नई दिल्ली: भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा और सुरक्षा उपायों की मांग को लेकर लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) ने अपना आंदोलन जारी रखने का फैसला किया है. हालांकि गृह मंत्रालय अनुच्छेद 371 के तहत विशेष प्रावधान के तहत उनकी चिंता को दूर करने पर विचार कर रहा है.
इस संबंध में ईटीवी भारत से बात करते हुए जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ सदस्य कमर अली अखून ने कहा कि गृह मंत्रालय से उनकी मांग पर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है. बता दें कि गृह मंत्री अमित शाह ने नई दिल्ली में हाल ही में हुई बैठक के दौरान आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार अनुच्छेग 371 के तहत लद्दाख के लोगों की संवैधानिक सुरक्षा सुनिश्चित करेगी.
कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के सह अध्यक्ष अखून ने कहा कि हम एक अलग राज्य और संविधान की छठी अनुसूची के तहत लद्दाख को शामिल करने की मांग कर रहे हैं. बता दें कि अनुच्छेद 371 आर्थिक और सांस्कृतिक हितों की सुरक्षा, स्थानीय चुनौतियों का मुकाबल और विशिष्ट क्षेत्र के प्रथागत कानूनों की रक्षा सुनिश्चित करता है. अनुच्छेद 371 के तहत विशेष प्रावधान महाराष्ट्र कई पूर्वोत्तर राज्यों जैसे सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, असम, नागालैंड और मणिपुर व अन्य में लागू है.
गौरतलब है कि केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से एलएबी और केडीए के छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार को नई दिल्ली में गृह मंत्री शाह और लद्दाख के मुद्दों को देखने के लिए गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की थी. अखून ने कहा कि बैठक सकारात्मक नहीं रही. वास्तव में, सरकारी प्रतिनिधियों या गृह मंत्री की ओर से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली.
अखून ने कहा कि उनकी चार सूत्री मांगें हैं जिनमें लद्दाख को राज्य का दर्जा, भारत के संविधान की छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा उपाय, केंद्र शासित प्रदेश के लिए दो लोकसभा सीटें और युवाओं के लिए रोजगार के अवसर शामिल हैं. अखून ने कहा कि हमें राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची पर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली. दो अलग-अलग संसदीय सीटों की हमारी मांग के बारे में गृह मंत्री ने कहा कि यह 2026 में होने वाली परिसीमन प्रक्रिया के दौरान मूर्त रूप लेगी.
गृह मंत्री ने कहा कि नौकरियों, भूमि और पहचान रोजगार के मुद्दे को अनुच्छेद के माध्यम से संबोधित किया जाएगा. उन्होंने कहा कि पहले के मौकों पर भी केंद्र ने 2019 में बने केंद्र शासित प्रदेश के लिए एक अलग राज्य और छठी अनुसूची की मांग को खारिज कर दिया था. भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत स्वायत्त जिला परिषदों के पास विशिष्ट विधायी, कार्यकारी, न्यायिक और वित्तीय शक्तियां हैं. वहीं मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम और असम के आदिवासी क्षेत्रों में छठी अनुसूची लागू है.
वास्तव में, ऐसी परिषदें भूमि, जंगल, नहर का पानी, खेती, ग्राम प्रशासन, संपत्ति की विरासत, विवाह और तलाक, सामाजिक रीति-रिवाजों जैसे कुछ निर्दिष्ट मामलों पर कानून बना सकती हैं. वहीं कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के वरिष्ठ सदस्य सज्जाद कारगिली ने कहा कि सरकार ने अलग राज्य और छठी अनुसूची की उनकी मांग पर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी. उन्होंने कहा कि हम छठी अनुसूची और लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की अपनी मांग वापस नहीं लेंगे. यह गृह मंत्रालय का मामला है कि वे अनुच्छेद 371 या कुछ और प्रदान करते हैं, लेकिन हम छठी अनुसूची की अपनी मांग जारी रखेंगे. कारगिली ने कहा, 'हम अलग राज्य और छठी अनुसूची के मुद्दे पर अपनी चर्चा जारी रखेंगे.' गृह मंत्रालय ने शुरुआत में 2 जनवरी, 2023 को एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था, लेकिन इसकी संरचना और एजेंडे के संबंध में उठाई गई आपत्तियों के बाद 30 नवंबर, 2023 को इसका पुनर्गठन किया गया था.
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