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विधानसभा से पास होते ही उत्तराखंड में लागू हो जाएगा UCC? जानकारों से जानें टेक्निकल प्वाइंट्स

Uttarakhand Uniform Civil Code उत्तराखंड में यूसीसी लागू करने की दिशा में धामी सरकार ने बड़ा कदम बढ़ाया है. धामी सरकार ने आज उत्तराखंड विधानसभा में ध्वनिमत से यूसीसी बिल पास किया. अब बिल को राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा.

UCC
यूसीसी
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 1, 2024, 8:29 PM IST

Updated : Feb 7, 2024, 7:42 PM IST

देहरादूनः भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले कई बड़े मुद्दों पर दांव खेल रही है. सीएए (CAA) और एनआरसी (NRC) के विफल होने के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को उत्तराखंड में लागू करके भाजपा इसे बड़ा मुद्दा बनाने की तरफ बढ़ रही है. पीएम मोदी भी यूसीसी को देशभर में लागू करने के संकेत जून 2023 में भोपाल में कार्यक्रम के दौरान पहले ही दे चुके हैं. ऐसे में यूसीसी से भाजपा को राजनीतिक फायदा होगा या नुकसान, इस पर जानकारों ने अपनी राय रखी है.

उत्तराखंड में भाजपा करेगी फार्मूले को टेस्ट: भाजपा हमेशा से समान नागरिक संहिता के पक्ष में रही है. भाजपा के साथ आम आदमी पार्टी और शिवसेना भी यूसीसी की पक्षधर है. लेकिन यूसीसी को देश में लागू करना इतना आसान भी नहीं है. राजनीतिक हिसाब से भी भाजपा को नुकसान का डर है. ऐसे में भाजपा छोटे राज्य उत्तराखंड में यूसीसी को लागू करके परीक्षा लेना चाहती है. परीक्षा के परिणाम पर आगे फैसला लिया जाएगा.

Uttarakhand Uniform Civil Code
यूसीसी ड्राफ्ट के मुख्य बिंदु

क्या कहते हैं सीएम धामी: उत्तराखंड की धामी सरकार यूसीसी को लागू करने के लिए पिछले 1 साल से कार्य कर रही है. मुख्यमंत्री बनने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने सबसे पहला फैसला राज्य में यूसीसी लागू करने का लिया. सीएम धामी इस बयान के बाद काफी सुर्खियों में रहे. अब सीएम धामी का कहना है कि सरकार ने पांच सदस्यों की टीम बनाई और उसके बाद इस पर लोगों की राय लेकर तमाम पहलू पर काम शुरू किया. अब इस काम को अंजाम तक पहुंचाया जा रहा है. सीएम धामी ने कहा उत्तराखंड, देश का पहला ऐसा राज्य बनने जा रहा है, जहां पर समान नागरिक संहिता के साथ लागू होने जा रहा है.

उन्होंने आगे कहा, यह किसी भी तरह से किसी समुदाय विशेष के खिलाफ नहीं है. हम राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड के अंतर्गत तलाक और लिव इन रिलेशनशिप के साथ-साथ विवाह पंजीकरण, बच्चों को गोद लेना, माता-पिता का अनुसरण, पति की संपत्ति पर महिला के अधिकार, सास और ससुर जैसे रिश्तों की देखभाल और अन्य मामले इसमें शामिल किए गए हैं.

Uttarakhand Uniform Civil Code
यूसीसी ड्राफ्ट के मुख्य बिंदु

क्या कहते हैं जानकार: लोगों के जेहन में अब सवाल है कि क्या 7 फरवरी को विधानसभा में यूसीसी विधेयक पास होने के बाद 8 फरवरी से ही यूसीसी राज्य में लागू हो जाएगा ? इसको लेकर ईटीवी भारत ने संविधान के जानकारों से बातचीत की. उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार और संविधान की जानकारी रखने वाले जय सिंह रावत कहना है कि राज्य सरकार ने यह फैसला जल्दबाजी में लिया है.

अगर हम संविधान को पढ़ें और देखें तो हमें मालूम होता है कि हिंदू कोड बिल 1955 और 1956 में ही बना दिए गए थे. लेकिन अब उनमें संशोधन होना है. मुस्लिम पर्सनल लॉ और क्रिश्चियन पर्सनल 1967 और 1968 में बनाए गए थे. इनमें भी फिलहाल संशोधन होना है. उधर उत्तराखंड विधानसभा में यूसीसी विधेयक पास होने के बाद अब विधेयक राज्यपाल और फिर भारत सरकार और राष्ट्रपति के पास पहुंचेगा. इसके बाद राष्ट्रपति का अधिकार है कि वह इसको कितने दिनों में लागू करते हैं.

