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एनआईएच रुड़की के वैज्ञानिकों ने तैयार किया खास ईश्वर एप, देशभर के सभी जल स्रोतों का बताएगा हाल

अब एप के जरिए जल स्रोतों का हाल जान सकेंगे. इसके लिए राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की (NIH) के वैज्ञानिकों ने खास एप बनाया है.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 3 hours ago

Updated : 2 hours ago

NIH ISHVAR APP
एप से जल स्रोतों का हाल (फोटो- ETV Bharat)

रुड़की: हरिद्वार के रुड़की में स्थित एनआईएच यानी राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने ईश्वर नाम का एक एप तैयार किया है. इस एप के जरिए देशभर के सभी जल स्रोतों का हाल जान सकेंगे. साथ जल स्रोतों का आंकड़ा भी मिल पाएगा.

एनआईएच ईश्वर एप है खास: दरअसल, प्राकृतिक जल स्रोतों के सूखने और पानी कम होने की समस्याएं लगातार सामने आ रही है, लेकिन इन स्रोतों को लेकर कोई भी आंकड़ा फिलहाल केंद्र सरकार के पास नहीं है. इसी समस्या को लेकर एप 'NIH ISHVAR' का आविष्कार किया गया है. इस एप में जल स्रोतों का पूरा हाल दर्ज हो सकेगा.

ईश्वर एप की खासियतें (वीडियो- ETV Bharat)

वहीं, भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी) रुड़की के इस एप को मंजूरी भी दे दी है. पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इस एप की मदद से चार राज्यों का जल स्रोतों का सर्वे शुरू किया जा रहा है. जिनमें उत्तराखंड समेत ओडिसा, मेघालय और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं.

एनआईएच रुड़की के सेल फॉर स्प्रिंग के वैज्ञानिक डॉ. सोबन सिंह रावत ने बताया कि देश में पहली बार जल स्रोतों के सर्वे को लेकर कोई काम हुआ है. पायलट प्रोजेक्ट के रूप में एप की मदद से उत्तराखंड समेत ओडिशा, मेघालय और हिमाचल प्रदेश के चार राज्यों में स्रोतों का सर्वे शुरू किया जा रहा है. उन्होंने बताया पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले ज्यादातर लोग पेयजल के लिए जल स्रोत यानी स्प्रिंग पर ही निर्भर हैं.

NIH ISHVAR APP
ईश्वर एप (फोटो- ETV Bharat)

डॉ. सोबन सिंह रावत की मानें तो क्लाइमेट चेंज से स्रोतों के सूखने या फिर पानी कम होने की बात लगातार सामने आ रही है. वहीं, सरकार के पास स्रोतों को लेकर कोई सटीक जानकारी नहीं है. यही कारण है कि स्रोतों के उपचार और उनके रिचार्ज को लेकर कोई प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो पाया है, उन्हें पूरा विश्वास है कि इस ईश्वर एप की मदद से स्रोतों का सर्वे किया जा सकेगा.

स्रोत की होती है जियो टैगिंग: वैज्ञानिक सोबन रावत ने बताया कि इसमें करीब 22 सूचनाएं फोटो समेत अपलोड करनी हैं. एप एक के बाद एक सूचना मांगता जाएगा और सभी सूचनाएं दर्ज करने के बाद स्रोत की जियो टैगिंग की जाएगी. जिसके बाद इसकी मदद से सभी स्रोतों की मॉनिटरिंग आसानी से हो सकेगी. वहीं, ऐसे में अगर कोई जल स्रोत सूखता है या पानी घटता है या फिर कुछ समस्या आती है तो उसकी जानकारी आसानी से मिल जाएगी.

NIH ISHVAR APP
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की के वैज्ञानिक (फोटो- ETV Bharat)

कहीं भी बैठकर देख सकते हैं स्प्रिंग का हाल: उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के नैनीताल से इसकी शुरुआत की जा रही है. जम्मू में तवी नदी के क्षेत्र में एप से सर्वे किया गया है. यहां पर 469 स्रोत की पूरी जानकारी ईश्वर एप पर डाली गई है. हिमाचल प्रदेश के चंबा में 981 जल स्रोतों का सर्वे कर उनकी जानकारी एप पर अपलोड की जा चुकी है. जिसके बाद इन स्प्रिंग यानी जल स्रोत का हाल एक क्लिक पर ही कहीं भी बैठकर देखा जा सकता है.

स्प्रिंग में पानी की कमी से लोग छोड़ रहे पहाड़: डॉ. सोबन सिंह रावत ने बताया कि देशभर के स्प्रिंग या स्रोत एप पर होंगे. इससे पर्वतीय क्षेत्रों का पलायन भी रोक लग सकेगी. उन्होंने बताया कि इस एप को तैयार करने में एक साल से ज्यादा का समय लगा है. उन्होंने बताया कि पहाड़ से लगातार हो रहे पलायन का एक वजह स्प्रिंग में पानी की कमी भी हो सकता है.

National Institute of Hydrology Roorkee
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की (फोटो- ETV Bharat)

उनका कहना है कि जब कोई पलायन करता है तो खेत नहीं हो पाती है. जिससे प्राचीन समय के पुराने खेत बंजर हो जाते हैं. बंजर होने की वजह से मिट्टी कॉम्पैक्ट हो जाती है. पहले हर साल खेत की जुताई की जाती थी, जिससे खेत की सांद्रता बनी रहती थी, लेकिन अब खेती न होने से उसके वॉइड्स खत्म हो रहे हैं. जिसके कारण पानी अंदर नहीं जा पाता है. इसी कारण खेत बंजर हो रहे हैं.

