इंफाल/चुराचांदपुर : एक साल होने को है जब मणिपुर में जातीय हिंसा फैली और राज्य एक तरह से दो समुदायों में बंट गया. समाज टूट गया. वह समाज जो पीढ़ियों से एक साथ रह रहा था. परिवार और पड़ोसी अलग हो गये. हजारों लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ गई. ठीक एक साल पहले की बात है.
3 मई, 2023 यह तारीख ना केवल मणिपुर बल्कि पुरे देश के लोगों की सामूहिक स्मृति पर अंकित हो गया. वह दिन था जब मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में आयोजित 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के कारण मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय झड़पें हुईं. और एक संघर्ष शुरू हो गया. संघर्ष, जिसने रोजमर्रा की जिंदगी को असंख्य तरीकों से प्रभावित किया है. इसमें 200 से अधिक लोगों की जान चली गई. हजारों लोग विस्थापित हो गए.
पूर्वोत्तर राज्य में तीन मुख्य जातीय समूह ऐतिहासिक रूप से राज्य के विभिन्न हिस्सों में एकत्रित हुए - घाटी में मेइतेई, दक्षिणी पहाड़ियों में कुकी और उत्तरी पहाड़ियों में नागा. हालांकि, समुदायों का शत्रुतापूर्ण अलगाव कभी नहीं हुआ है. लेकिन मई 2023 में स्थितियां पूरी तरह से बदल गईं. अब, मैतेई आबादी इंफाल घाटी में केंद्रित है और कुकी पहाड़ियों पर स्थानांतरित हो गए हैं. राज्य में हुए भीषण जातीय संघर्ष ने मैदानी और पहाड़ी जिलों को विभाजित कर दिया. अब राज्य के अंदर ही सीमायें बनी हुई हैं. कॉन्सर्टिना कॉइल्स, बख्तरबंद वाहन, सशस्त्र सुरक्षा कर्मी, सैंडबैग बंकर इसकी गवाही दे रहे हैं.
चौकियां, चाहे वह बिष्णुपुर और कुकी के प्रभुत्व वाले चुराचंदपुर के बीच की सीमा पर हों, या मेइतेई समुदाय की ओर से नियंत्रित इंफाल पश्चिम और कुकी क्षेत्र 'कांगपोकपी के बीच की सीमा पर हों, लगभग शत्रु देशों के बीच की सीमाओं के समान हैं. इस संघर्ष ने न केवल नागरिक समाज को बल्कि पुलिस कर्मियों और सरकारी अधिकारियों को भी अलग-थलग कर दिया है.
एक अधिकारी ने अपने कई सहयोगियों की बात दोहराते हुए कहा कि राज्य कम से कम दो दशक पीछे चला गया है. पुलिस कर्मी और मैतेई या कुकी समुदाय से संबंधित बल भी अपने संबंधित क्षेत्रों तक ही सीमित हैं और दूसरी तरफ नहीं जा सकते हैं. इन चौकियों पर निगरानी रखने के लिए केवल सेनाएं ही नहीं, बल्कि 'ग्रामीण स्वयंसेवकों' की एक टोली भी है, जिनमें से अधिकांश की उम्र 20 से 30 के बीच है. उनका दावा है कि उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए हथियार उठाए हैं कि उनके परिवार सुरक्षित रहें.
रात को पहरेदारी करने वाले एक गांव के स्वयंसेवक ने नाम न छापने की शर्त पर पीटीआई से कहा कि सेना और पुलिस बल है लेकिन हमें भरोसा नहीं है कि उनकी मौजूदगी पर्याप्त है. अगर यह पर्याप्त होती तो हम पहली बार में यह स्थिति नहीं देखते. हमें अपने प्रियजनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हथियार हाथ में लेने पड़े.
उसने कहा कि पिछले मई में मैंने अपनी स्नातक की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. फिर हथियार चलाने का बुनियादी प्रशिक्षण लिया. जब उससे उसके पास रखे बंदूक के बारे में पूछा गया तो उसने कहा कि यह एक लाइसेंसी हथियार है. हमने चुनाव से पहले इसे सरेंडर करने से इनकार कर दिया.
किसी भी समुदाय तक व्यक्ति दूसरे समुदाय के क्षेत्र में यात्रा नहीं कर सकता है. ना तो पहाड़ियों से कोई घाटी की ओर जा सकता है और ना ही घाटी से पहाड़ियों की ओर. सघन जांच के बाद ही गैर मैतेई और गैर कुकी लोगों को यात्रा करने की इजाजत मिलती है.
