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यूसीसी 'लिव-इन रिलेशनशिप' प्रावधान मामले पर हाईकोर्ट में सुनवाई, सरकार को 6 हफ्ते में देना होगा जवाब - UCC LIVE IN RELATIONSHIP

उत्तराखंड में लागू यूसीसी का मामला पहुंचा हाईकोर्ट,मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने राज्य सरकार से मांगा जवाब,लिव-इन रिलेशनशिप के प्रावधानों को दी गई है चुनौती

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समान नागरिक संहिता (फोटो- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 12, 2025, 3:43 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का मामला नैनीताल हाईकोर्ट की टेबल पर पहुंच गया है. जिसमें खासकर 'लिव-इन रिलेशनशिप' के प्रावधान को चुनौती दी गई है. आज मामले पर मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने राज्य सरकार से याचिकाओं में लगाए गए आरोपों पर 6 हफ्ते के भीतर जवाब पेश करने को कहा है. अब पूरे मामले की सुनवाई 6 हफ्ते के बाद होगी.

'लिव-इन रिलेशनशिप' के प्रावधानों को चुनौती: दरअसल, भीमताल निवासी सुरेश सिंह नेगी ने नैनीताल हाईकोर्ट में समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) के विभिन्न प्रावधानों को जनहित याचिका के रूप में चुनौती दी है. जिसमें खासकर 'लिव-इन रिलेशनशिप' के प्रावधानों को चुनौती दी गई है. इसके अलावा मुस्लिम, पारसी आदि की वैवाहिक पद्धति की यूसीसी में अनदेखी किए जाने समेत कुछ अन्य प्रावधानों को भी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.

इसके अलावा देहरादून निवासी एलमसुद्दीन सिद्दीकी ने भी हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता के कई प्रावधानों को चुनौती दी है. जिसमें उन्होंने अल्पसंख्यकों के रीति-रिवाजों की अनदेखी करने का उल्लेख किया है. जबकि, याचिकाकर्ता सुरेश सिंह नेगी ने लिव-इन रिलेशनशिप को असंवैधानिक ठहराया है.

याचिका में कहा गया कि जहां साधारण शादी के लिए लड़के की उम्र 21 वर्ष और लड़की की 18 वर्ष होनी आवश्यक है. वहीं, लिव-इन रिलेशनशिप में दोनों की उम्र 18 वर्ष निर्धारित की गई है. साथ ही उनसे होने वाले बच्चे भी कानूनी बच्चे कहे जाएंगे या वैध माने जाएंगे.

इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति लिव-इन रिलेशनशिप से छुटकारा पाना चाहता है तो वो एक साधारण से प्रार्थना पत्र रजिस्ट्रार को देकर करीब 15 दिन के भीतर अपने पार्टनर को छोड़ सकता है. जबकि, साधारण विवाह में तलाक लेने के लिए पूरी न्यायिक प्रक्रिया अपनानी पड़ती है.

याचिकाकर्ता का आरोप है कि दशकों के बाद तलाक होता है, वो भी पूरा भरण पोषण देकर होता है. कुल मिलाकर देखा जाए तो राज्य के नागरिकों को जो अधिकार संविधान से प्राप्त हैं, उसमें राज्य सरकार ने हस्तक्षेप कर उनका हनन करने का काम किया है. यूसीसी में राज्य के नागरिकों को जो अधिकार संविधान की ओर से दिए गए हैं, उनको भी अनदेखा किया गया है.

ये खबरें भी पढ़ें- उत्तराखंड में यूसीसी को लेकर बड़ी खबर, 'लिव-इन रिलेशनशिप' के प्रावधान को हाईकोर्ट में चुनौती

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याचिकाकर्ता ने लिव-इन रिलेशनशिप के परिणाम को लेकर दलील: याचिकाकर्ता का ये भी कहना है कि भविष्य में इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं. सभी लोग शादी न करके लिव-इन रिलेशनशिप में ही रहना पसंद करेंगे. क्योंकि, जब तक पार्टनर के साथ संबंध अच्छे हों, तब तक साथ रहेंगे. जब संबंध ठीक न हो तो उसे छोड़ देंगे या फिर दूसरे के साथ चले जाएंगे.

