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'वन नेशन वन इलेक्शन' लागू करना कितना कठिन, किसे होगा फायदा, क्षेत्रीय दलों की क्या हैं चिंताएं, जानें - One Nation One Election

One Nation One Election Merits Demerits: केंद्रीय कैबिनेट ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. मोदी सरकार 2029 में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी कराने की तैयारी में है. हालांकि, कई विपक्षी दलों ने सरकार के इस कदम का विरोध किया है. राजनीतिक मामलों के जानकारों का भी मानना है कि 'एक राष्ट्र एक चुनाव' लागू करना काफी कठिन है. पढ़ें पूरी खबर.

One Nation One Election Merits Demerits
'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर समिति के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और अमित शाह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को रिपोर्ट सौंपते हुए. (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 18, 2024, 6:29 PM IST

हैदराबाद: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को 'वन नेशन वन इलेक्शन' प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. कैबिनेट की बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' पर कोविंद समिति की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार अपने मौजूदा कार्यकाल में ही 'वन नेशन वन इलेक्शन' नियम लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रही है. 2029 के आम चुनाव में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी कराए जा सकते हैं.

'वन नेशन वन इलेक्शन' प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी के बाद अब इसे संसद में पारित कराया जाएगा. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में इस संबंध में विधेयक ला सकती है. इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों से पास कराना होगा. इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बन जाएगा. 'वन नेशन वन इलेक्शन' के लागू होने के बाद भारत निर्वाचन आयोग इसके आधार पर पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया और तैयारी शुरू करेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद पहली बार 'एक राष्ट्र एक चुनाव' की बात कही थी. सरकार का कहना है कि पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने से सरकारी खजाने पर खर्च का बोझ कम होगा. पीएम मोदी ने 'एक राष्ट्र एक चुनाव' की वकालत करते हुए कहा था कि बार-बार चुनाव से देश के विकास में रुकावट आती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रसाय से एक बार फिर भारत 'एक राष्ट्र एक चुनाव' की दिशा में आगे बढ़ रहा है. जहां इसके कई फायदे गिनाए जा रहे हैं वहीं कई नकारात्मक पहलू भी हैं. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीच-बीच में राज्यों में विधानसभा चुनाव होने से केंद्र सरकार पर दबाव पड़ता था, लेकिन पांच साल में एक बार चुनाव होने से सरकारों की जवाबदेही कम हो जाएगी. जनता की राजनीतिक भागीदारी भी कम होगी, क्योंकि उसे सरकारें चुनने का पांच साल में सिर्फ एक बार मौका मिलेगा.

एक साथ चुनाव कराने का विचार नया नहीं...
ईटीवी भारत से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्रीनंद झा कहते हैं कि एक साथ चुनाव कराने का विचार नया नहीं है. देश के आजाद होने के बाद भी एक साथ चुनाव होते थे. लेकिन 1967 में कुछ विधानसभाओं के समयपूर्व भंग किए जाने से यह परंपरा टूट गई. वो कहते हैं कि चुनाव आयोग ने 1983 में इसका प्रस्ताव दिया था. बीच-बीच में भी इसकी चर्चा होती रही है. लेकिन मोदी सरकार में इस दिशा में प्रयास तेज किए गए और समिति बनाई गई.

'एक राष्ट्र एक चुनाव' के सकारात्मक पहलुओं पर बात करते हुए श्रीनंद झा कहते हैं कि एक बार चुनाव हो जाने से सरकारों को पांच साल तक सुशासन पर जोर देने का मौका मिलेगा, क्योंकि बार-बार चुनाव होने से सरकारें इलेक्शन मूड में रहती हैं और इस कारण सुशासन का मुद्दा पीछा छूट जाता है. उनका कहना है कि इससे चुनाव की लागत भी कम हो जाएगी. साथ ही वोटिंग पैटर्न में भी बदलाव देखने को मिलेंगे. इसके अलावा 'एक राष्ट्र एक चुनाव' होने से राजनीतिक भ्रष्टाचार भी कम होने की उम्मीद है.

'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर उच्च स्तरीय समिति के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को रिपोर्ट सौंपते हुए.
'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर उच्च स्तरीय समिति के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को रिपोर्ट सौंपते हुए. (ANI)

हालांकि, श्रीनंद झा का मानना है कि 'एक राष्ट्र एक चुनाव' लागू करना काफी कठिन है, क्योंकि इसके लिए कई विधानसभाओं को समय से पहले खत्म करना होगा, जबकि संविधान कहता है कि किसी भी चुनी हुई सरकार को पांच साल तक बने रहना चाहिए. उनका कहना है कि इससे संवैधानिक टकराव भी पैदा होंगे और राज्य सरकारें कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती हैं.

