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शौर्य दिवस पर राज्यपाल, सीएम धामी ने कारगिल शहीदों को दी श्रद्धांजलि, शहीदों के परिवारों को मिलेगी 50 लाख की अनुदान राशि - Kargil Vijay Diwas

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jul 26, 2024, 2:43 PM IST

Updated : Jul 26, 2024, 7:16 PM IST

Rs 50 lakh to the families of the martyrs आज कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ पर देश भर में शौर्य दिवस आयोजित किए गए हैं. उत्तराखंड में जगह-जगह शौर्य दिवस मनाए गए हैं. राजधानी देहरादून में आयोजित शौर्य दिवस में सीएम धामी ने अनेक घोषणाएं की. सीएम धामी ने कहा कि कारगिल विजय जैसी विजय अन्य कहीं नहीं देखी गई.

KARGIL VIJAY DIWAS
शौर्य दिवस पर कार्यक्रम (Photo- ETV Bharat)
शहीदों के परिवारों को मिलेगी 50 लाख की अनुदान राशि (ETV Bharat)

देहरादून: शौर्य दिवस के अवसर पर देशभर में शहीदों की याद में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. इसी क्रम देहरादून स्थित गांधी पार्क के शहीद स्मारक में शहीदों को श्रद्धांजलि और वीरांगनाओ के सम्मान समारोह का आयोजन किया गया. आयोजित कार्यक्रम में सीएम धामी ने कारगिल युद्ध के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए उनकी वीरांगनाओं का सम्मानित किया. देहरादून कैंटोनमेंट बोर्ड के तहत आने वाले चीड़बाग शौर्य स्थल स्थल पर उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट गुरमीत सिंह के अलावा उत्तराखंड सब एरिया द्वारा आयोजित एक भव्य पुष्पांजलि समारोह में शहीद सैनिकों को पुष्पांजलि अर्पित की गई.

कारगिल विजय दिवस पर कार्यक्रम: कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. इस कार्यक्रम के दौरान सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी समेत कारगिल की जंग लड़ चुके तमाम जवान भी शामिल हुए. कारगिल युद्ध में देश के 527 जवानों के अपनी शहादत दी थी. साथ ही 1363 जवान घायल हो गए थे. साल 1999 में 5 मई को पाकिस्तान की सेना ने भारतीय सेना के 5 जवानों को शहीद कर दिया था. जिसके बाद 10 मई 1999 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन कारगिल विजय की शुरुआत की थी. भारत और पाकिस्तान के बीच करीब दो महीने कारगिल युद्ध चला था. 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध पर पूर्ण विराम लग गया था. जिसके चलते भारतीय सेना की वीरता और बलिदान के लिए हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.

उत्तराखंड के 75 जवान कारगिल में शहीद हुए थे: साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 जवान शहीद हुए थे. शहीद होने वाले जवानों में देहरादून जिले के 14, टिहरी गढ़वाल जिले के 11, पौड़ी जिले के 13, चमोली जिले के 7, नैनीताल जिले के 5, पिथौरागढ़ जिले के 4, अल्मोड़ा जिले के 3, बागेश्वर जिले के 3, रुद्रप्रयाग जिले के 3, ऊधमसिंह नगर जिले के 2 और उत्तरकाशी जिला का 1 जवान शहीद हुा था. उत्तराखंड के 2 जवानों को महावीर चक्र, 9 जवानों को वीर चक्र, 15 जवानों को सेना मेडल और 11 जवानों को मेंशन इन डिस्पैच से सम्मानित किया गया था.

सीएम धामी ने कारगिल विजय को अद्वितीय बताया: शौर्य दिवस कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि 18 से 20 हजार फीट की ऊंचाई पर भारतीय सेना ने अपने पराक्रम से दुश्मनों को भगा दिया था. विश्व के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ. कारगिल की चोटियों पर हमारे सैनिकों में अपने खून से जो वीर गाथा लिखी थी, उन शौर्य गाथाओं से आज देश के युवा प्रेरित हो रहे हैं. भारतीय सेना का हर पांचवां सैनिक उत्तराखंड से है. किसी भी युद्ध के दौरान, अपनी शहादत देने में उत्तराखंड के सैनिक सबसे आगे रहे हैं. सभी भक्तियों में देशभक्ति सर्वश्रेष्ठ है.

