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नामांकन के 3 दिन बचे, कांग्रेस के लिए मथुरा सीट बनी चुनौती, क्या हेमा मालिनी को टक्कर देंगे बॉक्सर विजेंदर? - lok sabha election 2024

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 1, 2024, 1:58 PM IST

Updated : Apr 1, 2024, 2:42 PM IST

मथुरा के सियासी रण में हेमा मालिनी फिर से मैदान में हैं. वहीं कांग्रेस अभी तक इस सीट पर मजबूत दावेदार तय नहीं कर पा रही है. कई नामों की चर्चाएं हैं, लेकिन अभी किसी के नाम पर मुहर नहीं लग पाई है.

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लखनऊ : मथुरा के सियासी संग्राम में सांसद हेमा मालिनी फिर से मैदान में हैं. बसपा ने पूर्व आइआरएस अधिकारी सुरेश सिंह को यहां से टिकट दिया है. इंडिया गठबंधन के तहत यह सीट कांग्रेस के खाते में गई है, लेकिन कांग्रेस ने अभी प्रत्याशी घोषित नहीं किया है. हेमा मालिनी के मुकाबले कांग्रेस यहां दमदार शख्सियत को लाने की तैयारी में है. पार्टी की केंद्रीय चुनाव कमेटी अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर विजेंदर सिंह के नाम पर विचार कर रही है. हालांकि अभी इस पर अंतिम मुहर लगनी बाकी है. ये हालात तब हैं जब दूसरे चरण की नामांकन प्रक्रिया 28 मार्च से शुरू हो चुकी है. सीट पर कितने वोटर हैं, क्या विजेंदर हेमामालिन को टक्कर दे पाएंगे, पढ़िए डिटेल...

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को 17 सीटों पर समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ना है. दूसरे चरण की वोटिंग 26 अप्रैल को होनी है. इस चरण में यूपी की कुल 9 लोकसभा सीटों पर चुनाव होना है. दूसरे चरण की वोटिंग में ही कांग्रेस को सबसे अधिक लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ना है. कांग्रेस की ओर से अभी तक कुल 13 लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर दी गई है.

इन सीटों पर भी कांग्रेस ने नहीं उतारे प्रत्याशी : दूसरे चरण में शामिल चारों लोकसभा सीटों में से मथुरा एक ऐसी लोकसभा सीट है, जहां कांग्रेस अभी तक प्रत्याशी का चयन नहीं कर पाई है. जबकि इस सीट पर नामांकन की प्रक्रिया 28 मार्च से ही शुरू हो चुकी है. कांग्रेस ने अपने 17 सीटों के कोटे में से 13 सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं, लेकिन मथुरा, प्रयागराज, रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीट पर अभी तक पार्टी ने अपने प्रत्याशी नहीं तय किए हैं.

पश्चिम उत्तर प्रदेश की मथुरा लोकसभा सीट सबसे हाई प्रोफाइल सीटों में से एक है. इस सीट पर ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी मौजूदा सांसद हैं. भाजपा ने फिर से उन पर दांव लगाया है. वह तीसरी बार लोकसभा जाने की तैयारी में हैं. कांग्रेस इस सीट पर हेमा मालिनी के सामने किसको प्रत्याशी बनाए यह अभी तक तय नहीं कर पाई है. इस सीट के लिए नामांकन की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है.

ये भी हो सकते हैं दावेदार : मथुरा लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट के सबसे प्रबल दावेदार पूर्व मंत्री और सीएलपी लीडर प्रदीप माथुर सबसे आगे हैं. इसके अलावा इस सीट से हरियाणा के ओलंपियन और बॉक्सर विजेंदर सिंह का नाम भी चल रहा है. इसके अलावा 2019 में कांग्रेस के प्रत्याशी रहे महेश पाठक भी दावेदारी कर रहे हैं. जबकि 2004 में कांग्रेस की टिकट पर सांसद बने मानवेंद्र सिंह, प्रदेश महासचिव मुकेश धनगर जैसे नाम की भी चर्चा है.

दूसरे चरण की गाजियाबाद सीट से डॉली शर्मा, बुलंदशहर से रामनाथ वाल्मीकि और अमरोहा से कुंवर दानिश अली का टिकट कांग्रेस ने पहले ही घोषित कर दिया है.