ऐसी हर जांच के लिए, बाहरी लोगों, अनिवार्य रूप से सरकारी अधिकारियों और प्रेस पत्रकारों को एक ऐसे सहयोगी पर निर्भर रहना पड़ता है जो या तो नागा या मुस्लिम हो. पीटीआई की खबर के मुताबिक, इस खबर को लिखने वाले रिपोर्टर ने चुराचांदपुर की यात्रा की. इस दौरान उसे चार चौकियों पर रोका गया. प्रत्येक पर, स्वयंसेवकों ने पूछा कि वह किससे मिलने जा रहा है. रिपोर्टर का पूरा विवरण आईडी की प्रति और स्थानीय पता सावधानीपूर्वक दर्ज किया गया. दोनों क्षेत्रों के बीच आवागमन करने वाले नागाओं और मुसलमानों को स्वयंसेवकों को दान के रूप में रुपये देना अनिवार्य है, चाहे राशि कुछ भी हो.
जारी तनाव का व्यापक असर हो रहा है. जिससे छोटे-बड़े सभी तरह के लोग प्रभावित हो रहे हैं. इंफाल में सुविधाएं पहुंच से बाहर होने के कारण, चुराचांदपुर से लोग कई कारणों से आइजोल की यात्रा कर रहे हैं. चुराचांदपुर से आइजोल लगभग 12 घंटे का सफर है. ज्यादातर यात्रायें आपात चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए की जा रही हैं. जिनका इलाज चुराचांदपुर जिला अस्पताल में नहीं हो सकता.
हवाई यात्रा की प्रक्रिया समान है क्योंकि इंफाल हवाईअड्डा कुकियों के लिए सीमा से बाहर है. चुराचांदपुर में राहत शिविरों के लिए किराने का सामान भी उसी मार्ग से चुराचांदपुर पहुंचाया जाता है.
मेइतेई मणिपुर की आबादी का लगभग 53 प्रतिशत हिस्सा हैं. उन्हें पहाड़ियों से विस्थापित होना पड़ा है. वे अब राहत शिविरों में रह रहे हैं, उनके अपने मुद्दे हैं. उनके घर अब नहीं रहे. चुराचांदपुर में परिवहन व्यवसाय चलाने वाले मैतेई सिम खांग ने कहा कि एक घर, एक आजीविका बनाने में दशकों लग जाते हैं. सब कुछ खत्म हो गया. हमें अपने पुराने पड़ोसियों, जो नागा हैं, से पता चला कि हमारा घर अब वहां नहीं है.
जबकि हिंसा प्रभावित राज्य में शस्त्रागारों से लूटे गए 4,200 से अधिक हथियारों का अभी भी पता नहीं चल पाया है. सीमांत क्षेत्रों में युवाओं को हथियारों के साथ देखना एक आम बात है. राज्य में दो लोकसभा सीटों के लिए दो चरणों - 19 और 26 अप्रैल - में मतदान हुआ.
आंतरिक मणिपुर से कांग्रेस उम्मीदवार और जेएनयू के प्रोफेसर बिमोल अकोइजाम ने मणिपुर में हिंसा की तुलना 'रवांडा जैसे जातीय संघर्ष' से करते हुए कहा कि सुरक्षा के नाम पर हिंसा प्रभावित मणिपुर में कुकी और मेइतेई को भौगोलिक रूप से अलग करना भारत के 'मूल विचार' के खिलाफ है. उन्होंने पीटीआई से बात करते हुए कहा कि जिस तरह की स्थिति हम देख रहे हैं, हमें विश्वास नहीं होता कि भारत जैसे स्थापित लोकतंत्र में ऐसा हो सकता है.
सीट से भाजपा उम्मीदवार और राज्य के कानून मंत्री बसंत कुमार सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी अलगाव का समर्थन नहीं करती है और 'संयुक्त मणिपुर' के लिए खड़ी है. कुकी-जो समुदाय की अलग प्रशासन की मांग के बारे में एक सवाल के जवाब में सिंह ने पीटीआई से कहा कि एक पार्टी और सरकार के रूप में हम एकजुट मणिपुर के लिए खड़े हैं, वहां किसी भी प्रकार का कोई अलगाववाद नहीं होना चाहिए. अधिकारियों के अनुसार, अशांति के बाद 50,000 से अधिक लोग अभी भी शिविरों में रह रहे हैं.