सेना अब गोली का जवाब गोले से देती है: सीएम धामी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सैनिकों के लिए पिछले 10 सालों में कई बड़े काम किए गए हैं. आज सेना गोली का जवाब गोलों से देती है. यही नहीं, पहले गोली का जवाब देने के लिए परमिशन लेने में काफी समय बीत जाता था. वर्तमान समय में गोली का जवाब देने के लिए किसी से अनुमति नहीं लेनी पड़ती है. देश के सैनिकों का बलिदान व्यर्थ न जाए, इसके लिए जरूरी है कि देश में विकास की गंगा बहाई जाए. साथ ही आने वाली पीढ़ी को वीर सैनिकों की गाथा पढ़नी होगी. सीएम ने कहा कि आज का दिन वीर जवानों की शहादत से हमें प्रेरणा देता है.

कार्यक्रम के दौरान सीएम ने की घोषणाएं:

  • उत्तराखंड के शहीद सैनिकों के परिजनों को मिलने वाली अनुदान राशि को 10 लाख से बढ़कर किया गया 50 लाख रुपए किया गया
  • शहीद प्रमाण पत्र प्राप्त होने के बाद अगले दो सालों के भीतर नौकरी के लिए आवेदन करने का प्रावधान था. इस समय सीमा को बढ़ाकर 5 साल किया गया
  • प्रदेश में शहीदों के आश्रितों को नौकरी देने की व्यवस्था है. इसके तहत जिलाधिकारी कार्यालय में समूह ग और घ के स्वीकृत पदों में रिक्त पद होने पर ही नौकरी दी जाती थी. अब संबंधित जिलों के अन्य विभागों में भी कनिष्ठ सहायक और समूह 'घ' के पद खाली होने पर नियुक्ति दी जाएगी
  • सैनिक कल्याण विभाग में काम कर रहे संविदा कर्मचारियों को उपनल कर्मचारियों की तरह ही अवकाश दिया जाएगा

कारगिल शहीदों के परिजनों को है गर्व: कारगिल युद्ध को 25 साल हो चुके हैं. आज भी युद्ध में शहीद हुए जवानों के परिजनों के दिल और दिमाग में अपनों के जाने का गम जरूर है, लेकिन फक्र भी है देश की रक्षा के लिए उनके अपनों ने अपनी शहादत दी है. गंगा देवी, पत्नी कारगिल शहीद हीरा सिंह बताती हैं कि उनका बेटा भी सेना में है और जम्मू कश्मीर तैनात है. डर लगता है कि बच्चे वहां हैं लेकिन फिर भी हमें गर्व है कि देश के लिए वह काम कर रहा है. मेरे पति भी 1999 में कारगिल वॉर में शहीद हुए थे. हमें गर्व महसूस होता है कि जब लोग हमें बुलाते हैं और अच्छा लगता है.

पिता कारगिल में शहीद हुए, बेटा भी फौज में भर्ती: धीरेंद्र सिंह, सैनिक और कारगिल शहीद हीरा सिंह के पुत्र कहते हैं कि उन्हें गर्व महसूस होता है कि 1999 के युद्ध में पिताजी शहीद हुए. वो भले ही छोटे थे लेकिन उन्होंने फिर भी सेना में जाने का फैसला लिया. वो कहते हैं कि पिताजी को देखते हुए उन्होंने अपनी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए देश सेवा को चुना और फौज में भर्ती हुए.

