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दिल की बीमारी के साथ जन्मी पानीपत की माही, सात साल बाद भी नहीं हो पाया इलाज, पिता ने सरकार से मांगी मदद

Panipat Mahi Suffers From Heart Disease: पानीपत में सात साल की मासूम बच्ची माही रामभरोसे अपनी जिंदगी जी रही है. वह मासूम अपनी बीमारी से एकदम बेखबर है. लेकिन जब ये बीमारी उसे सर्दी में भी गर्मी का एहसास दिलाती है तो वह परेशान हो जाती है. उसकी धड़कन की रफ्तार हवाओं से भी तेज दौड़ती है. उसकी चढ़ती सांसे उसे बेहद कमजोर महसूस कराती है. जन्म से इस बीमारी की शिकार माही सात सालों से इलाज नहीं मिलने के कारण इसी बीमारी से जूझ रही है. इसलिए इस मासूम बच्ची को इलाज की सख्त जरूरत है.

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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Feb 12, 2024, 11:10 PM IST

सात साल से माही को नहीं मिला इलाज

पानीपत: हरियाणा के पानीपत में सात साल की बच्ची को इलाज की सख्त जरूरत है. माही के माता-पिता बीते 7 साल से उसको डॉक्टर के पास लेकर जा रहे हैं. लेकिन इलाज नहीं हो पा रहा है. दरअसल, बच्ची को एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज केवल दिल्ली के एम्स अस्पताल में ही हो सकता है. लेकिन बच्ची के परिजनों का कहना है कि 'जब भी वो अपनी बच्ची को अस्पताल में लेकर जाते हैं तो डॉक्टर उन्हें बेड खाली नहीं है कहकर वापस भेज देते हैं. डॉक्टर ने अपनी ओपीडी स्लिप में लिखित में दिया है कि नो बेड अवेलेबल'.

'दिल्ली एम्स में इलाज के लिए नहीं मिला बेड': माही के माता-पिता का कहना है कि 'माही के दिल में एवी कैनाल रिपेयर होना है. जिसका इलाज केवल दिल्ली के एम्स अस्पताल में ही संभव है'. माही के पिता राकेश ने बताया कि 'माही का जन्म जन्म 8 महीने में ही हो गया था. इसे सांस लेने में समस्या थी. जब डॉक्टर के पास गए तो डॉक्टर को भी माही की इस बीमारी के बारे में कोई समझ नहीं थी. यहां के डॉक्टरों ने माही को दिल्ली एम्स में रेफर कर दिया. एम्स के डॉक्टर ने इस बीमारी का पता लगाया और इलाज की बात कही'.

'सात साल बीत जाने के बाद भी नहीं हो पाया इलाज': राकेश ने बताया कि 'जब माही को दिल्ली एम्स अस्पताल में इलाज के लिए लेकर गए तो वहां उस समय बेड नहीं था. जिसके बाद माही को घर वापस लेकर आ गए. माही जन्म से लेकर आज तक इस बीमारी से जूझ रही है और ऐसे ही सात साल बीत गए हैं. हॉस्पिटल में अभी तक बेड उपलब्ध नहीं हुआ. जब भी वो माही को लेकर दिल्ली एम्स पहुंचते हैं तो डॉक्टर की तरफ से एक ही जवाब आता है, बेड खाली नहीं है. जब बेड खाली होगा तो फोन कर उन्हें इलाज के लिए बुलाया जाएगा'.

'लेटर फाड़कर कूड़े में फेंक दो': माही के पिता ने बताया कि 'एम्स अस्पताल के डायरेक्टर से भी इस बारे में बातचीत की गई. उन्होंने एक लेटर भी लिखकर दिया. लेकिन जब लेटर लेकर अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टर का वही जवाब था कि लेटर फेंक कर फाड़ दो, इनकी यहां कोई वैल्यू नहीं है. डॉक्टर कहते हैं कि हर रोज यहां सैकड़ों ऐसे लेटर आते हैं.'

'बिना इलाज के भरी एम्स की फीस': इतना ही नहीं राकेश ने आगे बताया कि 'जब वह माही को लेकर पहली बार अस्पताल गए और डॉक्टरों ने बीमारी के बारे में पता लगाया. उसी समय माही के माता-पिता ने करीब डेढ़ लाख रुपये अस्पताल में जमा करवाए. लेकिन बेड नहीं होने के कारण माही का इलाज नहीं हो पाया. माही के लिए ब्लड की चार यूनिट भी 7 साल पहले से ही जमा है. उस मशीन के पैसे भी जमा करवाए गए हैं, जिस मशीन में माही का दिल निकालकर कुछ घंटों के लिए सुरक्षित रखा जाएगा'.

