नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में दूसरी पार्टी के नेताओं के आने का सिलसिला जारी है. बीजेपी ने अलग-अलग राज्यों से दो दर्जन से ज्यादा दूसरी पार्टियों के नेताओं को शामिल किया है और अभी तक पार्टी बाहर से आने वाले लोगों का आना जारी है. लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) से पहले नेताओं का पाला बदलने का सिलसिला जारी है.
कांग्रेस के एक सांसद ने मंगलवार को बीजेपी का दामन थाम लिया और बुधवार को आम आदमी पार्टी (AAP) को बड़ा झटका लगा है. AAP सांसद सुशील कुमार रिंकू और जालंधर ईस्ट से आम आदमी पार्टी के विधायक शीतल अंगूरल ने भी बीजेपी का दामन थामा. बता दें कि रिंकू के बीजेपी ज्वाइन करने की खबरें ऐसे में समय में चल रही हैं, जब आप ने जालंधर से उन्हें टिकट देने की घोषणा कर दी थी.
उधर, दोनों ने दिल्ली स्थिति बीजेपी के मुख्यालय में भाजपा का दामन थामा. यदि देखा जाए तो दक्षिण से लेकर उत्तर भारत, बंगाल, असम, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और कई राज्यों से अभी तक भाजपा में दो दर्जन से भी ज्यादा नेता पार्टी का दामन थाम चुके हैं. इनमें से कुछ महत्वपूर्ण नाम इस तरह हैं.
प्रवीण खंडेलवाल, सीता सोरेन, अर्जुन मोढवाडिया, अनिल एंटनी, हिमाचल के 9 विधायक, बीबी पाटिल, ईटेला राजेंदर, माधवीलता, अर्जुन सिंह, अशोक चौहान, सुरेश पचौरी, डॉक्टर वारा प्रसाद, रवनीत बिट्टू, नवनीत राणा, नवीन जिंदल और राजेश चौटाला समेत और ऐसे एक दर्जन से भी ज्यादा नेता हैं, जो अलग-अलग राज्यों में हाल ही में भाजपा का दामन थाम चुके हैं. इनमें से आधे से ज्यादा लोगों को पार्टी ने लोकसभा का उम्मीदवार बना दिया है.
भाजपा का दामन थामने वाले आप नेता शीतल अंगिलकार ने बुधवार को कहा की वो जल्दी ही आम आदमी पार्टी की गलत नीतियों का खुलासा करेंगे. इसी तरह पंजाब कांग्रेस से आए नेताओं ने भी कांग्रेस की गलत नीतियों को इस चुनाव में उजागर करने की ठान ली है. यदि हिमाचल में देखा जाए तो भाजपा इस चुनाव में हाल ही में 6 कांग्रेस और 3 निर्दलीय विधायकों को भी चुनावी मैदान में कांग्रेस के खिलाफ इस्तेमाल करेगी.
केरल में कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व रक्षा मंत्री अनिल एंटनी को कांग्रेस और लेफ्ट के सामने भाजपा ने उतारा है. यदि देखा जाए तो विपक्षी पार्टियों की रणनीति अब भाजपा नहीं बल्कि उन्हीं की पार्टियों से आए नेता करेंगे और अपनी पुरानी पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ मामले उजागर करेंगे. कुल मिलाकर देखा जाए तो इससे भाजपा को सहूलियत तो होगी ही साथ ही अपनी योजनाओं के साथ-साथ विपक्षी पार्टियों की धज्जियां उड़ाने में भी ये नेता हथियार की तरह काम आयेंगे.
भाजपा इस बार अपनी योजनाओं के सहारे नहीं रहना चाहती, बल्कि इस तरह से आक्रामक रणनीति भी अपना रही है, क्योंकि पीएम ने पार्टी के सामने 370 और सहयोगियों के सामने 400 का बड़ा लक्ष्य रख दिया है, जिसे मात्र अपने कार्यों और ध्रुवीकरण के नाम पर जीतना आसान नहीं होने वाला है.