जय सिंह रावत कहते हैं कि संविधान 254 (2) के हिसाब से भारत सरकार से राज्य सरकार ने पहले अनुमति ली होगी. अब यहां से पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति भवन पूरा अध्ययन करेगा. उसमें अभी समय लग सकता है. हो सकता है कि लोकसभा चुनाव के बाद विधेयक पर कुछ निर्णय लिए जाए. जय सिंह रावत कहते हैं कि मुझे फिलहाल ऐसा लग रहा है कि यह राजनीति के हिसाब से लिया गया फैसला है, जो लोकसभा चुनाव में भाजपा को फायदे का सौदा लग रहा है. यह काफी पेचीदा मामला है.

Uttarakhand Uniform Civil Code
UCC ड्राफ्ट के लिए इनसे लिए गए सुझाव

क्या कहता है अनुच्छेद 44: वहीं, पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर और पूर्व में SM JAIN डिग्री कॉलेज के प्रिंसिपल रहे डॉ. अवनीत कुमार घिल्डियाल बताते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य के नीति निदेशक तत्व में साफ है कि राज्य नागरिक संहिता को लेकर राज्य सरकारें काम कर सकती हैं और उसे लागू कर सकती हैं. लेकिन ये बात भी ध्यान में रखनी होगी कि कोई भी कानून केंद्र के किसी कानून या फैसले के विपरीत ना हो क्योंकि ऐसा करने का अधिकार राज्य को नहीं है. विधेयक को विधानसभा में पास करवाने के बाद राज्यपाल के पास भेजा जाएगा और एक सहमति के लिए राष्ट्रपति के पास भी भेजा जाएगा. अगर इसमें कोई खामियां नहीं हुईं तो आसानी से राष्ट्रपति की भी सहमति मिल जाएगी.

उदारहण के तौर पर लोकपाल बिल: डॉ. अवनीत कुमार घिल्डियाल इसको लेकर बीसी खंडूड़ी कार्यकाल का उदाहरण भी देते हैं. वो कहते हैं कि जब राज्य में बीसी खंडूड़ी मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने लोकपाल बिल पास करवाया था. विधानसभा से पास करवाने के बाद उसे राज्यपाल के पास भेजा गया और उसके बाद राष्ट्रपति की सहमति ली गई थी. उसके बाद विजय बहुगुणा सरकार ने उसे विधानसभा में लाकर लोकपाल की जगह लोकायुक्त में तब्दील कर दिया था. इसी तरह से अगर आने वाले समय में किसी और राजनीतिक पार्टी की सरकार आती है तो वो भी विधानसभा में इसको लाकर पलट सकती है. अगर ये बिल केंद्र लागू करता तो ऐसा संभव नहीं हो सकता. हालांकि, कोई भी सरकार इस जोखिम को नहीं उठाना चाहिए.

दो राज्यों के बीच इस तरह फंस सकता है मामला: हालांकि, जय सिंह रावत कहते हैं, उदाहरण के तौर पर माने कि कोई व्यक्ति यूपी और उत्तराखंड की सीमा पर स्थित बिहारीगढ़ में दो शादियां कर लेता है और वह देहरादून में मकान लेकर रह रहा है. या यहां पर एक शादी कर लेता है तो उस व्यक्ति पर कैसे समान नागरिक संहिता आप लागू कर सकते हैं? क्योंकि उसकी शादी तो उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा पर स्थित गांव या शहर में हुई है. इसी तरह कई बातें हैं जो आगे चलकर इसके आड़े आएंगी. हां, इतना जरूर है कि राज्य की जगह अगर भारत सरकार इसे लागू करती तो शायद कुछ और बात हो सकती थी. लेकिन भारत सरकार भी इसलिए पीछे है क्योंकि इसका असर देश के 9 फीसदी आदिवासी लोगों पर पड़ेगा जो किसी भी सरकार के लिए ठीक नहीं है. इसलिए भारत सरकार ने अपने कदम पीछे खींचे हैं.

