ETV Bharat / bharat

सुप्रीम कोर्ट ने NDPS के आरोपी को दी जमानत, कहा-लंबे समय तक कारावास स्वतंत्रता के मूल अधिकार का हनन - SC granting bail to NDPS accused - SC GRANTING BAIL TO NDPS ACCUSED

SC granting bail to NDPS accused : सुप्रीम कोर्ट ने एनडीपीएस मामले में आरोपी को जमानत दे दी. आरोपी दो साल से जेल में बंद था. शीर्ष कोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक कारावास मानव स्वतंत्रता के मूल अधिकार का हनन करता है.

SC granting bail to NDPS accused
सुप्रीम कोर्ट (IANS File Photo)
author img

By Sumit Saxena

Published : May 28, 2024, 8:31 PM IST

Updated : May 28, 2024, 8:37 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक व्यक्ति को जमानत दे दी, जो नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम मामले में दो साल से जेल में बंद था. कोर्ट ने कहा कि 'लंबे समय तक कारावास मानव स्वतंत्रता के मूल अधिकार का हनन करता है.'

न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ वकील प्रतीक यादव के माध्यम से अंकुर चौधरी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. जिसमें हाईकोर्ट के 2 जनवरी, 2024 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें धारा 8 के तहत दर्ज एक एफआईआर के संबंध में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी. वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे और अधिवक्ता राजेश रंजन ने शीर्ष अदालत के समक्ष चौधरी का प्रतिनिधित्व किया.

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि जांच अधिकारी (आईओ) से जिरह के चरण में आने के लिए पर्याप्त समय की आवश्यकता होगी क्योंकि लगभग 75 गवाह हैं, और तब तक याचिकाकर्ता को इतनी लंबी और अनिश्चित अवधि के लिए कैद में रखना स्वतंत्रता के सिद्धांत के तहत गलत है.

वकील ने जोर देकर कहा कि उनके मुवक्किल को दो साल से अधिक समय से जेल में रखा गया है और उच्च न्यायालय ने जमानत देने से इनकार करते हुए स्पष्ट रूप से कानून में गलती की है, यह देखते हुए कि आईओ भी एक पंच गवाह है, और चूंकि उसका एग्जामिनेशन पेंडिंगहै, इसलिए याचिकाकर्ता को जमानत नहीं दी जा सकती है.

वकील ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 439 के तहत तीसरी जमानत अर्जी खारिज करना कानून की दृष्टि से खराब है. 'याचिकाकर्ता की जमानत याचिका को इस आधार पर खारिज करने का उच्च न्यायालय का आक्षेपित आदेश कि जांच अधिकारी की जिरह लंबित है, गलत धारणा वाला है और स्पष्ट रूप से आपराधिक न्यायशास्त्र के दायरे से परे है.' याचिकाकर्ता को जमानत देते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 'लंबे समय तक कारावास मानव स्वतंत्रता के मूल अधिकार का हनन करता है.'

चौधरी की याचिका में कहा गया, 'उच्च न्यायालय ने इस महत्वपूर्ण तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि याचिकाकर्ता के आवेदन पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के अनुसार, पंच गवाहों को बुलाया गया, अपदस्थ किया गया, जिरह की गई और आरोपमुक्त कर दिया गया; हालांकि, दोनों पंच गवाहों ने अभियोजन सिद्धांत का समर्थन नहीं किया, और इस प्रकार, याचिकाकर्ता को जमानत देने से इनकार करना विकृत और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है.'

ये भी पढ़ें

कर्नाटक कांग्रेस चुनावी घोषणापत्र पर जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक व्यक्ति को जमानत दे दी, जो नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम मामले में दो साल से जेल में बंद था. कोर्ट ने कहा कि 'लंबे समय तक कारावास मानव स्वतंत्रता के मूल अधिकार का हनन करता है.'

न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ वकील प्रतीक यादव के माध्यम से अंकुर चौधरी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. जिसमें हाईकोर्ट के 2 जनवरी, 2024 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें धारा 8 के तहत दर्ज एक एफआईआर के संबंध में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी. वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे और अधिवक्ता राजेश रंजन ने शीर्ष अदालत के समक्ष चौधरी का प्रतिनिधित्व किया.

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि जांच अधिकारी (आईओ) से जिरह के चरण में आने के लिए पर्याप्त समय की आवश्यकता होगी क्योंकि लगभग 75 गवाह हैं, और तब तक याचिकाकर्ता को इतनी लंबी और अनिश्चित अवधि के लिए कैद में रखना स्वतंत्रता के सिद्धांत के तहत गलत है.

वकील ने जोर देकर कहा कि उनके मुवक्किल को दो साल से अधिक समय से जेल में रखा गया है और उच्च न्यायालय ने जमानत देने से इनकार करते हुए स्पष्ट रूप से कानून में गलती की है, यह देखते हुए कि आईओ भी एक पंच गवाह है, और चूंकि उसका एग्जामिनेशन पेंडिंगहै, इसलिए याचिकाकर्ता को जमानत नहीं दी जा सकती है.

वकील ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 439 के तहत तीसरी जमानत अर्जी खारिज करना कानून की दृष्टि से खराब है. 'याचिकाकर्ता की जमानत याचिका को इस आधार पर खारिज करने का उच्च न्यायालय का आक्षेपित आदेश कि जांच अधिकारी की जिरह लंबित है, गलत धारणा वाला है और स्पष्ट रूप से आपराधिक न्यायशास्त्र के दायरे से परे है.' याचिकाकर्ता को जमानत देते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 'लंबे समय तक कारावास मानव स्वतंत्रता के मूल अधिकार का हनन करता है.'

चौधरी की याचिका में कहा गया, 'उच्च न्यायालय ने इस महत्वपूर्ण तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि याचिकाकर्ता के आवेदन पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के अनुसार, पंच गवाहों को बुलाया गया, अपदस्थ किया गया, जिरह की गई और आरोपमुक्त कर दिया गया; हालांकि, दोनों पंच गवाहों ने अभियोजन सिद्धांत का समर्थन नहीं किया, और इस प्रकार, याचिकाकर्ता को जमानत देने से इनकार करना विकृत और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है.'

ये भी पढ़ें

कर्नाटक कांग्रेस चुनावी घोषणापत्र पर जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

Last Updated : May 28, 2024, 8:37 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.