लखनऊः आजादी के बाद भारत में 18वीं बार आम चुनाव हो रहे हैं. सभी राजनीतिक दलों ने सत्ता का सुख पाने के लिए जोर-आजमाइश के साथ वो सभी पैतरें अपना रहे हैं, जिससे मतदाताओं को रिझा सकें. इसके लिए उम्मीदवार से लेकर पार्टी स्तर पर भी खूब पैसे उड़ाए जा रहे हैं. बड़े राजनीतिक दल जहां मीडिया, सोशल मीडिया में विज्ञापन देने के साथ पारंपरिक तरीके से प्रचार कर करोंड़ों रुपये खर्च कर रहे हैं. जिसकी वजह से हर चुनाव में खर्च का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है. लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों और सरकारी खर्चों का छोटे राज्यों के बजट के बराबर पहुंच जाता है. 1952 से लेकर 2019 लोकसभा चुनाव तक चुनावी खर्च का आंकड़ा करीब 900 गुना बढ़ गया है. अब तक हुए लोकसभा चुनाव में 17 हजार 930 करोड़ रुपये अधिक खर्च हो चुका है. वहीं, 2024 में अनुमानतः यह आंकड़ा 1500 गुना बढ़ने की उम्मीद है. ये आंकड़े चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों द्वारा दिए गए ब्यौरे के अनुसार हैं. जबकि पार्टी और उम्मीदवार चुनाव के दौरान किए गए बहुत से खर्च चुनाव आयोग छिपा लेते हैं. पढ़िए हर लोकसभा चुनाव में आपकी गाढ़ी कमाई से कितना खर्च होता है.
पहली बार 10.5 करोड़ रुपये चुनाव में हुए थे खर्च: जब 1947 में भारत आजाद हुआ तो सर्वसम्मति से बिना चुनाव के ही जवाहरलाल नेहरू का प्रधानमंत्री घोषित कर दिया गया था. इसके बाद 1950 में संविधान लागू होने के बाद देश में पहली बार 1951-1952 में पहली बार आम चुनाव यानी लोकसभा चुनाव हुआ था. 489 सीटों पर हुए चुनाव में करीब 17.3 करोड़ मतदाता रजिस्टर्ड थे. जबकि 44.87 फीसद ने मतदान किया था और कांग्रेस से जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बने थे. चुनाव आयोग के मुताबिक इस लोकसभा चुनाव में करीब 10.5 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. एक वोटर पर लगभग 1.67 रुपये खर्च हुए थे.
सबसे कम खर्च 1957 चुनाव में हुआ था: वहीं, दूसरा लोकसभा चुनाव 1957 में 504 सीटों पर हुआ था. इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी को जीत मिली और जवाहर लाल नेहरू फिर प्रधानंमत्री बने. लेकिन चुनाव में 1952 के अपेक्षा चुनावी खर्च आधा हो गया था. इस चुनाव में 5.9 करोड़ रुपये खर्च हुए और कुल 193,652,179 वोटर पंजीकृत थे. इस चुनाव में प्रति मतदाता पर करीब 30 पैसे ही खर्च हुए थे.
सिर्फ 6 दिन में हो गए थे चुनाव: 1962 में हुआ तीसरा लोकसभा चुनाव सिर्फ 6 दिन में ही संपन्न हो गया था.19 से 25 फरवरी 1962 के बीच में पूरे देश में चुनाव कराए गए थे. 508 सीटों पर हुए इस चुनाव में कांग्रेस ने 361 जीतीं और फिर जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बने. इस चुनाव में 21 करोड़ 63 लाख 569 मतदाता पंजीकृत थे और 55.42 फीसदी वोटरों ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था. इस चुनाव में करीब 7.3 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इसके अनुसार प्रति वोटरों पर लगभग 34 पैसे खर्च हुए थे.
