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दिवाली पर ऐसी परंपरा, रतलाम में गुर्जर समाज के लोग नहीं देखते ब्राह्मणों का चेहरा

दिवाली में साढ़े 3 दिन तक गुर्जर समाज नहीं देखते हैं ब्राह्मणों का चेहरा, पौराणिक कथाओं के अनुसार परंपरा का निर्वहन करते हैं.

GURJAR SAMAJ NOT SEE BRAHMINS FACE ON DIWALI
दिवाली पर नहीं देखते ब्राह्मणों का चेहरा (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 31, 2024, 8:10 PM IST

रतलाम: दिवाली पर अनेक क्षेत्रों में कई तरह की परंपरा का पालन किया जाता है. ऐसे ही मालवा के अधिकतर गांवों में गुर्जर समाज के लोग एक अनोखी परंपरा का पालन करते हैं. बताया जाता है गुर्जर समाज के लोग दिवाली के दिन ब्राह्मणों का चेहरा नहीं देखते हैं. मान्यता है कि भगवान देवनारायण की मां साड़ू माता का ब्राह्मण देवता को दिए वचन का निर्वहन करने के लिए ऐसा किया जाता है. पहले दिवाली के 3 दिन तक यह परंपरा निभाई जाती थी. लेकिन अब यह केवल दिवाली के दिन निभाई जाती है. इसलिए गुर्जर समाज के लोग दिवाली के दिन दोपहर तक अपने घरों से बाहर नहीं निकलते हैं.

दिवाली पर पूर्वजों को करते हैं याद

रतलाम मंदसौर और नीमच जिलों के कई गांव में इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है. गुर्जर, धबाई समाज के प्रहलाद धबाई ने बताया कि "हमारे परिवार और समाज के लिए दिवाली के त्यौहार में साढ़े 3 दिनों तक पूर्वजों को याद करने और पिंडदान करने का समय होता है. समाज के सभी लोग नदी या पानी के स्रोत पर जाकर बेल पूजा करते हैं. इस विशेष पूजा अनुष्ठान के बाद ही वे दिवाली मनाने घर से निकलते हैं."

गुर्जर समाज का दिवाली पर अनोखा परंपरा (ETV Bharat)

पौराणिक कथाओं के अनुसार परंपरा है जारी

ग्रामीण ईश्वर लाल धबाई और प्रहलाद धबाई ने बताया कि "इस परंपरा के पीछे दो किवदंतियां प्रचलित हैं. जिसमें कहा जाता है कि पौराणिक काल में एक यज्ञ के दौरान मां सावित्री की जगह मां गायत्री उस यज्ञ में विराजमान हो गई थीं. जिससे मां सावित्री ब्रह्मा जी से नाराज हो गई थीं. इसके बाद त्योहार पर गुर्जर समाज के लोग ब्राह्मण देवता का चेहरा नहीं देखते हैं.''

वहीं, दूसरी पौराणिक कथा यह भी है कि, भगवान देवनारायण को मां साड़ू माता पालने में झुला रही थीं. इसी दौरान राजा द्वारा भेजे गए ब्राह्मणों द्वारा माता के साथ छल किया गया. माता द्वारा भोजन के आग्रह पर ब्राह्मण देवता ने कहा कि वह मिट्टी के घड़े में ताजा जल भरकर लेकर आएगी, वह उस जल से तैयार भोजन का ही ग्रहण करेंगे. मां साड़ू माता पानी लेने घर से दूर चली जाती हैं, तभी ब्राह्मण देवताओं द्वारा भगवान देवनारायण को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया गया. हालांकि वह सफल नहीं हो सके. जब मां साड़ू माता को इसके बारे में पता चला तो, उन्होंने ब्राह्मण देवताओं को कहा कि मैं और मेरे वंशज शुभ अवसर पर आप ब्राह्मण देवताओं का न तो नाम लेंगे और न ही आपका चेहरा देखेंगे. इसके बाद से ही गुर्जर बहुल क्षेत्र में यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है."

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ब्राह्मण समाज और अन्य लोगों का मिलता है पूरा सहयोग

गुर्जर समाज के इस परंपरा के निर्वहन में गांव के ब्राह्मण समाज और अन्य लोग भी अपना पूरा सहयोग देते हैं. सेमलिया गांव के ब्राह्मण समाज के पंडित विमल जोशी बताते हैं कि "परंपराओं का निर्वाह करने के लिए परस्पर सहयोग और सौहार्द हमेशा आवश्यक होता है. इस दिन ब्राह्मण परिवार भी इस परंपरा का पूरा सम्मान करता है और कोशिश करते हैं कि उनकी पूजा के पहले किसी से मुलाकात नहीं हो."

