लखनऊ: यूपी की चार और शख्सियतों को पदम श्री पुरस्कार 2024 (Padma Shri Award 2024) से नवाजा गया गया है. इनमें चिकनकारी को दुनिया में पहचान दिलाने वाली लखनऊ की नसीम बानो, लखनऊ एसजीपीजीआई के निदेशक प्रोफेसर डॉ आरके धीमान,लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व एचओडी प्रोफेसर नवजीवन रस्तोगी और बनारस घराने के शास्त्रीय संगीत गायक पंडित सुरेंद्र मोहन मिश्र के नाम शामिल हैं.
नसीम बानो ने 13 साल की उम्र में शुरू किया था चिकनकारी का काम: लखनऊ के चार लोगों को पद्म श्री पुरस्कार मिला है. लखनऊ के ठाकुरगंज इलाके में नेपियर रोड कॉलोनी पार्ट 2 में रहने वाली नसीम बानो को पद्मश्री से पुरस्कृत किया गया है. नसीम बानो चिकनकारी कारीगर है और बारीक हस्तकला और कढ़ाई में 45 वर्षों की विशेषज्ञता रखती है. उन्होंने 13 साल की उम्र से चिकनकारी के गुण को सीखना शुरू कर दिया था. आज इन्हीं जैसे कलाकारों के बदौलत लखनऊ की चिकनकारी न केवल प्रदेश में बल्कि देश दुनिया में प्रसिद्ध है.
अपने पिता से सीखी थी चिकनकारी की कला: नसीम बानो ने बताया कि उन्होंने बहुत छोटी उम्र से ही इस कला में दिलचस्पी पैदा हो गई थी. वह बचपन से ही अपने पिता को चिकनकारी करते देखते आ रही थी. उन्होंने बताया कि उनके पिता हसन मिर्जा ने अनोखी चिकनकारी विधा शुरू की थी, इस विधा के लिए उनको केंद्र सरकार ने साल 1969 में राष्ट्रीय पुरस्कार से समान्नित किया था. उन्होंने बताया कि इस कला में चिकन के कपड़े के ऊपर काम होता है नीचे की ओर कपड़े के टांके नहीं आते हैं.
5000 लड़कियों और महिलाओं को दी चिकनकारी की ट्रेनिंग: साल 1985 में तत्कालीन सीएम की ओर से राज्य पुरस्कार दिया गया था. इसके अलावा 1988 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने उनको उनके इस काम के लिए पुरस्कृत किया था. उन्होंने बताया कि इनकी इसी कला और हुनर को देखते हुए साल 2019 में उपराष्ट्रपति की ओर से शिल्पगुरु पुरस्कार दिया गया. नसीम बानो ने बताया कि अभी तक वो ग्रामीण क्षेत्र की लगभग 5000 बालिकाओं और महिलाओं को इस विधा का ट्रेनिंग दे चुकी हैं. अब भी बड़ी संख्या में लोगों को प्रशिक्षित कर रही हैं. उन्होंने बताया कि इसी कला के कम पर वह देश के विभिन्न शहरों से लेकर अमेरिका, जर्मनी, कनाडा, ओमान समेत नौ देशों में जा चुकी हैं.
SGPGI के निदेशक डॉ. आरके धीमान को मिला पद्मश्री: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित एसजीपीजीआई के निदेशक प्रोफेसर डॉ आरके धीमान का नाम भी पद्मश्री पाने वाले लोगों में शामिल है. प्रोफेसर आरके धीमान को यह सम्मान मेडिसिन के क्षेत्र में अहम योगदान के लिए दिया गया है. पीजीआई के प्रोफेसर आरके धीमान ने हेपेटाइटिस, विशेष कर हेपेटाइटिस सी के कंट्रोल के लिए विशेष काम किया है. उन्होंने हेपेटाइटिस को कंट्रोल करने के लिए अभियान भी चलाया है. इसके लिए पीजीआई अस्पताल में ही अलग से वार्ड बनाया. इतना ही नहीं प्रोफेसर आरके धीमान ने जब से एसजीपीजीआई की कमान 2020 में अपने हाथों में ली है. तब से पीजीआई में कई अहम कार्य हुए हैं. उन्ही में से एक प्रदेश का पहले एडवांस्ड पीडियाट्रिक सेंटर की स्थापना का अहम निर्णय भी है. इसकी मंजूरी उत्तर प्रदेश सरकार से मिल चुकी है.
