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चाय के बागान में काम करने वाले मजदूरों पर संकट, बढ़ रही फेफड़े की बीमारी, AMCH की स्टडी से खुलासा - LUNG DISEASE

असम मेडिकल कॉलेज के चार डॉक्टरों ने कहा है कि असम के चाय बागानों के श्रमिकों में CPA का प्रचलन बहुत अधिक है.

Patients suffering from lung disease is increasing in Assam
असम में बढ़ रही फेफड़े की बीमारी के मरीजों की संख्या (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 28, 2025, 5:42 PM IST

गुवाहाटी/डिब्रूगढ़: असम अपनी चाय और चाय इंडस्ट्री के लिए दुनियाभर में मशहूर है. स्वाभाविक रूप से असम में भारत के कुल चाय उत्पादन का 50 फीसदी प्रोडक्शन होता है. यहां बड़ी संख्या में चाय के बागान हैं और यह राज्य की कुल आबादी के 18 फीसदी लोगों को चाय का प्रोडक्शन आजीविका प्रदान करता है.

हालांकि, इन चाय बागानों में मजदूरों की कल्याण और आर्थिक स्थिति लंबे समय से चिंता का विषय रही है. समय के साथ चाय बागान क्षेत्रों में कई बीमारियों में वृद्धि हुई है. उनमें से एक है फेफड़ों से संबंधित क्रॉनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस (CPA). यह एक फंगल है, जो फेफड़ों के इंफेक्शन के लिए गंभीर और जानलेवा माना जाता है.

असम मेडिकल कॉलेज की टीम ने की रिसर्च
असम मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (AMCH) डिब्रूगढ़ की 4 सदस्यीय टीम द्वारा किए गए एक शोध में सामने आया है, जहां पाया गया है कि असम के चाय बागानों के श्रमिकों में CPA का प्रचलन बहुत अधिक है. असम मेडिकल कॉलेज की वाइस प्रिंसिप्ल डॉ रीमा नाथ डिपार्टमेंट ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन की सीनियर डॉक्टर गौरांगी गोगोई, ऐश्वर्या सेल्वाशेखर और प्रणामी बोरा द्वारा किया गया अध्ययन PLOS नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज में पब्लिश हुआ है.

डिब्रूगढ़ जिले में में विभिन्न बीमारियों से पीड़ित लोगों की संख्या अन्य जगहों की तुलना में अधिक होती है. इसलिए असम मेडिकल कॉलेज के चार डॉक्टरों ने फेफड़ों की बीमारी से पीड़ित रोगियों पर एक साल का अध्ययन शुरू किया, जो चाय बागान क्षेत्रों में बढ़ रही है.

असम में बढ़ रही फेफड़े की बीमारी के मरीजों की संख्या (ETV Bharat)

इस दौरान उन्होंने देखा कि ट्यूबरक्युलस (TB) का पता चलने के बाद रोगी क्रोनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस (CPA) से मर जाते हैं. इसलिए असम मेडिकल कॉलेज की रिसर्च टीम ने डिब्रूगढ़ के आसपास के चार चाय बागानों में क्रोनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस पर शोध शुरू किया. टीम ने चाय बागान अस्पतालों में इलाज करा रहे 128 मरीजों से नमूने एकत्र किए और परीक्षण किए. इनमें से 14 टीबी रोगियों में फेफड़ों के लिए अत्यंत गंभीर सीपीए का निदान किया गया.

ईटीवी भारत से बात करते हुए डॉक्टरों ने कहा कि यह चिकित्सा क्षेत्र के लिए बहुत डरावनी खबर है. हालांकि, निवारक उपाय मौजूद हैं, अगर समय पर उचित उपचार नहीं किया जाता है, तो रोगी की मौत हो सकती है.

