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रामलला की मूर्ति में विष्णु के 10 अवतार, हर कण का है खास पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व - राम मंदिर अयोध्या

How is Ramlala Idol: आज हर कोई जानना चाहता है कि रामलला की मूर्ति की क्या विशेषता है और इसको किस तरह से और किसने बनाया है. चलिए हम आपको इस मूर्ति से संबंधित सभी जानकारियां देते हैं.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 20, 2024, 1:48 PM IST

अयोध्या: राम मंदिर बनकर तैयार हो रहा है. 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जानी है. करोड़ों रामभक्तों के लिए वो शुभ घड़ी आ गई, जब रामलला अपने महल में विराजमान हो गए. उनका श्रृंगार किया गया और वस्त्र पहनाए गए. पूरा विश्व रामलला की मूर्ति देखने का इंतजार कर रहा था. ऐसे में अब रामलला की मूर्ति की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं. इस मनमोहक मूर्ति को देखने के लिए हर कोई मंदिर में दर्शन की अनुमति का इंतजार कर रहा है.

मंदिरों में स्थापित होने वाली मूर्तियों का अपना एक महत्व होता है. उन्हें वास्तु और शास्त्र के अनुरूप ही तैयार किया जाता है. कितनी साइज होगी, क्या रंग रूप होगा और कहां स्थापित किया जाएगा. सब कुछ शास्त्रों के हिसाब से ही होता है. ऐसे में रामलला की मूर्ति की तस्वीर सोशल मीडिया पर जो वायरल हो रही है वह सांवले रंग की है. यानी रामलला सांवले रंग में हैं. मूर्ति बेहद सरल, सहज और सुंदर रामलला को सामने रख रही है. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की शांत छवि अपने आप ही उभरकर आ रही है. मगर इस बीच लोगों के मन में कुछ सवाल हैं कि आखिर मूर्ति के किनारों पर बनी डिजाइन क्या है और इस मूर्ति का क्या महत्व है.

रामलला की मूर्ति में क्या क्या हैं विशेषताएं.
रामलला की मूर्ति में क्या क्या हैं विशेषताएं.

मूर्ति के शीर्ष भाग पर क्या है: रामलला की मूर्ति में सबसे शीर्ष भाग पर सूर्य भगवान स्थित हैं. भगवान राम को सूर्यवंशी भी कहा जाता है. भगवान राम ने इक्ष्वाकु वंश में जन्म लिया था. शास्त्रों के अनुसार, इक्ष्वाक की स्थापना सूर्य के पुत्र राजा इक्ष्वाक ने की थी. इस कारण से भगवान राम को सूर्य वंश से जुड़ा हुआ बताया जाता है. हनुमानगढ़ी के संत वरुण जी महाराज बताते हैं कि सूर्य प्रभु राम की आभा को प्रकट करने वाला है. वह प्रभु की शक्ति का भी प्रदर्शन करता है. ऐसे में वह उनके सिर पर विराजमान हैं.

मूर्ति के शीर्ष दाएं-बाएं भाग में ओम: मूर्ति के शीर्ष पर दाहिने और बाएं भाग में स्वास्तिक, ऊं, गदा और चक्र को उकेरा गया है. भगवान राम भगवान विष्णु के ही अवतार हैं. ऐसे में उनके साथ गदा और चक्र का होना भी स्वाभाविक माना गया है. भगवान विष्णु के आभूषणों एवं शस्त्रों को इस मूर्ति के माध्यम से उकेरा गया है. इससे मूर्ति पूर्ण मानी जा रही है. वरुण जी महाराज बताते हैं कि, कौमूदगी गदा पापों का हरण करने वाला है, स्वास्तिक मंगलकारी है यह आकाशमंडल के नक्षत्र हैं, जिसमें 7 देव विराजमान हैं. इसके साथ ही ऊं में तीनों देव विराजमान हैं, चक्र सुरदर्शन का स्थान है. ऐसे में उनके सभी आयुधों को स्थान दिया गया है.

मूर्ति के दाहिने एवं बाएं भाग के मध्य में विष्णु के 10 अवतार: रामलला के बालरूप की मूर्ति के दाहिने भाग के मध्य में भगवान विष्णु के पांच अवतारों को स्थान दिया गया है. भगवान विष्णु के ही अवतार भगवान राम हैं. ऐसे में उनके सभी अवतारों को इस मूर्ति में स्थान दिया गया है. हनुमानगढ़ी के संत वरुण जी महाराज बताते हैं कि एक ही मूर्ति में भगवान के सभी स्वरूपों के दर्शन करने का सौभाग्य मिलेगा. भगवान विष्णु के दस अवतार दाहिनी तरफ से मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वानम और बाई तरफ से परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध एवं कल्कि का अवतार हैं.