राष्ट्रपति की अनुमति कितनी जरूरी: क्या राष्ट्रपति की अनुमति के बिना भी UCC को राज्य में लागू किया जा सकता है? इस पर जय सिंह रावत कहते हैं कि, अपनी राज्य की सीमाओं में कोई भी सरकार कानून बना सकती है. अन्य कानून बनाए जा सकते हैं लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड में खासकर मैरिज और तलाक को लेकर ज्यादा जोर दिया जा रहा है. किसी की धर्म, जाति, मजहब, शादी और तलाक को लेकर राज्य में अलग कानून नहीं बनाए जा सकते, क्योंकि एक राज्य से दूसरे राज्य में शादियां होती हैं.

राज्य में अलग-अलग समुदाय के लोग रहते हैं, ऐसे में सभी की अलग-अलग मान्यता है. इसलिए जो बातें आ रही हैं, जिसमें जमीन, जायदाद और शादी-तलाक से लेकर अन्य धार्मिक गतिविधियां हैं उन्हें संविधान के अनुच्छेद 44 की पांचवीं एंट्री के अनुसार देश की राष्ट्रपति ही इजाजत दे सकती हैं. और अगर सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम पर राज्य की विधानसभा में कुछ और कानून बनाना चाहते हैं और फिर उसे यूनिफॉर्म सिविल कोड कहना सही नहीं.

ये आएगी दिक्कत: फिलहाल सिखों में आनंद कारज का प्रावधान है और उनका एक्ट भी बना हुआ है. सिख धर्म में यह बहुत मायने रखता है. मतलब जैसे अन्य धर्म में शादियां होती हैं, इस तरह से सिख धर्म में गुरु भजन गुरु रामदास द्वारा रचित भजन की मान्यता अनुसार शादी होती है. इस शादी को 'खुशहाल जीवन की ओर कार्य करना' भी कहा जाता है. सिख समुदाय अपने धर्म ग्रंथों और ग्रंथियां के सामने सिर झुकाकर शादी कर लेते हैं. यह परंपरा या यह कहे कि ये एक्ट 1909 से चला आ रहा है.

सिख समुदाय में किसी कुंडली अथवा कोर्ट मैरिज की जरूरत नहीं होती. वह बात अलग है कि अगर कोई करना चाहे तो वह कर सकता है. ऐसे में उत्तराखंड में भी सिख समुदाय की अच्छी खासी संख्या है. अगर समान नागरिक संहिता यहां पर लागू होता है तो सिखों को आप कैसे मानेंगे? क्योंकि भारत ही नहीं, कई देशों में इसको लेकर आवाज उठी है. लेकिन हमेशा से सीख इसके विरोध में रहे हैं.

कांग्रेस कर रही ये मांग: उत्तराखंड में कांग्रेस समान नागरिक संहिता को लेकर प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा का कहना है कि नागरिक संहिता सिर्फ उत्तराखंड में ही क्यों, पूरे देश में लागू हो. सिर्फ उत्तराखंड को एक्सपेरिमेंट का राज्य क्यों बनाया जा रहा है. केंद्र और राज्य सरकार वाक्य में ही गंभीर है तो इसे एक साथ पूरे देश में लागू करें. लेकिन भाजपा ऐसा नहीं करेगी. क्योंकि उन्हें पता है कि इसके परिणाम क्या होंगे. प्रदेश अध्यक्ष कहते हैं कि उन्होंने विशेष समिति को तीन बार पत्र लिखा और पत्र में यह जानने की कोशिश की है कि आखिरकार इस ड्राफ्ट का प्रारूप क्या है. लेकिन उन्हें कोई संतोषजनक जवाब तो छोड़िए पत्र का जवाब तक नहीं मिला. फिलहाल कांग्रेस इस मुद्दे पर सरकार के अगले कदम के इंतजार में है.