कारगिल के वीर ने याद किया युद्ध का मंजर: साल 1999 में कारगिल युद्ध लड़ने वाले कमल सिंह रौथान आज भी कारगिल युद्ध के उस मंजर को याद करते हुए जोश से भर जाते हैं. कारगिल युद्ध में दुश्मन से लोहा लेने वाले पूर्व सैनिक कमल सिंह रौथान बताते हैं कि कारगिल की लड़ाई को सोच कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. क्योंकि यह लड़ाई हमने एक सीमित जगह में लड़ाई लड़ी थी. कारगिल में ठंड थी और चढ़ाई थी. लेकिन जोश इतना था कि हमने उसे चढ़ाई को चढ़ा और जंग जीती. पाकिस्तान का इतना नुकसान हुआ कि मजबूरन पाकिस्तान को पीछे हटना पड़ा.
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देहरादून: शौर्य दिवस के अवसर पर देशभर में शहीदों की याद में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. इसी क्रम देहरादून स्थित गांधी पार्क के शहीद स्मारक में शहीदों को श्रद्धांजलि और वीरांगनाओ के सम्मान समारोह का आयोजन किया गया. आयोजित कार्यक्रम में सीएम धामी ने कारगिल युद्ध के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए उनकी वीरांगनाओं का सम्मानित किया. देहरादून कैंटोनमेंट बोर्ड के तहत आने वाले चीड़बाग शौर्य स्थल स्थल पर उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट गुरमीत सिंह के अलावा उत्तराखंड सब एरिया द्वारा आयोजित एक भव्य पुष्पांजलि समारोह में शहीद सैनिकों को पुष्पांजलि अर्पित की गई.

कारगिल विजय दिवस पर कार्यक्रम: कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. इस कार्यक्रम के दौरान सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी समेत कारगिल की जंग लड़ चुके तमाम जवान भी शामिल हुए. कारगिल युद्ध में देश के 527 जवानों के अपनी शहादत दी थी. साथ ही 1363 जवान घायल हो गए थे. साल 1999 में 5 मई को पाकिस्तान की सेना ने भारतीय सेना के 5 जवानों को शहीद कर दिया था. जिसके बाद 10 मई 1999 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन कारगिल विजय की शुरुआत की थी. भारत और पाकिस्तान के बीच करीब दो महीने कारगिल युद्ध चला था. 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध पर पूर्ण विराम लग गया था. जिसके चलते भारतीय सेना की वीरता और बलिदान के लिए हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.

उत्तराखंड के 75 जवान कारगिल में शहीद हुए थे: साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 जवान शहीद हुए थे. शहीद होने वाले जवानों में देहरादून जिले के 14, टिहरी गढ़वाल जिले के 11, पौड़ी जिले के 13, चमोली जिले के 7, नैनीताल जिले के 5, पिथौरागढ़ जिले के 4, अल्मोड़ा जिले के 3, बागेश्वर जिले के 3, रुद्रप्रयाग जिले के 3, ऊधमसिंह नगर जिले के 2 और उत्तरकाशी जिला का 1 जवान शहीद हुा था. उत्तराखंड के 2 जवानों को महावीर चक्र, 9 जवानों को वीर चक्र, 15 जवानों को सेना मेडल और 11 जवानों को मेंशन इन डिस्पैच से सम्मानित किया गया था.

सीएम धामी ने कारगिल विजय को अद्वितीय बताया: शौर्य दिवस कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि 18 से 20 हजार फीट की ऊंचाई पर भारतीय सेना ने अपने पराक्रम से दुश्मनों को भगा दिया था. विश्व के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ. कारगिल की चोटियों पर हमारे सैनिकों में अपने खून से जो वीर गाथा लिखी थी, उन शौर्य गाथाओं से आज देश के युवा प्रेरित हो रहे हैं. भारतीय सेना का हर पांचवां सैनिक उत्तराखंड से है. किसी भी युद्ध के दौरान, अपनी शहादत देने में उत्तराखंड के सैनिक सबसे आगे रहे हैं. सभी भक्तियों में देशभक्ति सर्वश्रेष्ठ है.