रामलला के पैरों की तरफ क्या है: रामलला कमल के पुष्प पर विराजमान हैं. कमल का पुष्प भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को प्रदर्शित करता है. पुराणों के अनुसार कमल के पुष्प की उत्पत्ति भगवान विष्णु की नाभि से हुई थी. कमल के पुष्प से ब्रह्माजी की उत्पत्ति मानी जाती है. कमल के पुष्प को ब्रह्मा, लक्ष्मी और सरस्वती जी ने अपना आसन बनाया है. कमल का फूल आध्यात्मिकता और अनासक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. कमल के फूल को प्रेरणा के प्रतीक के रूप में लिया जाता है.

वाहन और नित्य सेवक के लिए स्थान: भगवान रामलला की मूर्ति में नीचे की तरफ दाहिनी ओर भगवान हनुमान जी विराजमान हैं. इसके साथ ही बाईं ओर नीचे गरुण देव विराजमान हैं. संत वरुण जी महाराज बताते हैं कि भगवान विष्णु के वाहन हैं गरुण देव. उनको भगवान का विशेष पार्षद भी कहा जाता है. वहीं, भगवान विष्णु के सबसे निकट रहते हैं. ऐसे में उनको स्थान दिया गया है, जबकि भगवान राम के अनन्य भक्त एवं सेवक भगवान हनुमान को दाहिनी तरफ स्थान दिया गया है. जहां पर भगवान राम होंगे वहां पर भगवान हनुमान जी होंगे ही. ऐसे में एक समावेशी स्वरूप को इस मूर्ति में दर्शाया गया है.

मूर्तिकार अरुण योगिराज ने तैयार की मूर्ति: भगवान राम की नई मूर्ति 18 जनवरी को अयोध्या के रामजन्मभूमि में स्थित मंदिर में रखी गई है. इस मूर्ति को मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगिराज ने बनाया है. रामलला की मूर्ति 51 इंच की है. अरुण ने दक्षिण भारत में महत्वपूर्ण मंदिरों के लिए मूर्तियों को तैयार किया है. रामलला की नई मूर्ति दक्षिण भारतीय शैली पर बनी हुई है. यह भगवान राम के बाल स्वरूप को प्रस्तुत करती है. इनके हाथों में धनुष है. इस अचल मूर्ति में भगवान राम को 5 साल के बच्चे के रूप में तैयार किया गया है. मूर्ति की तस्वीरों ने लोगों को काफी भावुक कर दिया है. रामलला की मूर्ति पहली ही नजर में मंत्रमुग्ध कर देती है.

ये भी पढ़ेंः अयोध्या राम मंदिर से सामने आई रामलला की मूर्ति की पहली तस्वीर, करिए दर्शन

अयोध्या: राम मंदिर बनकर तैयार हो रहा है. 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जानी है. करोड़ों रामभक्तों के लिए वो शुभ घड़ी आ गई, जब रामलला अपने महल में विराजमान हो गए. उनका श्रृंगार किया गया और वस्त्र पहनाए गए. पूरा विश्व रामलला की मूर्ति देखने का इंतजार कर रहा था. ऐसे में अब रामलला की मूर्ति की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं. इस मनमोहक मूर्ति को देखने के लिए हर कोई मंदिर में दर्शन की अनुमति का इंतजार कर रहा है.

मंदिरों में स्थापित होने वाली मूर्तियों का अपना एक महत्व होता है. उन्हें वास्तु और शास्त्र के अनुरूप ही तैयार किया जाता है. कितनी साइज होगी, क्या रंग रूप होगा और कहां स्थापित किया जाएगा. सब कुछ शास्त्रों के हिसाब से ही होता है. ऐसे में रामलला की मूर्ति की तस्वीर सोशल मीडिया पर जो वायरल हो रही है वह सांवले रंग की है. यानी रामलला सांवले रंग में हैं. मूर्ति बेहद सरल, सहज और सुंदर रामलला को सामने रख रही है. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की शांत छवि अपने आप ही उभरकर आ रही है. मगर इस बीच लोगों के मन में कुछ सवाल हैं कि आखिर मूर्ति के किनारों पर बनी डिजाइन क्या है और इस मूर्ति का क्या महत्व है.

रामलला की मूर्ति में क्या क्या हैं विशेषताएं.
रामलला की मूर्ति में क्या क्या हैं विशेषताएं.

मूर्ति के शीर्ष भाग पर क्या है: रामलला की मूर्ति में सबसे शीर्ष भाग पर सूर्य भगवान स्थित हैं. भगवान राम को सूर्यवंशी भी कहा जाता है. भगवान राम ने इक्ष्वाकु वंश में जन्म लिया था. शास्त्रों के अनुसार, इक्ष्वाक की स्थापना सूर्य के पुत्र राजा इक्ष्वाक ने की थी. इस कारण से भगवान राम को सूर्य वंश से जुड़ा हुआ बताया जाता है. हनुमानगढ़ी के संत वरुण जी महाराज बताते हैं कि सूर्य प्रभु राम की आभा को प्रकट करने वाला है. वह प्रभु की शक्ति का भी प्रदर्शन करता है. ऐसे में वह उनके सिर पर विराजमान हैं.

