जांजगीर चांपा: आज टाइटैनिक जहाज हादसे की बरसी है. 14 और 15 अप्रैल की दरम्यिानी रात को यह जहाज अटलांटिक महासागर में एक बड़े बर्फ के टुकड़े से टकरा गया. करीब डेढ़ हजार यात्रियों की इस दुखद हादसे में मौत हो गई. सागर में दफन होने वालों में मिस एनी क्लेमर फंक भी शामिल हैं. यह जांजगीर से लौटते वक्त टाइटैनिक जहाज में हादसे का शिकार हो गई. मिस एनी क्लेमर फंक 1907 में छत्तीसगढ़ के जांजगीर में शिक्षा की अलख जलाने आई थी. उन्होंने एक स्कूल की स्थापना भी की थी. जिसमें उस वक्त 17 लड़कियां पढ़ती थी. महिला शिक्षा को लेकर उनका योगदान छत्तीसगढ़ की शिक्षा जगत में याद किया जाता है.
टाइटैनिक का काल मिस फंक को खींचकर ले गया: 6 अप्रैल 1912 को मिस एनी क्लेमर को फोन आया कि उनकी मां बीमारी की वजह से बेहद गंभीर है. उसके बाद उन्होंने पेनिसिलवेनिया अमेरिका जाने की ठानी. वह पहले जांजगीर से मुंबई गईं और वहां से इंग्लैंड रवाना हुईं. ब्रिटेन से उन्हें अमेरिका जाने के लिए एसएस हेवाफोडज नाम का जहाज पकड़ना था लेकिन उन दिनों कोल लेबर की हड़ताल की वजह से इस जहाज के संचालन को रद्द कर दिया गया. उसके बाद उन्होंने टाइटैनिक जहाज में 13 पौंड की राशि अधिक देकर टिकट बुक कराया. जहाज 10 अप्रैल 1912 को रवाना हुआ उसके बाद उन्होंने 12 अप्रैल को जहाज मे अपना जन्मदिन मनाया. जिस समय जहाज डूब रहा था उस समय भी मैडम फंक ने अपनी मानवता और दया का परिचय दिया और अपनी लाइफ सेविंग जैकेट एक मां और उसके बच्चे को दे दिया जो इस जहाज में फंसे थे. ताकि उनकी जिंदगी बच सके. इस तरह मिस एनी क्लेमर फंक दो लोगों की जान बचाने के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी. इस तरह 15 अप्रैल को उनका निधन हो गया
महिला शिक्षा को बढ़ावा देना चाहती थी मिस फंक: मिस फंक तो दुनिया से चलीं गईं लेकिन उनकी मानवता और समाज सेवा के कार्य आज भी लोगों को प्रेरित करने का काम कर रहे हैं. उन्होंने जांजगीर चांपा में साल 1907 में फंक मेमोरियल स्कूल की स्थापना की. इस स्कूल में उस दौर में 17 लड़कियों का एडमिशन हुआ था. जांजगीर चांपा के फंक मेमोरियल स्कूल की प्रिंसिपल रही सरोजनी सिंह ने इस बारे में विस्तृत जानकारी दी.
"साल 1907 में उन्होंने 17 लड़कियों को लेकर गर्ल्स स्कूल की स्थापना की. जांजगीर में भीमा तालाब के पास उन्होंने किराए के मकान में फंक मेमोरियल स्कूल का संचालन किया. छात्राओं के रहने के लिए हॉस्टल का निर्माण भी उन्होंने कराया. लेकिन यह भवन अब खंडहर में तब्दील हो गया है. वह साल 1906 में प्रथम मेनोनाइट महिला मिशनरी बनकर भारत आईं थी.": सरोजनी सिंह, प्राचार्य, फंक मेमोरियल स्कूल
"1960 तक यह स्कूल चला फिर किसी कारणवश गर्ल्स स्कूल को बंद करना पड़ा.हॉस्टल भी बंद करना पड़ा क्योंकि दानदाता भी नहीं मिले.1960 के बाद से इस स्कूल को सोसायटी की तरफ से चलाया गया. साल 2007 से इस स्कूल को दोबारा सोसायटी की तरफ से इसे चलाया जा रहा है. अब इस स्कूल को मिस फंक स्कूल का नाम दिया गया. बीच में यह स्कूल का नाम सेंट जोसेफ रखा गया था लेकिन बाद में फिर इसका नाम बदलकर मिस फंक रखा गया. उनको जांजगीर के लोग लगातार याद करते हैं.": सरोजनी सिंह, प्राचार्य, फंक मेमोरियल स्कूल
टाइटैनिक हादसे में हुई थी हजारों लोगों की मौत: मिस फंक का जन्म 12 अप्रैल 1874 को अमेरिका में हुआ था. वह पेनिसिलवेनिया प्रांत के जेम्स बी की बेटी थी. साल 1906 में वह प्रथम मेनोनाइट महिला मिशनरी के रूप में भारत आईं थीं. जब टाइटैनिक हादसे में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा तब उनकी उम्र महज 38 साल थी. लेकिन इतनी कम उम्र में उन्होंने भारत में समाज सेवा के लिए जो कार्य किए वह आज भी याद किए जाते हैं. शिक्षा के प्रति खासकर महिलाओं के एजुकेशन को लेकर उनके अंदर एक गजब का जज्बा था. जांजगीर चांपा में उन्होंने फंक मेमोरियल स्कूल की स्थापना लड़कियों के लिए उस दौर में की जब लोग लड़कियों की शिक्षा को लेकर ज्यादा नहीं सोचते थे. इस हादसे में एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. इस ट्रैजडी को नहीं भूला जा सकता.
मिस फंक के रास्ते पर चल रहे लोग: फंक मेमोरियल स्कूल की प्राचार्य ने बताया कि उनके द्धारा शुरू किए काम को अन्य मिशनरियों ने पूरा किया. शिक्षा, स्वास्थ्य और जनजागरुकता के क्षेत्र में आज भी ये मिशनरी काम कर रहे हैं.
मौत के समय में भी दिया मानवता का परिचय: मिस एनी क्लेमर फंक ने टाइटैनिक जहाज हादसे के दौरान सामने आ रही मौत के समय में भी मानवता का परिचय दिया. उन्होंने उस समय एक बच्चे और उसकी मां की जिंदगी बचाने की ठानी. जहाज में अफरा तफरी के माहौल के बीच मिस एनी फंक ने अपना लाइफ सेविंग जैकेट उस बच्चे और मां को दे दिया जो डूबने वाले थे. बताया जाता है कि उस बच्चे की मां को लाइफ सेविंग जैकेट मिला था लेकिन उस बच्चे को लाइफ सेविंग जैकेट नहीं मिला था. बच्चे को रोता बिलखता देख मिस फंक ने अपना लाइफ सेविंग जैकेट उस बच्चे को दिया. इस तरह उनकी जान बचाकर उन्होंने खुद के लिए मौत का रास्ता चुन लिया. दुनिया से जाते जाते उन्होंने मानवता का परिचय दिया जो एक सेवा की देवी ही कर सकती हैं.