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सड़कों पर 15 साल से भटक रही थी बेसहारा मां, ऐसे हुआ एक बिछड़े हुए परिवार का मिलन

आज से 15 साल पहले एक महिला अपने बच्चों से बिछड़ गई थी. एक एनजीओ संस्था ने लाचार मां को उनके बच्चों से मिलवाया.

Mangaluru
15 साल बाद बच्चों से मिली एक बेसहारा मां (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 19, 2024, 3:37 PM IST

मंगलुरु: कर्नाटक में 15 साल बाद एक बेसहारा मां अपने बच्चों से मिली. यह खबर मंगलुरु की है, जहां व्हाइट डव्स नाम के एक एनजीओ ने साल 2009 में फरजाना नाम की महिला को बेसहारा सड़क लाकर अपने यहां रहने की जगह दी थी.

आज जब 15 साल बाद जब परिवार का मिलन हुआ तो पूरा माहौल ही बदल गया. मां को सामने देख बेटा आसिफ ने उन्हें अपने गले से लगा लिया. हालांकि, इतने सालों बाद अपने बच्चों को देख फरजाना को यकीन नहीं हो रहा था कि, ये उनके अपने ही बच्चे हैं. वहीं, उनकी बेटी अपनी मां को पहली बार देख रही थी. बिछड़े हुए परिवार को मिलाने में मंगलुरु के एनजीओ संस्था व्हाइट डव्स साइकियाट्रिक नर्सिंग एंड डेस्टिट्यूट होम का बड़ा योगदान रहा.

बता दें कि, जब फरजाना अपने परिवार से बिछड़ गई थीं, उस समय उनकी मानसिक स्थिति सही नहीं थी. वह मंगलुरु के होइगे बाजार में बेसहारा इधर-उधर भटक रही थी. काफी समय बाद एनजीओ व्हाइट डव्स की नजर फरजाना पर पड़ी, जो बेसहारा सड़क की खाक छान रही थी.

खबर के मुताबिक, एनजीओ व्हाइट डव्स साइकियाट्रिक नर्सिंग एंड डेस्टिट्यूट होम की संस्थापक कोरिन रस्किन्हा को इसकी जानकारी मिली और उन्होंने महिला का इलाज किया और उसे आश्रय दिया. इस दौरान जब महिला से उसके गांव और उसके परिवार के बारे में पूछा गया तो उसने सही जानकारी नहीं दी. वह कहती थी कि मद्दुर की मीट शॉप के पास उसका घर है. लेकिन, कर्नाटक के कई इलाकों में मद्दुर के नाम से कस्बे हैं. इसलिए मद्दुर के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई. साथ ही, व्हाइट डव्स संस्था ने अपने कर्मचारियों को कई जगहों पर खोजबीन के लिए भेजा, लेकिन परिवार के सदस्य नहीं मिले.

हाल ही में मांड्या के मद्दुर की एक मानसिक रूप से बीमार महिला की पहचान उसके परिजनों ने की और उसे लेने व्हाइट डव्स आए. इस दौरान उन्हें मद्दुर में मीट की दुकान पर फरजाना के बारे में सूचना देने के लिए एक नोट दिया गया. सौभाग्य से यह नोट फरजाना के बेटे आसिफ को मिल गया. इसके बाद आसिफ अपनी बहन, बहनोई और पत्नी-बच्चों के साथ शुक्रवार को मां को लेने के लिए मंगलुरु के व्हाइट डव्स पहुंचे.

फरजाना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने अपने बच्चों और नाती-नातिनों को देखा जो उन्हें लेने आए थे. जब फरजाना अपने परिवार से बिछड़ गई थीं, उस समय उनका बेटा आसिफ महज तीन साल का था. जब फरजाना ने आसिफ के बेटे को देखा तो उसे लगा कि वह उसका बेटा है. ईटीवी भारत से बात करते हुए आसिफ ने कहा, "कई सालों तक तलाश करने के बावजूद मेरी मां नहीं मिली. आज मैं बहुत खुश हूं. मुझे अपनी मां याद है, लेकिन मेरी बहन मेरी मां को नहीं जानती. क्योंकि वह (तब 3 महीने की बच्ची) अपनी मां को पहली बार देख रही है."

व्हाइट डव्स संस्था की संस्थापक कोरिन रस्किन्हा ने कहा, "फरजाना अगस्त 2009 में मिली थी. लेकिन उसने हमें अपने बारे में सही जानकारी नहीं दी थी। हमें उसके घर वापस आने का भरोसा नहीं था. दो सप्ताह पहले मद्दुर की एक और महिला को गृह भेजा गया था। उस समय हमने उन्हें फरजाना के बारे में जानकारी दी थी। उनकी मदद से अब फरजाना के परिवार के सदस्य मिल गए हैं."