मूर्ति के शीर्ष दाएं-बाएं भाग में ओम: मूर्ति के शीर्ष पर दाहिने और बाएं भाग में स्वास्तिक, ऊं, गदा और चक्र को उकेरा गया है. भगवान राम भगवान विष्णु के ही अवतार हैं. ऐसे में उनके साथ गदा और चक्र का होना भी स्वाभाविक माना गया है. भगवान विष्णु के आभूषणों एवं शस्त्रों को इस मूर्ति के माध्यम से उकेरा गया है. इससे मूर्ति पूर्ण मानी जा रही है. वरुण जी महाराज बताते हैं कि, कौमूदगी गदा पापों का हरण करने वाला है, स्वास्तिक मंगलकारी है यह आकाशमंडल के नक्षत्र हैं, जिसमें 7 देव विराजमान हैं. इसके साथ ही ऊं में तीनों देव विराजमान हैं, चक्र सुरदर्शन का स्थान है. ऐसे में उनके सभी आयुधों को स्थान दिया गया है.

मूर्ति के दाहिने एवं बाएं भाग के मध्य में विष्णु के 10 अवतार: रामलला के बालरूप की मूर्ति के दाहिने भाग के मध्य में भगवान विष्णु के पांच अवतारों को स्थान दिया गया है. भगवान विष्णु के ही अवतार भगवान राम हैं. ऐसे में उनके सभी अवतारों को इस मूर्ति में स्थान दिया गया है. हनुमानगढ़ी के संत वरुण जी महाराज बताते हैं कि एक ही मूर्ति में भगवान के सभी स्वरूपों के दर्शन करने का सौभाग्य मिलेगा. भगवान विष्णु के दस अवतार दाहिनी तरफ से मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वानम और बाई तरफ से परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध एवं कल्कि का अवतार हैं.

रामलला के पैरों की तरफ क्या है: रामलला कमल के पुष्प पर विराजमान हैं. कमल का पुष्प भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को प्रदर्शित करता है. पुराणों के अनुसार कमल के पुष्प की उत्पत्ति भगवान विष्णु की नाभि से हुई थी. कमल के पुष्प से ब्रह्माजी की उत्पत्ति मानी जाती है. कमल के पुष्प को ब्रह्मा, लक्ष्मी और सरस्वती जी ने अपना आसन बनाया है. कमल का फूल आध्यात्मिकता और अनासक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. कमल के फूल को प्रेरणा के प्रतीक के रूप में लिया जाता है.

वाहन और नित्य सेवक के लिए स्थान: भगवान रामलला की मूर्ति में नीचे की तरफ दाहिनी ओर भगवान हनुमान जी विराजमान हैं. इसके साथ ही बाईं ओर नीचे गरुण देव विराजमान हैं. संत वरुण जी महाराज बताते हैं कि भगवान विष्णु के वाहन हैं गरुण देव. उनको भगवान का विशेष पार्षद भी कहा जाता है. वहीं, भगवान विष्णु के सबसे निकट रहते हैं. ऐसे में उनको स्थान दिया गया है, जबकि भगवान राम के अनन्य भक्त एवं सेवक भगवान हनुमान को दाहिनी तरफ स्थान दिया गया है. जहां पर भगवान राम होंगे वहां पर भगवान हनुमान जी होंगे ही. ऐसे में एक समावेशी स्वरूप को इस मूर्ति में दर्शाया गया है.

मूर्तिकार अरुण योगिराज ने तैयार की मूर्ति: भगवान राम की नई मूर्ति 18 जनवरी को अयोध्या के रामजन्मभूमि में स्थित मंदिर में रखी गई है. इस मूर्ति को मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगिराज ने बनाया है. रामलला की मूर्ति 51 इंच की है. अरुण ने दक्षिण भारत में महत्वपूर्ण मंदिरों के लिए मूर्तियों को तैयार किया है. रामलला की नई मूर्ति दक्षिण भारतीय शैली पर बनी हुई है. यह भगवान राम के बाल स्वरूप को प्रस्तुत करती है. इनके हाथों में धनुष है. इस अचल मूर्ति में भगवान राम को 5 साल के बच्चे के रूप में तैयार किया गया है. मूर्ति की तस्वीरों ने लोगों को काफी भावुक कर दिया है. रामलला की मूर्ति पहली ही नजर में मंत्रमुग्ध कर देती है.

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