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प्लास्टिक डंपिंग से गंभीर पर्यावरणीय गिरावट, स्वच्छ नदियों का सपना मुश्किल : सुप्रीम कोर्ट - Supreme Court News

सुप्रीम कोर्ट ने प्लास्टिक के डंपिंग को लेकर चिंता जताई है, जिसको लेकर कोर्ट ने कहा कि इससे गंभीर पर्यावरणीय क्षति हो रही है. इसके अलावा देश में नदियों के किनारों और जल निकायों में जलीय जीवन पर भी बुरा असर पड़ रहा है.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट (फोटो - ANI Photo)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 6, 2024, 6:15 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्लास्टिक के डंपिंग से 'गंभीर पर्यावरणीय क्षति' हो रही है और इससे 'देश में नदियों के किनारों और जल निकायों में जलीय जीवन' पर भी असर पड़ रहा है. न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की पीठ ने कहा कि इस मामले में विचार-विमर्श के दौरान यह बात सामने आई कि जिन क्षेत्रों को ऐसे प्रदूषणकारी उत्पादों से मुक्त रखा जाना है, वहां प्लास्टिक का बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा है.

पीठ ने 2 अगस्त को पारित आदेश में कहा कि "प्लास्टिक के डंपिंग से पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंच रहा है और देश में नदियों के किनारों और जल निकायों में जलीय जीवन पर भी इसका असर पड़ रहा है." सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि जब तक जिम्मेदार अधिकारी लोगों के सहयोग से ठोस प्रयास नहीं करेंगे, चाहे अवैध/अनधिकृत निर्माणों को रोकने के लिए कितने भी प्रयास क्यों न किए जाएं.

पीठ ने कहा कि "गंगा नदी/देश की अन्य सभी नदियों और जल निकायों में पानी की गुणवत्ता में वांछित सुधार भ्रामक ही रहेगा." सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को इस मुद्दे से निपटने और इस मामले में उठाए जा सकने वाले उपायों का सुझाव देने तथा चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया.

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि "उपर्युक्त परिस्थितियों में, विद्वान एएसजी को अपील में उठाए गए मुद्दों पर चार सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने की अनुमति देते हुए, जवाब में वर्तमान आदेश में उठाए गए पर्यावरण संबंधी चिंताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. बिहार राज्य द्वारा भी उसी समय सीमा के भीतर जवाब में हलफनामा दाखिल किया जाना चाहिए."

सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश पारित किया. शीर्ष अदालत राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा पारित एक आदेश से उत्पन्न अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने 2020 में पटना निवासी अशोक कुमार सिन्हा के आवेदन का निपटारा किया था.

याचिकाकर्ता ने पटना में गंगा के पारिस्थितिकी रूप से नाजुक बाढ़ के मैदानों पर बिहार सरकार द्वारा 1.5 किलोमीटर की सड़क सहित अवैध कॉलोनियों के निर्माण, ईंट भट्टों और अन्य संरचनाओं की स्थापना का मुद्दा उठाया था, जो उपमहाद्वीप में सबसे समृद्ध डॉल्फ़िन आवासों में से एक है.

याचिकाकर्ता ने कहा कि पटना में गंगा नदी से सटे इलाकों का भूजल आर्सेनिक से अत्यधिक प्रभावित है और इसके परिणामस्वरूप गंगा की शुद्धता और पारिस्थितिकी अखंडता पटना की 5.5 लाख आबादी के लिए और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गई है.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्लास्टिक के डंपिंग से 'गंभीर पर्यावरणीय क्षति' हो रही है और इससे 'देश में नदियों के किनारों और जल निकायों में जलीय जीवन' पर भी असर पड़ रहा है. न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की पीठ ने कहा कि इस मामले में विचार-विमर्श के दौरान यह बात सामने आई कि जिन क्षेत्रों को ऐसे प्रदूषणकारी उत्पादों से मुक्त रखा जाना है, वहां प्लास्टिक का बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा है.

पीठ ने 2 अगस्त को पारित आदेश में कहा कि "प्लास्टिक के डंपिंग से पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंच रहा है और देश में नदियों के किनारों और जल निकायों में जलीय जीवन पर भी इसका असर पड़ रहा है." सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि जब तक जिम्मेदार अधिकारी लोगों के सहयोग से ठोस प्रयास नहीं करेंगे, चाहे अवैध/अनधिकृत निर्माणों को रोकने के लिए कितने भी प्रयास क्यों न किए जाएं.

पीठ ने कहा कि "गंगा नदी/देश की अन्य सभी नदियों और जल निकायों में पानी की गुणवत्ता में वांछित सुधार भ्रामक ही रहेगा." सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को इस मुद्दे से निपटने और इस मामले में उठाए जा सकने वाले उपायों का सुझाव देने तथा चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया.

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि "उपर्युक्त परिस्थितियों में, विद्वान एएसजी को अपील में उठाए गए मुद्दों पर चार सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने की अनुमति देते हुए, जवाब में वर्तमान आदेश में उठाए गए पर्यावरण संबंधी चिंताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. बिहार राज्य द्वारा भी उसी समय सीमा के भीतर जवाब में हलफनामा दाखिल किया जाना चाहिए."

सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश पारित किया. शीर्ष अदालत राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा पारित एक आदेश से उत्पन्न अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने 2020 में पटना निवासी अशोक कुमार सिन्हा के आवेदन का निपटारा किया था.

याचिकाकर्ता ने पटना में गंगा के पारिस्थितिकी रूप से नाजुक बाढ़ के मैदानों पर बिहार सरकार द्वारा 1.5 किलोमीटर की सड़क सहित अवैध कॉलोनियों के निर्माण, ईंट भट्टों और अन्य संरचनाओं की स्थापना का मुद्दा उठाया था, जो उपमहाद्वीप में सबसे समृद्ध डॉल्फ़िन आवासों में से एक है.

याचिकाकर्ता ने कहा कि पटना में गंगा नदी से सटे इलाकों का भूजल आर्सेनिक से अत्यधिक प्रभावित है और इसके परिणामस्वरूप गंगा की शुद्धता और पारिस्थितिकी अखंडता पटना की 5.5 लाख आबादी के लिए और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गई है.

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