Mathura political struggle
Mathura political struggle



अमेठी और रायबरेली को लेकर मंथन : कांग्रेस ने दो किस्तों में करीब 13 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. बाकी बची 4 सीटों पर कांग्रेस को प्रत्याशी घोषित करना है. इसमें रायबरेली, अमेठी प्रयागराज और मथुरा लोकसभा सीटें शामिल हैं. रायबरेली और अमेठी दोनों ही सीटे हमेशा से कांग्रेस का गढ़ मानी जाती रहीं हैं. ऐसे में कांग्रेस के प्रत्याशी न उतारने से सवाल उठने लगे हैं कि क्या कांग्रेस को अपने ही घर में जिताऊ प्रत्याशी नहीं मिल रहे. फिलहाल दोनों सीटों प्रत्याशी के चयन के लिए बैठकों का दौर जारी है.

दोनों सीटों पर कांग्रेस के समक्ष कड़ी चुनौती : कांग्रेस के लिए रायबरेली को बचाना और अमेठी में विजयश्री हासिल करना दोनों ही बड़ी चुनौती है. भाजपा ने दोनों सीटों पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. रायबरेली सीट से सांसद सोनिया गांधी ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है. अमेठी में कांग्रेस 2019 के चुनाव में हार चुकी है. भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को करीब 50000 वोटो के अंतर से हराया था. इसके कारण अमेठी में कांग्रेस की स्थिति पहले जैसी नहीं रही है.

इसलिए बन रही असमंजस की स्थिति : रायबरेली गढ़ होने के चलते रायबरेली में कांग्रेस को अन्य दलों की अपेक्षा अभी भी सबसे मजबूत माना जा रहा है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी अमेठी से जबकि प्रियंका गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ें, कांग्रेस नेताओं ने ऐसी मांग रखी थी, लेकिन प्रियंका और राहुल का स्टैंड अभी तक क्लियर न होने के कारण रायबरेली और अमेठी में प्रत्याशियों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. दोनों सीटों पर गांधी परिवार को ही उम्मीदवारों का अंतिम निर्णय लेना है.

देरी से चुनाव पर पड़ेगा फर्क : लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिक शास्त्र के प्रोफेसर संजय गुप्ता ने का कहना है कि सोनिया गांधी के इनकार के बाद यह माना जा रहा था कि दोनों ही सीटों पर गांधी परिवार के सदस्य ही चुनाव लड़ेंगे. रायबरेली से प्रियंका गांधी चुनाव लड़ सकती हैं. अभी तक अमेठी और रायबरेली से उम्मीदवार घोषित न होने से लोगों के बीच में गलत संदेश जा रहा है. कांग्रेस अगर जल्दी प्रत्याशी घोषित नहीं करेगी तो चुनाव पर इसका काफी असर पड़ेगा.

बची हुई सीटों पर कांग्रेस जल्द घोषित करेगी प्रत्याशी : यूपी कांग्रेस के प्रवक्ता अंशु अवस्थी ने बताया कि रायबरेली और अमेठी सीट के अलावा जो दो अन्य सीटों पर अभी प्रत्याशी घोषित नहीं किए गए हैं. यहां जल्द ही प्रत्याशी घोषित कर दिए जाएंगे. रायबरेली अमेठी से गांधी परिवार का पारिवारिक रिश्ता है, इसलिए वहां की जनता चाहती है कि गांधी परिवार ही हमारा प्रतिनिधित्व करें. आजादी के बाद से फिरोज गांधी से लेकर संजय गांधी, सोनिया गांधी सभी ने वहां से प्रतिनिधित्व किया है. दो-तीन दिन में बाकी बची सभी सीटों पर टिकट की घोषणा हो जाएगी. अभी कोई देरी नहीं हुई है. मथुरा में नॉमिनेशन शुरू हो गया है, यहां अगले एक-दो दिन में प्रत्याशी की घोषणा हो जाएगी.

Mathura political struggle
Mathura political struggle

मथुरा की सीट का इतिहास, अटल बिहारी ने भी भरा था पर्चा : आजादी के बाद मथुरा सीट पर चुनाव हुआ तो केंद्र में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद पार्टी का प्रत्याशी यहां से हार गया था. निर्दलीय उम्मीदवार राजा गिरराज शरण सिंह ने यहां से जीत दर्ज की थी.

इसके बाद के चुनाव में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने भी यहां से दावेदारी की थी, लेकिन यहां से निर्दलीय उम्मीदवार राजा महेंद्र प्रताप ने जीत दर्ज की थी. पूर्व पीएम को कुल वोटों के महज 10 प्रतिशत वोटों से ही संतोष करना पड़ा था.