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रुड़की: हरिद्वार के रुड़की में स्थित एनआईएच यानी राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने ईश्वर नाम का एक एप तैयार किया है. इस एप के जरिए देशभर के सभी जल स्रोतों का हाल जान सकेंगे. साथ जल स्रोतों का आंकड़ा भी मिल पाएगा.

एनआईएच ईश्वर एप है खास: दरअसल, प्राकृतिक जल स्रोतों के सूखने और पानी कम होने की समस्याएं लगातार सामने आ रही है, लेकिन इन स्रोतों को लेकर कोई भी आंकड़ा फिलहाल केंद्र सरकार के पास नहीं है. इसी समस्या को लेकर एप 'NIH ISHVAR' का आविष्कार किया गया है. इस एप में जल स्रोतों का पूरा हाल दर्ज हो सकेगा.

ईश्वर एप की खासियतें (वीडियो- ETV Bharat)

वहीं, भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी) रुड़की के इस एप को मंजूरी भी दे दी है. पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इस एप की मदद से चार राज्यों का जल स्रोतों का सर्वे शुरू किया जा रहा है. जिनमें उत्तराखंड समेत ओडिसा, मेघालय और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं.

एनआईएच रुड़की के सेल फॉर स्प्रिंग के वैज्ञानिक डॉ. सोबन सिंह रावत ने बताया कि देश में पहली बार जल स्रोतों के सर्वे को लेकर कोई काम हुआ है. पायलट प्रोजेक्ट के रूप में एप की मदद से उत्तराखंड समेत ओडिशा, मेघालय और हिमाचल प्रदेश के चार राज्यों में स्रोतों का सर्वे शुरू किया जा रहा है. उन्होंने बताया पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले ज्यादातर लोग पेयजल के लिए जल स्रोत यानी स्प्रिंग पर ही निर्भर हैं.

NIH ISHVAR APP
ईश्वर एप (फोटो- ETV Bharat)

डॉ. सोबन सिंह रावत की मानें तो क्लाइमेट चेंज से स्रोतों के सूखने या फिर पानी कम होने की बात लगातार सामने आ रही है. वहीं, सरकार के पास स्रोतों को लेकर कोई सटीक जानकारी नहीं है. यही कारण है कि स्रोतों के उपचार और उनके रिचार्ज को लेकर कोई प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो पाया है, उन्हें पूरा विश्वास है कि इस ईश्वर एप की मदद से स्रोतों का सर्वे किया जा सकेगा.

स्रोत की होती है जियो टैगिंग: वैज्ञानिक सोबन रावत ने बताया कि इसमें करीब 22 सूचनाएं फोटो समेत अपलोड करनी हैं. एप एक के बाद एक सूचना मांगता जाएगा और सभी सूचनाएं दर्ज करने के बाद स्रोत की जियो टैगिंग की जाएगी. जिसके बाद इसकी मदद से सभी स्रोतों की मॉनिटरिंग आसानी से हो सकेगी. वहीं, ऐसे में अगर कोई जल स्रोत सूखता है या पानी घटता है या फिर कुछ समस्या आती है तो उसकी जानकारी आसानी से मिल जाएगी.

NIH ISHVAR APP
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की के वैज्ञानिक (फोटो- ETV Bharat)

कहीं भी बैठकर देख सकते हैं स्प्रिंग का हाल: उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के नैनीताल से इसकी शुरुआत की जा रही है. जम्मू में तवी नदी के क्षेत्र में एप से सर्वे किया गया है. यहां पर 469 स्रोत की पूरी जानकारी ईश्वर एप पर डाली गई है. हिमाचल प्रदेश के चंबा में 981 जल स्रोतों का सर्वे कर उनकी जानकारी एप पर अपलोड की जा चुकी है. जिसके बाद इन स्प्रिंग यानी जल स्रोत का हाल एक क्लिक पर ही कहीं भी बैठकर देखा जा सकता है.

स्प्रिंग में पानी की कमी से लोग छोड़ रहे पहाड़: डॉ. सोबन सिंह रावत ने बताया कि देशभर के स्प्रिंग या स्रोत एप पर होंगे. इससे पर्वतीय क्षेत्रों का पलायन भी रोक लग सकेगी. उन्होंने बताया कि इस एप को तैयार करने में एक साल से ज्यादा का समय लगा है. उन्होंने बताया कि पहाड़ से लगातार हो रहे पलायन का एक वजह स्प्रिंग में पानी की कमी भी हो सकता है.

National Institute of Hydrology Roorkee
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की (फोटो- ETV Bharat)

उनका कहना है कि जब कोई पलायन करता है तो खेत नहीं हो पाती है. जिससे प्राचीन समय के पुराने खेत बंजर हो जाते हैं. बंजर होने की वजह से मिट्टी कॉम्पैक्ट हो जाती है. पहले हर साल खेत की जुताई की जाती थी, जिससे खेत की सांद्रता बनी रहती थी, लेकिन अब खेती न होने से उसके वॉइड्स खत्म हो रहे हैं. जिसके कारण पानी अंदर नहीं जा पाता है. इसी कारण खेत बंजर हो रहे हैं.

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