रतलाम: दिवाली पर अनेक क्षेत्रों में कई तरह की परंपरा का पालन किया जाता है. ऐसे ही मालवा के अधिकतर गांवों में गुर्जर समाज के लोग एक अनोखी परंपरा का पालन करते हैं. बताया जाता है गुर्जर समाज के लोग दिवाली के दिन ब्राह्मणों का चेहरा नहीं देखते हैं. मान्यता है कि भगवान देवनारायण की मां साड़ू माता का ब्राह्मण देवता को दिए वचन का निर्वहन करने के लिए ऐसा किया जाता है. पहले दिवाली के 3 दिन तक यह परंपरा निभाई जाती थी. लेकिन अब यह केवल दिवाली के दिन निभाई जाती है. इसलिए गुर्जर समाज के लोग दिवाली के दिन दोपहर तक अपने घरों से बाहर नहीं निकलते हैं.

दिवाली पर पूर्वजों को करते हैं याद

रतलाम मंदसौर और नीमच जिलों के कई गांव में इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है. गुर्जर, धबाई समाज के प्रहलाद धबाई ने बताया कि "हमारे परिवार और समाज के लिए दिवाली के त्यौहार में साढ़े 3 दिनों तक पूर्वजों को याद करने और पिंडदान करने का समय होता है. समाज के सभी लोग नदी या पानी के स्रोत पर जाकर बेल पूजा करते हैं. इस विशेष पूजा अनुष्ठान के बाद ही वे दिवाली मनाने घर से निकलते हैं."

गुर्जर समाज का दिवाली पर अनोखा परंपरा (ETV Bharat)

पौराणिक कथाओं के अनुसार परंपरा है जारी

ग्रामीण ईश्वर लाल धबाई और प्रहलाद धबाई ने बताया कि "इस परंपरा के पीछे दो किवदंतियां प्रचलित हैं. जिसमें कहा जाता है कि पौराणिक काल में एक यज्ञ के दौरान मां सावित्री की जगह मां गायत्री उस यज्ञ में विराजमान हो गई थीं. जिससे मां सावित्री ब्रह्मा जी से नाराज हो गई थीं. इसके बाद त्योहार पर गुर्जर समाज के लोग ब्राह्मण देवता का चेहरा नहीं देखते हैं.''

वहीं, दूसरी पौराणिक कथा यह भी है कि, भगवान देवनारायण को मां साड़ू माता पालने में झुला रही थीं. इसी दौरान राजा द्वारा भेजे गए ब्राह्मणों द्वारा माता के साथ छल किया गया. माता द्वारा भोजन के आग्रह पर ब्राह्मण देवता ने कहा कि वह मिट्टी के घड़े में ताजा जल भरकर लेकर आएगी, वह उस जल से तैयार भोजन का ही ग्रहण करेंगे. मां साड़ू माता पानी लेने घर से दूर चली जाती हैं, तभी ब्राह्मण देवताओं द्वारा भगवान देवनारायण को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया गया. हालांकि वह सफल नहीं हो सके. जब मां साड़ू माता को इसके बारे में पता चला तो, उन्होंने ब्राह्मण देवताओं को कहा कि मैं और मेरे वंशज शुभ अवसर पर आप ब्राह्मण देवताओं का न तो नाम लेंगे और न ही आपका चेहरा देखेंगे. इसके बाद से ही गुर्जर बहुल क्षेत्र में यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है."

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ब्राह्मण समाज और अन्य लोगों का मिलता है पूरा सहयोग

गुर्जर समाज के इस परंपरा के निर्वहन में गांव के ब्राह्मण समाज और अन्य लोग भी अपना पूरा सहयोग देते हैं. सेमलिया गांव के ब्राह्मण समाज के पंडित विमल जोशी बताते हैं कि "परंपराओं का निर्वाह करने के लिए परस्पर सहयोग और सौहार्द हमेशा आवश्यक होता है. इस दिन ब्राह्मण परिवार भी इस परंपरा का पूरा सम्मान करता है और कोशिश करते हैं कि उनकी पूजा के पहले किसी से मुलाकात नहीं हो."

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