मथुरा को जाट बाहुल्य माना जाता है. अब तक यहां से चुने गए 17 सांसदों में से 14 जाट समुदाय के हैं. हालांकि आरएलडी कभी यहां अपना खाता नहीं खोल पाई. साल 2009 में जयंत चौधरी सांसद चुने गए, तब आरएलडी ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था. इसी वजह से पार्टी जीती थी. यहां से चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती भी सियासी मैदान में उतर चुकी हैं.

1977 में मथुरा सीट पर भारतीय लोकदल से मनीराम बागड़ी विजेता बने थे. उन्हें चुनाव में बड़ी जीत मिली थी. उस दौरान 3,92,137 लोगों ने वोटिंग की थी. इनमें 2,96,518 वोट उन्हें मिले थे. वोटों की बड़ी जीत का यह रिकॉर्ड आज भी कायम है. इस सीट पर तीन बार कांग्रेस तो चार बार लगातार भाजपा जीत दर्ज कर चुकी है. इस सीट पर कुल वोटर 16,25,093 वोटर हैं.

पिछले लोकसभा चुनाव में यह थी स्थिति : साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की हेमामालिनी 6,71,293 मत हासिल कर जीत हासिल की थी. आरएलडी के कुंवर नरेंद्र सिंह 3,77,822 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे. इसी तरह कांग्रेस के महेश पाठक को 28,084 मिले थे. जबकि इसके पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में हेमा मालिनी ने 5,74,633 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी. उस दौरान आरएलडी से जयंत चौधरी 2,43,890 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे. जबकि बीएसपी के योगेश कुमार द्विवेदी ने 1,73,572 वोट हासिल किए थे. तब सपा से चंदन सिंह को 36,673 वोट मिले थे.
मथुरा में अब तक लोकसभा चुनाव में 6 बार भाजपा जीती है.

सीट पर भाजपा ने ज्यादा बार दर्ज की है जीत : मथुरा लोकसभा सीट बीजेपी और आरएलडी के मजबूत गढ़ों में से एक है. कांग्रेस यहां जाट कार्ड खेल कर 20 साल बाद पुनः सेंध लगाने की कोशिश कर रही है.मथुरा संसदीय सीट के इतिहास की बात करें तो यहां पर बीजेपी का कब्जा सबसे ज्यादा रहा. 1990 के बाद की राजनीति में राम मंदिर आंदोलन की वजह से बीजेपी के लिए यह सीट एक बड़े गढ़ के रूप में बदल गई है. 1952 में राजा गिरिराज शरण सिंह निर्दलीय चुनाव जीत गए थे. 1957 के दूसरे संसदीय चुनाव में भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर राजा महेंद्र सिंह को जीत हासिल हुई थी.

10 साल के बाद कांग्रेस ने खोला था खाता : 10 साल के लंबे इंतजार के बाद 1962 में कांग्रेस ने इस सीट पर अपना खाता खोला था, तब चौधरी दिगंबर सिंह यहां से लगातार 1967 और 1971 में कलेश्वर सिंह कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव जीते थे. 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में उन्हें यहां हर का सामना करना पड़ा था. 1977 में जनता दल के मनीराम बागड़ी ने यहां से चुनाव जीता था. इसके और 1980 में दोबारा चौधरी दिगंबर सिंह ने यह सीट जीती थी. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में कांग्रेस को सहानुभूति लहर का फायदा हुआ. यह सीट कांग्रेस के खाते में आ गई.

राम मंदिर आंदोलन के बाद से भाजपा का दबदबा : 1989 में जनता दल को यहां से जीत मिली. 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के बाद से यहां पर बीजेपी का दबदबा है. 1991 के चुनाव में साक्षी महाराज को यहां से जीत मिली थी. इसके बाद 1996, 98 और 99 में बीजेपी के टिकट से राजवीर सिंह ने यहां जीत की हैट्रिक लगाई थी. 2004 में कांग्रेस के टिकट पर मानवेंद्र सिंह को जीत मिली थी. 2009 में बीजेपी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच चुनाव गठबंधन हुआ तो और यहां से आरएलडी के जयंत चौधरी चुनाव मैदान में उतरे थे और उन्होंने जीत हासिल की थी.

