हैदराबाद: लोकसभा चुनाव 2024 का दूसरा चरण पूरा हो चुका है. अब तीसरे चरण की तैयारियां जोर-शोर से जारी है. देश की तमाम राजनीतिक पार्टियां बड़ी-बड़ी चुनावी रैलियां कर जनता को अपने पक्ष में करने के लिए मैदान में उतर चुके हैं. वैसे देखा जाए तो लोकतंत्र के इस महापर्व में लोग देख रहे हैं कि, कैसे राजनीतिक दल के नेता एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजियां करते नजर आ रहे हैं. राजनीतिक पार्टियां और उनके कद्दावर नेता गाड़ियों, हेलीकॉप्टर पर बैठकर तूफानी दौरे कर रहे हैं. सड़कों पर फ्लेक्सी, कटआउट और होर्डिंग्स दिखाई पड़ रही है. ये सब देखकर हमें चुनावी मौसम का आभास तो कराता है लेकिन चुनावी दंगल में पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में ज्यादा कोई नहीं सोच रहा है. विशेषज्ञों क सुझाव है कि चुनाव प्रचार के लिए प्लास्टिक की सामग्री के विकल्प तलाश की जानी चाहिए ताकि पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सके, या इससे कम नुकसान पहुंचे. ऐसे में विशेषज्ञों ने ग्रीन इलेक्शन यानी की हरित चुनाव पर जोड़ दे रहे हैं. उनका कहना है कि लोकतंत्र की खूबसूरती में चार चांद लगाने के लिए ग्रीन इलेक्शन का होना जरूरी है.
ग्रीन इलेक्शन क्यों आवश्यक है?
एक अध्ययन के मुताबिक 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के लिए एक उम्मीदवार द्वारा की गई हवाई यात्रा एक साल के लिए 500 अमेरिकियों के पर्यावरण बोझ के बराबर था. 96 करोड़ मतदाताओं वाले दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनावों के जिक्र से ज्यादा पर्यावरण को हुए नुकसान सुर्खियों में रहा. वैसे ही भारत में बिजली और ईंधनों का अत्यधिक उपयोग, विशाल रैलियां, ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक सभाएं, ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले लाउडस्पीकर, चुनावों के प्रतीक बन गए हैं. इतना ही नहीं भारत में चुनाव के समय जगह जगह बैनर, होर्डिंग, पोस्टर, कट आउट, प्लास्टिक से बनी सामग्री और डिस्पोजल वस्तुओं का भारी उपयोग हो रहा है. चुनाव के बाद ये सभी वस्तुएं बेकार हो जाएंगी.
ये सभी वस्तुएं किसी न किसी प्रकार से पर्यावरण को नुकसान ही पहुंचाएंगे. जानकारों की माने तो चुनाव के बाद ये बैनर, पोस्टर होर्डिंग नदी नालों में बहा दिए जाएंगे. भारी मात्रा में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले वस्तुएं मिट्टी में दब जाएंगे, जो जल और धरती के लिए नुकसानदायक साबित होगा. इसके अलावा देश भर में मतदान केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं, मतदान उपकरण और बलों को वहां ले जाया जा रहा है. मतदाताओं को मतदान केंद्रों पर आने और जाने के लिए भारी वाहनों का उपयोग करना पड़ रहा है. चुनाव प्रचार के लिए बड़ी संख्या में वाहनों का भी इस्तेमाल किया जाता है. उम्मीदवारों का रुझान एसयूवी कारों की ओर अधिक है जो अधिक ईंधन का उपयोग करती हैं. एक लीटर डीजल की खपत से लगभग 2.7 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में उत्सर्जित होती है. इस गणना से यह समझा जा सकता है कि चुनाव के कारण देशभर में कितने करोड़ किलो प्रदूषण का उत्सर्जन होगा. वाहनों से निकलने वाले धुएं पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं.
चुनाव कोई अपवाद नहीं...!
- पिछले नवंबर में विश्व बैंक द्वारा जारी एक रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया कि भारत की 80 प्रतिशत आबादी उन जिलों में रहती है जहां जलवायु संबंधी आपदाओं का खतरा अधिक है.
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 90 लाख से अधिक लोग जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न प्रतिकूल परिस्थितियों से पीड़ित हैं.
- इस संदर्भ में हर पहलू में पर्यावरण अनुकूल नीतियों का पालन करने की आवश्यकता है. चुनाव भी इसका अपवाद नहीं हैं.
ये हैं फायदे...
- हरित चुनाव (Green Election) अन्य क्षेत्रों में भी अधिक पर्यावरण-अनुकूल नीतियों का मार्ग प्रशस्त करते हैं
- हरित चुनाव से जनस्वास्थ्य को लाभ होगा. ध्वनि प्रदूषण कम होगा. हवा की गुणवत्ता बेहतर होने के आसार बढ़ जाएंगे.
- हरित चुनाव की ओर बढ़ने की प्रक्रिया में, शुरुआत में ख़र्चे अधिक हो सकते हैं. लेकिन समय के साथ लागत कम हो जाएगी. चुनाव के बाद कचरा संग्रहण और प्रबंधन का बोझ भी कम हो जायेगा.
नई पीढ़ी के लिए यह प्राथमिकता है
भारत की नई पीढ़ी ने पिछले कुछ वर्षों से हो रहे असामान्य मौसम के रुझान की पहचान की है. पिछले साल डेलॉइट सर्वेक्षण में पाया गया कि पहली बार वोट देने वाले 1.8 करोड़ मतदाताओं के लिए जलवायु परिवर्तन तीसरा सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा था.
