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निजी कोचिंग पर नई गाइडलाइन से छत्तीसगढ़ में कितना पड़ेगा असर, जानिए शिक्षाविद की राय

New Guidelines For Coaching: 16 साल से कम उम्र के बच्चों के कोचिंग पर रोक से परिजनों की परेशानी बढ़ गई है. छत्तीसगढ़ के कोचिंग सेंटरों में भी इसका असर देखने को मिल रहा है. कई कोचिंग संचालक इस फैसले पर फिर से विचार करने की मांग केन्द्र सरकार से कर रहे हैं.

Coaching Centers In Korba
16 साल के कम उम्र के बच्चों के कोचिंग पर रोक
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jan 24, 2024, 6:52 PM IST

कोचिंग पर रोक से बढ़ी परिजनों की परेशानी

कोरबा: हाल ही में केन्द्र सरकार ने ऐलान किया था कि 16 साल से कम उम्र के बच्चे अब निजी कोचिंग सेंटरों में नहीं पढ़ेंगे. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने ये पाबंदी लगाई थी. हालांकि इस पाबंदी के बाद कई परिजनों को बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी है. नई गाइडलाइन के अनुसार कोचिंग संस्थाएं कम उम्र के बच्चों को दाखिला नहीं दे सकेंगे. इस फैसले से जहां निजी कोचिंग इंस्टीट्यूट में हड़कंप मच गया है. वहीं, दूसरी ओर शिक्षा विशेषज्ञों ने इस फैसले का स्वागत भी किया है.

फिलहाल छत्तीसगढ़ में इस नियम को लागू किए जाने की तैयारी की जा रही है. स्थानिय शिक्षा विभाग की ओर से इसे जिला स्तर पर अमली जामा पहनाया जाएगा. फिलहाल निजी कोचिंग संचालक इस गाइडलाइन की वजह से रोजगार छिन जाने की बात कह रहे हैं. जबकि जानकार मानते हैं कि इस फैसले से बच्चों के बचपन से बोझ कम होगा.

नई गाइडलाइन में इस तरह की बातें: इस गाइडलाइन में कहा गया है कि कोचिंग संस्थाएं 16 साल से कम उम्र के बच्चों को एडमिशन नहीं देंगे. इस तरह उन्हें अच्छे अंक, उम्दा रैंक दिलाने या टॉपर की श्रेणी पर लाने की गारंटी जैसे भ्रामक वादे भी नहीं कर सकेंगे. सभी कोचिंग संस्थानों को हर हाल में अपना पंजीयन कराना होगा. इस तरह का दावा कर गुमराह करने वाली निरंकुश संस्थाओं को एक कानूनी ढांचे में लाने और कायदों को पूरा करने का खाका तैयार किया गया है. कोचिंग संस्थाओं को पहली बार नियमों के उल्लंघन के लिए 25 हजार, दूसरी बार एक लाख, तीसरी बार भी नाफरमानी किए जाने पर पंजीयन रद्द करने की कार्रवाई की जाएगी.

इसके साथ ही उन्हें भारी अर्थदंड भी भरना होगा. इसके अनुसार पाठ्यक्रम की अवधि के बीच फीस की वृद्धि भी नहीं ली जा सकेगी. किसी विद्यार्थी ने अगर पूरा शुल्क दे दिया है तो कोर्स को बीच में ही छोड़ने के लिए अर्जी दी है तो भुगतान की गई राशि में से उसने जितना पढ़ लिया है. उसके बाद के शेष पाठ्यक्रम की शेष अवधि की राशि भी कोचिंग संस्थान को वापस देनी होगी. इस रिफंड में हॉस्टल और मेस फीस भी शामिल किया गया है.

