नई दिल्ली : लोकसभा ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर में स्थानीय निकायों (पंचायतों और नगर पालिकाओं) में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण प्रदान करने के लिए एक विधेयक पारित किया, जिसमें दावा किया गया कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से केंद्र शासित प्रदेश में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं.
ईटीवी भारत से बात करते हुए पूर्व मंत्री और जेके अपनी पार्टी के प्रमुख अल्ताफ बुखारी ने कहा कि 'हम इस कदम का खुले दिल से स्वागत करते हैं लेकिन एक बात जो अभी भी अनुत्तरित है वह यह है कि जम्मू कश्मीर में चुनाव कब होंगे. दुर्भाग्य से भारत सरकार जम्मू कश्मीर में जब भी चुनाव की बात आती है, चाहे वह विधानसभा हो, पंचायती हो या स्थानीय निकाय हो, तो वे क्यों डर जाती है, यह तो गॉड ही जानें.'
उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि 'वे नहीं चाहते कि यहां लोकतांत्रिक संस्थाएं पनपें. सभी पिछड़े समुदायों को आरक्षण देना एक स्वागत योग्य कदम है लेकिन चुनाव कराना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.'
इसी तरह नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रवक्ता इमरान नबी डार ने कहा कि 'हमने हमेशा इन सभी चीजों का स्वागत किया है, जहां जो समुदाय पिछड़ रहे हैं उन्हें आरक्षण मिलना चाहिए और एनसी ने हमेशा ऐसे कदमों का समर्थन किया है और हम हमेशा सबसे आगे रहे हैं. लेकिन साथ ही ये निर्णय निर्वाचित विधायिकाओं द्वारा लिए जाने चाहिए थे जो नहीं हो रहा है. तो, यह एक विडंबना है कि ये निर्णय वे लोग ले रहे हैं जिन्हें जम्मू कश्मीर की जमीनी हकीकत की कोई समझ नहीं है. मैदान में कोई चुनी हुई सरकार नहीं है, पंचाट का कार्यकाल भी समाप्त हो गया है, शहरी स्थानीय निकायों का कार्यकाल भी समाप्त हो गया है और उस पर कोई बात नहीं हो रही है.'
यह पूछे जाने पर कि क्या यह एक राजनीतिक कदम है, उन्होंने जवाब दिया कि 'जाहिर तौर पर यह लोगों को ऐसी चीजों पर वोट देने के स्पष्ट इरादे से किया गया एक राजनीतिक कदम है.' गौरतलब है कि विधेयक जम्मू और कश्मीर पंचायती राज अधिनियम, 1989, जम्मू और कश्मीर नगरपालिका अधिनियम, 2000 और जम्मू और कश्मीर नगर निगम अधिनियम, 2000 के प्रावधानों में संशोधन करना चाहता है.
देश के अन्य राज्यों की तरह अब तक जम्मू-कश्मीर में पंचायतों और नगर पालिकाओं में ओबीसी के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है. अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से यूटी में अभी तक विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं.
जम्मू-कश्मीर में 2018 से बिना निर्वाचित सरकार के शासन किया जा रहा है, जब भाजपा ने महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के साथ गठबंधन सरकार से हाथ खींच लिया था.
जम्मू-कश्मीर में पिछला विधानसभा चुनाव 2014 में हुआ था जब पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और पार्टी और लोगों की नाराजगी के बावजूद उसने बीजेपी का साथ दिया था. 9 जनवरी 2024 को, लगभग 28,000 स्थानीय प्रतिनिधियों का कार्यकाल जिला विकास परिषदों के साथ समाप्त हो गया, जो वर्तमान में केंद्र शासित प्रदेश में निर्वाचित शासन का एकमात्र स्तर है.