साल 2010 के बाद इसका रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है. रजिस्ट्रेशन न कराने पर 3 माह की सजा या 10 हजार रुपए का जुर्माना देना होगा. कुल मिलाकर देखा जाए तो लिव-इन रिलेशनशिप एक तरह की वैध शादी ही है. कानूनी प्रक्रिया अपनाने में अंतर है. वहीं, मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 6 हफ्ते के भीतर सरकार से जवाब मांगा है.

मुस्लिम, पारसी आदि की वैवाहिक पद्धति में अनदेखी का आरोप: वहीं, दूसरी याचिका में आरोप लगाते हुए कहा गया कि राज्य सरकार ने यूसीसी बिल पास करते समय इस्लामिक रीति रिवाजों, कुरान और उसके अन्य प्रावधानों की अनदेखी की गई है. जैसे कि कुरान और उसके आयतों के अनुसार पति की मौत के बाद पत्नी उसकी आत्मा की शांति के लिए 40 दिन तक प्रार्थना करती है, यूसीसी उसको प्रतिबंधित करता है.

दूसरा शरीयत के अनुसार सगे संबंधियों को छोड़कर इस्लाम में अन्य से निकाह करने का प्रावधान है. यूसीसी में उसकी अनुमति नहीं है. तीसरा शरीयत के अनुसार, संपत्ति के मामले में पिता अपनी संपत्ति को सभी बेटों को बांटकर उसका एक हिस्सा अपने पास रखकर जब चाहे दान दे सकता है, यूसीसी उसकी भी अनुमति नहीं देता. लिहाजा, इसमें भी संशोधन किया जाए.

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यूसीसी के लिव-इन रिलेशनशिप में क्या है प्रावधान: बता दें कि बीती 27 जनवरी 2025 से उत्तराखंड में यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता प्रभावी हो चुका है. यूसीसी लागू होने के बाद लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है. यदि कोई कपल बिना रजिस्ट्रेशन के लिव-इन रिलेशनशिप में रहता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी. जिसके तहत 6 महीने की जेल या फिर 25 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया जा सकता है. इसके अलावा जेल या जुर्माना दोनों का प्रावधान भी है.

यूसीसी नियमावली में प्रावधान किया गया है कि अगर कोई पहले से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा है तो उसे यूसीसी लागू होने की तिथि से अगले एक महीने के भीतर रजिस्ट्रेशन करवाना होगा. यूसीसी लागू होने के बाद अगर कोई कपल लिव-इन रिलेशनशिप में आता है तो उन्हें लिव इन में आने की तिथि से 1 महीने के भीतर रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य होगा.

लिव-इन रिलेशनशिप के लिए रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन या ऑफलाइन दोनों ही तरीके से करा सकते हैं. वहीं, लिव-इन रजिस्ट्रेशन में जनजातीय कपल को छूट दी गई है. जिसके तहत दोनों में से एक जनजातीय समुदाय से आता हो तो उसको इसके दायरे से बाहर रखा गया है.

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'लिव-इन रिलेशनशिप' के प्रावधानों को चुनौती: दरअसल, भीमताल निवासी सुरेश सिंह नेगी ने नैनीताल हाईकोर्ट में समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) के विभिन्न प्रावधानों को जनहित याचिका के रूप में चुनौती दी है. जिसमें खासकर 'लिव-इन रिलेशनशिप' के प्रावधानों को चुनौती दी गई है. इसके अलावा मुस्लिम, पारसी आदि की वैवाहिक पद्धति की यूसीसी में अनदेखी किए जाने समेत कुछ अन्य प्रावधानों को भी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.

इसके अलावा देहरादून निवासी एलमसुद्दीन सिद्दीकी ने भी हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता के कई प्रावधानों को चुनौती दी है. जिसमें उन्होंने अल्पसंख्यकों के रीति-रिवाजों की अनदेखी करने का उल्लेख किया है. जबकि, याचिकाकर्ता सुरेश सिंह नेगी ने लिव-इन रिलेशनशिप को असंवैधानिक ठहराया है.

याचिका में कहा गया कि जहां साधारण शादी के लिए लड़के की उम्र 21 वर्ष और लड़की की 18 वर्ष होनी आवश्यक है. वहीं, लिव-इन रिलेशनशिप में दोनों की उम्र 18 वर्ष निर्धारित की गई है. साथ ही उनसे होने वाले बच्चे भी कानूनी बच्चे कहे जाएंगे या वैध माने जाएंगे.

इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति लिव-इन रिलेशनशिप से छुटकारा पाना चाहता है तो वो एक साधारण से प्रार्थना पत्र रजिस्ट्रार को देकर करीब 15 दिन के भीतर अपने पार्टनर को छोड़ सकता है. जबकि, साधारण विवाह में तलाक लेने के लिए पूरी न्यायिक प्रक्रिया अपनानी पड़ती है.

याचिकाकर्ता का आरोप है कि दशकों के बाद तलाक होता है, वो भी पूरा भरण पोषण देकर होता है. कुल मिलाकर देखा जाए तो राज्य के नागरिकों को जो अधिकार संविधान से प्राप्त हैं, उसमें राज्य सरकार ने हस्तक्षेप कर उनका हनन करने का काम किया है. यूसीसी में राज्य के नागरिकों को जो अधिकार संविधान की ओर से दिए गए हैं, उनको भी अनदेखा किया गया है.

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याचिकाकर्ता ने लिव-इन रिलेशनशिप के परिणाम को लेकर दलील: याचिकाकर्ता का ये भी कहना है कि भविष्य में इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं. सभी लोग शादी न करके लिव-इन रिलेशनशिप में ही रहना पसंद करेंगे. क्योंकि, जब तक पार्टनर के साथ संबंध अच्छे हों, तब तक साथ रहेंगे. जब संबंध ठीक न हो तो उसे छोड़ देंगे या फिर दूसरे के साथ चले जाएंगे.

साल 2010 के बाद इसका रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है. रजिस्ट्रेशन न कराने पर 3 माह की सजा या 10 हजार रुपए का जुर्माना देना होगा. कुल मिलाकर देखा जाए तो लिव-इन रिलेशनशिप एक तरह की वैध शादी ही है. कानूनी प्रक्रिया अपनाने में अंतर है. वहीं, मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 6 हफ्ते के भीतर सरकार से जवाब मांगा है.

मुस्लिम, पारसी आदि की वैवाहिक पद्धति में अनदेखी का आरोप: वहीं, दूसरी याचिका में आरोप लगाते हुए कहा गया कि राज्य सरकार ने यूसीसी बिल पास करते समय इस्लामिक रीति रिवाजों, कुरान और उसके अन्य प्रावधानों की अनदेखी की गई है. जैसे कि कुरान और उसके आयतों के अनुसार पति की मौत के बाद पत्नी उसकी आत्मा की शांति के लिए 40 दिन तक प्रार्थना करती है, यूसीसी उसको प्रतिबंधित करता है.

दूसरा शरीयत के अनुसार सगे संबंधियों को छोड़कर इस्लाम में अन्य से निकाह करने का प्रावधान है. यूसीसी में उसकी अनुमति नहीं है. तीसरा शरीयत के अनुसार, संपत्ति के मामले में पिता अपनी संपत्ति को सभी बेटों को बांटकर उसका एक हिस्सा अपने पास रखकर जब चाहे दान दे सकता है, यूसीसी उसकी भी अनुमति नहीं देता. लिहाजा, इसमें भी संशोधन किया जाए.

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यूसीसी के लिव-इन रिलेशनशिप में क्या है प्रावधान: बता दें कि बीती 27 जनवरी 2025 से उत्तराखंड में यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता प्रभावी हो चुका है. यूसीसी लागू होने के बाद लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है. यदि कोई कपल बिना रजिस्ट्रेशन के लिव-इन रिलेशनशिप में रहता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी. जिसके तहत 6 महीने की जेल या फिर 25 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया जा सकता है. इसके अलावा जेल या जुर्माना दोनों का प्रावधान भी है.

यूसीसी नियमावली में प्रावधान किया गया है कि अगर कोई पहले से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा है तो उसे यूसीसी लागू होने की तिथि से अगले एक महीने के भीतर रजिस्ट्रेशन करवाना होगा. यूसीसी लागू होने के बाद अगर कोई कपल लिव-इन रिलेशनशिप में आता है तो उन्हें लिव इन में आने की तिथि से 1 महीने के भीतर रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य होगा.

लिव-इन रिलेशनशिप के लिए रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन या ऑफलाइन दोनों ही तरीके से करा सकते हैं. वहीं, लिव-इन रजिस्ट्रेशन में जनजातीय कपल को छूट दी गई है. जिसके तहत दोनों में से एक जनजातीय समुदाय से आता हो तो उसको इसके दायरे से बाहर रखा गया है.

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