बीजेपी करेगी प्रचार: वरिष्ठ पत्रकार आदेश त्यागी मानते हैं कि राज्य में अगर नागरिक संहिता लागू हो भी जाता है तो मुझे नहीं लगता इसका ज्यादा असर पड़ेगा. हां इतना जरूर है कि भाजपा मुद्दों का जिस तरह प्रचार-प्रसार करती है तो उसके बाद लोगों में एक धारणा जरूर बन जाती है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीजेपी इस मुद्दे को आने वाले लोकसभा चुनाव में सिर्फ उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में जोर-शोर जनता के बीच रखेगी. भले ही यह राष्ट्रपति भवन से पास हो या ना हो. हो सकता है कि बीजेपी को इसका कुछ हद तक फायदा भी मिल जाए.
ये भी पढ़ेंः यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की तैयारी में धामी सरकार, उत्तराखंड में मचा घमासान, एक क्लिक में जानें यूसीसी ड्राफ्ट से जुड़ी सभी बातें

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देहरादूनः भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले कई बड़े मुद्दों पर दांव खेल रही है. सीएए (CAA) और एनआरसी (NRC) के विफल होने के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को उत्तराखंड में लागू करके भाजपा इसे बड़ा मुद्दा बनाने की तरफ बढ़ रही है. पीएम मोदी भी यूसीसी को देशभर में लागू करने के संकेत जून 2023 में भोपाल में कार्यक्रम के दौरान पहले ही दे चुके हैं. ऐसे में यूसीसी से भाजपा को राजनीतिक फायदा होगा या नुकसान, इस पर जानकारों ने अपनी राय रखी है.

उत्तराखंड में भाजपा करेगी फार्मूले को टेस्ट: भाजपा हमेशा से समान नागरिक संहिता के पक्ष में रही है. भाजपा के साथ आम आदमी पार्टी और शिवसेना भी यूसीसी की पक्षधर है. लेकिन यूसीसी को देश में लागू करना इतना आसान भी नहीं है. राजनीतिक हिसाब से भी भाजपा को नुकसान का डर है. ऐसे में भाजपा छोटे राज्य उत्तराखंड में यूसीसी को लागू करके परीक्षा लेना चाहती है. परीक्षा के परिणाम पर आगे फैसला लिया जाएगा.

Uttarakhand Uniform Civil Code
यूसीसी ड्राफ्ट के मुख्य बिंदु

क्या कहते हैं सीएम धामी: उत्तराखंड की धामी सरकार यूसीसी को लागू करने के लिए पिछले 1 साल से कार्य कर रही है. मुख्यमंत्री बनने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने सबसे पहला फैसला राज्य में यूसीसी लागू करने का लिया. सीएम धामी इस बयान के बाद काफी सुर्खियों में रहे. अब सीएम धामी का कहना है कि सरकार ने पांच सदस्यों की टीम बनाई और उसके बाद इस पर लोगों की राय लेकर तमाम पहलू पर काम शुरू किया. अब इस काम को अंजाम तक पहुंचाया जा रहा है. सीएम धामी ने कहा उत्तराखंड, देश का पहला ऐसा राज्य बनने जा रहा है, जहां पर समान नागरिक संहिता के साथ लागू होने जा रहा है.

उन्होंने आगे कहा, यह किसी भी तरह से किसी समुदाय विशेष के खिलाफ नहीं है. हम राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड के अंतर्गत तलाक और लिव इन रिलेशनशिप के साथ-साथ विवाह पंजीकरण, बच्चों को गोद लेना, माता-पिता का अनुसरण, पति की संपत्ति पर महिला के अधिकार, सास और ससुर जैसे रिश्तों की देखभाल और अन्य मामले इसमें शामिल किए गए हैं.

Uttarakhand Uniform Civil Code
यूसीसी ड्राफ्ट के मुख्य बिंदु

क्या कहते हैं जानकार: लोगों के जेहन में अब सवाल है कि क्या 7 फरवरी को विधानसभा में यूसीसी विधेयक पास होने के बाद 8 फरवरी से ही यूसीसी राज्य में लागू हो जाएगा ? इसको लेकर ईटीवी भारत ने संविधान के जानकारों से बातचीत की. उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार और संविधान की जानकारी रखने वाले जय सिंह रावत कहना है कि राज्य सरकार ने यह फैसला जल्दबाजी में लिया है.

अगर हम संविधान को पढ़ें और देखें तो हमें मालूम होता है कि हिंदू कोड बिल 1955 और 1956 में ही बना दिए गए थे. लेकिन अब उनमें संशोधन होना है. मुस्लिम पर्सनल लॉ और क्रिश्चियन पर्सनल 1967 और 1968 में बनाए गए थे. इनमें भी फिलहाल संशोधन होना है. उधर उत्तराखंड विधानसभा में यूसीसी विधेयक पास होने के बाद अब विधेयक राज्यपाल और फिर भारत सरकार और राष्ट्रपति के पास पहुंचेगा. इसके बाद राष्ट्रपति का अधिकार है कि वह इसको कितने दिनों में लागू करते हैं.