क्यों हो रही बढ़ोतरी?
असम मेडिकल कॉलेज के एक्सपर्ट के अनुसार टीबी फेफड़ों में क्रॉनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस का प्रमुख कारण है. क्रॉनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस तब शुरू होता है जब रोगी टीबी से पीड़ित होने के बाद कमजोर फेफड़ों में फंगस बन जाता है. शोध में यह भी पता चला है कि यह बीमारी नई नहीं है, लेकिन चाय बागान क्षेत्र में इससे प्रभावित रोगियों की संख्या अधिक है. रिसर्च ने आगे खुलासा किया कि इसका कारण चाय बागान क्षेत्र के लोगों में टीबी के बारे में जागरूकता की कमी है. साथ ही घनी आबादी वाले इलाकों में रहने के कारण चाय बागानों में रहने वाले लोगों में यह बीमारी अधिक आम है.

डॉक्टर का क्या कहना है?
असम मेडिकल कॉलेज की वाइस प्रिंसिपल डॉ रीमा नाथ, जो क्रॉनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस पर असम मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों द्वारा किए गए शोध की चीफ सुपरवाइजर हैं, उन्होंने ईटीवी भारत को यह एक फंगल बीमारी है.

डॉ नाथ ने बताया, "यह बीमारी कमजोर फेफड़ों में होती है. इसका मुख्य कारण टीबी है. दुनिया के अलग-अलग देशों में इस बीमारी पर रिसर्च चल रही है, लेकिन भारत में इस क्षेत्र में बहुत अधिक शोध नहीं हुआ.हालांकि, 2021 में असम मेडिकल कॉलेज में एडवांस डायग्नोस्टिक रिसर्च लेबोरेटरी स्थापित होने के बाद टीबी पर शोध करना सुविधाजनक हो गया, इसलिए इस बीमारी पर शोध किया गया."

उन्होंने आगे कहा, "अन्य क्षेत्रों की तुलना में चाय बागान क्षेत्रों में मामले अधिक हैं. यह अध्ययन तीन महीने तक लगातार खांसी, खांसी से खून आना जैसे लक्षणों वाले रोगियों के साथ-साथ अतीत में टीबी के इतिहास वाले रोगियों पर किया गया था. डिब्रूगढ़ के चार चाय बागानों में किए गए अध्ययन में पाया गया कि 14 रोगियों में सीपीए पाया गया."

उन्होंने कहा, "यह बीमारी केवल चाय बागानों वाले इलाकों में ही नहीं है, बल्कि अन्य इलाकों के आम लोगों के शरीर में भी पाई गई है, लेकिन जब से हमने चाय बागानों पर शोध किया है, तब से चाय बागानों के आंकड़ों को सार्वजनिक किया जा रहा है."

यह पूछे जाने पर कि क्या चाय उत्पादन में कीटनाशकों के कथित इस्तेमाल के कारण मामले सामने आए हैं, डॉ नाथ ने जवाब दिया, "यह बीमारी चाय बागानों में इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशकों के कारण नहीं होती है. यह बीमारी केवल इसलिए होती है क्योंकि टीबी ने फेफड़ों को कमजोर कर दिया है. यह फेफड़ों की जांच प्रक्रिया में हुई प्रगति के कारण है, जिसके कारण हम इस बीमारी की पहचान कर पाए हैं. इस बीमारी से घबराने की कोई जरूरत नहीं है. हर कोई खुद को टीबी से बचाकर इस बीमारी से बच सकता है.

सामुदायिक चिकित्सा विभाग की वरिष्ठ चिकित्सक और शोध दल की सदस्य डॉ गौरांगी गोगोई ने ईटीवी भारत को बताया, "हम जानते हैं कि आमतौर पर चाय बागानों में काम करने वाले लोग घने इलाकों में रहते हैं और घनी आबादी के लिए वे क्षेत्र संक्रमण के लिए प्रवण होते हैं. टीबी एक ऐसी बीमारी है जो घने इलाकों में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलती है. लोगों में जागरूकता की जरूरत है और लगातार खांसी, जुकाम और बुखार, खांसी से खून आना जैसे किसी भी लक्षण की जल्द से जल्द स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को सूचना दी जानी चाहिए, ताकि शुरुआती उपचार हो सके."