ये भी पढ़ें: पंजाब के भाई-बहन की अनोखी कहानी, बंटवारे के 75 साल बाद दोनों की होगी मुलाकात, जानें कैसे

मंगलुरु: कर्नाटक में 15 साल बाद एक बेसहारा मां अपने बच्चों से मिली. यह खबर मंगलुरु की है, जहां व्हाइट डव्स नाम के एक एनजीओ ने साल 2009 में फरजाना नाम की महिला को बेसहारा सड़क लाकर अपने यहां रहने की जगह दी थी.

आज जब 15 साल बाद जब परिवार का मिलन हुआ तो पूरा माहौल ही बदल गया. मां को सामने देख बेटा आसिफ ने उन्हें अपने गले से लगा लिया. हालांकि, इतने सालों बाद अपने बच्चों को देख फरजाना को यकीन नहीं हो रहा था कि, ये उनके अपने ही बच्चे हैं. वहीं, उनकी बेटी अपनी मां को पहली बार देख रही थी. बिछड़े हुए परिवार को मिलाने में मंगलुरु के एनजीओ संस्था व्हाइट डव्स साइकियाट्रिक नर्सिंग एंड डेस्टिट्यूट होम का बड़ा योगदान रहा.

बता दें कि, जब फरजाना अपने परिवार से बिछड़ गई थीं, उस समय उनकी मानसिक स्थिति सही नहीं थी. वह मंगलुरु के होइगे बाजार में बेसहारा इधर-उधर भटक रही थी. काफी समय बाद एनजीओ व्हाइट डव्स की नजर फरजाना पर पड़ी, जो बेसहारा सड़क की खाक छान रही थी.

खबर के मुताबिक, एनजीओ व्हाइट डव्स साइकियाट्रिक नर्सिंग एंड डेस्टिट्यूट होम की संस्थापक कोरिन रस्किन्हा को इसकी जानकारी मिली और उन्होंने महिला का इलाज किया और उसे आश्रय दिया. इस दौरान जब महिला से उसके गांव और उसके परिवार के बारे में पूछा गया तो उसने सही जानकारी नहीं दी. वह कहती थी कि मद्दुर की मीट शॉप के पास उसका घर है. लेकिन, कर्नाटक के कई इलाकों में मद्दुर के नाम से कस्बे हैं. इसलिए मद्दुर के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई. साथ ही, व्हाइट डव्स संस्था ने अपने कर्मचारियों को कई जगहों पर खोजबीन के लिए भेजा, लेकिन परिवार के सदस्य नहीं मिले.

हाल ही में मांड्या के मद्दुर की एक मानसिक रूप से बीमार महिला की पहचान उसके परिजनों ने की और उसे लेने व्हाइट डव्स आए. इस दौरान उन्हें मद्दुर में मीट की दुकान पर फरजाना के बारे में सूचना देने के लिए एक नोट दिया गया. सौभाग्य से यह नोट फरजाना के बेटे आसिफ को मिल गया. इसके बाद आसिफ अपनी बहन, बहनोई और पत्नी-बच्चों के साथ शुक्रवार को मां को लेने के लिए मंगलुरु के व्हाइट डव्स पहुंचे.

फरजाना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने अपने बच्चों और नाती-नातिनों को देखा जो उन्हें लेने आए थे. जब फरजाना अपने परिवार से बिछड़ गई थीं, उस समय उनका बेटा आसिफ महज तीन साल का था. जब फरजाना ने आसिफ के बेटे को देखा तो उसे लगा कि वह उसका बेटा है. ईटीवी भारत से बात करते हुए आसिफ ने कहा, "कई सालों तक तलाश करने के बावजूद मेरी मां नहीं मिली. आज मैं बहुत खुश हूं. मुझे अपनी मां याद है, लेकिन मेरी बहन मेरी मां को नहीं जानती. क्योंकि वह (तब 3 महीने की बच्ची) अपनी मां को पहली बार देख रही है."

व्हाइट डव्स संस्था की संस्थापक कोरिन रस्किन्हा ने कहा, "फरजाना अगस्त 2009 में मिली थी. लेकिन उसने हमें अपने बारे में सही जानकारी नहीं दी थी। हमें उसके घर वापस आने का भरोसा नहीं था. दो सप्ताह पहले मद्दुर की एक और महिला को गृह भेजा गया था। उस समय हमने उन्हें फरजाना के बारे में जानकारी दी थी। उनकी मदद से अब फरजाना के परिवार के सदस्य मिल गए हैं."

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