नई दिल्ली : किसी भी देश की पहचान उसके राष्ट्रीय ध्वज, प्रतीक और राष्ट्रगान से होती है. भारत के लिए भी यही तीनों चीजें काफी मायने रखती हैं. जब भारत के राष्ट्रीय ध्वज की बात आती है तो सबसे पहले इसके बनने की वजह को जानने की उत्सुकता होती है. जिसकी शान के लिए हजारों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान को देश के नाम कुर्बान कर दिया.
भारत के तिरंगे के पीछे के व्यक्ति पिंगलि वेंकैया हैं और आज यानी 2 अगस्त को उनकी जयंती है. इनका जन्म 1876 में भारत के आंध्र प्रदेश स्थित मछलीपट्टनम के भाटलापेनुमरु में हुआ था. तेलुगु ब्राह्मण परिवार में जन्मे पिंगलि प्रगतिवादी सोच के धनी थे. कई भाषाओं के जानकार भी और देश के लिए मर मिटने का जज्बा तो कूट-कूट कर भरा था. झंडे को गढ़ने में भी जल्दबाजी नहीं कि बल्कि सोच समझ कर, विचार कर,देश दुनिया को समझने के बाद एक आकार दिया.
पिंगलि वेंकैया ने 1916 से 1921 तक लगभग पांच सालों तक दुनियाभर के देशों के झंडों का अध्ययन किया. 1916 में उन्होंने अन्य देशों के झंडों पर एक पुस्तिका भी प्रकाशित की. जिसका नाम था 'भारत के लिए एक राष्ट्रीय ध्वज', इस पुस्तिका में भारतीय ध्वज बनाने के लिए लगभग 30 डिजाइन पेश किए गए.
![PINGALI VENKAIAH IDEA PLAYED KEY ROLE IN PRESENT INDIAN NATIONAL FLAG DESIGN](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/02-08-2024/22108814_y13579.jpg)
उनके इस अथक अध्ययन से ही भारत के राष्ट्रीय ध्वज की नींव रखी गई. उन्होंने साल 1921 में राष्ट्रीय ध्वज का शुरुआती डिजाइन तैयार किया था. जिसमें हरे और लाल रंग की दो पट्टियां थी और ध्वज के केंद्र में महात्मा गांधी का चरखा था. महात्मा गांधी ने विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक बैठक में इसे मंजूरी दी. साल 1931 तक इसी झंडे का इस्तेमाल किया जाता रहा. बाद में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में बदलाव किया गया. भारतीय ध्वज को नया स्वरूप दिया गया और केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टियों का इस्तेमाल हुआ. आगे चलकर ध्वज के बीच अशोक चक्र को जोड़ा गया. जो वर्तमान में तिरंगे का मूल स्वरूप है.
पिंगलि वेंकैया महात्मा गांधी के विचारों से बहुत प्रभावित थे. पहली बार गांधी से दक्षिण अफ्रीका में मिले. तब 19 साल के थे. ब्रिटिश सेना में तैनात थे. गांधी जी का उन पर काफी असर पड़ा और उन्होंने उनके आदर्शों का पालन करना शुरू कर दिया.
![PINGALI VENKAIAH IDEA PLAYED KEY ROLE IN PRESENT INDIAN NATIONAL FLAG DESIGN](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/02-08-2024/22108814_y35779.jpg)
देश ही नहीं विदेशी भाषाओं के प्रति भी गहरी आसक्ति थी. जापानी में भी उतने ही पारंगत थे जितनी अपनी मातृभाषा तेलुगू में.बड़ा दिलचस्प किस्सा है. बात 1913 की है. उन्होंने एक स्कूल में लेक्चर जापानी भाषा में दिया. धाराप्रवाह बोले वेंकैया और तभी उन्हें वहां नया नाम मिल गया. 'जापान वेंकैया' का. हालांकि, 'जापान वेंकैया' के अलावा उन्हें एक और नाम मिला. उन्हें पट्टी वेंकैया के नाम से भी पहचान मिली. कंबोडिया कॉटन पर उनके शोध के कारण लोकप्रियता मिली और उससे जुड़ा नाम पहचान बन गई.
पिंगलि वेंकैया हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद कैंब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए. शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने ब्रिटिश भारतीय सेना के सिपाही के रूप में भी सेवाएं दी. इस दौरान उन्हें द्वितीय बोअर युद्ध (1899-1902) में लड़ने के लिए दक्षिण अफ्रीका भेजा गया. यहीं से उनमें देश प्रेम की भावना जागी. पिंगलि वेंकैया की मृत्यु 4 जुलाई, 1963 को हुई. 2022 में केंद्र की मोदी सरकार ने उनकी 146वीं जयंती पर विशेष स्मारक डाक टिकट जारी किया. जो एक सच्चे राष्ट्रभक्त और देश की अस्मिता को समझने वाले शख्स के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि थी.
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