लखनऊ में की डॉक्टरी की पढ़ाई: डॉ. धीमान ने साल 1993 में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर पीजीआई को ज्वाइन किया था. उनकी डाक्टर की पढ़ाई लिखाई यूपी से हुई है। साल 1983 में लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कालेज से एमबीबीएस और एमडी की डिग्री ली. उसके बाद साल 1991 में संजय गांधी पीजीआई से गेस्ट्रोएंट्रोलाजी में डीएम की डिग्री हासिल की.
हेपेटाइटिस सी नियंत्रण के लिए चलाया अभियान: हेपेटाइटिस सी को कंट्रोल करने और पूरे देश में इस गंभीर बीमारी के खिलाफ अभियान चलाने में डॉ. आरके धीमान को श्रेय जाता है. पंजाब में हेपेटाइटिस सी काफी तेजी से फैल रहा था. 18 जून साल 2016 को उन्होंने पंजाब सरकार के साथ मिलकर प्रदेश के सभी फिजीशियन को हेपेटाइटिस सी का इलाज करने के लिए ट्रेंड किया। इसमें 22 जिला अस्पताल और तीन मेडिकल कालेज को शामिल किया.
ट्रेनिंग का ही असर था कि पूरे पंजाब में तीन साल के दौरान 80 हजार से ज्यादा हेपेटाइटिस सी से पीड़ित मरीजों का इलाज किया गया. प्रोग्राम इतना हिट रहा कि इसकी डब्ल्यूएचओ ने भी खूब तारीफ की. उसके बाद 28 जुलाई 2018 को तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. जगत प्रकाश नड्डा ने नेशनल वायरल हेपेटाइटिस कंट्रोल प्रोग्राम पूरे देश के लिए लांच किया. इसकी गाइडलाइंस मुंबई में अमिताभ बच्चन ने लांच की, उस दौरान डॉ. धीमान भी मौजूद रहे.
अंगदान को प्रमोट करने में विशेष योगदान: डॉ. धीमान का अंगदान को प्रमोट करने में उनका अहम रोल रहा है. उनके प्रस्ताव को चंडीगढ़ प्रशासन ने मानते हुए ड्राइविंग लाइसेंस में आर्गन डोनेशन की शपथ लेने को अंकित कराया. उनके देखरेख में देश में पहली बार पीजीआई ने न्यू सुपर स्पेशिएल्टी कोर्स (डीएम) शुरू किया और लीवर ट्रांसप्लांटेशन प्रोग्राम को लांच किया. उन्हें कई नेशनल और इंटरनेशनल अवार्ड मिल चुके हैं. ट्रेनिंग का ही असर था कि पूरे पंजाब में तीन साल के दौरान 80 हजार से ज्यादा हेपेटाइटिस सी से पीड़ित मरीजों का इलाज किया गया. प्रोग्राम इतना हिट रहा कि इसकी डब्ल्यूएचओ ने भी खूब तारीफ की.
लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व एचओडी प्रोफेसर नवजीवन रस्तोगी को पद्मश्री: लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर नवजीवन रस्तोगी को भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया है. डॉक्टर नवजीवन रस्तोगी ने कहा कि यह उनके गुरु के मार्गदर्शन में जो ज्ञान उन्हें मिला है. यह उसी के प्रताप का परिणाम है. 21 फरवरी 1939 को लखनऊ में ही जन्मे है. प्रोफेसर रस्तोगी साल 2000 में लखनऊ विश्वविद्यालय से सेवानिवृत हुए थे. आज उनकी आयु 84 वर्ष की हो गई है. उन्होंने अभिनव गुप्त के कश्मीरी दर्शन और शैव दर्शन पर उनके कामों उन्हें प्रसिद्धि दिलाई है.
अभिनव गुप्त के विचार और कश्मीरी शैव दर्शन पर विशेष काम: प्रोफेसर नवजीवन रस्तोगी की ने बताया कि वह अपने गुरु कांतिलाल पांडे के सानिध्य में अभिनव गुप्त के कश्मीरी दर्शन और शैव दर्शन पर काम शुरू किया था. उन्हीं से प्रभावित होकर उन्होंने अभिनव गीत के विचारों और उनके सिद्धांतों पर आजीवन अध्ययन किया और जी दर्शन को अभिनव गुप्त ने विकसित किया उसे पूरी दुनिया के सामने रखा. उन्होंने बताया कि लखनऊ विश्वविद्यालय में अभिनव गुप्त इंस्टीट्यूट की स्थापना भी उन्हीं के द्वारा किया गया था जहां पर आज भी उनसे जुड़े चीजों पर पढ़ाई और रिसर्च होता है.