जय सिंह रावत कहते हैं कि संविधान 254 (2) के हिसाब से भारत सरकार से राज्य सरकार ने पहले अनुमति ली होगी. अब यहां से पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति भवन पूरा अध्ययन करेगा. उसमें अभी समय लग सकता है. हो सकता है कि लोकसभा चुनाव के बाद विधेयक पर कुछ निर्णय लिए जाए. जय सिंह रावत कहते हैं कि मुझे फिलहाल ऐसा लग रहा है कि यह राजनीति के हिसाब से लिया गया फैसला है, जो लोकसभा चुनाव में भाजपा को फायदे का सौदा लग रहा है. यह काफी पेचीदा मामला है.

Uttarakhand Uniform Civil Code
UCC ड्राफ्ट के लिए इनसे लिए गए सुझाव

क्या कहता है अनुच्छेद 44: वहीं, पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर और पूर्व में SM JAIN डिग्री कॉलेज के प्रिंसिपल रहे डॉ. अवनीत कुमार घिल्डियाल बताते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य के नीति निदेशक तत्व में साफ है कि राज्य नागरिक संहिता को लेकर राज्य सरकारें काम कर सकती हैं और उसे लागू कर सकती हैं. लेकिन ये बात भी ध्यान में रखनी होगी कि कोई भी कानून केंद्र के किसी कानून या फैसले के विपरीत ना हो क्योंकि ऐसा करने का अधिकार राज्य को नहीं है. विधेयक को विधानसभा में पास करवाने के बाद राज्यपाल के पास भेजा जाएगा और एक सहमति के लिए राष्ट्रपति के पास भी भेजा जाएगा. अगर इसमें कोई खामियां नहीं हुईं तो आसानी से राष्ट्रपति की भी सहमति मिल जाएगी.

उदारहण के तौर पर लोकपाल बिल: डॉ. अवनीत कुमार घिल्डियाल इसको लेकर बीसी खंडूड़ी कार्यकाल का उदाहरण भी देते हैं. वो कहते हैं कि जब राज्य में बीसी खंडूड़ी मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने लोकपाल बिल पास करवाया था. विधानसभा से पास करवाने के बाद उसे राज्यपाल के पास भेजा गया और उसके बाद राष्ट्रपति की सहमति ली गई थी. उसके बाद विजय बहुगुणा सरकार ने उसे विधानसभा में लाकर लोकपाल की जगह लोकायुक्त में तब्दील कर दिया था. इसी तरह से अगर आने वाले समय में किसी और राजनीतिक पार्टी की सरकार आती है तो वो भी विधानसभा में इसको लाकर पलट सकती है. अगर ये बिल केंद्र लागू करता तो ऐसा संभव नहीं हो सकता. हालांकि, कोई भी सरकार इस जोखिम को नहीं उठाना चाहिए.

दो राज्यों के बीच इस तरह फंस सकता है मामला: हालांकि, जय सिंह रावत कहते हैं, उदाहरण के तौर पर माने कि कोई व्यक्ति यूपी और उत्तराखंड की सीमा पर स्थित बिहारीगढ़ में दो शादियां कर लेता है और वह देहरादून में मकान लेकर रह रहा है. या यहां पर एक शादी कर लेता है तो उस व्यक्ति पर कैसे समान नागरिक संहिता आप लागू कर सकते हैं? क्योंकि उसकी शादी तो उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा पर स्थित गांव या शहर में हुई है. इसी तरह कई बातें हैं जो आगे चलकर इसके आड़े आएंगी. हां, इतना जरूर है कि राज्य की जगह अगर भारत सरकार इसे लागू करती तो शायद कुछ और बात हो सकती थी. लेकिन भारत सरकार भी इसलिए पीछे है क्योंकि इसका असर देश के 9 फीसदी आदिवासी लोगों पर पड़ेगा जो किसी भी सरकार के लिए ठीक नहीं है. इसलिए भारत सरकार ने अपने कदम पीछे खींचे हैं.