इस नियम से तो हमारा रोजगार ही छिन जाएगा. खास तौर पर छोटे बच्चों को ही कोचिंग की जरूरत होती है. कई बच्चे ऐसे हैं, जिनके माता-पिता दोनों वर्किंग होते हैं. वह अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते. ऐसे में वह हम जैसे ट्यूटर को ढूंढते हैं. हम अपनी जिम्मेदारी निभाकर बच्चों को अच्छा माहौल देते हैं. हम बच्चों पर कोई मानसिक बोझ नहीं डालते हैं. यदि कोचिंग बंद हुई तो कमजोर बच्चों पर भी थोड़ा असर पड़ेगा. जो अपने से स्कूल की पढ़ाई के बाद तैयारी नहीं कर पाते. ऐसे कमजोर बच्चे कहीं ना कहीं पिछड़ेंगे. सरकार को अपने इस गाइडलाइन पर एक बार फिर से पुनर्विचार करना चाहिए. -दौलत शर्मा, संचालक, निजी कोचिंग सेंटर

खुद से जूझने और सीखने की मानसिकता होगी विकसित: शासकीय ईवीपीजी कॉलेज में फिजिक्स के प्रोफेसर श्याम सुंदर तिवारी का कहना है कि, "16 साल की उम्र का फिगर सरकार ने बेहद सोच समझ कर लिया है. ये वो उम्र होती है, जब बच्चे अपनी बौद्धिक क्षमता का विकास करते हैं. ऐसे में यदि किसी मुश्किल का सॉल्यूशन उन्हें पहले ही बता दिया जाए. तो उनमें सीखने की क्षमता विकसित नहीं हो पाती. यदि वह खुद जूझेंगे, लड़ेंगे अलग-अलग किताबों को पढ़कर खुद ही किसी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन ढूंढेंग. तो उनकी बौद्धिक क्षमता का विकास तेजी से होगा. वह मानसिक तौर पर अधिक परिपक्व होंगे. इस उम्र में बच्चों पर किसी भी तरह का प्रेशर नहीं डालना चाहिए. तभी बच्चे मजबूत बनेंगे. मेरी नज़र में तो सरकार ने एक बढ़िया कदम उठाया है."

बच्चों को आत्मघाती कदम उठाने से रोकने की कवायद: मंत्रालय ने यह गाइडलाइन विद्यार्थियों को लेकर बढ़ते आत्मघाती मामलों, आग की घटनाओं, कोचिंग संस्थानों में सुविधाओं की कमी के साथ-साथ उनके द्वारा अपनाई जाने वाली शिक्षण पद्धतियों के बारे में मिली शिकायतों के बाद तैयार किए हैं. इसके साथ बच्चों और युवाओं के लिए स्कूल और उच्च शिक्षा की जिम्मेदारी निभा रहे विद्यालय और महाविद्यालयों के लिए भी गुणवत्ता के पैमानों पर खरा उतरने की सोच विकसित होगी.

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कोचिंग पर रोक से बढ़ी परिजनों की परेशानी

कोरबा: हाल ही में केन्द्र सरकार ने ऐलान किया था कि 16 साल से कम उम्र के बच्चे अब निजी कोचिंग सेंटरों में नहीं पढ़ेंगे. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने ये पाबंदी लगाई थी. हालांकि इस पाबंदी के बाद कई परिजनों को बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी है. नई गाइडलाइन के अनुसार कोचिंग संस्थाएं कम उम्र के बच्चों को दाखिला नहीं दे सकेंगे. इस फैसले से जहां निजी कोचिंग इंस्टीट्यूट में हड़कंप मच गया है. वहीं, दूसरी ओर शिक्षा विशेषज्ञों ने इस फैसले का स्वागत भी किया है.

फिलहाल छत्तीसगढ़ में इस नियम को लागू किए जाने की तैयारी की जा रही है. स्थानिय शिक्षा विभाग की ओर से इसे जिला स्तर पर अमली जामा पहनाया जाएगा. फिलहाल निजी कोचिंग संचालक इस गाइडलाइन की वजह से रोजगार छिन जाने की बात कह रहे हैं. जबकि जानकार मानते हैं कि इस फैसले से बच्चों के बचपन से बोझ कम होगा.

