लखनऊ: इंदिरा गांधी से विद्रोह करके राजनीति में उतरने वाली मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी का भाजपा के खिलाफ विद्रोह दोनों की सियासत पर भारी पड़ सकता है. लोकसभा चुनाव 2024 में टिकट की अगली सूची आने वाली है. जिसमें सुलतानपुर और पीलीभीत को लेकर सबसे अधिक चर्चा की जा रही है.
माना जा रहा है कि वरुण गांधी जिस तरह से पिछले करीब 3 साल से लगातार भारतीय जनता पार्टी के विरोध में बयान देते रहे हैं, उससे मेनका गांधी और उनकी खुद की टिकट पर असर पड़ने जा रहा है.
वरुण गांधी लगातार विपक्ष की भाषा बोल रहे थे. किसान आंदोलन हो या बढ़ती बेरोजगारी का मुद्दा, देश की सुरक्षा हो चीन के साथ में भारत का विवाद हो ऐसे हर मुद्दे पर भी वे विपक्ष की भाषा बोलते रहे और सरकार को आड़े हाथों लेते रहे.
जिसकी वजह से भारतीय जनता पार्टी को समय-समय पर असमंजस की स्थिति का सामना करना पड़ा था. चुनाव से ठीक पहले वरुण गांधी ने अपनी भाषा में बदलाव किया. मगर माना जा रहा है कि अब काफी देर हो चुकी है.
वरुण गांधी का पीलीभीत से टिकट बुरी तरह से फंसा हुआ है. उनके साथ में उनकी मां सुलतानपुर से मेनका गांधी को भी टिकट मिलेगा, इसकी संभावना बहुत कम है. विशेषज्ञों को मानना है कि उत्तर प्रदेश में जितने भी पुराने नेताओं के टिकट कंफर्म थे, सबके नाम पहली सूची में आ गए थे.
जिन नेताओं के नाम पहली सूची में नहीं आए उनके लिए यह कंफर्म था कि उनका टिकट फंसा हुआ है. इसलिए वरुण गांधी और मेनका गांधी का भी मामला भी फंसा है.
मेनका ने इंदिरा गांधी से तकरार के बाद थामा था भाजपा का दामन: मेनका गांधी का जन्म 26 अगस्त 1956 को हुआ था. राजनीतिज्ञ होने के साथ ही पशु अधिकार कार्यकर्ता और पर्यावरणविद भी हैं. वह भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा की सदस्य और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सदस्य हैं.
वह संजय गांधी की विधवा हैं. वह चार सरकारों में मंत्री रही हैं. मेनका गांधी की पहली मुलाकात संजय गांधी से 1973 में उनके चाचा ने कराई थी. मेनका ने एक साल बाद 23 सितंबर 1974 को प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी से शादी की थी.
1975-77 के आपातकाल के दौरान संजय राजनीति में उभरे और मेनका को उनके दौरों पर लगभग हर बार उनके साथ देखा गया. क्योंकि उन्होंने अभियानों में उनकी मदद की थी. आपातकाल के दौरान, संजय का अपनी मां (इंदिरा) पर पूरा नियंत्रण था और सरकार पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) के बजाय पीएमएच (प्रधानमंत्री आवास) द्वारा चलाई जाती थी.
संजय की मृत्यु के बाद मेनका गांधी और इंदिरा गांधी के बीच नहीं बनी और उन्होंने खुद को गांधी परिवार से अलग कर लिया. वह अमेठी से चुनाव लड़ना चाहती थी, जहां से उनके पति लड़ा करते थे. मगर उनकी आयु कम होने की वजह से इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी को ही सीट से उतार दिया था. जिससे नाराज होकर मेनका गांधी ने अगले चुनाव में राजीव गांधी खिलाफ चुनाव लड़ा था. मगर इस चुनाव में वह हार गई थीं. इसके बाद वे भाजपा में शामिल हो गई थीं.
वरुण गांधी भाजपा के सबसे युवा महासचिव रहे: फिरोज वरुण गांधी एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं. लोकसभा के पीलीभीत लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सदस्य हैं. भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे हैं. पार्टी के इतिहास में सबसे युवा राष्ट्रीय महासचिव भी रहे हैं.
इससे पहले वे 16वीं लोकसभा में सुलतानपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद रह चुके थे. वरुण गांधी को मार्च 2013 में राजनाथ सिंह की टीम में भी चुना गया था. उन्हें राष्ट्रीय महासचिव चुना गया और वो पार्टी के इतिहास में सबसे युवा महासचिव रहे. वरुण गांधी का जन्म 13 मार्च 1980 को नई दिल्ली में हुआ था.