श्रीनंद झा कहते हैं कि 'एक राष्ट्र एक चुनाव' से देश के संघीय ढांचे को नुकसान पहुंच सकता है. देश में किसी एक पार्टी का डॉमिनेंस हो जाएगा. उन्होंने ओडिशा का उदाहरण दिया, जहां हाल ही में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव भी कराए गए और भाजपा ने लोकसभा के साथ विधानसभा में भी जीत दर्ज की. उन्होंने कहा कि अलग-अलग समय पर चुनाव न होने से सरकारों की जवाबदेही कम होगी और लोगों के राजनीतिक अधिकार भी कम हो जाएंगे. उनका कहना है कि सरकार के सामने इंफ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा के इंतजाम करने जैसी चुनौतियां भी हो सकती हैं.

मोदी की पूरी योजना क्षेत्रीय दलों को खत्म करना है....
'एक राष्ट्र एक चुनाव' पर प्रतिक्रिया देते हुए हैदराबाद के सांसद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि हमने विधि आयोग को लिखित जवाब में इसका विरोध किया था. मैं एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए गठित समिति के समक्ष भी गया था और इस एक राष्ट्र एक चुनाव का विरोध किया था. मुझे लगता है कि यह एक समस्या की तलाश में एक समाधान निकाला जा है. पीएम मोदी की पूरी योजना क्षेत्रीय दलों को खत्म करना और राष्ट्रीय दलों को अस्तित्व में रखना है.

ओवैसी ने कहा, भाजपा या मोदी सरकार अपनी सुविधा के हिसाब से काम नहीं कर सकती. संविधान संवैधानिक सिद्धांतों के आधार पर काम करेगा. भाजपा और आरएसएस की हमेशा से यही विचारधारा रही है - वे नहीं चाहते कि क्षेत्रीय दल अस्तित्व में रहें. हमने इसका विरोध किया है और हम ऐसा करना जारी रखेंगे.

संघीय ढांचे की आत्मा को कुचलने की कोशिश...
वहीं, मोदी कैबिनेट द्वारा 'एक राष्ट्र एक चुनाव' के प्रस्ताव को मंजूरी देने पर आरजेडी सांसद मनोज झा ने कहा कि उनकी पार्टी शुरू से ही यह कह रही है कि इस देश में पहले एक राष्ट्र एक चुनाव था, 1967 के बाद यह व्यवस्था टूट गई क्योंकि एक पार्टी का वर्चस्व खत्म हो गया और कई क्षेत्रीय दलों ने राज्यों में सरकार बनाई. उन्होंने सवाल किया कि अब अगर किसी राज्य में कार्यकाल पूरा होने से पहले सरकार गिरती है तो सरकार या चुनाव आयोग क्या करेंगे? क्या उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लाएंगे? क्या अगले चुनाव तक राज्यपाल के माध्यम से सरकार चलाएंगे?

उन्होंने कहा कि भाजपा और मोदी सरकार लोगों का ध्यान बुनियादी मुद्दों से भटकाने के लिए सजावटी चीजों में माहिर हैं. वे (भाजपा) संघीय ढांचे की आत्मा को कुचलने की कोशिश कर रहे हैं, वे खत्म हो जाएंगे लेकिन यह विविधता बनी रहेगी.

वन नेशन वन इलेक्शन समिति
केंद्र सरकार ने 2 सितंबर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में वन नेशन वन इलेक्शन का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए आठ सदस्यीय समिति बनाई थी. जिसमें पूर्व राष्ट्रपति कोविंद के साथ गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद, वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ कुभाष कश्यप और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल थे. समिति ने इसी साल 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 8,626 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी थी.

कोविंद समिति ने सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक करने का सुझाव दिया था. अगर 2029 तक 'एक राष्ट्र एक चुनाव' लागू होता है तो कई राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल समय से पहले खत्म करना पड़ेगा, जबकि कुछ राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है.

एक साथ चुनाव कराने की जरूरत क्यों

फिलहाल भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कार्यकाल पूरा होने के हिसाब से अलग-अलग समय पर कराए जाते हैं. 'एक राष्ट्र एक चुनाव' लागू होने से लोकसभा के साथ सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे. मतदाता एक ही दिन सांसद और विधायक दोनों को चुनने के लिए वोट करेंगे. इससे देश में पांच साल में सिर्फ बार चुनाव कराने की जरूरत पड़ेगा.

