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जाति प्रमाण पत्र मामला : अमरावती से सांसद नवनीत कौर राणा को राहत, SC ने रद्द किया हाईकोर्ट का आदेश - Relief for Amravati MP Navneet Rana - RELIEF FOR AMRAVATI MP NAVNEET RANA

Relief for Amravati MP Navneet Rana : महाराष्ट्र की अमरावती सीट से सांसद नवनीत राणा को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिल गई है. शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के उस आदेश को पलट दिया जिसमें लोकसभा सदस्य के अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र को रद्द कर दिया गया था.

MP Navneet Kaur Rana
सांसद नवनीत कौर राणा को राहत
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By Sumit Saxena

Published : Apr 4, 2024, 9:59 PM IST

नई दिल्ली : अमरावती की सांसद और भाजपा नेता नवनीत कौर राणा को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया है, जिसने उनका अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र रद्द कर दिया था.

न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने कहा, 'उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय को रद्द किया जाता है. स्क्रूटनी कमेटी द्वारा पारित सत्यापन आदेश दिनांक 3 नवंबर 2017 को बहाल किया जाता है.' स्क्रूटनी कमेटी को उनके जाति प्रमाण पत्र में कोई गलती नहीं मिली, जिसका उपयोग 2019 के लोकसभा चुनाव में नामांकन पत्र दाखिल करने में किया गया था.

पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि फर्जी तरीकों से जाति प्रमाण पत्र हासिल करने का मुद्दा लंबे समय से खतरा रहा है. न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा कि प्रक्रिया निर्धारित करने वाले किसी तंत्र के अभाव में, संबंधित अधिकारियों के पास निहित विवेकाधीन शक्तियां पूरे भारत की अदालतों में मुकदमेबाजी की कई परतों का विषय रही हैं.

ये साक्ष्य माने : जांच समिति ने दो दस्तावेजों के आधार पर राणा के जाति के दावे को स्वीकार कर लिया था. अपीलकर्ता के दादा के नाम पर खालसा कॉलेज ऑफ आर्ट्स, साइंस एंड कॉमर्स द्वारा जारी 2014 का वास्तविक प्रमाण पत्र जिसमें उनकी जाति 'सिख चमार' (Sikh Chamar) बताई गई है. दूसरा, 1932 का किरायेदारी का अनुबंध, जिसने निवास के प्रमाण के साथ उनके पूर्वजों के 1932 में ही पंजाब से महाराष्ट्र चले जाने के दावे की पुष्टि की.

पीठ ने कहा कि यह तर्क कि एक राज्य में आरक्षित वर्ग को दूसरे राज्य में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता है, राणा के मामले के बाद से वर्तमान मामले में कोई मायने नहीं रखता है. पीठ ने अपने 44 पेज के फैसले में कहा, 'अपीलकर्ता (राणा) ने किसी अन्य राज्य में अपनी जाति के आधार पर ‘मोची’ जाति का दावा नहीं किया. बल्कि, दावा अपीलकर्ता के पूर्वजों के वंशावली जाति इतिहास के आधार पर 'मोची' के लिए था.'

पीठ ने कहा कि जांच समिति ने उनके दावे का सत्यापन करते हुए कहा कि वह महाराष्ट्र में आवेदन के रूप में राष्ट्रपति के आदेश की प्रविष्टि 11 के अनुसार 'मोची' जाति से हैं. पीठ ने कहा, 'जहां तक ​​राष्ट्रपति के आदेश के साथ छेड़छाड़ करने की न्यायिक गुंजाइश का सवाल है, इसमें कोई झगड़ा नहीं है कि राष्ट्रपति के आदेश में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संशोधन नहीं किया जा सकता है.'

न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा, हालांकि, इस अदालत द्वारा हस्तक्षेप के प्रभाव के प्रति उत्तरदाताओं का पूरा तर्क राष्ट्रपति के आदेश के साथ खिलवाड़ होगा, यह इस कारण से टिकाऊ नहीं है कि राणा का मामला न तो किसी उपजाति की जांच की मांग करता है और न ही राष्ट्रपति के आदेश में संशोधन करता है.

बेंच ने कहा कि अपीलकर्ता ने 'मोची' का दावा किया था, जांच समिति ने इसे मान्य किया और 'मोची' जाति प्रमाण पत्र दिया और 'मोची' जाति का राष्ट्रपति के आदेश की प्रविष्टि 11 में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है. पीठ ने कहा कि 'हमारी सुविचारित राय में, जांच समिति का आदेश संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत 'प्रमाण पत्र' में उच्च न्यायालय द्वारा किसी भी हस्तक्षेप के योग्य नहीं है.'

28 फरवरी को शीर्ष अदालत ने लोकसभा सांसद नवनीत कौर राणा की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें बॉम्बे हाई कोर्ट के उनके जाति प्रमाण पत्र को रद्द करने के फैसले को चुनौती दी गई थी.