1967 में सबसे कम समय में चुनाव हुआ था संपन्न: 1967 में हुआ चौथा लोकसभा चुनाव इतिहास चुनाव था. अब तक इतिहास में सबसे कम दिनों में चुनाव हुआ था. सिर्फ 4 दिनों में यह चुनाव संपन्न हो गया था. 17 से 21 फरवरी 1967 के बीच 528 सीटों के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस ने 283 सीटें जीतीं और इंदिरा गांधी देश की पहली प्रधानमंत्री बनीं. इस चुनाव में 10.8 करोड़ रुपये खर्च हुए. जो पिछले चुनाव से 3.5 करोड़ रुपये खर्च हुआ. इस चुनाव में करीब 250,207,401 मतदाता थे, जिसमें 61.04 फीसद ने मतदान किया था. इस तरह करीब 42 पैसे प्रति मतदाता पर खर्च हुए थे. पांचवी लोकसभा चुनाव 1971 में 521 सीटों पर हुआ था. 1 से 10 मार्च 1971 के बीच हुए चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आर) ने 382 सीटें जीतने में कामयाब रही और दोबारा इंदिरा गांधी प्रधानंमत्री बनीं. इस चुनाव में 11.6 करोड़ रुपये हुए खर्च हुए थे. जबकि कुल 274,189,132 मतदाता रजिस्टर्ड थे, वहीं 55.27 वोटरों ने मताधिकार प्रयोग किया था. इस चुनाव में 42 पैसे से अधिक एक वोटर पर खर्च हुआ था.
1977 में पहली गांधी परिवार के बाहर का प्रधानमंत्री बने थेः छठी लोकसभा का चुनाव 16 से 20 मार्च 1977 के बीच हुए थे. यह चुनाव आपातकालीन अवधि के दौरान हुए थे. 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक राष्ट्रीय आपातकाल के घोषित होने के कारण इस चुनाव में इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव में गठबंधन जनता दल से मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने गए. देश में यह पहली बार था, जब गांधी परिवार के हाथ से सत्ता गई थी. इस चुनाव में 23 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. जोकि पिछले चुनाव के मुकाबले करीब 2 गुना था. 544 सीटों पर हुए चुनाव में 321,174,327 वोटर पंजीकृत थे, जिसमें से 60.49 फीसद मतदाताओं ने वोट दिया था. इस तरह करीब 71 पैसे एक वोटर पर खर्च हुए थे. देश में सांतवां लोकसभा चुनाव सिर्फ तीन साल बाद 1980 में हुए. 531 सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस (आर) ने 353 सीट जीतीं और तीसरी बार इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं. इस चुनाव में खर्च करीब दोगुना बढ़ गया. इस चुनाव में 54.8 करोड़ रपुए खर्च हुए. जिसमें पंजीकृत 356,205,329 मतदाता में से 56.92 ने मतदान किया था. इस चुनाव में एक वोटर पर 1.53 रुपये खर्च हुए थे.
1984 में 63.56 मतदाताओं ने किया था मतदान: इसी तरह 1984 में हुए आठवें लोकसभा चुनाव में 81.5 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इस चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव कुमार प्रधानमंत्री बने थे. इस चुनाव में कांग्रेस ने 516 सीटों में से 404 सीटें जीतीं थीं. इस चुनाव में 379,540,608 वोटर रजिस्टर्ड थे, जिसमें से 63.56 फीसद ने मतदान किया था. इस चुनाव में एक वोटर पर लगभग 2.15 रुपये खर्च हुए थे.
1989 में एक वोटर खर्च हुए थे 3.09 रुपये: देश में नौवां लोकसभा चुनाव 1989 में चुनाव हुआ, जिसमें चुनाव खर्च करीब दोगुना बढ़ गया. 543 सीटों पर हुए इस चुनाव में 154.2 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इस चुनाव में कुल 498,906,129 मतदाता रजिस्टर्ड थे, जिसमें से 61.95 ने मतदान किया था. इस चुनाव में एक वोटर पर करीब 3.09 पैसे खर्च हुए थे. वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री की शपथ ली थी.
11वीं लोकसभा चुनाव में खर्च हुए थे 359.1 करोड़ : देश में 11वां लोकसभा चुनाव 16 महीने बाद ही हुआ था. 523 सीटों पर हुए चुनाव में 232 सीटें जीतकर सरकार बनाई और पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री चुने गए. इस चुनाव में जमकर पैसा खर्च हुआ. इस चुनाव में 359.1 करोड़ रुपये खर्च हुए. पिछले चुनाव के मुकाबले 204 करोड़ रुपए अधिक खर्च हुए. जबकि देश में रजिस्टर्ड मतदाता 498,363,801 थे, जबकि 56.73 ने मतदान किया. इस तरह 7.32 रुपये एक मतदाता पर खर्च हुए.
