फिर से एक सप्ताह का वक्त दिया. कोर्ट ने फिर कहा कि घुसपैठियों के आधार कार्ड और वोटर कार्ड का मिलान लैंड रिकॉर्ड से करना है.
- 18 जुलाई को केंद्र सरकार की ओर से प्रशांत पल्लव ने स्वीकार किया कि 3 जुलाई को दिए गए आदेश के तहत शपथ पत्र दायर नहीं हो पाया है. हालांकि उन्होंने कहा कि अगली सुनवाई से पहले इस बाबत शपथ पत्र दायर कर दिया जाएगा. उस दिन प्रशांत पल्लव ने बांग्लादेश में उपजे हालात का जिक्र करते हुए अखबारों की कटिंग पेश की थी. उन्होंने बताया था कि बॉर्डर क्रॉस करना चाह रहे सैंकड़ों लोगों को बीएसएफ ने रोका है.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश तथ्यों का हवाला देते हुए कोर्ट ने सख्त मौखिक टिप्पणी की थी. कोर्ट ने राज्य सरकार से अगली सुनवाई से पहले शपथ पत्र के जरिए जवाब मांगा है. बांग्लादेश से लगी सीमा पर मौजूदा हालात और असम से जुड़े दो मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने बीएसएफ के डायरेक्टर जनरल, यूआईडीएआई के डायरेक्टर जनरल, मुख्य सूचना आयुक्त, आईबी के डायरेक्टर जनरल और एनआईए के डायरेक्टर को भी प्रतिवादी बनाया है.
आपको बता दें कि पिछले दिनों रांची आए असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठ की वजह से झारखंड का भी असम और पश्चिम बंगाल वाला हाल है. संथाल में डेमोग्राफी बदल रही है. फिर भी कांग्रेस को सिर्फ 'गाजा' नजर आता है. कांग्रेस सिर्फ तुष्टिकरण में लगी हुई है.
भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी और नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी बार-बार कह रहे हैं कि संथाल में अवैध तरीके से आधार कार्ड जारी हो रहे हैं. बांग्लादेश के मुसलमान यहां की बेटियों से शादी कर बस रहे हैं. वहीं सत्ताधारी दल झामुमो, कांग्रेस और राजद के नेताओं का कहना है कि घुसपैठ को रोकना केंद्र सरकार का काम है. लेकिन इस मामले में हाईकोर्ट के गंभीर रुख से आदिवासियों के अस्तित्व को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं. मामले की अगली सुनवाई 22 अगस्त को होगी.
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