डॉ गोगोई ने निष्कर्ष निकाला कि उनकी जनसांख्यिकी और जीवनशैली के कारण चाय बागान क्षेत्र टीबी के लिए सबसे अच्छे स्थान हैं और ऐसे मामलों को केवल उचित जागरूकता और शुरुआती उपचार के लिए समय पर कार्रवाई के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है.

यह भी पढ़ें- कच्चे माल का निर्यात और तैयार उत्पादों का आयात स्वीकार नहीं किया जा सकता, ओडिशा में बोले पीएम मोदी

गुवाहाटी/डिब्रूगढ़: असम अपनी चाय और चाय इंडस्ट्री के लिए दुनियाभर में मशहूर है. स्वाभाविक रूप से असम में भारत के कुल चाय उत्पादन का 50 फीसदी प्रोडक्शन होता है. यहां बड़ी संख्या में चाय के बागान हैं और यह राज्य की कुल आबादी के 18 फीसदी लोगों को चाय का प्रोडक्शन आजीविका प्रदान करता है.

हालांकि, इन चाय बागानों में मजदूरों की कल्याण और आर्थिक स्थिति लंबे समय से चिंता का विषय रही है. समय के साथ चाय बागान क्षेत्रों में कई बीमारियों में वृद्धि हुई है. उनमें से एक है फेफड़ों से संबंधित क्रॉनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस (CPA). यह एक फंगल है, जो फेफड़ों के इंफेक्शन के लिए गंभीर और जानलेवा माना जाता है.

असम मेडिकल कॉलेज की टीम ने की रिसर्च
असम मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (AMCH) डिब्रूगढ़ की 4 सदस्यीय टीम द्वारा किए गए एक शोध में सामने आया है, जहां पाया गया है कि असम के चाय बागानों के श्रमिकों में CPA का प्रचलन बहुत अधिक है. असम मेडिकल कॉलेज की वाइस प्रिंसिप्ल डॉ रीमा नाथ डिपार्टमेंट ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन की सीनियर डॉक्टर गौरांगी गोगोई, ऐश्वर्या सेल्वाशेखर और प्रणामी बोरा द्वारा किया गया अध्ययन PLOS नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज में पब्लिश हुआ है.

डिब्रूगढ़ जिले में में विभिन्न बीमारियों से पीड़ित लोगों की संख्या अन्य जगहों की तुलना में अधिक होती है. इसलिए असम मेडिकल कॉलेज के चार डॉक्टरों ने फेफड़ों की बीमारी से पीड़ित रोगियों पर एक साल का अध्ययन शुरू किया, जो चाय बागान क्षेत्रों में बढ़ रही है.

असम में बढ़ रही फेफड़े की बीमारी के मरीजों की संख्या (ETV Bharat)

इस दौरान उन्होंने देखा कि ट्यूबरक्युलस (TB) का पता चलने के बाद रोगी क्रोनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस (CPA) से मर जाते हैं. इसलिए असम मेडिकल कॉलेज की रिसर्च टीम ने डिब्रूगढ़ के आसपास के चार चाय बागानों में क्रोनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस पर शोध शुरू किया. टीम ने चाय बागान अस्पतालों में इलाज करा रहे 128 मरीजों से नमूने एकत्र किए और परीक्षण किए. इनमें से 14 टीबी रोगियों में फेफड़ों के लिए अत्यंत गंभीर सीपीए का निदान किया गया.

ईटीवी भारत से बात करते हुए डॉक्टरों ने कहा कि यह चिकित्सा क्षेत्र के लिए बहुत डरावनी खबर है. हालांकि, निवारक उपाय मौजूद हैं, अगर समय पर उचित उपचार नहीं किया जाता है, तो रोगी की मौत हो सकती है.

क्यों हो रही बढ़ोतरी?
असम मेडिकल कॉलेज के एक्सपर्ट के अनुसार टीबी फेफड़ों में क्रॉनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस का प्रमुख कारण है. क्रॉनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस तब शुरू होता है जब रोगी टीबी से पीड़ित होने के बाद कमजोर फेफड़ों में फंगस बन जाता है. शोध में यह भी पता चला है कि यह बीमारी नई नहीं है, लेकिन चाय बागान क्षेत्र में इससे प्रभावित रोगियों की संख्या अधिक है. रिसर्च ने आगे खुलासा किया कि इसका कारण चाय बागान क्षेत्र के लोगों में टीबी के बारे में जागरूकता की कमी है. साथ ही घनी आबादी वाले इलाकों में रहने के कारण चाय बागानों में रहने वाले लोगों में यह बीमारी अधिक आम है.