2014 से यह सीट मोदी लहर में हेमा मालिनी के खाते में जा रही है. मथुरा सीट के इतिहास की बात करें तो यहां पर छह बार भाजपा, पांच बार कांग्रेस और एक बार राष्ट्रीय लोकदल ने चुनाव जीता है. बीएलडी, जनता दल और जेएनपी-एस को एक-एक बार मौका दिया है. इस सीट पर भाजपा का मुकाबला सपा और बसपा प्रत्याशियों से हमेशा रहा है. 2004 और 2009 में बहुजन समाज पार्टी यहां दूसरे नंबर पर रही थी.

मथुरा लोकसभा सीट का जातीय गणित : मथुरा लोकसभा सीट पर करीब 19 लाख से अधिक मतदाता हैं. इनमें से साढ़े तीन लाख मतदाता जाट समाज के हैं. मथुरा लोकसभा सीट में पांच विधानसभा शामिल हैं. इनमें 8 लाख 23 हजार 446 पुरुष और 9 लाख 84 हजार 255 महिला मतदाता हैं.

इसके अलावा 3 लाख ब्राह्मण, 3 लाख ठाकुर, डेढ़ लाख जाटव, डेढ़ लाख मुस्लिम हैं. वैश्य वाटर की संख्या 1 लाख के करीब है. जबकि 80000 यादव मतदाता भी यहां पर मौजूद हैं. मथुरा सीट शुरू से ही जाट बाहुल्य वाली सीट रही है. यहां पर अब तक चुने गए 17 सांसदों में से 14 सांसद इसी बिरादरी से रहे हैं.

बीते तीन चुनाव में मथुरा लोकसभा सीट पर पार्टियों का प्रदर्शन

2009 लोकसभा चुनाव : कांग्रेस 11.76% वोट, बीएसपी 28.94% वोट, बीजेपी 53.1 29% वोट, समाजवादी पार्टी 3.40% वोट, राष्ट्रीय लोक दल 52.29 % वोट.

2014 लोकसभा चुनाव : बीएसपी 16.10% वोट, बीजेपी 60.79% वोट, राष्ट्रीय लोक दल 22.62% वोट.

2014 लोकसभा चुनाव : कांग्रेस 2.55% वोट, बीजेपी 60% वोट, राष्ट्रीय लोक दल 34.21% वोट.

यह भी पढ़ें : दूसरे चरण में मेरठ से भाजपा 'राम' के सहारे, मथुरा में हेमा मालिनी की क्या लगेगी हैट्रिक, पढ़ें पूरी डिटेल

लखनऊ : मथुरा के सियासी संग्राम में सांसद हेमा मालिनी फिर से मैदान में हैं. बसपा ने पूर्व आइआरएस अधिकारी सुरेश सिंह को यहां से टिकट दिया है. इंडिया गठबंधन के तहत यह सीट कांग्रेस के खाते में गई है, लेकिन कांग्रेस ने अभी प्रत्याशी घोषित नहीं किया है. हेमा मालिनी के मुकाबले कांग्रेस यहां दमदार शख्सियत को लाने की तैयारी में है. पार्टी की केंद्रीय चुनाव कमेटी अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर विजेंदर सिंह के नाम पर विचार कर रही है. हालांकि अभी इस पर अंतिम मुहर लगनी बाकी है. ये हालात तब हैं जब दूसरे चरण की नामांकन प्रक्रिया 28 मार्च से शुरू हो चुकी है. सीट पर कितने वोटर हैं, क्या विजेंदर हेमामालिन को टक्कर दे पाएंगे, पढ़िए डिटेल...

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को 17 सीटों पर समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ना है. दूसरे चरण की वोटिंग 26 अप्रैल को होनी है. इस चरण में यूपी की कुल 9 लोकसभा सीटों पर चुनाव होना है. दूसरे चरण की वोटिंग में ही कांग्रेस को सबसे अधिक लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ना है. कांग्रेस की ओर से अभी तक कुल 13 लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर दी गई है.

इन सीटों पर भी कांग्रेस ने नहीं उतारे प्रत्याशी : दूसरे चरण में शामिल चारों लोकसभा सीटों में से मथुरा एक ऐसी लोकसभा सीट है, जहां कांग्रेस अभी तक प्रत्याशी का चयन नहीं कर पाई है. जबकि इस सीट पर नामांकन की प्रक्रिया 28 मार्च से ही शुरू हो चुकी है. कांग्रेस ने अपने 17 सीटों के कोटे में से 13 सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं, लेकिन मथुरा, प्रयागराज, रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीट पर अभी तक पार्टी ने अपने प्रत्याशी नहीं तय किए हैं.