नई गाइडलाइन में इस तरह की बातें: इस गाइडलाइन में कहा गया है कि कोचिंग संस्थाएं 16 साल से कम उम्र के बच्चों को एडमिशन नहीं देंगे. इस तरह उन्हें अच्छे अंक, उम्दा रैंक दिलाने या टॉपर की श्रेणी पर लाने की गारंटी जैसे भ्रामक वादे भी नहीं कर सकेंगे. सभी कोचिंग संस्थानों को हर हाल में अपना पंजीयन कराना होगा. इस तरह का दावा कर गुमराह करने वाली निरंकुश संस्थाओं को एक कानूनी ढांचे में लाने और कायदों को पूरा करने का खाका तैयार किया गया है. कोचिंग संस्थाओं को पहली बार नियमों के उल्लंघन के लिए 25 हजार, दूसरी बार एक लाख, तीसरी बार भी नाफरमानी किए जाने पर पंजीयन रद्द करने की कार्रवाई की जाएगी.

इसके साथ ही उन्हें भारी अर्थदंड भी भरना होगा. इसके अनुसार पाठ्यक्रम की अवधि के बीच फीस की वृद्धि भी नहीं ली जा सकेगी. किसी विद्यार्थी ने अगर पूरा शुल्क दे दिया है तो कोर्स को बीच में ही छोड़ने के लिए अर्जी दी है तो भुगतान की गई राशि में से उसने जितना पढ़ लिया है. उसके बाद के शेष पाठ्यक्रम की शेष अवधि की राशि भी कोचिंग संस्थान को वापस देनी होगी. इस रिफंड में हॉस्टल और मेस फीस भी शामिल किया गया है.

इस नियम से तो हमारा रोजगार ही छिन जाएगा. खास तौर पर छोटे बच्चों को ही कोचिंग की जरूरत होती है. कई बच्चे ऐसे हैं, जिनके माता-पिता दोनों वर्किंग होते हैं. वह अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते. ऐसे में वह हम जैसे ट्यूटर को ढूंढते हैं. हम अपनी जिम्मेदारी निभाकर बच्चों को अच्छा माहौल देते हैं. हम बच्चों पर कोई मानसिक बोझ नहीं डालते हैं. यदि कोचिंग बंद हुई तो कमजोर बच्चों पर भी थोड़ा असर पड़ेगा. जो अपने से स्कूल की पढ़ाई के बाद तैयारी नहीं कर पाते. ऐसे कमजोर बच्चे कहीं ना कहीं पिछड़ेंगे. सरकार को अपने इस गाइडलाइन पर एक बार फिर से पुनर्विचार करना चाहिए. -दौलत शर्मा, संचालक, निजी कोचिंग सेंटर

खुद से जूझने और सीखने की मानसिकता होगी विकसित: शासकीय ईवीपीजी कॉलेज में फिजिक्स के प्रोफेसर श्याम सुंदर तिवारी का कहना है कि, "16 साल की उम्र का फिगर सरकार ने बेहद सोच समझ कर लिया है. ये वो उम्र होती है, जब बच्चे अपनी बौद्धिक क्षमता का विकास करते हैं. ऐसे में यदि किसी मुश्किल का सॉल्यूशन उन्हें पहले ही बता दिया जाए. तो उनमें सीखने की क्षमता विकसित नहीं हो पाती. यदि वह खुद जूझेंगे, लड़ेंगे अलग-अलग किताबों को पढ़कर खुद ही किसी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन ढूंढेंग. तो उनकी बौद्धिक क्षमता का विकास तेजी से होगा. वह मानसिक तौर पर अधिक परिपक्व होंगे. इस उम्र में बच्चों पर किसी भी तरह का प्रेशर नहीं डालना चाहिए. तभी बच्चे मजबूत बनेंगे. मेरी नज़र में तो सरकार ने एक बढ़िया कदम उठाया है."

बच्चों को आत्मघाती कदम उठाने से रोकने की कवायद: मंत्रालय ने यह गाइडलाइन विद्यार्थियों को लेकर बढ़ते आत्मघाती मामलों, आग की घटनाओं, कोचिंग संस्थानों में सुविधाओं की कमी के साथ-साथ उनके द्वारा अपनाई जाने वाली शिक्षण पद्धतियों के बारे में मिली शिकायतों के बाद तैयार किए हैं. इसके साथ बच्चों और युवाओं के लिए स्कूल और उच्च शिक्षा की जिम्मेदारी निभा रहे विद्यालय और महाविद्यालयों के लिए भी गुणवत्ता के पैमानों पर खरा उतरने की सोच विकसित होगी.

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