रांची: आपराधिक न्याय प्रणाली की दिशा में तीन नए आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) ने आज से क्रमश: भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPc) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम( Indian Evidence Act) की जगह ले ली है.
झारखंड में भी आज से ये तीनों नये प्रावधान लागू हो गए हैं. राज्य की चंपाई सोरेन की सरकार ने इन कानूनों के महत्वपूर्ण बातों की जानकारी आमजन तक पहुंचाने के लिए अपनी तरफ से कोशिशें भी की हैं. संवाद के अलग- अलग माध्यमों से तीनों नए कानून के प्रावधानों से जनता के साथ-साथ अधिवक्ताओं, पुलिसकर्मियों को जानकारी दी गयी है. बावजूद इसके हकीकत यह है कि अभी इन कानूनों की जानकारी होने में वक्त लगेगा.
'अधिवक्ताओं को अभी तक इसका फुल फॉर्म नहीं पता है'
अधिवक्ता अविनाश पांडेय कहते हैं कि आज से लागू तीनों नए आपराधिक कानूनों के प्रावधान में कई बेहतर बातों को शामिल किया गया है. पहले की आईपीसी में 511 सेक्शन की जगह नई भारतीय न्याय संहिता में 358 सेक्शन हैं. पुराने आईपीसी में बहुत सारे सेक्शन अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के अनुसार बनाए थे, क्योंकि तब हम गुलाम थे. उन प्रावधानों के अनुसार ही अभी तक देश की न्याय व्यवस्था चल रही थी, वह अब बदल गया है इसका फायदा मिलेगा.
अधिवक्ता अविनाश पांडेय कहते हैं कि नए कानूनों से अब इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों के रिकॉर्ड को भी साक्ष्य के रूप में सीधे मान्यता रहेगी. वहीं पुलिस को अब घर पर जाकर पूछताछ करने की बाध्यता होगी. जब्ती सूची की वीडियो रिकॉर्डिंग को मेंडेटरी करने से न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी.
अच्छाई के साथ-साथ कुछ परेशानियां भी हैं
वरिष्ठ अधिवक्ता अविनाश पांडे ने कहा कि एक ओर जहां तीन नए आपराधिक कानून में कई खूबियां हैं तो वहीं कई परेशानियां भी सामने हैं. उन्होंने कहा कि अभी तक अधिवक्ताओं को तीनों कानून से रूबरू कराने के लिए कोई प्रशिक्षण की व्यवस्था राज्य में नहीं की गई है. 90 फीसदी वकीलों को इसका फुल फॉर्म तक नहीं पता है.
उन्होंने कहा कि राज्य में न्यायालय से लेकर थाने तक में संसाधनों की कमी है. अनुसंधानकर्मी उतने सक्षम नहीं हैं कि वह इलेक्ट्रॉनिक साधनों का बखूबी इस्तेमाल कर सके. उन्होंने कहा कि पूरी तरह से इस कानून को जानने- समझने और उसके हिसाब से संसाधनों को तैयार करने में दो से तीन वर्ष का समय लगेगा, क्योंकि जिन्हें इन कानून के साथ जनता को न्याय दिलाना है उन्हें ही अभी इसकी पूरी जानकारी नहीं है.
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि आनेवाला समय अधिवक्ताओं और जनता दोनों के लिए कठिन है, क्योंकि किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा है. वहीं कई युवा अधिवक्ताओं ने तीन नए आपराधिक कानून के प्रावधानों को बेहतर बताया और इसकी जानकारी होने पर देश और राज्य में न्याय ज्यादा सुलभ होने की बात कही. वहीं कई अधिवक्ता इस सवाल का जवाब देने से बचते दिखे कि तीनों आपराधिक कानून का फुल फॉर्म क्या है.
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