'सर्जरी के सफल होने के बेहद कम चांस': माही के परिजनों ने बताया कि 'इस बीमारी की वजह से माही को सर्दी में भी गर्मी लगने लगती है. दिल की धड़कन सामान्य के मुकाबले अधिक तेज दौड़ती है. माही का शारीरिक विकास भी नहीं हो रहा है. किसी भी समय माही को कुछ भी हो सकता है. वहीं, केवल 5 प्रतिशत चांस ही सर्जरी की सफलता के है. लेकिन वो अपनी बच्ची का इलाज करवाना चाहते हैं. ताकि उनके मन में सुकून रहे कि उन्होंने अपनी बच्ची का इलाज करवाया था. केवल बेड नहीं होने की वजह से मासूम बच्ची राम भरोसे अपनी जिंदगी काटने के लिए मजबूर है'.

'माही के पिता की सरकार से अपील': ईटीवी भारत के माध्यम से एक पिता ने सरकार से अपनी बच्ची के इलाज की मदद मांगी है. उसकी बेटी का इलाज करवाया जाए. उन्होंने कहा कि वो पैसे की मदद नहीं चाहते बस अपनी बच्ची का इलाज करवाना चाहते हैं. ताकि उनके मन में अपनी बच्ची के इलाज को लेकर कोई मलाल न रहे और उनकी बच्ची ठीक हो जाए.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ: वहीं, हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ. तेजवीर ग्रेवाल ने इस संबंध में कहा कि 'इस प्रकार की बीमारी अधिकांश 35 से 40 साल की उम्र में जन्म देने वाले माता-पिता के बच्चों में पाई जाती है. साथ ही प्रीमैच्योर पैदा हुए बच्चे भी इस तरह की बीमारी से जूझते हैं. इनमें शारीरिक विकास रुक जाता है और सांस फूलने जैसी समस्याएं शुरू होती है. इस एवी कैनाल का जितना हो सके उतना जल्दी इलाज करवाना चाहिए. इस सर्जरी के लिए डॉक्टरों की बड़ी टीम होना जरूरी है. इसका इलाज सिर्फ और सिर्फ ऑपरेशन ही है. जितनी देरी से एवी कैनाल की सर्जरी होगी, उतनी ही मरीज के लिए मुश्किल हो जाएगी'.

ये भी पढ़ें: पीजीआईएमएस रोहतक ने रचा इतिहास! दो मरीजों में सफलतापूर्वक किया किडनी ट्रांसप्लांट

ये भी पढ़ें: हार्निया का ऑपरेशन कराने गया था डॉक्टरों ने निकाल ली किडनी

सात साल से माही को नहीं मिला इलाज

पानीपत: हरियाणा के पानीपत में सात साल की बच्ची को इलाज की सख्त जरूरत है. माही के माता-पिता बीते 7 साल से उसको डॉक्टर के पास लेकर जा रहे हैं. लेकिन इलाज नहीं हो पा रहा है. दरअसल, बच्ची को एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज केवल दिल्ली के एम्स अस्पताल में ही हो सकता है. लेकिन बच्ची के परिजनों का कहना है कि 'जब भी वो अपनी बच्ची को अस्पताल में लेकर जाते हैं तो डॉक्टर उन्हें बेड खाली नहीं है कहकर वापस भेज देते हैं. डॉक्टर ने अपनी ओपीडी स्लिप में लिखित में दिया है कि नो बेड अवेलेबल'.

'दिल्ली एम्स में इलाज के लिए नहीं मिला बेड': माही के माता-पिता का कहना है कि 'माही के दिल में एवी कैनाल रिपेयर होना है. जिसका इलाज केवल दिल्ली के एम्स अस्पताल में ही संभव है'. माही के पिता राकेश ने बताया कि 'माही का जन्म जन्म 8 महीने में ही हो गया था. इसे सांस लेने में समस्या थी. जब डॉक्टर के पास गए तो डॉक्टर को भी माही की इस बीमारी के बारे में कोई समझ नहीं थी. यहां के डॉक्टरों ने माही को दिल्ली एम्स में रेफर कर दिया. एम्स के डॉक्टर ने इस बीमारी का पता लगाया और इलाज की बात कही'.