क्या करें?
चुनाव आयोग (ईसी) 1999 से पार्टियों को चुनाव प्रचार सामग्री में प्लास्टिक/पॉलिथीन का उपयोग न करने की सलाह दे रहा है. हालांकि, इनका उपयोग तेजी से बढ़ रहा है. हरित चुनाव की दिशा में, प्रचार सामग्री से लेकर रैलियों और मतदान केंद्रों तक, सभी चरणों में पर्यावरण-अनुकूल नीतियों का पालन करना होगा.इसके लिए एक्सपर्ट की सलाह...
- पार्टियों, चुनाव आयोग, सरकारों, मतदाताओं और नागरिक समाज सभी को हरित चुनाव की ओर परिवर्तन में भाग लेना चाहिए.
- पर्यावरण-अनुकूल चुनाव प्रक्रियाओं को अनिवार्य बनाने वाला कानून बनाया जाना चाहिए. साथ ही इसे चुनाव नियमों का हिस्सा बनाया जाना चाहिए.
- विशाल रैलियां कम की जाएं. डिजिटल प्लेटफॉर्म, वर्चुअल कैंपेन और डोर-टू-डोर कैंपेन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
- पर्यावरण अनुकूल वाहनों का प्रयोग करना चाहिए. कारपूलिंग और सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.
- अधिकारियों और मतदाताओं के बीच यात्रा की दूरी कम करने के लिए मतदान केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए.
- प्लास्टिक से पूरी तरह बचें. पर्यावरण-अनुकूल कपड़ा, पुनर्नवीनीकरण कागज और खाद योग्य प्लास्टिक जैसे विकल्पों का उपयोग किया जाना चाहिए. इनका प्रयोग मतदान केंद्रों पर भी किया जाना चाहिए. कचरे का संग्रहण, वर्गीकरण एवं निपटान उचित ढंग से किया जाना चाहिए.
- मतदाता सूचियों और चुनाव सामग्री के लिए कागज का उपयोग कम किया जाना चाहिए. ई-बुक एवं ई-डाक्यूमेंट का प्रयोग करना चाहिए
डिजिटल वोटिंग
एक अध्ययन में कहा गया है कि चुनावों में कार्बन उत्सर्जन का एक प्रमुख स्रोत मतदाताओं और चुनाव सामग्री को मतदान केंद्रों तक लाने और ले जाने के लिए उपयोग की जाने वाली परिवहन प्रणालियां हैं. इसमें कहा गया है कि मतदान केंद्र पर्यावरण पर भी बोझ डाल रहे हैं. यह पता चला है कि यदि मतदाताओं को मतदान केंद्रों पर जाने की आवश्यकता के बिना डिजिटल वोटिंग प्रणाली शुरू की जाती है तो चुनाव से संबंधित कार्बन उत्सर्जन को 40 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है.
भारत निर्वाचन आयोग को डिजिटल वोटिंग के लिए प्रयास करना चाहिए. इस दिशा में वास्तव में कई चुनौतियां हैं. जिसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर जरूरी है. इन्हें विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक रूप से स्थापित किया जाना चाहिए. हैकिंग और अन्य धोखाधड़ी से बचना चाहिए. साथ ही अधिकारियों को इसके संबंध में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए काम करना चाहिए कि सभी मतदाता डिजिटल चुनाव प्रक्रिया में समान रूप से भाग लें और यह सब संकल्प से संभव है.
हरित चुनाव की ओर पहला कदम
2019 के आम चुनावों के दौरान, केरल राज्य चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से अपने अभियानों में एकल-उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं का उपयोग नहीं करने की अपील की. इसके बाद केरल हाई कोर्ट ने चुनाव प्रचार में फ्लेक्स और नॉन-बायोडिग्रेडेबल चीजों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी. इसके साथ ही विकल्प के तौर पर खिलौने और दीवारों पर लगे कागज के पोस्टर आए. चुनाव प्रक्रिया में हस्तनिर्मित कागज कलम और पेपर बैग का उपयोग किया गया.
गोवा राज्य जैव विविधता बोर्ड ने 2022 में विधानसभा चुनावों के लिए पर्यावरण-अनुकूल मतदान केंद्र स्थापित किए. सत्तारी और पोंडा के स्थानीय कारीगरों ने नारियल के गोले, ताड़ के पेड़, बांस, धान की भूसी आदि से मतदान केंद्र बनाए.
2019 में, श्रीलंकाई पोडुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) पार्टी ने दुनिया का पहला पर्यावरण-अनुकूल चुनाव अभियान आयोजित किया. पार्टी ने चुनाव प्रचार में इस्तेमाल किए गए वाहनों से होने वाले उत्सर्जन और बिजली की खपत की गणना की. इसके मुआवजे के रूप में प्रत्येक जिले में एक निश्चित संख्या में पेड़ लगाए गए. कुल मिलाकर देखा जाए तो पर्यावरण को बचाने के लिए सभी क्षेत्रों में उचित कदम उठाए जाने चाहिए. वह इसलिए क्योंकि आज दुनिया पर्यावरण की समस्या से झेल रहा है. आने वाले कल को संवारने के लिए हमें आज से ही पर्यावरण संरक्षण के विकल्प तलाशने होंगे.
ये भी पढ़ें: 'कांग्रेस के शहजादे को पीएम बनाने के लिए पाकिस्तान हुआ उतावला'