नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी शासित दिल्ली सरकार के शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डुसिब) में सरकार द्वारा नियुक्त दो सदस्यों को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया गया है. उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने डीयूएसआईबी अधिनियम, 2010 की धारा 4(2) के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए दोनों गैर-आधिकारिक सदस्यों की सेवाओं को समाप्त करने का आदेश दिया है.
एलजी ने जिन दो सदस्यों को बर्खास्त किया है, उनमें विपिन कुमार राय और अमरेंद्र कुमार शामिल हैं. विपिन राय पिछले नौ वर्षों से विशेषज्ञ सदस्य की भूमिका निभा रहे थे. वहीं, अमरेंद्र कुमार को 9 मार्च 2022 को गैर-सरकारी सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया था. उपराज्यपाल कार्यालय से जारी आदेश के अनुसार ये दोनों कानून का उल्लंघन कर मोटा पारिश्रमिक ले रहे थे.
सक्सेना ने यह भी आदेश दिया कि जीएनसीटीडी (संशोधन) अधिनियम, 2023 की धारा 45डी के साथ पठित डीयूएसआईबी अधिनियम, 2010 के प्रावधानों के अनुसार आवश्यक योग्यताएं पूरी करने वाले विशेषज्ञ सदस्यों के लिए नए नामों का एक पैनल एक सप्ताह के भीतर उनके विचार के लिए प्रस्तुत किया जाए. उन्होंने प्रशासनिक विभाग को नियम के तहत डुसिब के बोर्ड सदस्यों की सेवा शर्तों के संबंध में नियम बनाने का भी निर्देश दिया है.
अमरेंद्र कुमार को तत्कालीन शहरी विकास मंत्री की सिफारिश पर गैर-आधिकारिक-सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया था. इससे पहले भी तत्कालीन शहरी विकास मंत्री की अनुशंसा पर गैर सरकारी सदस्य बनाये गए एके गुप्ता भी अपेक्षित योग्यता पूरी नहीं करते थे. गुप्ता, जो डुसिब से एक कार्यकारी अभियंता के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे. नियुक्ति के समय उनकी आयु 65 वर्ष से अधिक थी और उन्होंने 72 वर्ष की आयु तक काम किया, जो सरकारी मानदंडों का उल्लंघन था.
प्रावधान है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी को 65 वर्ष की आयु से अधिक, यहां तक कि सलाहकार के रूप में भी काम करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. विपिन राय और गुप्ता दोनों को विशेषज्ञ सदस्यों के रूप में नियुक्त करने के बजाय डुसिब ने उन्हें बोर्ड के अधिकारियों के रूप में उपयोग किया और अपने आदेश 10 नवंबर 2015 के अनुसार उन्हें काम आवंटित करने के आदेश जारी किए. जबकि विपिन राय सदस्य (प्रशासन) के तौर पर उनकी निगरानी में रैन बसेरे संचालन करने वाली एजेंसियों के साथ समन्वय और निगरानी कर रहे थे.
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विपिन राय शुरू में 70,000 रुपये प्रतिमाह के वेतन पर कार्यरत थे, जिसे बढ़ाकर 80,500 रुपये और आगे 98,520 रुपये कर दिया गया था. यह डुसिब अधिनियम की धारा 52(2)(ए) का उल्लंघन था, क्योंकि सदस्यों को समेकित पारिश्रमिक पर नियुक्त किया गया था और सरकारी कर्मचारी के मामले में लागू वेतन वृद्धि का कोई प्रावधान नहीं था. अमरेंद्र कुमार को परिवहन भत्ते के रूप में 25,000 रुपये और टेलीफोन भत्ते के रूप में 1500 रुपये प्रति माह के अलावा 98,250 रुपये के समेकित पारिश्रमिक पर भी नियुक्त किया गया था.