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नीट यूजी परिणाम : सैनिक के बेटे ने इस हालत में भी की मेहनत, लेकर आया 720 में से 720 अंक - NEET UG 2024 Perfect Score

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jun 4, 2024, 10:50 PM IST

NEET UG 2024, मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट यूजी का परिणाम मंगलवार को जारी हो गया. इस परीक्षा में कोटा से कोचिंग कर रहे दिव्यांश सांगवान भी परफेक्ट स्कोरर बने हैं. उनके पिता सेना में हैं और बॉर्डर पर तैनात हैं. दिव्यांश फेफड़ों की बीमारी न्यूमोथौरेक्स से जूझ रहे हैं. बावजूद इसके, उनके जज्बे में कोई कमी नहीं रही और नीट यूजी में उन्होंने टॉप किया.

NEET UG 2024
NEET UG में दिव्यांश सांगवान बने परफेक्ट स्कोरर (ETV Bharat GFX Team)

दिव्यांश सांगवान भी परफेक्ट स्कोरर बने, सुनिए क्या कहा... (ETV Bharat Kota)

कोटा. मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट यूजी का परिणाम मंगलवार को जारी हो गया. देश की कठिन परीक्षाओं में से एक मानी जाने वाली इस परीक्षा में बीते 2 सालों से कोटा से कोचिंग कर रहे दिव्यांश सांगवान भी परफेक्ट स्कोरर बने हैं. उनके पिता जितेंद्र सेना में नायब सूबेदार हैं. दिव्यांश अपनी मां मुकेश सांगवान के साथ ही बीते 2 सालों से कोटा मे रहकर तैयारी कर रहे थे, लेकिन अचानक दिव्यांश को फेफड़ों की बीमारी न्यूमोथौरेक्स हो गई. इस बीमारी में लंग्स फट जाते हैं. इसके चलते ढाई महीने तक अस्पताल के चक्कर काटते रहे.

इस दौरान दिव्यांश का कोटा, चंडीगढ़ और दिल्ली में उपचार चला. उसके दो ऑपरेशन भी हुए. इसी दौरान वो डेंगू से भी पीड़ित हो गए. इसके बावजूद दिव्यांश ने हिम्मत नहीं हारी और पढ़ाई के बैकलॉग को पूरा करते हुए पूरी मेहनत और लगन से ये मुकाम हासिल किया. दिव्यांश नीट यूजी में टॉपर बने हैं. उन्होंने परफेक्ट स्कोर बनाकर एक रिकॉर्ड भी दर्ज कराया है.

पहले एनडीए में जाना चाहता था : दिव्यांश ने बताया कि "उनका परिवार हरियाणा के चरखी दादरी से है. उनके पिता सेना में हैं, इसलिए पिता को देखकर मैं भी सेना में जाना चाहता था और एनडीए का एग्जाम देने का मन भी बना लिया था. मैंने पापा को मन की बात बताई, तो उन्होनें कहा कि परिवार के लोग देश की सेवा में लगे हैं, लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम डॉक्टर बनकर समाज की सेवा करो. इसके बाद 10वीं में 90 से ज्यादा परसेंटेज अंक आने पर एमबीबीएस करने का तय किया. इसके लिए ही 11वीं में कोटा आकर तैयारी करने लग गया."

इसे भी पढ़ें-NEET UG 2024: अब तक 67 कैंडिडेट के आए 720 में से 720 अंक, पहली बार बना बड़ा रिकॉर्ड - NEET UG 2024 Perfect Score

दिव्यांश की मां मुकेश का कहना है कि दसवीं के बाद 12वीं में भी अच्छे अंक दिव्यांश के आए. हमने दसवीं में ही तय कर लिया था कि एमबीबीएस में एडमिशन अच्छी रैंक के जरिए दिलवाना है. उन्होंने बताया कि दिव्यांश के पिता भी बार-बार यही कहते थे कि उसे अच्छा ध्यान देकर मेहनत करवानी है, ताकि वह डॉक्टर बनकर समाज की सेवा कर सके.

नहीं किया स्मार्टफोन का उपयोग : दिव्यांश की मां मुकेश का कहना है कि वह लगातार उसकी हर जरूरत को पूरा करती थी. समय से उसे उठाना और खाना देने की जिम्मेदारी भी उनके ऊपर ही थी. यहां तक कि उसका टाइम टेबल पूरी तरह से सेट किया हुआ था. 6 घंटे कोचिंग में पढ़ने के बाद में 6 घंटे ही सेल्फ स्टडी घर पर करता था. बीमारी के समय में भी उसका काफी ध्यान रखना पड़ा था. बैकलॉग को पूरा करने में मैंने भी काफी मदद उसकी की. दिव्यांश का कहना है कि उसके पास स्मार्टफोन की जगह कीपैड वाला फोन था, क्योंकि मोबाइल से मन भटक सकता था.