प्रोफेसर नवजीवन रस्तोगी के कई शोध प्रकाशित हुए: उन्होंने बताया कि अभिनव गुप्त के ऊपर उन्होंने कई शोध प्रकाशित किए हैं साथ ही उन पर किताब और जर्नल भी लिखे हैं. उनके इसी शोध ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचा है. उन्होंने बताया कि अभिनव गुप्ता ने अपने जीवन में अपने दर्शन अपनी सोच से जुड़ी सैकड़ो किताबें लिखी है जिनमें मालिनीविजयवार्तिक, परात्रिंशिका विवरण, तंत्रालोक, तंत्रसार, बोधपंचदशिका, परमाथर्सार आदि. वे एकमात्र ऐसे चिंतक हैं, जिन्होंने जिन्होंने वाक्य और रस, दोनों संकल्पनाओं के बारे में समान योग्यता के साथ प्रकाश डाला है. मैंने उन्हीं पर कई किताबें लिखी है, जिसमें अभिनव गुप्त का तंत्र लोक, कश्मीरी सेब दर्शन धार्मिक सिद्धांत और प्रतिनात्मक के रूप में प्रतिभीज्ञा की भूमिका प्रमुख है.
बनारस घराने के शास्त्रीय संगीत गायक पंडित सुरेंद्र मोहन मिश्र को पद्मश्री: 26 जनवरी के मौके पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा के साथ वाराणसी की झोली में एक बार फिर से संगीत के लिए पद्मश्री मिलने से संगीत घराने में खुशी का माहौल है. बनारस घराने के शास्त्रीय संगीत के गायक स्वर्गीय सुरेंद्र मोहन मिश्र को मरणोपरांत पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुना गया है. स्वर्गीय सुरेंद्र मोहन मिश्रा का निधन 19 नवंबर 2023 को हुआ था. पद्मश्री के लिए चुने जाने की घोषणा के बाद उनके परिवार में खुशी है और के लिए वह सरकार को धन्यवाद भी दे रहे हैं.
शास्त्रीय संगीत के सच्चे साधक: पं. सुरेंद्र मोहन मिश्र भारत के शास्त्रीय संगीत जगत की अनूठी विभूति थे. सही अर्थों में वह सच्चे साधक थे. संगीत की साधना ही उनके जीवन का मूल मंत्र था. वह जब गाते तो लगता कि रिकार्ड प्लेयर बज रहा है. यह बातें पद्मश्री डा. राजेश्वर आचार्य ने कहीं हैं. डॉ आचार्य ने पं.सुरेंद्र मोहन मिश्र के जीवन से जुड़ी कई बातें बताई. उन्होंने कहा कि पं. मिश्र नहीं चाहते थे कि लोग उनका गायन सुन कर उनकी वाहवाही करें. यहां तक कि अपने जीवन में उन्होंने कभी भी कोई सम्मान या पुरस्कार स्वीकार ही नहीं किया.
संगीत साधना को बनाया जीवन का मूल मंत्र: सार्वजनिक कार्यक्रमों में गायन बंद कर देने के पीछे यह एक बड़ा कार्यक्रम था. 35 साल के लंबे अंतराल के बाद सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्हें गायन करने के लिए मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें राजी किया था. हुआ यह कि काशी में एक बड़ा आयोजन होना था. काशी के सभी बड़े कलाकारों की इच्छा थी कि पं. सुरेंद्र मोहन मिश्र का गायन उसमें हो. पं. किशन महाराज से लगायत कई बड़े कलाकारों का आग्रह वह ठुकरा चुके थे. जब मुझे यह पता चला तो मैं गोरखपुर से बनारस आया. मैंने बिना उनसे कहा कि यदि आप गायन नहीं करेंगे, तो कल ही मैं यह घोषणा कर दूंगा कि अब से मैं भी गायन नहीं करूंगा.
एसी लगवाने से किया इनकार: तब जाकर वह गायन के लिए राजी हुए. एक बार उन्हें गर्मी से परेशान देख कर उनके एक शिष्य ने उनके घर एसी लगवाने का निश्चय किया. उसने भेलूपुर की एक दुकान से एसी भिजवा दिया. जब एसी लेकर बिजली मिस्त्री उनके घर पहुंचा तो उन्होंने एसी लगवाने से साफ मना कर दिया. बाद अपने शिष्य को फोन करके कहा कि सर्दी, गर्मी, बरसात के मौसमों में भी सुर की तलाश करता हूं. मुझे मौसमों के आनंद के साथ संगीत का लुत्फ लेने दो.
ये भी पढ़ें- ज्ञानवापी केस में बड़ा सवाल: क्या अयोध्या की तरह 355 साल पुराने इस विवाद का अब होगा अंत? जानें अब तक क्या कुछ हुआ