भारत की आजादी के बाद साल 1967 तक लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाते थे. 1968 और 1969 में कई राज्य विधानसभाएं कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग कर दी गई थीं और 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई थी. इसके बाद एक साथ चुनाव कराने की परंपरा टूट गई.

यह भी पढ़ें- 'वन नेशन वन इलेक्शन' को मंजूरी, मोदी कैबिनेट में पास हुआ प्रस्ताव

हैदराबाद: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को 'वन नेशन वन इलेक्शन' प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. कैबिनेट की बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' पर कोविंद समिति की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार अपने मौजूदा कार्यकाल में ही 'वन नेशन वन इलेक्शन' नियम लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रही है. 2029 के आम चुनाव में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी कराए जा सकते हैं.

'वन नेशन वन इलेक्शन' प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी के बाद अब इसे संसद में पारित कराया जाएगा. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में इस संबंध में विधेयक ला सकती है. इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों से पास कराना होगा. इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बन जाएगा. 'वन नेशन वन इलेक्शन' के लागू होने के बाद भारत निर्वाचन आयोग इसके आधार पर पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया और तैयारी शुरू करेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद पहली बार 'एक राष्ट्र एक चुनाव' की बात कही थी. सरकार का कहना है कि पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने से सरकारी खजाने पर खर्च का बोझ कम होगा. पीएम मोदी ने 'एक राष्ट्र एक चुनाव' की वकालत करते हुए कहा था कि बार-बार चुनाव से देश के विकास में रुकावट आती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रसाय से एक बार फिर भारत 'एक राष्ट्र एक चुनाव' की दिशा में आगे बढ़ रहा है. जहां इसके कई फायदे गिनाए जा रहे हैं वहीं कई नकारात्मक पहलू भी हैं. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीच-बीच में राज्यों में विधानसभा चुनाव होने से केंद्र सरकार पर दबाव पड़ता था, लेकिन पांच साल में एक बार चुनाव होने से सरकारों की जवाबदेही कम हो जाएगी. जनता की राजनीतिक भागीदारी भी कम होगी, क्योंकि उसे सरकारें चुनने का पांच साल में सिर्फ एक बार मौका मिलेगा.

एक साथ चुनाव कराने का विचार नया नहीं...
ईटीवी भारत से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्रीनंद झा कहते हैं कि एक साथ चुनाव कराने का विचार नया नहीं है. देश के आजाद होने के बाद भी एक साथ चुनाव होते थे. लेकिन 1967 में कुछ विधानसभाओं के समयपूर्व भंग किए जाने से यह परंपरा टूट गई. वो कहते हैं कि चुनाव आयोग ने 1983 में इसका प्रस्ताव दिया था. बीच-बीच में भी इसकी चर्चा होती रही है. लेकिन मोदी सरकार में इस दिशा में प्रयास तेज किए गए और समिति बनाई गई.

'एक राष्ट्र एक चुनाव' के सकारात्मक पहलुओं पर बात करते हुए श्रीनंद झा कहते हैं कि एक बार चुनाव हो जाने से सरकारों को पांच साल तक सुशासन पर जोर देने का मौका मिलेगा, क्योंकि बार-बार चुनाव होने से सरकारें इलेक्शन मूड में रहती हैं और इस कारण सुशासन का मुद्दा पीछा छूट जाता है. उनका कहना है कि इससे चुनाव की लागत भी कम हो जाएगी. साथ ही वोटिंग पैटर्न में भी बदलाव देखने को मिलेंगे. इसके अलावा 'एक राष्ट्र एक चुनाव' होने से राजनीतिक भ्रष्टाचार भी कम होने की उम्मीद है.

'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर उच्च स्तरीय समिति के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को रिपोर्ट सौंपते हुए.
'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर उच्च स्तरीय समिति के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को रिपोर्ट सौंपते हुए. (ANI)

हालांकि, श्रीनंद झा का मानना है कि 'एक राष्ट्र एक चुनाव' लागू करना काफी कठिन है, क्योंकि इसके लिए कई विधानसभाओं को समय से पहले खत्म करना होगा, जबकि संविधान कहता है कि किसी भी चुनी हुई सरकार को पांच साल तक बने रहना चाहिए. उनका कहना है कि इससे संवैधानिक टकराव भी पैदा होंगे और राज्य सरकारें कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती हैं.