तनाव पालने की जगह कंसिस्टेंसी से करें पढ़ाई : दिव्यांश का कहना है कि उन्होंने कोटा में 2 साल काफी मेहनत की है. टीचर्स ने जो पढ़ाया, जो डेली होमवर्क मुझे मिल रहा था, वह भी पूरी तरह से कर रहा था. ढाई महीने के बैकलॉग को मुझे कोटा की टीचर्स ने काफी मेहनत करके पूरा करवाया. इसके अलावा धीरे-धीरे कवर करता रहा. वेकेशन मिलने पर छूटे हुए सिलेबस को पूरा करने बैठ जाता था. दिव्यांश ने तनाव में जाने वाले बच्चों के लिए कहा है कि शुरुआत में हमें लगता है कि यह सिलेबस या सब्जेक्ट हम नहीं कर पाएंगे, लेकिन धीरे-धीरे जब हम कंसिस्टेंसी से पढ़ाई करते हैं, तो फाइनली सब पटरी पर आ जाता है. रिवीजन के लिए भी हमें काफी समय मिलता है और हमें कॉन्फिडेंस आ जाता है.

दिव्यांश सांगवान भी परफेक्ट स्कोरर बने, सुनिए क्या कहा... (ETV Bharat Kota)

कोटा. मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट यूजी का परिणाम मंगलवार को जारी हो गया. देश की कठिन परीक्षाओं में से एक मानी जाने वाली इस परीक्षा में बीते 2 सालों से कोटा से कोचिंग कर रहे दिव्यांश सांगवान भी परफेक्ट स्कोरर बने हैं. उनके पिता जितेंद्र सेना में नायब सूबेदार हैं. दिव्यांश अपनी मां मुकेश सांगवान के साथ ही बीते 2 सालों से कोटा मे रहकर तैयारी कर रहे थे, लेकिन अचानक दिव्यांश को फेफड़ों की बीमारी न्यूमोथौरेक्स हो गई. इस बीमारी में लंग्स फट जाते हैं. इसके चलते ढाई महीने तक अस्पताल के चक्कर काटते रहे.

इस दौरान दिव्यांश का कोटा, चंडीगढ़ और दिल्ली में उपचार चला. उसके दो ऑपरेशन भी हुए. इसी दौरान वो डेंगू से भी पीड़ित हो गए. इसके बावजूद दिव्यांश ने हिम्मत नहीं हारी और पढ़ाई के बैकलॉग को पूरा करते हुए पूरी मेहनत और लगन से ये मुकाम हासिल किया. दिव्यांश नीट यूजी में टॉपर बने हैं. उन्होंने परफेक्ट स्कोर बनाकर एक रिकॉर्ड भी दर्ज कराया है.

पहले एनडीए में जाना चाहता था : दिव्यांश ने बताया कि "उनका परिवार हरियाणा के चरखी दादरी से है. उनके पिता सेना में हैं, इसलिए पिता को देखकर मैं भी सेना में जाना चाहता था और एनडीए का एग्जाम देने का मन भी बना लिया था. मैंने पापा को मन की बात बताई, तो उन्होनें कहा कि परिवार के लोग देश की सेवा में लगे हैं, लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम डॉक्टर बनकर समाज की सेवा करो. इसके बाद 10वीं में 90 से ज्यादा परसेंटेज अंक आने पर एमबीबीएस करने का तय किया. इसके लिए ही 11वीं में कोटा आकर तैयारी करने लग गया."

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दिव्यांश की मां मुकेश का कहना है कि दसवीं के बाद 12वीं में भी अच्छे अंक दिव्यांश के आए. हमने दसवीं में ही तय कर लिया था कि एमबीबीएस में एडमिशन अच्छी रैंक के जरिए दिलवाना है. उन्होंने बताया कि दिव्यांश के पिता भी बार-बार यही कहते थे कि उसे अच्छा ध्यान देकर मेहनत करवानी है, ताकि वह डॉक्टर बनकर समाज की सेवा कर सके.

नहीं किया स्मार्टफोन का उपयोग : दिव्यांश की मां मुकेश का कहना है कि वह लगातार उसकी हर जरूरत को पूरा करती थी. समय से उसे उठाना और खाना देने की जिम्मेदारी भी उनके ऊपर ही थी. यहां तक कि उसका टाइम टेबल पूरी तरह से सेट किया हुआ था. 6 घंटे कोचिंग में पढ़ने के बाद में 6 घंटे ही सेल्फ स्टडी घर पर करता था. बीमारी के समय में भी उसका काफी ध्यान रखना पड़ा था. बैकलॉग को पूरा करने में मैंने भी काफी मदद उसकी की. दिव्यांश का कहना है कि उसके पास स्मार्टफोन की जगह कीपैड वाला फोन था, क्योंकि मोबाइल से मन भटक सकता था.

तनाव पालने की जगह कंसिस्टेंसी से करें पढ़ाई : दिव्यांश का कहना है कि उन्होंने कोटा में 2 साल काफी मेहनत की है. टीचर्स ने जो पढ़ाया, जो डेली होमवर्क मुझे मिल रहा था, वह भी पूरी तरह से कर रहा था. ढाई महीने के बैकलॉग को मुझे कोटा की टीचर्स ने काफी मेहनत करके पूरा करवाया. इसके अलावा धीरे-धीरे कवर करता रहा. वेकेशन मिलने पर छूटे हुए सिलेबस को पूरा करने बैठ जाता था. दिव्यांश ने तनाव में जाने वाले बच्चों के लिए कहा है कि शुरुआत में हमें लगता है कि यह सिलेबस या सब्जेक्ट हम नहीं कर पाएंगे, लेकिन धीरे-धीरे जब हम कंसिस्टेंसी से पढ़ाई करते हैं, तो फाइनली सब पटरी पर आ जाता है. रिवीजन के लिए भी हमें काफी समय मिलता है और हमें कॉन्फिडेंस आ जाता है.

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