डॉक्टर का क्या कहना है?
असम मेडिकल कॉलेज की वाइस प्रिंसिपल डॉ रीमा नाथ, जो क्रॉनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस पर असम मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों द्वारा किए गए शोध की चीफ सुपरवाइजर हैं, उन्होंने ईटीवी भारत को यह एक फंगल बीमारी है.

डॉ नाथ ने बताया, "यह बीमारी कमजोर फेफड़ों में होती है. इसका मुख्य कारण टीबी है. दुनिया के अलग-अलग देशों में इस बीमारी पर रिसर्च चल रही है, लेकिन भारत में इस क्षेत्र में बहुत अधिक शोध नहीं हुआ.हालांकि, 2021 में असम मेडिकल कॉलेज में एडवांस डायग्नोस्टिक रिसर्च लेबोरेटरी स्थापित होने के बाद टीबी पर शोध करना सुविधाजनक हो गया, इसलिए इस बीमारी पर शोध किया गया."

उन्होंने आगे कहा, "अन्य क्षेत्रों की तुलना में चाय बागान क्षेत्रों में मामले अधिक हैं. यह अध्ययन तीन महीने तक लगातार खांसी, खांसी से खून आना जैसे लक्षणों वाले रोगियों के साथ-साथ अतीत में टीबी के इतिहास वाले रोगियों पर किया गया था. डिब्रूगढ़ के चार चाय बागानों में किए गए अध्ययन में पाया गया कि 14 रोगियों में सीपीए पाया गया."

उन्होंने कहा, "यह बीमारी केवल चाय बागानों वाले इलाकों में ही नहीं है, बल्कि अन्य इलाकों के आम लोगों के शरीर में भी पाई गई है, लेकिन जब से हमने चाय बागानों पर शोध किया है, तब से चाय बागानों के आंकड़ों को सार्वजनिक किया जा रहा है."

यह पूछे जाने पर कि क्या चाय उत्पादन में कीटनाशकों के कथित इस्तेमाल के कारण मामले सामने आए हैं, डॉ नाथ ने जवाब दिया, "यह बीमारी चाय बागानों में इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशकों के कारण नहीं होती है. यह बीमारी केवल इसलिए होती है क्योंकि टीबी ने फेफड़ों को कमजोर कर दिया है. यह फेफड़ों की जांच प्रक्रिया में हुई प्रगति के कारण है, जिसके कारण हम इस बीमारी की पहचान कर पाए हैं. इस बीमारी से घबराने की कोई जरूरत नहीं है. हर कोई खुद को टीबी से बचाकर इस बीमारी से बच सकता है.

सामुदायिक चिकित्सा विभाग की वरिष्ठ चिकित्सक और शोध दल की सदस्य डॉ गौरांगी गोगोई ने ईटीवी भारत को बताया, "हम जानते हैं कि आमतौर पर चाय बागानों में काम करने वाले लोग घने इलाकों में रहते हैं और घनी आबादी के लिए वे क्षेत्र संक्रमण के लिए प्रवण होते हैं. टीबी एक ऐसी बीमारी है जो घने इलाकों में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलती है. लोगों में जागरूकता की जरूरत है और लगातार खांसी, जुकाम और बुखार, खांसी से खून आना जैसे किसी भी लक्षण की जल्द से जल्द स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को सूचना दी जानी चाहिए, ताकि शुरुआती उपचार हो सके."

डॉ गोगोई ने निष्कर्ष निकाला कि उनकी जनसांख्यिकी और जीवनशैली के कारण चाय बागान क्षेत्र टीबी के लिए सबसे अच्छे स्थान हैं और ऐसे मामलों को केवल उचित जागरूकता और शुरुआती उपचार के लिए समय पर कार्रवाई के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है.

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