नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने गुरुवार को एक वकील से पूछा कि वह कितने न्यायाधीशों के बच्चों के नाम बता सकते हैं, जिनके बच्चों को वरिष्ठ अधिवक्ता बनाया गया है. साथ ही, उन्होंने यह आरोप लगाने के लिए उनकी आलोचना की कि अदालतें न्यायाधीशों के रिश्तेदारों को वरिष्ठ अधिवक्ता बना रही हैं.
यह मामला न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ के समक्ष आया. पीठ ने वकीलों को वरिष्ठ पद दिए जाने के खिलाफ याचिका में लगाए गए आरोपों पर असंतोष व्यक्त किया और इसे 'अपमानजनक और निराधार' बताया.
पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्परा से पूछा, 'आप कितने न्यायाधीशों के बच्चे हैं, जिनके बच्चों को वरिष्ठ अधिवक्ता बनाया गया है?' पीठ ने याचिका में लगाए गए आरोपों का हवाला देते हुए कहा कि इसमें न्यायाधीशों के खिलाफ आरोप लगाए गए हैं.
पीठ ने कहा, 'हमें लगता है कि संस्था के खिलाफ कई तरह के अपशब्द और निराधार आरोप लगाए गए हैं.' नेदुम्परा और वकीलों सहित अन्य लोगों द्वारा दायर याचिका में वकीलों को दिए जाने वाले वरिष्ठ पदनामों के खिलाफ शिकायत की गई है.
याचिका में दावा किया गया है कि हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश को ढूंढना मुश्किल है, असंभव नहीं है, तो ऐसा कोई न्यायाधीश जिसका बच्चा, भाई, बहन या भतीजा 40 वर्ष की आयु पार कर चुका हो और वह साधारण वकील हो. सुनवाई के दौरान नेदुम्परा ने जोरदार तरीके से तर्क दिया कि वह कुछ डेटा रिकॉर्ड पर ला सकते हैं और कहा कि बार न्यायाधीशों से डरता है. इस मोड़ पर, पीठ, जो जाहिर तौर पर नाराज थी, ने कहा, "नेदुम्परा, यह कानून की अदालत है. भाषण देने के लिए बॉम्बे (मुंबई) में कोई बोट क्लब या आजाद मैदान नहीं है".
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, "जब आप कानून की अदालत को संबोधित करते हैं, तो कानूनी तर्क देते हैं...", और वकील से कहा कि अदालत उन्हें याचिका में संशोधन करने की स्वतंत्रता देने को तैयार है. पीठ ने वकील से पूछा, "क्या आप इन कथनों को हटाने जा रहे हैं या नहीं?" इसमें आगे कहा गया, "इस बात को स्पष्ट करें कि आप इन अपमानजनक कथनों को जारी रखेंगे या नहीं."
नेदुम्परा ने कहा कि वह याचिका के कथनों पर विचार करना चाहते हैं और भविष्य की कार्रवाई के बारे में अन्य याचिकाकर्ताओं से परामर्श करना चाहते हैं. सुनवाई का समापन करते हुए पीठ ने टिप्पणी की, "यहां तक कि एक वकील जो इस तरह की याचिका पर हस्ताक्षर करता है, वह भी अवमानना का समान रूप से दोषी है". नेदुम्परा ने कहा, "अवमानना अंधकार युग की बात है..."
दलीलें सुनने के बाद पीठ ने याचिकाकर्ताओं को चार सप्ताह का समय दिया. याचिका में आरोप लगाया गया कि वकीलों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत करना और अल्पसंख्यक को "पक्ष और विशेषाधिकार" प्रदान करना समानता की अवधारणा और संविधान के लोकाचार के खिलाफ है.
याचिका में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा हाल ही में करीब 70 वकीलों को वरिष्ठ पदनाम दिए जाने को रद्द करने की मांग की गई है.
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