सेना अब गोली का जवाब गोले से देती है: सीएम धामी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सैनिकों के लिए पिछले 10 सालों में कई बड़े काम किए गए हैं. आज सेना गोली का जवाब गोलों से देती है. यही नहीं, पहले गोली का जवाब देने के लिए परमिशन लेने में काफी समय बीत जाता था. वर्तमान समय में गोली का जवाब देने के लिए किसी से अनुमति नहीं लेनी पड़ती है. देश के सैनिकों का बलिदान व्यर्थ न जाए, इसके लिए जरूरी है कि देश में विकास की गंगा बहाई जाए. साथ ही आने वाली पीढ़ी को वीर सैनिकों की गाथा पढ़नी होगी. सीएम ने कहा कि आज का दिन वीर जवानों की शहादत से हमें प्रेरणा देता है.

कार्यक्रम के दौरान सीएम ने की घोषणाएं:

  • उत्तराखंड के शहीद सैनिकों के परिजनों को मिलने वाली अनुदान राशि को 10 लाख से बढ़कर किया गया 50 लाख रुपए किया गया
  • शहीद प्रमाण पत्र प्राप्त होने के बाद अगले दो सालों के भीतर नौकरी के लिए आवेदन करने का प्रावधान था. इस समय सीमा को बढ़ाकर 5 साल किया गया
  • प्रदेश में शहीदों के आश्रितों को नौकरी देने की व्यवस्था है. इसके तहत जिलाधिकारी कार्यालय में समूह ग और घ के स्वीकृत पदों में रिक्त पद होने पर ही नौकरी दी जाती थी. अब संबंधित जिलों के अन्य विभागों में भी कनिष्ठ सहायक और समूह 'घ' के पद खाली होने पर नियुक्ति दी जाएगी
  • सैनिक कल्याण विभाग में काम कर रहे संविदा कर्मचारियों को उपनल कर्मचारियों की तरह ही अवकाश दिया जाएगा

कारगिल शहीदों के परिजनों को है गर्व: कारगिल युद्ध को 25 साल हो चुके हैं. आज भी युद्ध में शहीद हुए जवानों के परिजनों के दिल और दिमाग में अपनों के जाने का गम जरूर है, लेकिन फक्र भी है देश की रक्षा के लिए उनके अपनों ने अपनी शहादत दी है. गंगा देवी, पत्नी कारगिल शहीद हीरा सिंह बताती हैं कि उनका बेटा भी सेना में है और जम्मू कश्मीर तैनात है. डर लगता है कि बच्चे वहां हैं लेकिन फिर भी हमें गर्व है कि देश के लिए वह काम कर रहा है. मेरे पति भी 1999 में कारगिल वॉर में शहीद हुए थे. हमें गर्व महसूस होता है कि जब लोग हमें बुलाते हैं और अच्छा लगता है.

पिता कारगिल में शहीद हुए, बेटा भी फौज में भर्ती: धीरेंद्र सिंह, सैनिक और कारगिल शहीद हीरा सिंह के पुत्र कहते हैं कि उन्हें गर्व महसूस होता है कि 1999 के युद्ध में पिताजी शहीद हुए. वो भले ही छोटे थे लेकिन उन्होंने फिर भी सेना में जाने का फैसला लिया. वो कहते हैं कि पिताजी को देखते हुए उन्होंने अपनी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए देश सेवा को चुना और फौज में भर्ती हुए.

कारगिल के वीर ने याद किया युद्ध का मंजर: साल 1999 में कारगिल युद्ध लड़ने वाले कमल सिंह रौथान आज भी कारगिल युद्ध के उस मंजर को याद करते हुए जोश से भर जाते हैं. कारगिल युद्ध में दुश्मन से लोहा लेने वाले पूर्व सैनिक कमल सिंह रौथान बताते हैं कि कारगिल की लड़ाई को सोच कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. क्योंकि यह लड़ाई हमने एक सीमित जगह में लड़ाई लड़ी थी. कारगिल में ठंड थी और चढ़ाई थी. लेकिन जोश इतना था कि हमने उसे चढ़ाई को चढ़ा और जंग जीती. पाकिस्तान का इतना नुकसान हुआ कि मजबूरन पाकिस्तान को पीछे हटना पड़ा.
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Last Updated : Jul 26, 2024, 7:16 PM IST
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