पश्चिम उत्तर प्रदेश की मथुरा लोकसभा सीट सबसे हाई प्रोफाइल सीटों में से एक है. इस सीट पर ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी मौजूदा सांसद हैं. भाजपा ने फिर से उन पर दांव लगाया है. वह तीसरी बार लोकसभा जाने की तैयारी में हैं. कांग्रेस इस सीट पर हेमा मालिनी के सामने किसको प्रत्याशी बनाए यह अभी तक तय नहीं कर पाई है. इस सीट के लिए नामांकन की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है.

ये भी हो सकते हैं दावेदार : मथुरा लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट के सबसे प्रबल दावेदार पूर्व मंत्री और सीएलपी लीडर प्रदीप माथुर सबसे आगे हैं. इसके अलावा इस सीट से हरियाणा के ओलंपियन और बॉक्सर विजेंदर सिंह का नाम भी चल रहा है. इसके अलावा 2019 में कांग्रेस के प्रत्याशी रहे महेश पाठक भी दावेदारी कर रहे हैं. जबकि 2004 में कांग्रेस की टिकट पर सांसद बने मानवेंद्र सिंह, प्रदेश महासचिव मुकेश धनगर जैसे नाम की भी चर्चा है.

दूसरे चरण की गाजियाबाद सीट से डॉली शर्मा, बुलंदशहर से रामनाथ वाल्मीकि और अमरोहा से कुंवर दानिश अली का टिकट कांग्रेस ने पहले ही घोषित कर दिया है.

Mathura political struggle
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अमेठी और रायबरेली को लेकर मंथन : कांग्रेस ने दो किस्तों में करीब 13 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. बाकी बची 4 सीटों पर कांग्रेस को प्रत्याशी घोषित करना है. इसमें रायबरेली, अमेठी प्रयागराज और मथुरा लोकसभा सीटें शामिल हैं. रायबरेली और अमेठी दोनों ही सीटे हमेशा से कांग्रेस का गढ़ मानी जाती रहीं हैं. ऐसे में कांग्रेस के प्रत्याशी न उतारने से सवाल उठने लगे हैं कि क्या कांग्रेस को अपने ही घर में जिताऊ प्रत्याशी नहीं मिल रहे. फिलहाल दोनों सीटों प्रत्याशी के चयन के लिए बैठकों का दौर जारी है.

दोनों सीटों पर कांग्रेस के समक्ष कड़ी चुनौती : कांग्रेस के लिए रायबरेली को बचाना और अमेठी में विजयश्री हासिल करना दोनों ही बड़ी चुनौती है. भाजपा ने दोनों सीटों पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. रायबरेली सीट से सांसद सोनिया गांधी ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है. अमेठी में कांग्रेस 2019 के चुनाव में हार चुकी है. भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को करीब 50000 वोटो के अंतर से हराया था. इसके कारण अमेठी में कांग्रेस की स्थिति पहले जैसी नहीं रही है.

इसलिए बन रही असमंजस की स्थिति : रायबरेली गढ़ होने के चलते रायबरेली में कांग्रेस को अन्य दलों की अपेक्षा अभी भी सबसे मजबूत माना जा रहा है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी अमेठी से जबकि प्रियंका गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ें, कांग्रेस नेताओं ने ऐसी मांग रखी थी, लेकिन प्रियंका और राहुल का स्टैंड अभी तक क्लियर न होने के कारण रायबरेली और अमेठी में प्रत्याशियों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. दोनों सीटों पर गांधी परिवार को ही उम्मीदवारों का अंतिम निर्णय लेना है.

देरी से चुनाव पर पड़ेगा फर्क : लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिक शास्त्र के प्रोफेसर संजय गुप्ता ने का कहना है कि सोनिया गांधी के इनकार के बाद यह माना जा रहा था कि दोनों ही सीटों पर गांधी परिवार के सदस्य ही चुनाव लड़ेंगे. रायबरेली से प्रियंका गांधी चुनाव लड़ सकती हैं. अभी तक अमेठी और रायबरेली से उम्मीदवार घोषित न होने से लोगों के बीच में गलत संदेश जा रहा है. कांग्रेस अगर जल्दी प्रत्याशी घोषित नहीं करेगी तो चुनाव पर इसका काफी असर पड़ेगा.