श्रीनंद झा कहते हैं कि 'एक राष्ट्र एक चुनाव' से देश के संघीय ढांचे को नुकसान पहुंच सकता है. देश में किसी एक पार्टी का डॉमिनेंस हो जाएगा. उन्होंने ओडिशा का उदाहरण दिया, जहां हाल ही में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव भी कराए गए और भाजपा ने लोकसभा के साथ विधानसभा में भी जीत दर्ज की. उन्होंने कहा कि अलग-अलग समय पर चुनाव न होने से सरकारों की जवाबदेही कम होगी और लोगों के राजनीतिक अधिकार भी कम हो जाएंगे. उनका कहना है कि सरकार के सामने इंफ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा के इंतजाम करने जैसी चुनौतियां भी हो सकती हैं.

मोदी की पूरी योजना क्षेत्रीय दलों को खत्म करना है....
'एक राष्ट्र एक चुनाव' पर प्रतिक्रिया देते हुए हैदराबाद के सांसद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि हमने विधि आयोग को लिखित जवाब में इसका विरोध किया था. मैं एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए गठित समिति के समक्ष भी गया था और इस एक राष्ट्र एक चुनाव का विरोध किया था. मुझे लगता है कि यह एक समस्या की तलाश में एक समाधान निकाला जा है. पीएम मोदी की पूरी योजना क्षेत्रीय दलों को खत्म करना और राष्ट्रीय दलों को अस्तित्व में रखना है.

ओवैसी ने कहा, भाजपा या मोदी सरकार अपनी सुविधा के हिसाब से काम नहीं कर सकती. संविधान संवैधानिक सिद्धांतों के आधार पर काम करेगा. भाजपा और आरएसएस की हमेशा से यही विचारधारा रही है - वे नहीं चाहते कि क्षेत्रीय दल अस्तित्व में रहें. हमने इसका विरोध किया है और हम ऐसा करना जारी रखेंगे.

संघीय ढांचे की आत्मा को कुचलने की कोशिश...
वहीं, मोदी कैबिनेट द्वारा 'एक राष्ट्र एक चुनाव' के प्रस्ताव को मंजूरी देने पर आरजेडी सांसद मनोज झा ने कहा कि उनकी पार्टी शुरू से ही यह कह रही है कि इस देश में पहले एक राष्ट्र एक चुनाव था, 1967 के बाद यह व्यवस्था टूट गई क्योंकि एक पार्टी का वर्चस्व खत्म हो गया और कई क्षेत्रीय दलों ने राज्यों में सरकार बनाई. उन्होंने सवाल किया कि अब अगर किसी राज्य में कार्यकाल पूरा होने से पहले सरकार गिरती है तो सरकार या चुनाव आयोग क्या करेंगे? क्या उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लाएंगे? क्या अगले चुनाव तक राज्यपाल के माध्यम से सरकार चलाएंगे?

उन्होंने कहा कि भाजपा और मोदी सरकार लोगों का ध्यान बुनियादी मुद्दों से भटकाने के लिए सजावटी चीजों में माहिर हैं. वे (भाजपा) संघीय ढांचे की आत्मा को कुचलने की कोशिश कर रहे हैं, वे खत्म हो जाएंगे लेकिन यह विविधता बनी रहेगी.

वन नेशन वन इलेक्शन समिति
केंद्र सरकार ने 2 सितंबर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में वन नेशन वन इलेक्शन का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए आठ सदस्यीय समिति बनाई थी. जिसमें पूर्व राष्ट्रपति कोविंद के साथ गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद, वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ कुभाष कश्यप और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल थे. समिति ने इसी साल 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 8,626 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी थी.

कोविंद समिति ने सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक करने का सुझाव दिया था. अगर 2029 तक 'एक राष्ट्र एक चुनाव' लागू होता है तो कई राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल समय से पहले खत्म करना पड़ेगा, जबकि कुछ राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है.

एक साथ चुनाव कराने की जरूरत क्यों

फिलहाल भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कार्यकाल पूरा होने के हिसाब से अलग-अलग समय पर कराए जाते हैं. 'एक राष्ट्र एक चुनाव' लागू होने से लोकसभा के साथ सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे. मतदाता एक ही दिन सांसद और विधायक दोनों को चुनने के लिए वोट करेंगे. इससे देश में पांच साल में सिर्फ बार चुनाव कराने की जरूरत पड़ेगा.

भारत की आजादी के बाद साल 1967 तक लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाते थे. 1968 और 1969 में कई राज्य विधानसभाएं कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग कर दी गई थीं और 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई थी. इसके बाद एक साथ चुनाव कराने की परंपरा टूट गई.

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