वायनाड: केरल के वायनाड भूस्खलन कभी न भूलने वाली त्रासदी बन गई. लैंडस्लाइड के बाद से मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है और राहत बचाव अभियान सोमवार को लगातार सातवें दिन भी जारी रहा. मृतकों का आंकड़ा 387 हो गई. राहत कार्यों के तहत वायनाड में कुल 53 शिविर बनाए गए हैं. 30 जुलाई को वायनाड के चूरलमाला और मुंडक्कई में हुए भीषण भूस्खलन ने बड़े पैमाने पर तबाही मचाई और जान-माल का नुकसान हुआ. वायनाड त्रासदी के बीच चूरलमाला में सेंट सेबेस्टियन चर्च में पहला रविवार का सामूहिक प्रार्थना समारोह किसी अन्य रविवार की तरह नहीं था.
सेंट सेबेस्टियन चर्च में अश्रुपूर्ण विदाई
वायनाड त्रासदी के बीच चूरलमाला के सेंट सेबेस्टियन चर्च में रविवार को सामूहिक प्रार्थना सभा आयोजन किया गया. लेकिन यहां पहले जैसी खुशी नहीं दिखी. माहौल में सन्नाटा और त्रासदी के बाद बचे हुए लोगों को चेहरे पर दुख ही दुख दिखाई दे रही थी. लोगों के आंखों में आंसू थे. रविवार के दिन सेंट सेबेस्टियन चर्च में लोग त्रासदी में मारे गए लोगों को अश्रुपूर्ण विदाई देने के लिए एकत्रित हुए.
प्रार्थना सभा लोगों के चेहरे पर अपनों के खोने का गम साफ दिखाई दे रहा था. लोग अपने आंखों के आंसूओं को बहने से रोक नहीं पा रहे थे. इस दौरान पैरिशियनों ने मृतकों की तस्वीरों के सामने प्रार्थना की. अपनों की जुदाई का गम ने चर्च के माहौल का काफी गमगीन कर दिया था. पैरिश पादरी जितिन ने ईटीवी भारत को बताया कि, पैरिश में 36 परिवार थे. उनमें से 9 लोगों की भूस्खलन में मौत हो गई. जिनमें से केवल 7 लोगों के ही शव मिले, जिन्हें चर्च के कब्रिस्तान में दफनाया गया. दो अभी भी लापता हैं."
पादरी ने ईटीवी भारत के साथ एक भावनात्मक इंटरव्यू में कहा कि, कई लोग ऐसे हैं जिनको अपने रिश्तेदारों के साथ रहना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि, पैरिशियनों के 36 घरों में से पांच पूरी तरह से तबाह और बर्बाद हो चुके हैं और अन्य पांच की स्थिति विकट है.
चूरलमाला और मुंडकाई का शिव मंदिर
वायनाड में आई भीषण तबाही में मंदिर भी खंडहर में तब्दिल हो गए. चूरलमाला और मुंडकाई में एक शिव मंदिर था, जो सेंट सेबेस्टियन चर्च के ज्यादा दूर नहीं था. यह एक ऐसा पूजा स्थल था जो सभी धार्मिक सीमाओं से परे थे. यहां इस मंदिर में हिंदुओं, मुसलमानों और ईसाइयों का समान रूप से स्वागत होता था. यहां का त्यौहार एक का उत्सव माना जाता था, जो सभी क्षेत्रों के लोगों को आकर्षित करते थे.
भारी बारिश और भूस्खलन
भूस्खलन वाले दिन, तमिलनाडु के पंडालुर के पुजरी कल्याण कुमार ने हर रोज की तरह मंदिर में दैनिक पूजा की. वह मंदिर समिति की तरफ से उपलब्ध कराए गए एक छोटे से घर में रहते थे. तेज बारिश के बारे में ग्रामीणों की चेतावनी के बावजूद, कुमार मंदिर को छोड़कर कहीं नहीं गए. तेज बारिश के कारण हुए भूस्खलन ने मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया और कुमार को अपने साथ बहा ले गया.
कभी जीवंत मंदिर अब खंडहर में तब्दील हो चुका है. केवल फर्श और पास में स्थित बरगद का पेड़ जो कि मिट्टी और पानी में आधा दबा हुआ है जो अतीत की भयानक तस्वीर की याद दिलाता है. चूरलमाला निवासी शाजी मोन ने भारी मन से ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा, "हमारा गांव राजनीतिक रूप से संवेदनशील था, लेकिन हमने मिलकर इस मंदिर का निर्माण किया. हिंदू, मुस्लिम और ईसाई सभी ने इसे पुनर्निर्मित करने के लिए एकजुटता दिखाई. यह हमारा सामूहिक प्रयास था और अब सब कुछ खत्म हो गया है....हमारे दुख शब्दों से परे हैं."