बची हुई सीटों पर कांग्रेस जल्द घोषित करेगी प्रत्याशी : यूपी कांग्रेस के प्रवक्ता अंशु अवस्थी ने बताया कि रायबरेली और अमेठी सीट के अलावा जो दो अन्य सीटों पर अभी प्रत्याशी घोषित नहीं किए गए हैं. यहां जल्द ही प्रत्याशी घोषित कर दिए जाएंगे. रायबरेली अमेठी से गांधी परिवार का पारिवारिक रिश्ता है, इसलिए वहां की जनता चाहती है कि गांधी परिवार ही हमारा प्रतिनिधित्व करें. आजादी के बाद से फिरोज गांधी से लेकर संजय गांधी, सोनिया गांधी सभी ने वहां से प्रतिनिधित्व किया है. दो-तीन दिन में बाकी बची सभी सीटों पर टिकट की घोषणा हो जाएगी. अभी कोई देरी नहीं हुई है. मथुरा में नॉमिनेशन शुरू हो गया है, यहां अगले एक-दो दिन में प्रत्याशी की घोषणा हो जाएगी.

Mathura political struggle
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मथुरा की सीट का इतिहास, अटल बिहारी ने भी भरा था पर्चा : आजादी के बाद मथुरा सीट पर चुनाव हुआ तो केंद्र में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद पार्टी का प्रत्याशी यहां से हार गया था. निर्दलीय उम्मीदवार राजा गिरराज शरण सिंह ने यहां से जीत दर्ज की थी.

इसके बाद के चुनाव में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने भी यहां से दावेदारी की थी, लेकिन यहां से निर्दलीय उम्मीदवार राजा महेंद्र प्रताप ने जीत दर्ज की थी. पूर्व पीएम को कुल वोटों के महज 10 प्रतिशत वोटों से ही संतोष करना पड़ा था.

मथुरा को जाट बाहुल्य माना जाता है. अब तक यहां से चुने गए 17 सांसदों में से 14 जाट समुदाय के हैं. हालांकि आरएलडी कभी यहां अपना खाता नहीं खोल पाई. साल 2009 में जयंत चौधरी सांसद चुने गए, तब आरएलडी ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था. इसी वजह से पार्टी जीती थी. यहां से चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती भी सियासी मैदान में उतर चुकी हैं.

1977 में मथुरा सीट पर भारतीय लोकदल से मनीराम बागड़ी विजेता बने थे. उन्हें चुनाव में बड़ी जीत मिली थी. उस दौरान 3,92,137 लोगों ने वोटिंग की थी. इनमें 2,96,518 वोट उन्हें मिले थे. वोटों की बड़ी जीत का यह रिकॉर्ड आज भी कायम है. इस सीट पर तीन बार कांग्रेस तो चार बार लगातार भाजपा जीत दर्ज कर चुकी है. इस सीट पर कुल वोटर 16,25,093 वोटर हैं.

पिछले लोकसभा चुनाव में यह थी स्थिति : साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की हेमामालिनी 6,71,293 मत हासिल कर जीत हासिल की थी. आरएलडी के कुंवर नरेंद्र सिंह 3,77,822 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे. इसी तरह कांग्रेस के महेश पाठक को 28,084 मिले थे. जबकि इसके पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में हेमा मालिनी ने 5,74,633 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी. उस दौरान आरएलडी से जयंत चौधरी 2,43,890 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे. जबकि बीएसपी के योगेश कुमार द्विवेदी ने 1,73,572 वोट हासिल किए थे. तब सपा से चंदन सिंह को 36,673 वोट मिले थे.
मथुरा में अब तक लोकसभा चुनाव में 6 बार भाजपा जीती है.

सीट पर भाजपा ने ज्यादा बार दर्ज की है जीत : मथुरा लोकसभा सीट बीजेपी और आरएलडी के मजबूत गढ़ों में से एक है. कांग्रेस यहां जाट कार्ड खेल कर 20 साल बाद पुनः सेंध लगाने की कोशिश कर रही है.मथुरा संसदीय सीट के इतिहास की बात करें तो यहां पर बीजेपी का कब्जा सबसे ज्यादा रहा. 1990 के बाद की राजनीति में राम मंदिर आंदोलन की वजह से बीजेपी के लिए यह सीट एक बड़े गढ़ के रूप में बदल गई है. 1952 में राजा गिरिराज शरण सिंह निर्दलीय चुनाव जीत गए थे. 1957 के दूसरे संसदीय चुनाव में भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर राजा महेंद्र सिंह को जीत हासिल हुई थी.