राष्ट्रपति की अनुमति कितनी जरूरी: क्या राष्ट्रपति की अनुमति के बिना भी UCC को राज्य में लागू किया जा सकता है? इस पर जय सिंह रावत कहते हैं कि, अपनी राज्य की सीमाओं में कोई भी सरकार कानून बना सकती है. अन्य कानून बनाए जा सकते हैं लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड में खासकर मैरिज और तलाक को लेकर ज्यादा जोर दिया जा रहा है. किसी की धर्म, जाति, मजहब, शादी और तलाक को लेकर राज्य में अलग कानून नहीं बनाए जा सकते, क्योंकि एक राज्य से दूसरे राज्य में शादियां होती हैं.

राज्य में अलग-अलग समुदाय के लोग रहते हैं, ऐसे में सभी की अलग-अलग मान्यता है. इसलिए जो बातें आ रही हैं, जिसमें जमीन, जायदाद और शादी-तलाक से लेकर अन्य धार्मिक गतिविधियां हैं उन्हें संविधान के अनुच्छेद 44 की पांचवीं एंट्री के अनुसार देश की राष्ट्रपति ही इजाजत दे सकती हैं. और अगर सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम पर राज्य की विधानसभा में कुछ और कानून बनाना चाहते हैं और फिर उसे यूनिफॉर्म सिविल कोड कहना सही नहीं.

ये आएगी दिक्कत: फिलहाल सिखों में आनंद कारज का प्रावधान है और उनका एक्ट भी बना हुआ है. सिख धर्म में यह बहुत मायने रखता है. मतलब जैसे अन्य धर्म में शादियां होती हैं, इस तरह से सिख धर्म में गुरु भजन गुरु रामदास द्वारा रचित भजन की मान्यता अनुसार शादी होती है. इस शादी को 'खुशहाल जीवन की ओर कार्य करना' भी कहा जाता है. सिख समुदाय अपने धर्म ग्रंथों और ग्रंथियां के सामने सिर झुकाकर शादी कर लेते हैं. यह परंपरा या यह कहे कि ये एक्ट 1909 से चला आ रहा है.

सिख समुदाय में किसी कुंडली अथवा कोर्ट मैरिज की जरूरत नहीं होती. वह बात अलग है कि अगर कोई करना चाहे तो वह कर सकता है. ऐसे में उत्तराखंड में भी सिख समुदाय की अच्छी खासी संख्या है. अगर समान नागरिक संहिता यहां पर लागू होता है तो सिखों को आप कैसे मानेंगे? क्योंकि भारत ही नहीं, कई देशों में इसको लेकर आवाज उठी है. लेकिन हमेशा से सीख इसके विरोध में रहे हैं.

कांग्रेस कर रही ये मांग: उत्तराखंड में कांग्रेस समान नागरिक संहिता को लेकर प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा का कहना है कि नागरिक संहिता सिर्फ उत्तराखंड में ही क्यों, पूरे देश में लागू हो. सिर्फ उत्तराखंड को एक्सपेरिमेंट का राज्य क्यों बनाया जा रहा है. केंद्र और राज्य सरकार वाक्य में ही गंभीर है तो इसे एक साथ पूरे देश में लागू करें. लेकिन भाजपा ऐसा नहीं करेगी. क्योंकि उन्हें पता है कि इसके परिणाम क्या होंगे. प्रदेश अध्यक्ष कहते हैं कि उन्होंने विशेष समिति को तीन बार पत्र लिखा और पत्र में यह जानने की कोशिश की है कि आखिरकार इस ड्राफ्ट का प्रारूप क्या है. लेकिन उन्हें कोई संतोषजनक जवाब तो छोड़िए पत्र का जवाब तक नहीं मिला. फिलहाल कांग्रेस इस मुद्दे पर सरकार के अगले कदम के इंतजार में है.

बीजेपी करेगी प्रचार: वरिष्ठ पत्रकार आदेश त्यागी मानते हैं कि राज्य में अगर नागरिक संहिता लागू हो भी जाता है तो मुझे नहीं लगता इसका ज्यादा असर पड़ेगा. हां इतना जरूर है कि भाजपा मुद्दों का जिस तरह प्रचार-प्रसार करती है तो उसके बाद लोगों में एक धारणा जरूर बन जाती है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीजेपी इस मुद्दे को आने वाले लोकसभा चुनाव में सिर्फ उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में जोर-शोर जनता के बीच रखेगी. भले ही यह राष्ट्रपति भवन से पास हो या ना हो. हो सकता है कि बीजेपी को इसका कुछ हद तक फायदा भी मिल जाए.
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Last Updated : Feb 7, 2024, 7:42 PM IST
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