चंडीगढ़: लोकसभा चुनाव में इस बार बीजेपी को बड़ा झटका लगा है. साल 2019 की तरह इस बार भी हरियाणा में दस की दस लोकसभा सीटों पर जीत का दावा करने वाली बीजेपी पांच सीट पर ही जीत दर्ज कर पाई है. इसके अलावा कांग्रेस पार्टी भी 5 सीटों पर जीतने पर जश्न मना रही है. लेकिन ये दोनों ही दल कहीं ना कहीं पार्टी के अंदर की कमजोरियों की वजह से उस स्थिति में नहीं पहुंच पाए, जिस स्थिति पर ये पहुंचने की उम्मीद कर रहे थे.
भीतरघात से हुआ दोनों पार्टियों को नुकसान? दोनों दलों के अपने नेताओं की कमजोरियां भी रही या कह सकते हैं भीतरघात की वजह से भी ये उस नतीजे तक नहीं पहुंच पाए. जिसकी उन्हें उम्मीद थी. अगर हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस की हरी गई सीटों का आकलन करें तो ये बात साफ हो जाती है कि कहीं ना कहीं इन दोनों दलों के नेताओं की आपसी खींचतान की वजह से उन्हें नुकसान हुआ.
बीजेपी और कांग्रेस ने 5-5 सीटों पर दर्ज की है जीत: यानी दोनों पार्टियों में आपसी मनमुटाव ना रहता और बेहतर तालमेल रहता, तो दोनों के लिए नतीजे कुछ और भी हो सकते थे. अगर हम बीजेपी की बात करें तो हिसार, सोनीपत, अंबाला, रोहतक और सिरसा सीट बीजेपी हार गई. इन सभी सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की, लेकिन इनमें से कुछ पर बीजेपी की हार सिर्फ कांग्रेस की बेहतर रणनीति की वजह से ही नहीं हुई, बल्कि पार्टी की अपनी कमजोरियां भी इसकी वजह रही.
हिसार लोकसभा सीट: हिसार लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो पार्टी के अपने नेताओं की नाराजगी यहां पर बीजेपी को भारी पड़ी. यहां पर भाजपा के प्रत्याशी रणजीत चौटाला को कांग्रेस प्रत्याशी जयप्रकाश ने 63000 से अधिक वोटों के अंतर से मात दी. इसकी एक वजह निर्दलीय रणजीत चौटाला को बीजेपी में शामिल कर उम्मीदवार बनाए जाने से पार्टी संगठन में भी नाराजगी रही. इस सीट पर टिकट के दावेदारों में कैप्टन अभिमन्यु और कुलदीप बिश्नोई भी थे.
नाराज थे कुलदीप बिश्नोई? रणजीत चौटाला को मैदान में उतरने से कुलदीप बिश्नोई और उनके समर्थकों में नाराजगी थी. इसका पार्टी को खामियाजा हार के तौर पर उठाना पड़ा. इतना ही नहीं कैप्टन अभिमन्यु के गृह क्षेत्र नारनौंद से करीब 44 हजार से अधिक की लीड कांग्रेस मिली और बिश्नोई के गृह क्षेत्र आदमपुर से कांग्रेस को करीब 6 हजार की लीड मिली. वहीं विधानसभा के उपाध्यक्ष के क्षेत्र नलवा में भी दो हजार से अधिक की कांग्रेस को लीड मिली. इसके साथ ही किसानों की नाराजगी भी रणजीत चौटाला पर भारी पड़ी.
सोनीपत में बीजेपी में भीतरघात? ऐसा ही कुछ सोनीपत लोकसभा सीट पर भी देखने को मिला. जहां पर भाजपा के मोहन लाल बड़ौली कांग्रेस के प्रत्याशी सतपाल ब्रह्मचारी से मात्र 21000 से अधिक वोटों से हार गए. बीजेपी के प्रत्याशी पहले ही इस बात के आरोप लगा चुके थे कि उनके खिलाफ पार्टी कुछ नेताओं ने काम किया है. इस बात की तस्दीक उनके हार के अंतर से भी हो जाती है. उन्होंने खुद पूर्व सांसद रमेश कौशिक और विधायक निर्मल रानी पर उनके खिलाफ काम करने के आरोप लगाए. यानी इस सीट पर भी बीजेपी के अपने अगर मिलकर चलते, तो शायद नतीजा कुछ और देखने को मिल सकता था.
बंतो कटारिया की हार: वहीं अंबाला सीट पर बीजेपी की उम्मीदवार बांतो कटारिया को कांग्रेस के प्रत्याशी वरुण चौधरी ने 49 हजार से अधिक मतों से हराया. यहां पर भी पार्टी के बड़े चेहरे बीजेपी प्रत्याशी की जीत को सुनिश्चित नहीं कर पाए. वही ग्रामीण क्षेत्रों में बीजेपी से लोगों की नाराजगी भी उनकी हर की वजह बनी. सीएम नायब सैनी के गृह क्षेत्र नारायणगढ़ से कांग्रेस को 20 हजार से ज्यादा वोट मिले. कैबिनेट मंत्री कंवर पाल गुर्जर के क्षेत्र जगाधरी से भी बंतो कांग्रेस प्रत्याशी से 16000 वोटों से ज्यादा पिछड़ी, अंबाला शहर क्षेत्र से भी बंतो करीब 4500 मतों से पीछे रही.
कांग्रेस को भी हुआ नुकसान: ऐसा नहीं है कि अपनों की नाराजगी और संगठन के तालमेल की कमी बीजेपी पर ही भारी पड़ी. कांग्रेस को भी इसका नुकसान उठाना पड़ा है. कांग्रेस पार्टी को भी नेताओं के आपसी तालमेल और संगठन की कमजोरी की वजह से कुछ सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. बात करें भिवानी महेंद्रगढ़ सीट की तो यहां कांग्रेस प्रत्याशी राव दान सिंह 41 हजार से अधिक मतों से हारे. यहां पर चौधरी बंसीलाल परिवार यानी किरण चौधरी की नाराजगी का असर देखने को मिला.
तोशाम विधानसभा क्षेत्र से किरण चौधरी विधायक हैं. यहां से बीजेपी प्रत्याशी को करीब आठ हजार की लीड मिली. यानी कांग्रेस प्रत्याशी यहां से पिछड़ गए. हालांकि वो हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री जेपी दलाल के क्षेत्र में लीड लेने में कामयाब हुए. वहीं किरण चौधरी की इस क्षेत्र में प्रचार में सक्रियता भी काम देखने को मिली. कहीं ना कहीं इसका नुकसान पार्टी के प्रत्याशी को उठाना पड़ा.
कैप्टन अजय यादव थे नाराज? वहीं गुरुग्राम सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी राज बब्बर बीजेपी के राव इंद्रजीत सिंह से 75 हजार से अधिक मतों से हार गए. इस सीट पर कैप्टन अजय यादव अपनी दावेदारी जता रहे थे, लेकिन पार्टी ने राज बब्बर को उम्मीदवार बनाया. कैप्टन अजय यादव का बयान भी आया है कि राज बब्बर ने अच्छा चुनाव लड़ा, लेकिन अगर वो कांग्रेस के प्रत्याशी होते तो परिणाम कुछ और हो सकता था. माना जा रहा है कि कहीं ना कहीं कैप्टन राज बब्बर की उम्मीदवारी से नाराज थे. हालांकि उन्होंने खुलकर ये बात कभी नहीं कही.