1997 में चुनावी खर्च ने पार किया था 500 करोड़ का आंकड़ा: वहीं, 1997 में हुए 12वें लोकसभा चुनाव में 597.3 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. जिसमें पहली बार भारतीय जनता पार्टी के सरकार बनी और अटल बिहारी वाजपेई प्रधानमंत्री बने. इसके बाद 2 साल बाद ही देश में तेरवहीं लोकसभा चुनाव 1998 में हुआ, जिसमें 666.2 करोड़ रुपये खर्च हुए. यह भी सरकार नहीं ज्यादा दिन नहीं चल पाई और फिर 1999 में चौदहवीं लोकसभा चुनाव हुआ, जिसमें 947.7 करोड़ रुपये खर्च हुए. इन तीनों में चुनाव भारतीय जनता पार्टी के सरकार बनी और अटल बिहारी प्रधानमंत्री बने.
एक वोटर पर औसतन 15 रुपये से अधिक खर्च हुए: 14वां लोकसभा चुनाव 2004 में 20 अप्रैल और 10 मई 2004 के बीच चार चरणों में हुआ था. 543 सदस्यों को चुनने के लिए 670 मिलियन से अधिक लोग वोटर रजिस्टर्ड थे. पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से चुनाव कराया गया था. इस चुनाव में 145 सीटें जीतने के बाद कांग्रेस ने गठबंधन कर सरकार बनाई थी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने. इस चुनाव में 1016.1 करोड़ रुपये खर्च हुए. इस चुनाव में प्रति मतदाता पर 15 रुपये से अधिक खर्च हुए थे. इसी तरह 2009 में 15वीं लोकसभा चुनाव में 1114.4 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इस चुनाव में 716,985,101 मतदाता रजिस्टर्ड थे, जिसमें से 58.21 फीसद ने मतदान किया था.
पहली बार 9 चरण में हुए चुनाव से बढ़ा खर्च: 16वां लोकसभा चुनाव 2014 में हुआ था. पहली बार देश में 9 चरणों में मतदान कराया गया था. इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी 282 सीटें जीत कर सत्ता में वापसी की और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने. इस चुनाव में खर्च का आंकड़ा तेजी से बढ़ गया. 2014 लोकसभा चुनाव में 3870.3 करोड़ रुपये खर्च हुए. इस चुनाव में सबसे अधिक खर्च के साथ मतदान फीसद से भी सबसे अधिक हुआ था, 64 फीसद मतदाताओं ने मतदान किया.
90 करोड़ मतदाताओं के लिए 9000 करोड़ हुए खर्च: भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ा और 303 सीटें जीतीं. इस बार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री चुने गए, लेकिन चुनावी खर्च में बेहताशा वृद्धि हो गई. इस चुनाव में 9000 करोड़ रुपये खर्च किए गए. जोकि पिछले चुनाव के अपेक्षा लगभग तीन गुना अधिक था. इस चुनाव में 90 करोड़ मतदाता थे, जिसमें से 67.4 फीसद ने मतदान किया था. इस चुनाव में एक वोटर पर करीब 100 रुपये खर्च हुए.
इस बार 15000 करोड़ हो सकता है चुनावी खर्च: वहीं, 2024 लोकसभा चुनाव 7 चरणों में हो रहे हैं. इस चुनाव में धुआंधार खर्च प्रचार से लेकर विभिन्न गतिविधियों में किए जा रहे हैं. पिछले चुनाव में खर्च हुए आंकड़ों से पता चल रहा है कि इस बार का चुनाव खर्च 15000 करोड़ से अधिक पहुंच सकता है. भाजपा से लेकर कांग्रेस करोड़ों रुपये का विज्ञापन दे रही है. वहीं, स्टार प्रचारकों पर भी करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं. बड़े-बड़े नेताहेलिकॉप्टर और हवाई जहाज से पहुंचकर जनसभा को संबोधित कर रहे हैं. वहीं, इस बार करीब 96.8 करोड़ मतदाता देश में हैं, जो प्रधानमंत्री चुनेंगे.
इसे भी पढ़ें-'सोशल वार' में भाजपा को कड़ी टक्कर दे रही बसपा; क्या फॉलोवर वोटर में होंगे तब्दील?