'सात साल बीत जाने के बाद भी नहीं हो पाया इलाज': राकेश ने बताया कि 'जब माही को दिल्ली एम्स अस्पताल में इलाज के लिए लेकर गए तो वहां उस समय बेड नहीं था. जिसके बाद माही को घर वापस लेकर आ गए. माही जन्म से लेकर आज तक इस बीमारी से जूझ रही है और ऐसे ही सात साल बीत गए हैं. हॉस्पिटल में अभी तक बेड उपलब्ध नहीं हुआ. जब भी वो माही को लेकर दिल्ली एम्स पहुंचते हैं तो डॉक्टर की तरफ से एक ही जवाब आता है, बेड खाली नहीं है. जब बेड खाली होगा तो फोन कर उन्हें इलाज के लिए बुलाया जाएगा'.

'लेटर फाड़कर कूड़े में फेंक दो': माही के पिता ने बताया कि 'एम्स अस्पताल के डायरेक्टर से भी इस बारे में बातचीत की गई. उन्होंने एक लेटर भी लिखकर दिया. लेकिन जब लेटर लेकर अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टर का वही जवाब था कि लेटर फेंक कर फाड़ दो, इनकी यहां कोई वैल्यू नहीं है. डॉक्टर कहते हैं कि हर रोज यहां सैकड़ों ऐसे लेटर आते हैं.'

'बिना इलाज के भरी एम्स की फीस': इतना ही नहीं राकेश ने आगे बताया कि 'जब वह माही को लेकर पहली बार अस्पताल गए और डॉक्टरों ने बीमारी के बारे में पता लगाया. उसी समय माही के माता-पिता ने करीब डेढ़ लाख रुपये अस्पताल में जमा करवाए. लेकिन बेड नहीं होने के कारण माही का इलाज नहीं हो पाया. माही के लिए ब्लड की चार यूनिट भी 7 साल पहले से ही जमा है. उस मशीन के पैसे भी जमा करवाए गए हैं, जिस मशीन में माही का दिल निकालकर कुछ घंटों के लिए सुरक्षित रखा जाएगा'.

'सर्जरी के सफल होने के बेहद कम चांस': माही के परिजनों ने बताया कि 'इस बीमारी की वजह से माही को सर्दी में भी गर्मी लगने लगती है. दिल की धड़कन सामान्य के मुकाबले अधिक तेज दौड़ती है. माही का शारीरिक विकास भी नहीं हो रहा है. किसी भी समय माही को कुछ भी हो सकता है. वहीं, केवल 5 प्रतिशत चांस ही सर्जरी की सफलता के है. लेकिन वो अपनी बच्ची का इलाज करवाना चाहते हैं. ताकि उनके मन में सुकून रहे कि उन्होंने अपनी बच्ची का इलाज करवाया था. केवल बेड नहीं होने की वजह से मासूम बच्ची राम भरोसे अपनी जिंदगी काटने के लिए मजबूर है'.

'माही के पिता की सरकार से अपील': ईटीवी भारत के माध्यम से एक पिता ने सरकार से अपनी बच्ची के इलाज की मदद मांगी है. उसकी बेटी का इलाज करवाया जाए. उन्होंने कहा कि वो पैसे की मदद नहीं चाहते बस अपनी बच्ची का इलाज करवाना चाहते हैं. ताकि उनके मन में अपनी बच्ची के इलाज को लेकर कोई मलाल न रहे और उनकी बच्ची ठीक हो जाए.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ: वहीं, हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ. तेजवीर ग्रेवाल ने इस संबंध में कहा कि 'इस प्रकार की बीमारी अधिकांश 35 से 40 साल की उम्र में जन्म देने वाले माता-पिता के बच्चों में पाई जाती है. साथ ही प्रीमैच्योर पैदा हुए बच्चे भी इस तरह की बीमारी से जूझते हैं. इनमें शारीरिक विकास रुक जाता है और सांस फूलने जैसी समस्याएं शुरू होती है. इस एवी कैनाल का जितना हो सके उतना जल्दी इलाज करवाना चाहिए. इस सर्जरी के लिए डॉक्टरों की बड़ी टीम होना जरूरी है. इसका इलाज सिर्फ और सिर्फ ऑपरेशन ही है. जितनी देरी से एवी कैनाल की सर्जरी होगी, उतनी ही मरीज के लिए मुश्किल हो जाएगी'.

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