Low Voter Turnout in Lok Sabha Polls 2024: लोकसभा चुनाव के दो चरणों में 190 सीटों पर मतदान पूरा हो चुका है. साथ ही 11 राज्यों- तमिलनाडु, राजस्थान, केरल, मणिपुर, मेघालय, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा और तीन केंद्रशासित प्रदेशों- पुडुचेरी, अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप में लोकसभा चुनाव संपन्न हो गया है. हालांकि, दो चरणों में पिछले आम चुनाव की तुलना में कम वोटिंग की वजह से राजनीतिक दलों की चिंताएं बढ़ गई हैं.
चुनाव आयोग के मुताबिक, दूसरे चरण में 64 प्रतिशत से थोड़ा अधिक मतदान दर्ज किया गया, जबकि 2019 में दूसरे चरण की 88 में से 85 सीटों पर 69.64 प्रतिशत मतदान हुआ था. इसी तरह पहले चरण में 102 लोकसभा सीटों पर 66 प्रतिशत वोटिंग हुई है. 2019 में इन सीटों पर 70 प्रतिशत के आसपास मतदान हुआ था यानी इस साल चार प्रतिशत कम वोट पड़े हैं.
दो चरणों में कम होने के पीछ कई कारण बताए जा रहे हैं, जैसे- भीषण गर्मी, मतदाताओं में उत्साह की कमी, सरकार को लेकर उदासीनता. मगर मतदान प्रतिशत घटने पर किसे फायदा होगा और किसे नुकसान... इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषकों की अलग-अलग राय है. अगर हम पिछले 12 लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत के ट्रेंड को देखें तो पांच आम चुनावों में पिछले की तुलना में कम वोटिंग हुई और चार बार सरकार बदल गई. जबकि एक बार सत्ताधारी दल की सरकार बनी. इसी तरह सात लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ा और चार बार सरकार बदली. जबकि तीन बार सत्ताधारी दल की जीत हुई.
कम मतदान बदलाव का संकेत!
वर्ष 1980 के आम चुनाव में कम वोट पड़े थे और जनता पार्टी की सरकार चली गई थी. तब चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस ने सरकार बनाई थी. इसके बाद 1989 में कम वोटिंग होने से कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा था और पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के नेतृत्व में केंद्र में नई सरकार बनी थी. 1991 में दोबारा लोकसभा चुनाव हुआ. इस चुनाव में भी कम मतदान हुआ था और कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की थी. इस ट्रेंड के उलट 1999 के आम चुनाव में वोटिंग प्रतिशत गिरा था, लेकिन तब सत्ताधारी दल की ही जीत हुई थी. वर्ष 2004 में मतदान प्रतिशत कम दर्ज किया गया और इसका फायदा एक बार फिर विपक्षी दलों को मिला और कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी.
मतदान प्रतिशत में गिरावट के राजनीतिक मायने
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मतदान प्रतिशत में गिरावट अच्छी बात नहीं है. यह चुनाव को लेकर मतदाताओं में उदासीनता की ओर इशारा करता है. 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार उदासीनता साफ दिख रही है. हालांकि, इसके फायदे और नुकसान का हिसाब नहीं लगाया जा सकता है. क्योंकि कई बार मतदान प्रतिशत गिरने के बावजूद भी सत्ताधारी दल की जीत हुई है. वहीं, कई बार सरकार भी चली गई है.
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