वायनाड भूस्खलन ने लोगों को दिया गम
एक अन्य ग्रामीण सोबिन ने भी गहरा दुख प्रकट करते हुए कहा, 'हम इस मंदिर को चरणबद्ध तरीके से विकसित कर रहे थे. जीर्णोद्धार अभी-अभी पूरा हुआ था. मंदिर उत्सव हमारे लिए एक राष्ट्रीय उत्सव था, ऐसा उत्सव जो जाति और धर्म से परे सभी को एक साथ लाता था. लेकिन भूस्खलन के बाद अब सब खत्म हो गया है."
वायनाड जिले के कई इलाकों में आई भीषण तबाही ने अपने निशान छोड़ दिए हैं. गांव में भूस्खलन के बाद आठ अंजान पीड़ितों के शवों को पुथुमाला में हैरिसन मलयालम बागान में एक साथ दफनाया गया. इस दौरान यहां सर्वधर्म प्रार्थना की गई और अलग-अलग समुदाय के लोगों ने सामूहिक रूप से शोक मनाया.
भूस्खलन में तबाह हो गई कई सारी जिंदगी
मुंडकाई भूस्खलन में 67 लोगों की जान चली गई, जिनमें से कई के शव अभी भी अज्ञात हैं. शुरू में सभी 67 शवों का एक साथ अंतिम संस्कार करने की योजना थी, लेकिन बाद में सड़न के कारण उनमें से आठ को दफनाने का निर्णय लिया गया. दफन एक निर्जन क्षेत्र में हुआ, जहां पहले भी भूस्खलन हुआ था. मृतकों को दफनाने के लिए 64 सेंट भूमि आवंटित की गई थी.
अब वे लोग बस में सवार नहीं होंगे.....
भूस्खलन के छह दिन बाद केएसआरटीसी बस को फिर से यात्रियों के लिए सड़क पर उतार दिया गया है. बस चूरलमाला, मुंडकाई और पुंजिरी मोटा क्षेत्रों के लोगों के लिए एकमात्र साधन है. वर्षों में स्थानीय लोगों और इस बस के बीच एक परिवार की तरह रिश्ता विकसित हुआ. जब बस सुबह 6 बजे निकलती थी, तो मुंडकाई के नियमित यात्री होते थे. लेकिन अब यह अज्ञात है कि उनमें से कितने यात्रा कर पाएंगे. इस बस सेवा को चलाते समय कई लोगों को कई चेहरों की तलाश करनी होगी. जो लोग साथ में यात्रा करते हैं, उनके पास अब वे लोग नहीं होंगे जो एक ही सीट पर कभी यात्रा करते थे. केएसआरटीसी बस के ड्राइवर शाजी ने बताया कि उनके अधिकांश नियमित यात्री भयानक भूस्खलन में अपनी जान गंवा बैठे.
शाजी ने ईटीवी भारत को बताया, "इन ग्रामीणों के लिए सार्वजनिक परिवहन का यही एकमात्र साधन था. वे यात्रा करते थे और एक परिवार की तरह जुड़ते थे. जिन लोगों को मेप्पाडी और अन्य शहरों में जाना होता था, वे मुंडक्कई से हमारी सुबह की यात्रा पर यात्रा करते थे. यह विश्वास करना कठिन है कि हमने अपने कई नियमित यात्रियों को एक साथ खो दिया."
बता दें कि, भूस्खलन आपदा के अज्ञात पीड़ितों को सर्वधर्म प्रार्थना के साथ पुथुमाला में हैरिसन प्लांटेशन की भूमि पर 16 लोगों को कब्र में दफनाया गया. पुथुमाला में कई लोग अपने प्रियजनों को अंतिम श्रद्धांजलि देने पहुंचे. अंतिम संस्कार के वक्त जनप्रतिनिधि भी मौजूद रहे. शवों को यहां लाने से पहले पोस्टमार्टम प्रक्रियाओं के लिए डॉ अब्दुल कलाम कम्युनिटी हॉल ले जाया गया. बाद में पुथुमाला में सर्वधर्म प्रार्थना के साथ शवों को दफनाया गया.
ये भी पढ़ें: वायनाड भूस्खलन: रेस्क्यू ऑपरेशन 7वें दिन भी जारी, मृतकों का आंकड़ा 387 हुआ