हाईकोर्ट ने ये दिया था आदेश : जून 2021 में उच्च न्यायालय ने कहा था कि 'मोची' जाति प्रमाण पत्र फर्जी दस्तावेजों का उपयोग करके धोखाधड़ी से प्राप्त किया गया था. उच्च न्यायालय ने अमरावती की सांसद पर 2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था. उच्च न्यायालय ने कहा था कि रिकॉर्ड से संकेत मिलता है कि वह 'सिख-चमार' जाति से थी. उच्च न्यायालय ने राणा को छह सप्ताह के भीतर प्रमाणपत्र सरेंडर करने को कहा था और महाराष्ट्र कानूनी सेवा प्राधिकरण को 2 लाख रुपये का जुर्माना देने को कहा था.

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न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने कहा, 'उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय को रद्द किया जाता है. स्क्रूटनी कमेटी द्वारा पारित सत्यापन आदेश दिनांक 3 नवंबर 2017 को बहाल किया जाता है.' स्क्रूटनी कमेटी को उनके जाति प्रमाण पत्र में कोई गलती नहीं मिली, जिसका उपयोग 2019 के लोकसभा चुनाव में नामांकन पत्र दाखिल करने में किया गया था.

पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि फर्जी तरीकों से जाति प्रमाण पत्र हासिल करने का मुद्दा लंबे समय से खतरा रहा है. न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा कि प्रक्रिया निर्धारित करने वाले किसी तंत्र के अभाव में, संबंधित अधिकारियों के पास निहित विवेकाधीन शक्तियां पूरे भारत की अदालतों में मुकदमेबाजी की कई परतों का विषय रही हैं.

ये साक्ष्य माने : जांच समिति ने दो दस्तावेजों के आधार पर राणा के जाति के दावे को स्वीकार कर लिया था. अपीलकर्ता के दादा के नाम पर खालसा कॉलेज ऑफ आर्ट्स, साइंस एंड कॉमर्स द्वारा जारी 2014 का वास्तविक प्रमाण पत्र जिसमें उनकी जाति 'सिख चमार' (Sikh Chamar) बताई गई है. दूसरा, 1932 का किरायेदारी का अनुबंध, जिसने निवास के प्रमाण के साथ उनके पूर्वजों के 1932 में ही पंजाब से महाराष्ट्र चले जाने के दावे की पुष्टि की.

पीठ ने कहा कि यह तर्क कि एक राज्य में आरक्षित वर्ग को दूसरे राज्य में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता है, राणा के मामले के बाद से वर्तमान मामले में कोई मायने नहीं रखता है. पीठ ने अपने 44 पेज के फैसले में कहा, 'अपीलकर्ता (राणा) ने किसी अन्य राज्य में अपनी जाति के आधार पर ‘मोची’ जाति का दावा नहीं किया. बल्कि, दावा अपीलकर्ता के पूर्वजों के वंशावली जाति इतिहास के आधार पर 'मोची' के लिए था.'

पीठ ने कहा कि जांच समिति ने उनके दावे का सत्यापन करते हुए कहा कि वह महाराष्ट्र में आवेदन के रूप में राष्ट्रपति के आदेश की प्रविष्टि 11 के अनुसार 'मोची' जाति से हैं. पीठ ने कहा, 'जहां तक ​​राष्ट्रपति के आदेश के साथ छेड़छाड़ करने की न्यायिक गुंजाइश का सवाल है, इसमें कोई झगड़ा नहीं है कि राष्ट्रपति के आदेश में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संशोधन नहीं किया जा सकता है.'

न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा, हालांकि, इस अदालत द्वारा हस्तक्षेप के प्रभाव के प्रति उत्तरदाताओं का पूरा तर्क राष्ट्रपति के आदेश के साथ खिलवाड़ होगा, यह इस कारण से टिकाऊ नहीं है कि राणा का मामला न तो किसी उपजाति की जांच की मांग करता है और न ही राष्ट्रपति के आदेश में संशोधन करता है.

बेंच ने कहा कि अपीलकर्ता ने 'मोची' का दावा किया था, जांच समिति ने इसे मान्य किया और 'मोची' जाति प्रमाण पत्र दिया और 'मोची' जाति का राष्ट्रपति के आदेश की प्रविष्टि 11 में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है. पीठ ने कहा कि 'हमारी सुविचारित राय में, जांच समिति का आदेश संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत 'प्रमाण पत्र' में उच्च न्यायालय द्वारा किसी भी हस्तक्षेप के योग्य नहीं है.'

28 फरवरी को शीर्ष अदालत ने लोकसभा सांसद नवनीत कौर राणा की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें बॉम्बे हाई कोर्ट के उनके जाति प्रमाण पत्र को रद्द करने के फैसले को चुनौती दी गई थी.

हाईकोर्ट ने ये दिया था आदेश : जून 2021 में उच्च न्यायालय ने कहा था कि 'मोची' जाति प्रमाण पत्र फर्जी दस्तावेजों का उपयोग करके धोखाधड़ी से प्राप्त किया गया था. उच्च न्यायालय ने अमरावती की सांसद पर 2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था. उच्च न्यायालय ने कहा था कि रिकॉर्ड से संकेत मिलता है कि वह 'सिख-चमार' जाति से थी. उच्च न्यायालय ने राणा को छह सप्ताह के भीतर प्रमाणपत्र सरेंडर करने को कहा था और महाराष्ट्र कानूनी सेवा प्राधिकरण को 2 लाख रुपये का जुर्माना देने को कहा था.

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