10 साल के बाद कांग्रेस ने खोला था खाता : 10 साल के लंबे इंतजार के बाद 1962 में कांग्रेस ने इस सीट पर अपना खाता खोला था, तब चौधरी दिगंबर सिंह यहां से लगातार 1967 और 1971 में कलेश्वर सिंह कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव जीते थे. 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में उन्हें यहां हर का सामना करना पड़ा था. 1977 में जनता दल के मनीराम बागड़ी ने यहां से चुनाव जीता था. इसके और 1980 में दोबारा चौधरी दिगंबर सिंह ने यह सीट जीती थी. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में कांग्रेस को सहानुभूति लहर का फायदा हुआ. यह सीट कांग्रेस के खाते में आ गई.

राम मंदिर आंदोलन के बाद से भाजपा का दबदबा : 1989 में जनता दल को यहां से जीत मिली. 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के बाद से यहां पर बीजेपी का दबदबा है. 1991 के चुनाव में साक्षी महाराज को यहां से जीत मिली थी. इसके बाद 1996, 98 और 99 में बीजेपी के टिकट से राजवीर सिंह ने यहां जीत की हैट्रिक लगाई थी. 2004 में कांग्रेस के टिकट पर मानवेंद्र सिंह को जीत मिली थी. 2009 में बीजेपी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच चुनाव गठबंधन हुआ तो और यहां से आरएलडी के जयंत चौधरी चुनाव मैदान में उतरे थे और उन्होंने जीत हासिल की थी.

2014 से यह सीट मोदी लहर में हेमा मालिनी के खाते में जा रही है. मथुरा सीट के इतिहास की बात करें तो यहां पर छह बार भाजपा, पांच बार कांग्रेस और एक बार राष्ट्रीय लोकदल ने चुनाव जीता है. बीएलडी, जनता दल और जेएनपी-एस को एक-एक बार मौका दिया है. इस सीट पर भाजपा का मुकाबला सपा और बसपा प्रत्याशियों से हमेशा रहा है. 2004 और 2009 में बहुजन समाज पार्टी यहां दूसरे नंबर पर रही थी.

मथुरा लोकसभा सीट का जातीय गणित : मथुरा लोकसभा सीट पर करीब 19 लाख से अधिक मतदाता हैं. इनमें से साढ़े तीन लाख मतदाता जाट समाज के हैं. मथुरा लोकसभा सीट में पांच विधानसभा शामिल हैं. इनमें 8 लाख 23 हजार 446 पुरुष और 9 लाख 84 हजार 255 महिला मतदाता हैं.

इसके अलावा 3 लाख ब्राह्मण, 3 लाख ठाकुर, डेढ़ लाख जाटव, डेढ़ लाख मुस्लिम हैं. वैश्य वाटर की संख्या 1 लाख के करीब है. जबकि 80000 यादव मतदाता भी यहां पर मौजूद हैं. मथुरा सीट शुरू से ही जाट बाहुल्य वाली सीट रही है. यहां पर अब तक चुने गए 17 सांसदों में से 14 सांसद इसी बिरादरी से रहे हैं.

बीते तीन चुनाव में मथुरा लोकसभा सीट पर पार्टियों का प्रदर्शन

2009 लोकसभा चुनाव : कांग्रेस 11.76% वोट, बीएसपी 28.94% वोट, बीजेपी 53.1 29% वोट, समाजवादी पार्टी 3.40% वोट, राष्ट्रीय लोक दल 52.29 % वोट.

2014 लोकसभा चुनाव : बीएसपी 16.10% वोट, बीजेपी 60.79% वोट, राष्ट्रीय लोक दल 22.62% वोट.

2014 लोकसभा चुनाव : कांग्रेस 2.55% वोट, बीजेपी 60% वोट, राष्ट्रीय लोक दल 34.21% वोट.

यह भी पढ़ें : दूसरे चरण में मेरठ से भाजपा 'राम' के सहारे, मथुरा में हेमा मालिनी की क्या लगेगी हैट्रिक, पढ़ें पूरी डिटेल

Last Updated : Apr 1, 2024, 2:42 PM IST
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